विवाहेतर संबंध: कुछ रोचक ज्योतिषीय योग

विवाहेतर संबंध: कुछ रोचक ज्योतिषीय योग  

सी. एल. अस्थाना
व्यूस : 19108 | जनवरी 2007

विवाहेतर या एकाधिक संबंधों के कतिपय ज्योतिषीय योग यदि शुक्र व बुध की युति दशम, सप्तम या लग्न भाव में हो। यदि मंगल और शुक्र की युति दशम, सप्तम या लग्न भाव में हो। चतुर्थ, दशम भाव में मंगल व शुक्र स्थित हो तथा तुला, मेष, वृश्चिक या वृष राशियां हों। यदि एकादश भाव में वृष, वृश्चिक, तुला या मेष राशि हों और उस भाव में मंगल व शुक्र स्थित हों। यदि चंद्र से सप्तम स्थान पर शनि तथा दशम स्थान पर शुक्र स्थित हों। यदि सूर्य, चंद्र और मंगल सप्तम स्थान पर युति में हों।

यदि शुक्र और गुरु पाप ग्रहों से युत द्वितीय, षष्ठ व सप्तम भाव में हों। यदि दशम भाव में तुला या वृष राशि हो तथा बुध, शुक्र व शनि उस भाव में हों। सूर्य, चंद्र, मंगल, शुक्र, शनि ग्रह युत हो, तो परायी स्त्रियों से संबंध होगा। सूर्य, चंद्र शुक्र या बुध, शुक्र, शनि अवैध प्रेम करने वाला। बहु विवाह योग (द्विभार्या योग) यदि शुक्र द्विस्वभाव राशि में हो और उसका स्वामी ग्रह उच्च हो तथा सप्तमेश भी निर्बल ना हो, तो जातक की एक से अधिक पत्नियां होगी। लग्नेश लग्न में हो और उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि न हो, तो उस जातक की एक से अधिक पत्नियां होंगी।


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अकेला अष्टमेश लग्न या सप्तम भावों में स्थित हो, तो बहुविवाह योग होता है। यदि मंगल लग्न में तथा सप्तमेश, अष्टम में अष्टमेश द्वादश भाव में हो, तो बहुविवाह योग होगा। यदि धनेश षष्ठ भाव में हो तथा सप्तम भाव में पाप ग्रह हो, तो बहुविवाह योग होता है। यदि सप्तमेश अपनी नीच राशि में हो या शत्रु राशि में शुभ ग्रहों के साथ हो, तो बहुविवाह योग होता है। यदि धन भाव में अधिक ग्रह स्थित हो और धनेश की उन पर दृष्टि ना हो। यदि सप्तम भाव में अधिक ग्रह स्थित हो और सप्तमेश की उन पर दृष्टि ना हो।

यदि सप्तम भाव में मंगल, शुक्र या शनि हों तथा लग्नेश अष्टम भाव में हो, तो बहु विवाह येाग होता है। सप्तम और अष्टम भाव में पाप ग्रह तथा मंगल द्वादश भाव में हो, तो बहुविवाह योग होता है। यदि सप्तमेश पाप ग्रह के साथ या पाप ग्रह की राशि में हो और जन्म कुंडली या नवांश का सप्तम भाव शनि या बुध की राशि का हो। यदि निर्बल धनेश, धन भाव में पाप ग्रहों से युत अथवा दृष्ट हो। यदि निर्बल सप्तमेश, सप्तम भाव में पाप ग्रहों से युत अथवा दृष्ट हो। यदि सप्तम भाव में पाप ग्रह, धनेश पाप ग्रह से युत और लग्नेश अष्टम में हों। सप्तम भाव में शुभ और पाप ग्रह दोनों हो, तो स्त्री का एक विवाह होने के बाद पुनः विवाह होगा। बहुविवाह योग (बहुभार्या योग) चंद्र व शुक्र बलवान हो कर युति में हों।

लग्नेश, षष्ठेश व द्वितीयेश पाप ग्रहों से युत होकर सप्तम भाव में हों। सप्तम तथा एकादशेश ग्रहों की युति अथवा दृष्टि द्वारा संबंध हो। लग्नेश तथा सप्तमेश की युति अथवा दृष्टि द्वारा संबंध हो। सभी ग्रह द्वि-स्वभाव राशि और लग्न द्वि-स्वभाव नवांश में हों और मिथुन अथवा कन्या नवांश में बुध हो, तो जातक की अनेक स्त्रियां होती है। यदि विषम राशि में लग्न हो तथा सूर्य, मंगल, गुरु बली हों तथा चंद्र शुक्र, बुध भी बली और शनि साधारण हो, तो कन्या के बहुत पति हों। यदि द्वितीयेश और द्वादशेश तृतीय भाव में स्थित हो और उन पर नवमेश या गुरु की दृष्टि हो, तो बहुविवाह येाग होता है।


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यदि द्वितीय और सप्तम भाव में पाप ग्रह हो तथा सप्तमेश पाप ग्रह से युत अथवा दृष्ट हो, तो बहु विवाह योग होता है। लग्न, द्वितीय तथा सप्तम भावों में पाप ग्रह हों और सप्तमेश नीच राशि में या अस्त हो, तो बहुविवाह योग होता है। द्वितीयेश और द्वादशेश, सप्तमेश या शनि गुरु से दृष्ट हों, तो भी बहुविवाह योग घटित होता है। कुंडली विश्लेषण

(1) जन्मतिथि: 2.10.1976, जन्म समय: 14ः10, दिल्ली पहली शादी: रा/श/मं दशा में (23.02.01) दूसरी शादी: रा/बु/चं दशा में (12.03.03) तीसरी शादी: रा/शु/चं दशा में (20.05.06) यदि मंगल, शुक्र एक साथ सप्तम, दशम भाव में हो, तो बहु संबंध योग। यदि चतुर्थ या दशम भाव में मंगल व शुक्र की युति हो और मेष, तुला या वृश्चिक, वृष राशियां हो, तो बहुसंबंध योग। यदि चंद्र से शनि सप्तम स्थान तथा शुक्र दशम स्थान पर हो, तो बहुसंबंध योग। यदि लग्नेश तथा सप्तमेश की युति अथवा दृष्टि द्वारा संबंध हो, तो बहुविवाह येाग।

यदि सप्तमेश तथा एकादशेश ग्रहों की युति/दृष्टि द्वारा संबंध बहु विवाह योग। यह कुंडली एक पुरुष की है जिसकी शादी राहु, शनि, मंगल की दशा में हुई। विवाह के कुछ ही महीनों बाद पत्नी पति के बीच गर्भपात को लेकर एक विवाद सा खड़ा हो गया और मुश्किल से एक साल से अधिक समय नहीं हुआ और इसी दौरान पत्नी ने अपने पति पर, दुष्चरित्रहीन होने का इलजाम और अन्य लड़कियांे के साथ प्रेम संबंध होने के कारण युवक से तलाक ले लिया था।

इसके पश्चात इस युवक की दूसरी शादी राहु, बुध, चंद्र की दशा तथा तीसरी शादी राहु, शुक्र, चंद्र दशा में हुई। अगर हम इस युवक की कुंडली का विस्तार से विवेचन करें तो सप्फतौर पर सब घटनाएं उसके जीवन में बहुसंबंध एवं बहुविवाह संबंधी हुई हैं। ये सब योग जन्म कुंडली दर्शा रही है। मंगल व शुक्र की युति दशम भाव में तथा तुला राशि में और राहु, केतु की चपेट में होना इस बात का साफ साफ संकेत मिल रहा है कि युवक बहु संबंध प्रवृति का है और राहु, केतु द्वारा पीड़ित होना विवाहित जीवन में दरार पैदा कर जीवन में गंभीर तनाव को दर्शाता है।


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इसी कारण तलाक भी हुआ। चंद्र से शनि सप्तम स्थान पर तथा शुक्र दशम स्थान पर इस कुंडली में स्थित है जो कि बहुसंबंध योग है। युवक की जन्म कुंडली में लग्नेश शनि तथा सप्तमेश चंद्र का राशि परिवर्तन के साथ साथ दृष्टि द्वारा संबंध भी स्थापित हो रहा है जो बहुविवाह योग को दर्शाता है, अतः पुनः विवाह हुआ। युवक की जन्म कुंडली में सप्तमेश चंद्र तथा एकादशेश मंगल का दृष्टि द्वारा संबंध स्थापित हो रहा है जो बहुविवाह योग को दर्शाता है। इसी कारण से उसका एक से ज्यादा विवाह योग बना है।

(2) जन्मतिथिः11.05.1970, जन्म समय: 10ः40 प्रातः, दिल्ली पहली शादी: बु/शु/रा दूसरी शादी: बु/सू/चं तीसरी शादी: बु/रा/श एकादश भाव में अगर शुक्र की राशि हो तथा उस भाव में मंगल और शुक्र युति में हो और कोई शुभ ग्रह न देखे तो जातक बहु प्रेम संबंध प्रवृति का होगा। यदि दशम भाव में सूर्य, बुध, शनि युति में हो, तो बहुसंबंध योग। लग्नेश अगर लग्न में हो, तो दूसरी शादी का योग। द्वितीयेश, द्वादशेश तथा सप्तमेश या शनि का गुरु से युति अथवा दृष्टि के द्वारा संबंध हो, तो बहुविवाह योग होता है। यह कुंडली एक पुरुष जातक की है

जिसका पहला विवाह बुध, शुक्र, राहु की दशा में हुआ। विवाह में अपेक्षा से कम दहेज मिलना केवल एक बहाना था, और उसने दूसरी किसी और लड़की से प्रेम संबंध बनाकर शुरु के कुछ महीनों के बाद पत्नी के साथ कलेश, मारपीट तथा तंग करना आरंभ कर दिया। इस रोज रोज की कलह से तंग आकर पत्नी पति का घर छोड़कर अपने पिता के पास लौट आई और तलाक ले लिया। पुनः इस जातक ने बुध, सूर्य, चंद्र की दशा में विवाह किया, तो वह भी असफल रहा तथा बुध, राहु, शनि की दशा में फिर विवाह किया। अगर उपरोक्त कुंडली की घटनाओं के कारणों का विश्लेषण करें तो स्पष्ट रूप से वे सब बहुसंबंध एवं बहु विवाह के योग इस में विद्यमान है


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जिसके फलस्वरूप यह सब घटित हुआ। इस कुंडली में एकादश भाव में शुक्र ग्रह की राशि वृष है तथा मंगल व शुक्र उसी भाव में युति द्वारा संबंध स्थापित कर रहे है और कोई भी शुभ ग्रह देख नहीं रहा है। यह सब कुछ बहुसंबंध योग को दर्शाता है, जो कि विवाहित जीवन में तनाव तथा विखराव लाने का मुख्य कारण था। लग्नेश चंद्र लग्न में स्थित है जो कि बहु विवाह को दर्शाता है। कुछ एसा ही जातक के जीवन में हुआ। ु



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