लक्ष्मी पूजन विधि एवं शुभ मुहूर्त

लक्ष्मी पूजन विधि एवं शुभ मुहूर्त  

व्यूस : 16468 | नवेम्बर 2012
लक्ष्मी पूजन विधि एवं शुभ मुहूर्त डाॅ. मनोज कुमार, प्रधान संपादक मां लक्ष्मी की पूजा किसी भी समय में की जा सकती है। लेकिन सार्थक पूजा के लिए शास्त्र सम्मत विधान की जानकारी होनी आवश्यक है। मां लक्ष्मी की पूजा किस मुहूर्त में किन सामग्रियों के साथ की जाय जिससे कि मां लक्ष्मी का आशीर्वाद शीघ्र प्राप्त हो इस बात की जानकारी सामान्य लोगों को नहीं होती। इस लेख में दीपावली के दिन मां लक्ष्मी की पूजा के विधि-विधान की जानकारी संक्षिप्त एवं सरल रूप में दी गयी है जिसका पालन करके प्रत्येक व्यक्ति अपने घर में लक्ष्मी की कृपा प्राप्त कर सकता है और अपना जीवन धन्य कर सकता है। दीपावली धन की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी का पर्व माना जाता है। लक्ष्मी से तात्पर्य है अर्थ। यह अर्थ का पर्व है। गणेश, दीप पूजन और गौ द्रव्य पूजन इस पर्व की विशेषताएं हैं। लक्ष्मी पूजन प्रारंभ करने से पूर्व पूजा वेदी पर लक्ष्मी-गणेश के चित्र, या मूर्ति, बही-खाते, कलम, दवात आदि भली प्रकार सजा कर रख देना चाहिए तथा आवश्यक पूजा की सामग्री तैयार कर लेनी चाहिए। पूजन सामग्री: लक्ष्मी, गणेश, कुबेर आदि देवी-देवताओं की प्रतिमाएं, श्री यंत्र, कनकधारा एवं अन्य यंत्र, अक्षत, पुष्प, रोली (कुंकुम), दुर्बा, चन्द्रमौली, कलावा, दीपक, बही-खाता, दही, गाय का कच्चा दूध, घी, कमलगट्टे का बीज एवं माला, गोमती चक्र, पीली कौड़ी, लघु नारियल, लौंग, सुपाड़ी, इलायची, मिष्टान्न, हवन सामग्री आदि। पूजन के लिए उपयुक्त मुहूर्त: दीपावली के दिन महालक्ष्मी के पूजन् के लिए स्थिर लग्न का चयन किया जाता है। वृष, सिंह, वृश्चिक एवं कुंभ स्थिर लग्न हैं। स्थिर लग्न के साथ ही उपयुक्त चैघड़िया का चयन करना भी अनिवार्य है। शुभ एवं उपयुक्त चैघड़िया हैं- चर, लाभ, अमृत एवं शुभ। इस वर्ष दीपावली 13 नवंबर को है। इस वर्ष दीपावली के दिन यानि 13 नवंबर 2012 को प्रदोष काल में स्थिर लग्न (वृषभ राशि) सायं 17ः32 से 19ः28 (दिल्ली) तक रहेगा। इसलिए सूर्यास्त से सायं 19ः28 तक का प्रदोष काल विशेष रूप से श्री गणेश, श्री महालक्ष्मी, कुबेर आदि देवी-देवताओं के पूजन के लिए तथा सेवकों को वस्तुएं दान देने के लिए शुभ रहेगा। यही समय द्वार पर स्वस्तिक और शुभ-लाभ का सिंदूर से निर्माण करने के लिए तथा मिठाई वितरण के लिए भी सर्वथा उपयुक्त है। पूजन विधि: 1. शुभ मुहूर्त का चयन करके पूर्वाभिमुख बैठकर सभी देवी-देवताओं, कलश एवं यंत्रों की स्थापना करें। 2. पवित्रीकरण: बायें हाथ में जल लेकर उसे दाहिने हाथ से ढंक लें तथा निम्न मंत्रों के उच्चारण के साथ जल को सिर तथा शरीर पर छिड़क लें। ऊँ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वांवस्थां गतोऽपिवा। यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः।। ऊँ पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु। 3. आचमन: मन, वचन और अंतःकरण की शुद्धि के लिए निम्न मंत्रों के उच्चारण के साथ तीन बार आचमन करें। हर मंत्र के साथ एक आचमन करें। ऊँ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा ।। 1।। ऊँ अमृतापिधानमसि स्वाहा ।।2 ।। ऊँ सत्यं यशः श्रीर्मयि श्रीः क्षयतां स्वाहा।। 3 ।। 4. इसके उपरांत प्राणायाम, न्यास, आसन शुद्धि, चंदन धारण, रक्षा सूत्रम, संकल्प, कलश पूजन आदि का विधान है किंतु आम गार्हस्थ्यजनों दीपावली के दिन देश के विभिन्न स्थानों पर महालक्ष्मी पूजन, के लिए उपयुक्त एवं सर्वोत्कृष्ट मुहूर्त नीचे दी गई सारणी में उल्लिखित हैं, कृपया स्थान के अनुसार मुहूर्त का चयन कर लें: मुख्य स्थानों में दीपावली पूजन का समय 13.11.2012 को सांध्य व रात्रिकालीन स्थिर लग्नों का समय घं.-मि. में वृष लग्न सिंह लग्न शहर प्रारंभ समाप्त प्रारंभ समाप्त दिल्ली 17ः32 19ः28 24ः03 26ः24 चेन्नई 17ः45 19ः47 24ः12 26ः15 कोलकाता 16ः59 18ः57 23ः26 25ः41 मुंबई 18ः06 20ः06 24ः31 26ः43 लखनऊ 17ः21 19ः17 23ः50 26ः10 पटना 17ः06 19ः03 23ः35 25ः53 भोपाल 17ः41 19ः39 24ः08 26ः24 देहरादून 17ः26 19ः21 23ः57 26ः20 चंडीगढ़ 17ः30 19ः25 24ः02 26ः25 अहमदाबाद 18ः00 19ः58 24ः28 26ः43 हैदराबाद 17ः46 19ः46 24ः11 26ः21 बेंगलूरू 17ः56 19ः58 24ः23 26ः26 रांची 17ः09 19ः07 23ः37 25ः53 गुवाहाटी 16ः39 18ः35 23ः08 25ः27 रायपुर 17ः27 19ः26 23ः54 26ः08 जयपुर 17ः41 19ः37 24ः10 26ः30 जम्मू 17ः34 19ः28 24ः07 26ः33 षिमला 17ः28 19ः22 24ः00 26ः24 श्रीनगर 17ः32 19ः24 24ः05 26ः32 त्रिवेन्द्रम 18ः05 20ः09 24ः30 26ः29 गोवा 18ः07 20ः08 24ः35 26ः40 ईटानगर 16ः30 18ः26 22ः59 25ः19 षिलांग 16ः39 18ः36 23ः08 25ः26 काठमांडू 17ः19 19ः15 23ः48 26ः08 पोर्ट ब्लेयर 16ः57 19ः00 23ः24 25ः25 विलासपुर 17ः24 19ः22 23ः51 26ः06 जबलपुर 17ः31 19ः29 23ः58 26ः14 भुवनेष्वर 17ः12 19ः11 23ः38 25ः51 गंगटोक 16ः49 18ः45 23ः19 25ः39 के लिए इतना कर पाना तथा संस्कृत के श्लोकों का इतना उच्चारण कर पाना शायद मुश्किल होगा। अतः आचमन के पश्चात चंदन धारण करें, धरती माता का स्पर्श करें, तथा इसके उपरांत निम्न मंत्रों के उच्चारण के साथ संकल्प करें। मंत्र: विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमदभवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य, अद्य श्री ब्रह्मणो द्वितीयपरार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे, वैवस्वत मन्वन्तरे भूर्लोके, भरतखंडे, आर्यावर्तेकदेशान्तर्गते, मासानां मासोत्तमेमासे कार्तिक मासे कृष्ण पक्षे अमावस्यां तिथौ----वासरे -गोत्रोत्पन्नः ------नामाः अहं .... सत्प्रवृत्तिसंवर्धनाय, लोककल्याणाय आत्मकल्याणाय, वातावरणपरिष्कराय, भ् ा िव ष् य ा े ज्जव लका म न ा प ू र्त य े श्रुति-स्मृति -पुराणोक्तफलप्राप्तयर्थं दीर्घायुरारोग्य-पुत्र-पौत्र-धन-धान्या दिसमृद्ध्यर्थे श्रीमहालक्ष्मीदेव्याः प्रसन्नार्थं लक्ष्मीपूजनं करिष्ये/ करिष्यामि। संकल्प के श्लोक यदि संस्कृत में पढ़ना कठिन लगे तो आप हिंदी में भी निम्नांकित बातें बोलकर संकल्प ले सकते हैं- मैं (अपना नाम), गोत्र (अपना गोत्र बोलें), भारतवर्ष के राज्य (अपने राज्य का नाम) स्थान (जहां आप रहते हैं, उस स्थान का नाम) कुल (अपने कुल का नाम), कार्तिक मास की अमावस्या तिथि एवं दिवस मंगलवार को देवी महालक्ष्मी को प्रसन्न करने हेतु श्री लक्ष्मी पूजन करने का संकल्प लेता/लेती हूं। 5. कलश पूजन् एवं दीप प्रज्ज्वलन ः ऐसी मान्यता है कि कलश में ही देवी-देवताओं का वास होता है। सभी देवी-देवताओं का आह्वान करें तथा मन में ऐसी भावना लायें कि ¬ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्। चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह।। तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्। यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम्।। अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम्। श्रियं देवीमुप ह्नये श्रीर्मा देवी जुषताम्।। का ं साेि स्मता ं हिरण्यपा्रकारामादा्र्र ं ज्वलन्ती ं तप्ृ ता ं तपर्य न्तीम।् पùेस्थितां पùवर्णां तामिहोप ह्नये श्रियम्।। चन्द्रां प्रभासां यषसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्। तां पùिनीमीं शरणं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नष्यतां त्वां वृणे।। आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः। तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः।। उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह। प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे।। क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाषयाम्यहम्। अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात्।। गंधद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्। ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप ह्नये श्रियम।। मनसः काममाकूतिं वाचःसत्यमषीमहि। पषूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यषः।। कर्दमेन प्रजा भूता मयि सम्भव कर्दम्। श्रियं वासय मे कुले मातरं पùमालिनीम्।। आपः सृजंतु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे। नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले।। आद्र्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पùमालिनीम्। चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह।। आद्र्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्। सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह।। तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्। यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम्।। यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्। सूक्तं पंचदषर्चं च श्रीकामः सततं जपेत्।। ।।इति ऋग्वेदोक्त श्रीसूक्तम्।। आप जिन देवी-देवताओं का आह्वान कर रहे हैं, वे इसी कलश में आकर निवास करेंगे। निम्नलिखित मंत्रोच्चार के साथ कलश में अक्षत एवं पुष्प डालें। ऊँ भूर्भूवः स्वः कलशस्थ देवताभ्यो नमः । गंधं, अक्षतं, पत्रं, पुष्पं समर्पयामि। दीपक को हम ज्ञान के प्रकाश का पुंज मानते हैं। दीपक हमारे अंतर्मन में भरे हुए अंधकार और अज्ञान का शमन करने वाला देवताओं की ज्योतिर्मय शक्ति का प्रतिनिधि है। इसे ईश्वर का प्रतिरूप मानकर हमें इसकी पूजा करनी चाहिए। इस विश्वास के साथ कि ये दीपक हमारे मन के अंधकार को दूर कर सद्ज्ञान का प्रकाश उत्पन्न करेंगे, एक बड़ा घृत दीपक तथा उसके चारों ओर अपनी श्रद्धानुसार ग्यारह, इक्कीस या अधिक दीपक तिल के तेल से प्रज्ज्वलित करें तथा हाथ में अक्षत, पुष्प, कुंकुम आदि लेकर हाथ जोड़कर निम्न मंत्र से ध्यान करें: भो दीप ब्रह्मरूपस्त्वं अन्धकारविनाशक। इमां मया कृतां पूजां गृहणान्तेजः प्रवर्धय।। इसके पश्चात हाथ में ली हुई चीजों को चढ़ा दें। 6. गणेश जी का आह्वान एवं पूजन: हाथ में गंध, पुष्प, अक्षत, जल आदि लेकर निम्न मंत्रों के साथ गणेश जी का ध्यान तथा आह्वान करें: अभीप्सितार्थसिद्धयर्थं पूजितो यः सुरासुरैः। सर्वविघ्नहरस्तरमै गणाधिपतये नमः।। ऊँ श्री गणेशाय नमः आवाह्यामि, स्थापयामि, ध्यायामि। गंधाक्षत पत्रपुष्पाणि समर्पयामि।। इसके उपरांत गंध, अक्षत आदि गणेश जी को चढ़ा दें। 7. माता गौरी का आह्वान: पुनः हाथ में गंध, पुष्प आदि सभी सामग्रियां लेकर निम्न मंत्रों के साथ माता गौरी का ध्यान एवं आह्वान करें तथा मंत्र पढ़ने के उपरांत गंध, पुष्प आदि उन्हें समर्पित कर दें। सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।। ऊँ श्री गौर्ये नमः। आवाह्यामि, स्थापयामि। गंधाक्षत पत्रपुष्पाणि समर्पयामि।। 8. श्री महालक्ष्मी पूजन्: हाथ में गंध, पुष्प, अक्षत, दुर्बा आदि सभी सामग्रियों को लेकर निम्नलिखित मंत्रों के साथ महालक्ष्मी जी का ध्यान एवं आह्वान करके इन सामग्रियों को लक्ष्मी जी को समर्पित कर दें। ऊँ हिरण्यवर्णा हरिणीं सुवर्णारजतस्रजाम। चन्द्रां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह।। ऊँ महालक्ष्म्यै नमः । ध्यानार्थे पुष्पं समर्पयामि। हाथ में पुनः इन सामग्रियों को लें तथा निम्न मंत्रों के उच्चारण के साथ महालक्ष्मी को समर्पित कर दें। ऊँ तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमन पगामिनीम। यस्यां महालक्ष्म्यै नमः। आवाहनार्थे पुष्पं समर्पयामि। इसके उपरांत श्रीसूक्त अथवा महालक्ष्मी अष्टकम् या दोनों का पाठ अपनी श्रद्धा एवं क्षमतानुसार 1 बार या 11 बार करें। पाठकों की सुविधा के लिए श्रीसूक्त एवं महालक्ष्म्यष्टकम् की ऋचाएं यहां तालिका में संलग्न की गयी हैं। पाठ के उपरांत श्री गणेश एवं लक्ष्मी जी की आरती करें तथा माता से अपनी इच्छित मनोकामना पूर्ण करने का आशीर्वाद मांगें। अंत में हवन करें। हवन के समय निम्न मंत्रों का उच्चारण करें: ऊँ ह्रीं श्रीं ह्रीं महालक्ष्म्यै स्वाहा। त महालक्ष्म्यष्टकम् नमस्ते स्तु महामाये श्री पीठे सुर पूजिते। शंख चक्र गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोस्तुते।। 1 ।। नमस्ते गरुड़ारूढे़ कोलासुरभयंकरि। सर्व पापहरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते।। 2 ।। सर्वज्ञे सर्व वरदे सर्वदुष्ट भयंकरि। सर्व दुःख हरे देवी महालक्ष्मी मनोस्तुते।। 3 ।। सिद्धिबुद्धि प्रदे देवि भुक्ति सुक्ति प्रदायिनि। मन्त्र पूते सदा देवि महालक्ष्मी नमोस्तुते।। 4 ।। आद्यन्त रहिते देवि आद्यशक्ति महेश्वरी। यो गजे योग सम्भूते महालक्ष्मी नमोस्तुते।। 5 ।। स्थूल सूक्ष्म महारौद्रे महाशक्ति महोदरे। महापाप हरे देवि महालक्ष्मी नमोस्तुते।। 6 ।। पाùासन स्थिते देवि परव्रहमस्वरूपिणि। परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि नमो स्तुते।। 7 ।। शवेताम्बर धरे देवि नानालंकार भूषिते। जगात्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोस्तुते।। 8 ।



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