किसी कुंडली में ग्रह यदि
बलवान हों, लाल किताब की
भाषा में कहें तो यदि वे अपने पक्के
घरों में स्थित हों, तो उनसे संबंधित
रत्न चयन किया जा सकता है। लाल
किताब सदैव उच्च अर्थात शतप्रतिशत
शक्तिशाली ग्रहों के रत्न धारण करने
पर बल देती है। ऐसे योग किसी कुंडली
में खोजना बहुत ही सरल है। परंतु
यदि कुंडली में शक्तिशाली ग्रह अथवा
ग्रहों का अभाव हो तो सुप्त ग्रह तथा
सुप्त भाव को बलवान बनाने की प्रक्रिया
अपनाएं। यह विधि जितनी सरल है
उतनी ही प्रभावशाली भी।
यदि कुंडली में चंद्र ग्रह सर्वाधिक
बलशाली हो तो चंद्र का रत्न अथवा
उपरत्न धारण करवाया जा सकता है।
इसके साथ-साथ सुप्त भाव तथा सुप्त
ग्रह को भी बलवान कर लिया जाए तो
परिणाम अधिक अच्छे होंगे। कुंडली में
सर्वाधिक भाग्यशाली ग्रह उच्च भाग्य
का द्योतक है।
भाग्य के लिए सर्वोत्तम ग्रह के अनुरूप
रत्न-उपरत्न आदि का चयन निम्न
चार बातों को ध्यान में रखकर कर
सकते हैं-
Û जिस राशि में ग्रह उच्च का होता है
और लाल किताब की कुंडली के
अनुसार भी उसी भाव अर्थात राशि
में स्थित होता है उससे संबंधित रत्न
भाग्य रत्न होता है।
Û यदि ग्रह अपने स्थायी भाव में स्थित
हो तथा उसका कोई मित्र ग्रह उसके
साथ हो अथवा उसको देखता हो
तो उस ग्रह से संबंधित रत्न भाग्य
रत्न होता है।
Û नौ ग्रहों में से जो ग्रह श्रेष्ठतम भाव
में स्थित हो, उस ग्रह से संबंधित
रत्न भाग्य रत्न होता है।
Û कुंडली के केंद्र अर्थात पहले, चैथे,
सातवें तथा 10वें भाव में बैठा ग्रह
भी भाग्यशाली रत्न इंगित करता है।
यदि उक्त भाव रिक्त हों तो नौवां, नौवां
रिक्त हो तो तीसरा, तीसरा रिक्त हो तो
ग्यारहवां, ग्यारहवां रिक्त हो तो छठा
और यदि छठा भाव भी रिक्त हो तो
बारहवें भाव में बैठा ग्रह भाग्य ग्रह
कहलाता है। इस ग्रह से संबंधित रत्न
भी भाग्य रत्न कहलाता है।
जब किसी भाव पर किसी भी ग्रह की
दृष्टि नहीं हो अर्थात वह भाव किसी
भी ग्रह द्वारा देखा नहीं जाता हो तो
वह सुप्त भाव कहलाता है। उदाहरण
में ऐसे सुप्त भाव पहला तथा सातवां
हैं। इन दोनों भावों को कोई भी ग्रह
नहीं देख रहा है। इसके लिए यदि इन
भावों को चैतन्य कर देने वाले ग्रहों का
उपाय किया जाए तो ये भाव चैतन्य
हो जाएंगे तथा इन से संबंधित विषय
में व्यक्ति को आशातीत लाभ मिलने
लगेगा।
जब कोई ग्रह किसी अन्य ग्रह को नहीं
देखता तो वह ग्रह सुप्त कहलाता है।
सुप्त ग्रह कब जाग्रत होते हैं अर्थात
आयु के किस वर्ष में फल देते हैं इसका
विवरण भी लाल किताब में मिलता है।
यदि उस वय में खोज किए हुए ग्रह के
उस रत्न का प्रयोग किया जाए तो
जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में यथा उपाय
सहायता मिलती है। सारिणी में यह
बात और अधिक स्पष्ट हो
जाएगी।