गर्भाधान संस्कार

गर्भाधान संस्कार  

विजय प्रकाश शास्त्री
व्यूस : 12432 | अप्रैल 2014

भारतीय संस्कृति में कलिकाल में मनुष्य के सोलह संस्कारों का वर्णन किया है उसमें प्रथम संस्कार है। हमारे घर में उत्तम संतान का जन्म हो यही सभी चाहते हैं। हर मनुष्य की इच्छा होती है उसकी संतान उत्तम गुणयुक्त, संस्कारी, बलवान, आरोग्यवान एवं दीर्घायु हो। इसके लिए संतान के जन्म के बाद अच्छी देखभाल करते हैं लेकिन संतान को उत्तम बनाने के लिए उसके जन्म के बाद ध्यान देने से ज्यादा जरूरी है जन्म से पहले से ही आयोजन करना। लेकिन इसके लिए कोई प्रयत्न नहीं करता है। हम यह विज्ञान तो जानते हैं कि उत्तम प्रकार के पशु कैसे होते हैं लेकिन उत्तम संतान कैसे उत्पन्न होते हैं, यह विज्ञान हम नहीं जानते हैं। यह विज्ञान आयुर्वेद में बताया गया है।

उत्तम संतान कैसे हो, यह विज्ञान प्रत्येक गृहस्थ स्त्री-पुरुष को जानना चाहिए। गर्भाधान संस्कार महर्षि चरक ने कहा है कि मन का प्रसन्न होना गर्भधारण के लिए आवष्यक है इसलिए स्त्री एवं पुरुष को हमेषा प्रसन्न रहना चाहिए और मन को प्रसन्न करने वाले वातावरण में रहना चाहिए। गर्भ की उत्पत्ति के समय स्त्री और पुरुष का मन जिस प्राणी की ओर आकृष्ट होता है, वैसी ही संतान उत्पन्न होती है इसलिए जैसी संतान हम चाहते हैं वैसी ही तस्वीर सोने के कमरे की दीवार पर लगानी चाहिए। जैसे कि राम, कृष्ण, अर्जुन, अभिमन्यु, छत्रपति षिवाजी एवं महाराणा प्रताप आदि। गर्भाधान के लिए स्त्री को आयु सोलह वर्ष से ज्यादा तथा पुरुष की आयु पच्चीस वर्ष से ज्यादा लेनी चाहिए।

जो स्त्री एवं पुरुष किसी प्रकार के रोग से पीड़ित हों, शोकयुक्त, क्रुद्ध, अप्रिय, अकामी, गर्भ धारण में असमर्थ, भय से पीड़ित या दुर्बल हो , उसे गर्भधारण का प्रयास नहीं करना चाहिए। स्त्री एवं पुरुष स्नेह व स्वेदन कर तत्पष्चात् वमन व विरेचन के द्वारा शरीर की शुद्धि करानी चाहिए और एक मास तक तक ब्रह्मचर्य रखना चाहिए। पुरुष बीज यानि कि वीर्य को सौम्य बताया गया है इसलिए पुरुष को मधुर औषिधियों से सिद्ध घृत, खीर एवं वाजीकरण औषधियों का सेवन करना चाहिए। इसी प्रकार स्त्री बीज को आग्नेय बताया है। इसलिए तेल एवं उड़द आदि द्रव्यों का सेवन करना चाहिए। स्त्री एवं पुरुष को ज्यादा खट्टा , नमक वाला, बासी अन्न, आधुनिक फास्टफूड, बाहर की बनी चीजें आदि नहीं खानी चाहिए। घर में बना हुआ सात्विक भोजन ही करना चाहिए।

श्रेष्ठ संतान के लिए आचार्यों ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराने का विधान बताया है। स्त्री जिस रंग को अधिक देखती है, संतान का रंग भी वैसा ही होता है। इसलिए बैठने के स्थान, खान पान का स्थान, वस्त्र, शयनकक्ष की दीवालें आदि अधिकाधिक सफेद या हल्के रंग की होनी चाहिए। सुबह और शाम देव, गौ, ब्राह्मण आदि का पूजन करके श्रेष्ठ संतान की कामना करते हुए पूजा अर्चना करनी चाहिए। गर्भाधान में उपयोगी वस्तुएं संतान की इच्छा से गर्भाधान के लिए प्रवृत्त दंपत्ति को गर्भाधान संस्कार करने के लिए शास्त्रों में कहा गया है। महर्षि दयानन्द ने अपनी पुस्तक संस्कार विधि में इसका वर्णन करते हुए हवन के लिए विभिन्न औषधियों से युक्त खीर बनाकर उसका हवन करने और फिर उस यज्ञषेष खीर का सेवन करके गर्भधारण के लिए प्रवृत्त होने का निर्देष दिया है।

पूरे ऋतुकाल में गर्भस्थापन होने तक घी का सेवन करें और घी को खीर अथवा भात में मिलाकर खाएं। दो ऋ तुकाल में भी गर्भधारण नहीं होने पर पुष्य नक्षत्र में जिस गाय को पहला बच्चा हुआ हो ऐसी गाय के दूध का दही जमाकर उसमें जौ के दानों को संेक व पीस कर मिला दें।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.