जातक की जन्मपत्रिका में कई
प्रकार के अनिष्ट योग देखने
को मिलते हैं। जैसे कि कालसर्प योग,
अंगारक योग, चांडालयोग, ग्रहणयोग,
श्रयितयोग, विषयोग इत्यादि। यहां
प्रसंग वश विषयोग का विश्लेषण प्रस्तुत
है।
विष योग अक्सर शनि और चंद्र के
स्थान से बनता है, किंतु कभी-कभी
अन्य स्थानों से भी इसका निर्माण
होता है।
शनि: शनि ग्रह की प्रकृति विशिष्ट
है। (हमारे धर्म गं्रथों में शनि को काणा,
बहरा, गूंगा और अंधा माना गया है)
शनि की गति मंद है। शनि की अपने
पिता सूर्य से शत्रुता है।
चंद्र: चंद्र को मन का कारक माना
गया है। मन को जगत का बंधन एवं
मोक्ष का कारक माना गया है। सभी
ग्रहों में चंद्र की गति सब से तेज है।
ऐसे में जब विरुद्ध प्रकृति वाले शनि
और चंद्र जन्मपत्रिका में एक साथ हों,
तो उस योग को विषयोग कहते हैं।
विषयोग वाले जातक के लक्षण:
- विषयोग में जन्मे जातक से उसका
अपना ही मित्र, भाई, बहन या परिवार
का कोई सदस्य या कोई नजदीकी
रिश्तेदार विश्वासघात करता है।
- ऐसे जातक बीमार हों, तो उनका
इलाज सफल नहीं होता है, या दवा,
इन्जेक्शन आदि का विपरीत प्रभाव
देखने को मिलता है। कई बार अपनी
दवा खाना भी भूल जाते हैं।
- ऐसे जातकों को कभी कभी शल्य
चिकित्सा भी करवानी पड़ती है। उनका
घाव भी तेजी से नहीं भरता।
- ऐसे जातकों को रात्रि के समय
सपने में सांप दिखाई पड़ता है या
सांप के काटने से शरीर में विष फैलता
है।
- ऐसे जातकों का कर्ज कभी भी कम
नहीं होता है। वे हमेशा कर्ज के बोझ
तले दबे रहते हंै।
विषयोग कैसे:
- जैसा कि ऊपर कहा गया है, शनि
और चंद्र के जन्मपत्रिका में एक ही
राशि में या एक ही स्थान पर होने से
विषयोग बनता है।
- शनि की तीसरी, सातवीं या 10 वीं
दृष्टि जिस स्थान पर हो, वहां जन्म
का चंद्र स्थित होने से विषयोग बनता है।
- चंद्र कर्क राशि में पुष्य नक्षत्र में हो
और शनि मकर राशि में श्रवण नक्षत्र
में हो एवं दोनों एक दूसरे पर दृष्टि
डालते हों तब भी विषयोग बनता है।
- शनि कर्क राशि में पुष्य नक्षत्र में हो
और चंद्र मकर राशि में श्रवण नक्षत्र
में हो एवं दोनों का परिवर्तन योग हो
तब भी विषयोग बनता है।
- शनि जन्मपत्रिका में 12वें स्थान में
हो, चंद्र छठे में और सूर्य 8वें में हो,
तो भी विषयोग बनता है।
- मेष, कर्क, सिंह या वृश्चिक लग्न
में शनि स्थित हो एवं 8वें स्थान में
राहु स्थित हो तो विषयोग बनता है।
- शनि और सूर्य अष्टम या द्वादश
स्थान में एक ही राशि में हांे तब भी
विषयोग बनता है।
भिन्न-भिन्न स्थानों में शनि चंद्र
की युति का प्रभाव:
- प्रथम स्थान/लग्न: लग्न या
प्रथम स्थान में विषयोग बनने से, जातक
मंद बुद्धी वाला होता है। उसके सिर
और स्नायु में दर्द रहता है। मुंह पर
कील मुंहासे निकलते हैं। धब्बे बनते
हैं, और चेहरा निस्तेज होता है। शरीर
कमजोर और रोगी होता है। ऐसे जातक
उदासीन, निरुत्साही, वहमी एवं शंकालु
प्रवृŸिा के होते हैं। दाम्पत्य सुख में भी
कमी आती है।
- दूसरा स्थान: दूसरे स्थान में यह
युति कुटंुब में कलह उत्पन्न करती
है। पैतृक संपŸिा मिलने में बाधा आती
है। एवं कई बार पैतृक संपŸिा से हाथ
भी धोना पड़ जाता है। व्यापार में
घाटा होता है। नौकरी में रुकावट एवं
वाणी में कटुता आती है। धन की
हानि होती है। दांत, कांन एवं गले में
बीमारी हो सकती है। भोजन में अरुचि
रहती है।
- तीसरा स्थान: तीसरे स्थान में
विषयोग बनने से भाई-बहन की मृत्यु
आकस्मिक होती है। भाई-बहन मंद
बुद्धि वाले या अपंग होते हैं। भाई-बहन
के साथ संबंध में कटुता आती है। घर
का नौकर विश्वासघात करता है। यात्रा
में आकस्मिक विघ्न आता है। दमा,
क्षय और श्वास का रोग होने की
संभावना रहती है।
- चतुर्थ स्थान: चतुर्थ स्थान में
विषयोग बनने से मातृ सुख में कमी,
माता से विवाद, भवन सुख में कमी
की संभावना रहती है। इसके अतिरिक्त
घर के आसपास सर्प, बिच्छू या जहरीले
कीडे़ नजर आते हैं। गर्भस्थ शिशु की
मौत एवं माता के शरीर में विष के
फैलने और हृदय रोग की संभावना
रहती है। महिलाओं को स्तन कैंसर
की संभावना रहती है।
- पांचवां स्थान: पांचवें स्थान में
विषयोग होने से विद्या-प्राप्ति में
रुकावट आती है। जातक की कोई
भी विद्या पूरी नहीं होती इसके
अतिरिक्त संतान प्राप्ति में विघ्न आता
है। संतान मंद बुद्धि एवं पेट की बीमारी
से ग्रस्त होती है। खिलाड़ियों को कोई
कीर्तिमान बनाने में विघ्न आता है।
- छठा स्थान: छठे स्थान में विषयोग
बनने से जातक को रोग एवं शत्रु का
भय रहता है। कमर में दर्द और
मेरुस्तंभ में कष्ट रहता है। ननिहाल
पक्ष के लोगों की सहायता नहीं मिलती,
उनसे संबंध अच्छे नहीं रहते। घर में
चोरी की संभावना रहती है। गुप्त शत्रु
पीछे से वार करते हैं।
- सप्तम् स्थान: सप्तम् स्थान में
विषयोग बनने से पति और पत्नी में
से कोई कमजोर एवं रोगी होता है।
दाम्पत्य जीवन में कटुता और झगड़े
की वजह से दांम्पत्य सुख में कमी
आती है। पति-पत्नी के झगड़े
कोर्ट-कचहरी तक जाते हैं। साझेदारी
के व्यवसाय में घाटा होता है। ससुराल
से संबंध बिगड़ते हैं। ससुराल की
ओर से कोई सहायता नहीं मिलती।
- अष्टम स्थान: अष्टम स्थान में
विषयोग होने से जातक को गुप्त रोगों
से परेशानी रहती है। वायु संबंधी रोग
भी होते हैं। रसायन, गैस या किसी
जहरीले कीड़े के काटने से मृत्यु तुल्य
कष्ट मिलता है। जीवन के 30वें या
60वें वर्ष में दुर्घटना होने की संभावना
रहती है। मृत्यु के समय बहुत कष्ट
होता है।
- नवम् स्थान: नवम् स्थान में
विषयोग होने से भाग्योदय में रुकावट
आती है, भाग्योदय देरी से होता है।
किसी भी कार्य की सफलता में विलंब
होता है। विदेश यात्रा से नुकसान
होताा है। ईश्वर में आस्था कम होती
है। चर्मरोग की संभावना रहती है।
जीवन में हमेशा अस्थिरता एवं
असमंजस बना रहता है।
- दशम् स्थान: दशम् स्थान में
विषयोग होने से पिता से संबंध अच्छे
नहीं रहते हैं। नौकरी में उच्चाधिकारी
परेशान रहते हैं। व्यवसाय में स्थिरता
नहीं आती। अपने नाम से व्यवसाय
शुरू करने से घाटा होता है। नौकरी
मिलने में कठिनाई आती है। पैतृक
संपŸिा के लिए झगड़ा होता है, और
संपŸिा खोने का डर रहता है। आर्थिक
स्थिति अच्छी नहीं रहती है।
- ग्यारहवां स्थान: इस स्थान में
विषयोग होने से जीवन में बुरे, मक्कार
एवं झूठे दोस्तों का साथ मिलता है।
किसी भी कार्य से मिलने वाली शोहरत,
नाम, लाभ आदि से जातक वंचित
रहता है। जीवन के अंतिम समय
(वृद्धावस्था) में संतानों से मुसीबत और
कटुता आती है। जातक का अंतिम
समय बहुत बुरा गुजरता है।
- बारहवां स्थान: बारहवे स्थान से
होने वाले विषयोग में जातक निराशा,
डिप्रेशन का योग बनता है। कई बार
आत्महत्या करने की कोशिश करता
है। बीमारियों का कोई इलाज नहीं
मिलता। लंबे समय तक अस्पताल में
रहता है। ऐसे जातक दारू, गांजा,
हेरोइन जैसे व्यसन के आदी बनते
हैं। उनका मन चंचल बनता है। किसी
बात का निर्णय करना मुश्किल बनता
है। पराई औरतों के पीछे जातक
भागता है।
विषयोग के उपाय:
- विष-सर्पों को जिन्होंने ने धारण
किया है उन देवों के देव महादेव
शंकर की शरण में जाने से विषयोग
का प्रभाव कम होगा।
- शिव के ‘‘¬ नमः शिवाय’’ मंत्र
और महामृत्युंजय मंत्र का जप
करना चाहिए।
- श्रावण मास में नदी के किनारे बने
शिव मंदिर में लघु रुद्री करवानी
चाहिए।
- रोहिणी या हस्त नक्षत्र में पूजा के
बाद मोती धारण करना चाहिए।
- शनि का रत्न पुष्य या अनुराधा
नक्षत्र में पूजा के बाद धारण करना
चाहिए।
- शनिवार को घोडे़ की नाल पूजा
करके घर के मुख्य द्वार पर लगानी
चाहिए।
- शनि के मंत्र का जप करके शनि
की वस्तु का दान करना चाहिए।
- सांप को दूध पिलाना चाहिए।
- चंद्र के मंत्र जप करके उसकी
सफेद वस्तुओं का दान करना
चाहिए।
- प्रत्येक शनिवार को एक समय
भोजन करके हनुमानजी का दर्शन
करके उन्हें घी एवं सिंदूर चढ़ाना
चाहिए।
- शनिवार को गरीबों, अनाथों एवं
वृद्धों को अनाज का दान करना
चाहिए।
उपर्युक्त कोई भी उपाय अपनी शक्ति
के अनुसार और सच्ची श्रद्धा के साथ
करने से जातक को विषयोग के प्रभाव
से मुक्ति मिल सकती है।