चिकित्सक योग

चिकित्सक योग  

रश्मि चैधरी
व्यूस : 5272 | जनवरी 2011

चिकित्सक योग रश्मि चौधरी चिकित्सा रोगी के रोग का निदान करके उसके प्राणों की रक्षा करती है। सफल चिकित्सक वही जातक बन पाते हैं जिनकी जन्म पत्रिका में चिकित्सा व्यवसाय में सफलता दिलाने वाले उत्तम ग्रह योग उपस्थित हों। इस आलेख में प्रस्तुत है चिकित्सा व्यवसाय में सफलता दिलाने वाले कतिपय ग्रह योगों का विवरण। कुण्डली में आत्मकारक ग्रह अपनी मूल-त्रिकोण राशि में स्थित होकर लग्न भाव में हो तथा उसकी युति पंचमेश से होती हो तो जातक प्रसिद्ध चिकित्सक होता है। यदि मेष, वृष, तुला, मकर एवं कुंभ लग्न में मंगल-शनि, चंद्र-शनि अथवा बुध-शनि की युति हो अथवा सूर्य या चंद्र के साथ उपर्युक्त तीनों ग्रहों की युति बनती हो, तो जातक सफल चिकित्सक होता है।

यदि केंद्र भावों में सूर्य-शनि, चंद्र-शनि, बुध-शनि या बुध-मंगल-शनि अथवा सूर्य-बुध-शनि, चंद्र-बुध-शनि में कोई भी युति हो और उनमें से कोई भी दो ग्रह केंद्रेश हों तथा कोई भी ग्रह अस्त न हो तो जातक के सफल चिकित्सक बनने की प्रबल संभावना होती है। यदि जन्म पत्रिका में कर्क राशि व मंगल दोनों ही बलवान तथा लग्न एवं दशम् भाव में मंगल एवं राहु का किसी भी रूप में संबंध हो तो जातक चिकित्सक बन सकता है। अब प्रस्तुत है इन ग्रह योगों को दर्शाती हुई एक सफल चिकित्सक की कुंडली- कुंडली नं. 1 में लग्न में कर्क राशि है तथा पंचमेश एवं दशमेश होकर मंगल तृतीय भावस्थ है।

राहु दशम् भाव में मंगल की राशि में ही स्थित है, जिस पर मंगल की अष्टम तथा चंद्र-केतु की सप्तम दृष्टि रही है चिकित्सा विज्ञान एवं औषधियों का कारक ग्रह सूर्य, बुध के साथ होकर बुधादित्य योग का निर्माण कर रहा है। नवांश में भी मंगल पंचम भाव में स्थित है तथा नवांश कुंडली में बुध-शुक्र की लाभ भाव में युति ने जातक को चिकित्सक बनाकर मुखयतः होम्योपैथी के क्षेत्र में महान सफलता दिलाई। एक सफल चिकित्सक की कुंडली में सूर्य-मंगल के साथ-साथ केतु भी बली होना चाहिए। चूंकि वृश्चिक राशि औषधियों का प्रतिनिधित्व करती है, अतः इस राशि में स्थित केतु एवं इसके स्वामी मंगल के बली होने पर जातक सफल चिकित्सक बनता है साथ ही यदि पंचम भाव तथा पंचमेश भी बली है, तो जातक के सफल चिकित्सक बनने की पूर्ण संभावना होती है।


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यदि लग्न में मंगल स्वराशि या उच्च का हो तथा सूर्य पंचम भाव से संबंध बनाता हो, तो जातक सर्जरी के क्षेत्र में निपुण होता है। षष्ठ भाव से रोगादि का विचार किया जाता है। अतः षष्ठ भाव या षष्ठेश यदि दशम् भाव से संबंध बनाए तो जातक कुशल चिकित्सक बनता है। जिन जातकों की कुंडली में गुरु-चंद्र का बली सबं ध्ं ा हाते ा है व े भी कश्ु ाल चिकित्सक बन जाते हैं।

प्रस्तुत कुंडली-2 एक स्त्री रोग विशेषज्ञ की है। कुंडली में मंगल लग्नस्थ है, केतु मंगल की राशि में है, पंचमेश शनि स्वयं पंचम भावगत होकर बली हो गया है। गुरु-चंद्र का शुभ संबंध लग्न एवं नवांश कुंडली दोनों में ही बन रहा है। सूर्य भी लाभ भाव में स्वराशिगत होकर पंचम भाव को अपनी दृष्टि से देख रहा है। इन्हीं सब योगों के कारण जातिका न केवल एक सफल स्त्री रोग विशेषज्ञा है बल्कि एक कुशल सर्जन भी है। उपर्युक्त ग्रह योगों को दर्शाती हुई कुंडली-3 प्रसिद्ध सर्जन की है जिसमें लग्नेश बुध, सूर्य के साथ पंचम भाव में युति बना रहा है। राहु मंगल की राशि में तृतीय भाव में स्थित है। राहु वर्गोत्तम भी है। सर्जरी एवं रक्त के कारक ग्रह मंगल की दशम भाव पर दृष्टि है। षष्ठेश (रोगेश) शनि दशम भावस्थ है।

नवांश कुंडली में बली मंगल की दृष्टि रोग भाव, भाग्य भाव एवं दशम भाव पर है। इन सभी भोगों के फलस्वरूप जातक न केवल एक सफल चिकित्सक बना बल्कि जन्म कुंडली में चतुर्थ भावस्थ चंद्र, मंगल युति (उत्तम धन योग) के कारण जातक ने सर्जरी के क्षेत्र में सफल होकर अपार धन संपत्ति भी अर्जित की है। यदि सम राशि में बुध हो, लग्न में विषम राशि हो, धनेश मार्गी होकर श्रेष्ठ भाव में स्थित हो तथा चंद्र एवं मंगल भी बली हों, तो जातक विखयात चिकित्सक बन सकता है। शनि एवं मंगल का शुभ भाव में दृष्टि संबंध भी जातक को सफल चिकित्सक बना सकता है।

प्रस्तुत कुंडली-4 त्वचा रोग विशेषज्ञ की है। जन्म पत्रिका में ग्रह सम राशि में है, लग्न में विषम राशि है तथा धनेश मंगल पंचमस्थ है। नवमेश बुध स्वराशिस्थ होकर सूर्य के साथ द्वादश भाव में है। नवांश कुंडली में मंगल बुध दशम भावस्थ हैं। शनि-मंगल का दृष्टि संबंध भी है। दशमेश चंद्र मंगल के नवांश में स्थित है। लग्न कुंडली में भी चंद्र की स्थिति शुभ ही कही जाएगी। इस कुंडली में त्वचा रोग विशेषज्ञ बनने के भी लगभग सभी ग्रहयोग हैं।

क्योंकि त्वचा से संबंधित ग्रह मुखयतः चंद्र और बुध माने गये हैं जो लग्न एवं नवांश में शुभ हैं। लग्न कुंडली में षष्ठ भाव पर सूर्य और बुध की दृष्टि भी है। नवांश कुंडली में ही दशम भाव में त्वचा कारक ग्रह बुध एवं रक्त के कारक ग्रह मंगल की युति ने जातक को एक सफल त्वचा रोग विशेषज्ञ बनाया।


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