ज्योतिष और उपाय

ज्योतिष और उपाय  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 8533 | मई 2007

प्रश्न: उपायों का ज्योतिष में क्या महत्व है?

उत्तर: उपाय ज्योतिष का अभिन्न अंग है। जहां ज्योतिष ग्रहों के शुभाशुभ प्रभावों को दर्शाता है वहीं उपायों द्वारा व्यक्ति विशेष पर पड़ने वाले ग्रहों के अशुभ प्रभावों को दूर किया जाता है।

प्रश्न: क्या उपायों द्वारा ग्रहों के कुप्रभावों को पूर्णतया समाप्त किया जा सकता है?

उत्तर: ग्रहों के शुभाशुभ प्रभावों से आने वाली छोटी-बड़ी समस्याएं तो अपने समय पर आएंगी ही, लेकिन उपायों द्वारा ग्रहों के कुप्रभावों को कुछ कम कर सूली को शूल बनाया जा सकता है। जैसे वर्षा या तेज धूप से बचने के लिए छाता कार्य करता है उसी तरह उपाय भी आने वाले प्रकोप से कुछ राहत दिलाते हैं।

प्रश्न: उपाय कितने प्रकार के होते हैं?

उत्तर: उपाय मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं - शुभ ग्रह को बली बनाने के लिए, अशुभ ग्रह को निष्फल करने के लिए और अशुभ ग्रह को शुभ में बदलने के लिए। प्रथम श्रेणी में रत्न व रुद्राक्ष धारण, दूसरी श्रेणी में वस्तु विसर्जन, वस्तु को जमीन में गाड़ना और तीसरी श्रेणी मंे मंत्र जप, यंत्र स्थापना एवं दान लाभदायक होते हैं।

प्रश्न: उपाय किस ग्रह का करना चाहिए?

उत्तर: जन्मपत्री का अच्छी तरह विष्लेषण कर यह जाना जाता है कि जातक को कौन सा ग्रह अशुभ फल दे रहा है जिससे वह परेशान है। उसी ग्रह का उपाय कर उसे शांत करना चाहिए।

प्रश्न: यह कैसे जानें कि कौन सा ग्रह शुभ है और कौन सा अशुभ?

उत्तर: जन्मपत्री में लग्न के अनुसार ग्रहों की शुभता और अशुभता जानी जाती है। जैसे-

मेष: लग्न के लिए सूर्य, मंगल, गुरु और चंद्र शुभ और शुक्र, बुध व शनि अशुभ होते हैं।

वृष: लग्न में सूर्य, शुक्र, बुध व शनि शुभ और चंद्र, गुरु, मंगल अशुभ होते हैं।

मिथुन: लग्न में बुध, शुक्र व शनि शुभ होते हैं और मंगल, गुरु, सूर्य तथा चंद्र अशुभ।

कर्क: लग्न में चंद्र, मंगल व गुरु शुभ होते हैं और बुध, शुक्र, सूर्य तथा शनि अशुभ।

सिंह: लग्न में सूर्य, मंगल व गुरु शुभ और बुध, शुक्र, चंद्र तथा शनि अशुभ होते हैं।

कन्या: लग्न में बुध, शनि व शुक्र शुभ होते हैं और मंगल, चंद्र, सूर्य व गुरु अशुभ।

तुला: लग्न में शुक्र, शनि तथा बुध शुभ होते हैं और सूर्य, चंद्र, गुरु व मंगल अशुभ।

वृश्चिक: लग्न में मंगल, सूर्य, चंद्र व गुरु शुभ होते हैं और शुक्र, बुध तथा शनि अशुभ।

धनु: लग्न में गुरु, सूर्य व मंगल शुभ और बुध, शुक्र तथा शनि तथा चंद्र अशुभ होते हैं।

मकर: लग्न में शनि, बुध तथा शुक्र शुभ और चंद्र, गुरु, सूर्य व मंगल अशुभ होते हैं।

कुंभ: लग्न में शनि, शुक्र व बुध शुभ और सूर्य, चंद्र, गुरु और मंगल अशुभ होते हैं।

मीन: लग्न में गुरु, मंगल व चंद्र शुभ और सूर्य, बुध, शुक्र तथा शनि अशुभ फल देने वाले होते हैं।

ग्रहों की भाव स्थिति और ग्रह युति के अनुसार शुभता अशुभता में अंतर आ सकता है। उपाय करने से पूर्व इसका भी ध्यान रखना चाहिए ताकि जिस ग्रह का उपाय किया जा रहा हो उस का अशुभ फल कम हो सके।

प्रश्न: भाव स्थिति और ग्रह युति के अनुसार उपाय हेतु ग्रह का चयन कैसे करें?

उत्तर: भाव स्थिति और ग्रह युति के अनुसार शुभ ग्रह का बल कमजोर होने पर वह पूर्णतया फल नहीं दे पाता, इसलिए कोई ग्रह यदि लग्न के लिए शुभ हो लेकिन अपनी भाव स्थिति और ग्रह युति के अनुसार कमजोर पड़ जाए, तो उसका उपाय अवश्य करना चाहिए ताकि उसका शुभ फल जातक को प्राप्त हो। लग्न के लिए अशुभ ग्रह की स्थिति एवं युति के अनुसार उसका उपाय कर उसकी शांति करवानी चाहिए जिससे उस ग्रह का अशुभ प्रभाव कम हो जाए और जातक को कष्ट कम हो।

प्रश्न: जन्म पत्री के अनुरूप उपाय के लिए और किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

उत्तर: उपाय के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें: कदंे ्र आरै त्रिकाण्े ा की भाव स्थिति और युति। अस्त और वक्री ग्रह। ग्रह की शत्रु भाव में स्थिति। योग कारक ग्रह और उसकी कुंडली में स्थिति। ग्रह की उच्चता और नीचता। कौन सा ग्रह पीड़ित है। जातक को क्या समस्या है और उस समस्या का संबंध किस भाव व ग्रह से है। उस भाव के स्वामी और स्थित ग्रह का उपाय करना चाहिए ताकि जातक को पीड़ा कम हो। वर्तमान महादशा और अंतर्दशा को भी ध्यान में रखना चाहिए।

प्रश्न: कौन सा उपाय सर्वाधिक प्रभावशाली है- रत्न धारण, पूजा, या मंत्र जप?

उत्तर: हर उपाय अपने आप में पूर्ण प्रभावशाली होता है। यह जातक पर भी निर्भर करता है कि वह समय के रहते किस उपाय को आसानी से कर सकता है। जो उपाय जातक आसानी से कर सके, उसे वही करने की सलाह देनी चाहिए।

प्रश्न: किस ग्रह के लिए कौन सा रत्न धारण करना चाहिए?

उत्तर: सभी ग्रहों के अपने-अपने रत्न हैं। सूर्य का रत्न माणिक्य है जिसे अंग्रेजी में इसे रूबी कहते हैं। चंद्र का रत्न मोती अर्थात पर्ल, मंगल का मूंगा अर्थात कोरल, बुध का पन्ना अर्थात ऐमरल्ड, बृहस्पति का पुखराज अर्थात येलो सैफायर, शुक्र का हीरा अर्थात डायमंड, शनि का नीलम अर्थात ब्लू सैफायर, राहु का गोमेद, केतु का लहसुनिया अर्थात कैट्सआई।

प्रश्न: रत्न कितने भार का, किस धातु में, किस उंगली में कब धारण करना चाहिए?

उत्तर: रत्न का भार जातक की आयु व सेहत पर निर्भर करता है। फिर भी रत्नों के न्यूनतम भार, उनसे संबंधित धातुओं और उंगलियों को ब्योरेबार विवरण इस प्रकार है माणिक्य कम से कम सवा 3 रŸाी का सोने में अनामिका में रविवार को प्रातः धारण करना चाहिए। मोती कम से कम सवा 3 रŸाी चांदी में, कनिष्ठिका में सोमवार को धारण करना चाहिए।

मूंगा सवा 4 रŸाी सोने या चांदी में अनामिका में मंगलवार को प्रातः धारण करें। पन्ना सवा 3 रŸाी सोने या चांदी में, कनिष्ठिका में बुधवार को प्रातः धारण करें। पुखराज सवा 4 रŸाी सोने में तर्जनी में गुरुवार को प्रातः धारण करें। हीरा ( रŸाी चादी या सोने में अनामिका या मध्यमा में शुक्रवार को प्रातः धारण करें।

नीलम सवा 4 रŸाी का पंचधातु या चांदी में मध्यमा में शनिवार की शाम को धारण करें। गोमेद सवा 5 रŸाी अष्टधातु या चांदी में मध्यमा में शनिवार को सूर्यास्त के बाद धारण करें। लहसुनिया सवा 5 रŸाी चांदी में अनामिका में मंगलवार को सूर्यास्त के समय धारण करें।

प्रश्न: रत्न क्या अंगूठी में ही धारण करना चाहिए?

उत्तर: अंगूठी के अतिरिक्त रत्न का लाॅकेट भी धारण किया जा सकता है। लेकिन लाकेट में रत्न का वजन दो गुना होना चाहिए। ध्यान रखें कि धारण किया गया रत्न शरीर के अंगों को छूता रहे चाहे वह अंगूठी में हो या लाॅकेट में।

प्रश्न: किस रत्न को किस रत्न के साथ धारण करें?

उत्तर: शत्रु ग्रह का रत्न धारण नहीं करना चाहिए जैसे मूंगे के साथ नीलम, पन्ना या हीरा धारण नहीं करना चाहिए। हीरे के साथ पुखराज, मूंगा या मोती, पन्ने के साथ मूंगा, पुखराज, माणिक्य या मोती, मोती के साथ पन्ना, हीरा, माणिक्य या नीलम, माणिक्य के साथ पन्ना, हीरा, नीलम या मोती और नीलम के साथ मोती, पुखराज माणिक्य, मूंगा धारण नहीं करें। इसी तरह गोमेद के साथ माण् िाक्य या मूंगा और लहसुनिया के साथ माणिक्य, मोती या नीलम धारण नहीं करना चाहिए।

प्रश्न: कई बार ज्योतिषी नव रत्न अंगूठी या लाॅकेट धारण करने की सलाह देते हैं। क्या यह सही है?

उत्तर: नव रत्न अंगूठी या लाॅकेट तब धारण करना चाहिए जब कई प्रकार की परेशानियों या रोगों से जीवन ग्रस्त हो अन्यथा एक या दो रत्न धाारण करना ही काफी होता है।

प्रश्न: यदि किसी जातक की जन्मपत्री न हो, तो वह उपाय कैसे करे?

उत्तर: जन्मपत्री न होने की स्थिति में जातक की परेशानी या बीमारी जिस ग्रह से संबंधित हो, उसे उस ग्रह का उपाय करने की सलाह दी जानी चाहिए।

प्रश्न: किस बीमारी या परेशानी का कारक ग्रह कौन है यह बतलाएं।

उत्तर: ग्रहों से होने वाली परेशानियां इस प्रकार हैं।

सूर्य: सरकारी नौकरी या सरकारी कार्यों में परेशानी, सिर दर्द, नेत्र रोग, हृदय रोग, अस्थि रोग, चर्म रोग, पिता से अनबन आदि।

चंद्र: मानसिक परेशानियां, अनिद्रा, दमा, कफ, सर्दी, जुकाम, मूत्र रोग, स्त्रियों को मासिक धर्म, निमोनिया।

मंगल: अधिक क्रोध आना, दुर्घटना, रक्त विकार, कुष्ठ रोग, बवासीर, भाइयों से अनबन आदि।

बुध: गले, नाक और कान के रोग, स्मृति रोग, व्यवसाय में हानि, मामा से अनबन आदि।

गुरु: धन व्यय, आय में कमी, विवाह में देरी, संतान में देरी, उदर विकार, गठिया, कब्ज, गुरु व देवता में अविश्वास आदि।

शुक्र: जीवन साथी के सुख में बाधा, प्रेम में असफलता, भौतिक सुखों में कमी व अरुचि, नपुंसकता, मधुमेह, धातु व मूत्र रोग आदि।

शनि: वायु विकार, लकवा, कैंसर, कुष्ठ रोग, मिर्गी, पैरों में दर्द, नौकरी में परेशानी आदि।

राहु: त्वचा रोग, कुष्ठ, मस्तिष्क रोग, भूत प्रेत वाधा, दादा से परेशानी आदि।

केतु: नाना से परेशानी, भूत-प्रेत, जादू टोने से परेशानी, रक्त विकार, चेचक आदि।

इस प्रकार ग्रहों के कारकत्व को ध्यान में रखते हुए उपाय करना चाहिए।

प्रश्न: यंत्र क्या हैं और ये कैसे कार्य करते हैं?

उत्तर: यंत्र एक प्रकार से जातक के लिए सुरक्षा कवच का कार्य करता है। प्रत्येक ग्रह, देवी और देवता की पूजा यंत्रों के माध्यम से की जाती है। यंत्रों का निर्माण इस प्रकार से किया जाता है कि संबंधित देवी या देवता की शक्तियां उनमें समा जाएं। यंत्र कागज, भोज-पत्र, तांबे, सोने या चांदी के पत्र पर बनाए जाते हैं और विधि विधानपूर्वक शुद्ध कर उनकी प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। यंत्र को पूजा स्थान पर स्थापित कर पूजन करने से जातक की अशुभ प्रभावों से रक्षा होती है।

प्रश्न: उपायों में मंत्रों का कितना महत्व है?

उत्तर: प्रत्येक ग्रह के मंत्र होते हैं जिनके जप करने से ग्रह का कुप्रभाव कम हो जाता है। मंत्रों के जप करने से ग्रह देवता प्रसन्न होते हैं और जातक को लाभ मिलता है। मंत्र जप से जातक के इर्द-गिर्द एक सुरक्षा कवच बन जाता है जिसके कारण नकारात्मक शक्ति उस पर प्रभाव नहीं डाल पाती और वह अशुभ प्रभावों से बचा रहता है।

प्रश्न: उपायों में रुद्राक्ष का भी प्रयोग होता है?

उत्तर: उपायों में रुद्राक्ष का विशेष महत्व है जिसका प्रयोग आमतौर पर रुद्राक्ष की माला धारण कर किया जाता है। रुद्राक्ष की माला धारण करने से उच्च रक्तचाप और हृदय के रोगियों को विशेष लाभ होता है। उन्माद, अकाल मृत्यु, भूत प्रेत बाधा, ग्रह बाधा इत्यादि से रक्षा होती है। रुद्राक्ष की माला से ¬ नमः शिवाय का जप करने से कई अत्यधिक लाभ होता है। उसमें विशेष शक्ति और स्फूर्ति का संचार होता है और उसके इर्द-गिर्द एक सुरक्षा कवच का निर्माण होता है। साथ ही धन-धान्य की वृद्धि होती है।

प्रश्न: शनि की साढ़ेसाती के लिए क्या उपाय करना चाहिए?

उत्तर: साढसे़ ाती स े पीडित़ लागे ा ंे को शनि की पूजा करनी चाहिए। शनि मंत्र का जप, शनि यंत्र की पूजा और नीलम एवं लोहे का छल्ला धारण करना चाहिए। रुद्राक्ष या रुद्राक्ष की माला धारण करें। शिवलिंग पर दूध चढ़ाएं और ¬ नमः शिवाय का जप करें। हनुमान जी की पूजा करें। शनिवार को सतनाजा, तेल और काले कपड़े दान करें और पीपल के पेड़ को कच्चे दूध और जल से सींचें, उसकी पूजा करें और दीप जलाएं। मृत्युंजय का पाठ करें। अधिक कष्ट हो, तो महामृत्यंुजय का जप करें और शनिवार को व्रत करें। इन उपायों में जो आसानी से हो सके, यथासाध्य और यथासंभव करना चाहिए। इससे शनि के प्रकोप से राहत मिलती है।

प्रश्न: कालसर्प योग का क्या उपाय करना चाहिए?

उत्तर: कालसर्प योग से पीड़ित जातकों को सर्पों की पूजा करनी चाहिए। नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा करें। हनुमान जी और गणेश जी की पूजा करें। शिवलिंग को चांदी के नाग और नागिन का जोड़ा अर्पित करें। गोमेद और लहसुनिया एक ही अंगूठी में धारण करें। पितरों का श्राद्ध करें। महामृत्युंजय मंत्र का जप करें। राहु और केतु की वस्तुओं का दान करंे जैसे काले तिल, तेल, स्वर्ण, काले रंग का वस्त्र, काले और सफेद रंग का कंबल, कस्तूरी, नारियल आदि।

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