क्यों?

क्यों?  

व्यूस : 5360 | नवेम्बर 2013
प्रश्न: सूर्य को अघ्र्य क्यों? उत्तर: साधारण मान्यता है कि सूर्य को अघ्र्य देने से पाप नाश हो जाते हैं। स्कंदपुराण में लिखा है- सूर्य को अघ्र्य दिये बिना भोजन करना पाप खाने के समान है। वेद घोषणा करते हैं- अथ सन्ध्याया यदपः प्रयुक्ते ता विप्रुषो वज्रीयुत्वा असुरान पघ्नन्ति।। -षड्विंश 4/5 अर्थात संध्या में जो जल का प्रयोग किया जाता है, वे जलकण वज्र बनकर असुरों का नाश करते हैं। सूर्य किरणों द्वारा असुरों का नाश एक अलंकारिक भाषा है। मानव जाति के लिये ये असुर हैं- टाइफाइड, राज्यक्ष्मा, फिरंग, निमोनिया जिनका विनाश सूर्य किरणों की दिव्य सामथ्र्य से होता है। एन्थ्रेक्स के स्पार जो कई वर्षों के शुष्कीकरण से नहीं मरते, सूर्य प्रकाश से डेढ़ घंटे में मर जाते हैं। इसी प्रकार हैजा, निमोनिया, चेचक, तपेदिक, फिरंग रोग आदि के घातक कीटाणु, गरम जल में खूब उबालने पर भी नष्ट नहीं होते। पर प्रातः कालीन सूर्य की जल में प्रतिफलित हुई अल्ट्रावायलेट किरणों से शीघ्र नष्ट हो जाते हैं। सूर्याघ्र्य में साधक, जलपूरित अंजलि लेकर सूर्याभिमुख खड़ा होकर जब जल को भूमि पर गिराता है तो नवोदित सूर्य की सीधी पड़ती हुई किरणों से अनुबिद्ध वह जलराशि, मस्तक से लेकर पांव पर्यन्त साधक के शरीर के समान सूत्र में गिरती हुई, सूर्य किरणों से उत्तप्त रंगों के प्रभाव को ऊपर से नीचे तक समस्त शरीर में प्रवाहित कर देती है। इसलिये वेदशास्त्रानुसार प्रातः पूर्वाभिमुख, उगते हुये सूर्य के सामने और सायं पश्चिमाभिमुख छुपते हुए सूर्य के सामने खड़े होकर सूर्याघ्र्य देने का विधान है। सूर्य को जल देना नेत्र-तेज वर्धक: प्रातः काल की वेला में सूर्य के प्रतिबिंब को तालों तथा नदियों में देखना पश्चिमी देशों में लाभप्रद माना गया है। वहां के वैज्ञानिक कहते हैं कि ऐसा करने से नेत्रों को मोतियाबिंद आदि अनेक रोगों से बचाया जा सकता है। भारतीय ग्रंथों में इसके लिये सूर्य को जल देने का विधान आदिकाल से चलता आ रहा है। इसका क्रम इस प्रकार है- सूर्योदय के थोड़े ही समय बाद लोटे को जल से भरकर सूर्य की ओर मुख करके खड़े हो जाएं। लोटे की स्थिति छाती के बीच में रहनी चाहिये। अब धीरे-धीरे जल की धारा छोड़ना प्रारंभ करें। लोटे के उभरे किनारे पर दृष्टिपात करने से आप सूर्य के प्रतिबंब को बिंदुरूप में देखेंगे। उस बिंदु रूप प्रतिबिंब में ध्यानपूर्वक देखने से आपको सप्तवर्ण वलय (न्यूटन रंग) देखने को मिलेंगे। लोटे का किनारा उत्तल (कनवैक्स) होने से सूर्य को लोटे से जल देना उचित माना गया है। जल देने के पात्र का किनारा अवतल (कानकेव) होने पर सूर्य बृहत् रूप में दिखाई देगा, ऐसी अवस्था में हमारे नेत्र सौर किरणों को सहन नहीं कर पायेंगे। लोटा एल्यूमीनियम, चांदी आदि चमकदार धातु का न होकर तांबे, पीतल आदि का होने से ही उत्तम रहेगा, उसके उत्तल किनारे पर सप्तवर्ण वलय अधिक स्वच्छ दिखाई देंगे। इस प्रकार तेज वर्धक तथा नेत्रों को लाभान्वित करने वाली शीतल सौम्य राश्मियों का सेवन करने का महर्षियों ने यह एक सरल क्रम प्रदान किया है।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.