श्रीयंत्र की उत्पत्ति एवं महत्व

श्रीयंत्र की उत्पत्ति एवं महत्व  

व्यूस : 10871 | नवेम्बर 2013
श्रीयंत्र नाम से ही प्रगट होता है कि यह श्री अर्थात् लक्ष्मीजी का यंत्र है जो लक्ष्मी जी को सर्वाधिक प्रिय है। लक्ष्मी जी स्वयं कहती हैं कि श्रीयंत्र तो मेरा आधार है, इसमें मेरी आत्मा वास करती है। श्रीयंत्र सभी यंत्रों में श्रेष्ठ माना गया है इसलिए इसे यंत्रराज कहा गया है। इसके प्रभाव से दरिद्रता पास भी नहीं आती है। यह यंत्र महालक्ष्मी जी को इतना अधिक प्रिय है इसकी महिमा हम इस यंत्र की उत्पत्ति जानने के पश्चात् ही पूर्णतः समझ पायेंगे। एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार लक्ष्मी जी अप्रसन्न होकर बैकुण्ठ धाम चली गईं। इससे पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार की समस्याएं प्रकट हो गईं। समस्त मानव समाज, ब्राह्मण, वैश्य, व्यापारी, सेवाकर्मी आदि सभी लक्ष्मी के अभाव में दीन हीन, दुखी होकर इधर-उधर मारे-मारे घूमने लगे। तब वशिष्ठ जी ने यह निश्चय किया कि मैं लक्ष्मी को प्रसन्न कर इस पृथ्वी पर वापस लाऊँगा। वशिष्ठ जी तत्काल बैकुण्ठ धाम जाकर लक्ष्मी जी से मिले, उन्हें ज्ञात हुआ कि ममतामयी मां लक्ष्मी जी अप्रसन्न हंै और वह किसी भी स्थिति में भूतल पर (पृथ्वी) आने को तैयार नहीं हैं। तब वशिष्ठ जी वहीं बैठकर आदि अनादि और अनंत भगवान विष्णु जी की आराधना करने लगे। जब श्री विष्णु जी प्रसन्न होकर प्रगट हुए तब वशिष्ठ जी ने कहा हे प्रभो, श्री लक्ष्मी के अभाव में हम सब पृथ्वीवासी पीड़ित हैं, आश्रम उजड़ गये, वणिक वर्ग दुखी है सारा व्यवसाय तहस नहस हो गया है, सबके मुख मुरझा गये हैं। आशा निराशा में बदल गई है तथा जीवन के प्रति उत्साह/ उमंग समाप्त हो गई है। तब श्री विष्णु जी वशिष्ठ जी को लेकर लक्ष्मी जी के पास गये और मनाने लगे। परन्तु किसी प्रकार लक्ष्मी जी को मनाने में सफल नहीं हो सके और रूठी हुई अप्रसन्न श्री लक्ष्मी जी ने दृढ़तापूर्वक कहा कि मैं किसी भी स्थिति में पृथ्वी पर जाने को तैयार नहीं हँू। उदास मन एवं खिन्न अवस्था में वशिष्ठ जी पुनः पृथ्वी लोक लौट आये और लक्ष्मी जी के निर्णय से सबको अवगत करा दिया। सभी अत्यन्त दुखी थे। देवगुरु बृहस्पति जी ने कहा कि अब तो मात्र एक ही उपाय है वह है ‘‘श्रीयंत्र’’ की साधना। यदि श्रीयंत्र को स्थापित कर, प्राण प्रतिष्ठा करके पूजा की जाये तो लक्ष्मी जी को अवश्य ही आना पड़ेगा। गुरु बृहस्पति की बात से ऋषि व महर्षियों में आनन्द व्याप्त हो गया और उन्होंने बृहस्पति जी के निर्देशन में श्रीयंत्र का निर्माण किया और उसे मंत्र सिद्धि एवं प्राण प्रतिष्ठा कर दीवाली से 2 दिन पूर्व अर्थात् धनतेरस को स्थापित कर षोडशोपचार पूजन किया। पूजा समाप्त होते होते ही लक्ष्मी जी वहां उपस्थित हो गईं व कहा कि मैं किसी भी स्थिति में यहां आने हेतु तैयार नहीं थी परन्तु आपने जो प्रयोग किया उससे मुझे आना ही पड़ा। श्रीयंत्र ही तो मेरा आधार है और इसमें मेरी आत्मा वास करती है। श्रीयंत्र सब यंत्रों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसलिये इसे यंत्रराज कहा गया है। श्री यंत्र की रचना भी अनोखी है। पांच त्रिकोण के नीचे के भाग के ऊपर चार त्रिकोण जिनका ऊपरी भाग नीचे की तरफ है। इस संयोजन से 43 त्रिकोण बनते हैं। इन 43 त्रिकोणों को घेर कर दो कमल दल के बाहर तीन वृत्त हैं। इसके बाहर है तीन चैरस जिसे भूपुर कहते हैं। इस यंत्र के विषय में पश्चिम के सुप्रसिद्ध रेखागणित वैज्ञानिक सर एलेक्सीकुलचेव ने अद्भुत तथ्य प्रस्तुत किये हैं जो श्री यंत्र की महत्ता को और अधिक पुष्ट करते हैं। इस यंत्र की संरचना रेखा विज्ञान के अनुसार भी बड़ी ही विचित्र है। तीन आड़ी रेखाओं का बिन्दु केन्द्र बनाना एक अति विचित्र योग है। फिर किस प्रकार अन्यान्य आड़ी रेखायें आकृतियाँ बनाती हैं ये भी आश्चर्य का विषय है। साथ ही साथ सम्पूर्ण रूप में अपलक इस रेखा रचना का देखते रहने पर यह चलायमान सी अनुभव होती है। कुछ हिलता सा नजर आता है। इसमें अनेक आकृतियां भी आती जाती प्रतीत होती हैं। यंत्रों में जो भी अंक लिखे जाते हैं या जो भी आकृतियां बनाई जाती हैं वे विशिष्ट देवी देवताओं की प्रतीत होती हैं। यंत्रों की उत्पत्ति भगवान रुद्र के प्रलयकारी नृत्य ताण्डव से मानी जाती है। यंत्रों के दर्शनमात्र से काम बन जाता है और अगर नियमित रूप से पास रखा जाये तो निरंतर शुभ कार्य सम्पन्न होते रहते हैं। सम्पूर्ण यंत्र विज्ञान में श्रीयंत्र को सर्व सिद्धि दाता, धनदाता या श्रीदाता कहा गया है। इसे सिद्ध या अभिमंत्रित करने की अनेक विधियां या मंत्र बताये गये हैं। इस यंत्र को तांबे, चांदी या सोने पर बनाया जा सकता है। तांबे पर 2 वर्ष, चांदी पर 11 वर्ष, स्वर्ण पर सदैव प्रभावी रहता है। ऐसे व्यक्तियों को जो कुछ भी कार्य नहीं कर सकते, को श्रीयंत्र का लाॅकेट पहना दिया जाये तो उसे भी सद्बुद्धि आ जाती है तथा वह भी कामकाज करने लगता है। इस लाकेट को नवरात्रि स्थापना के दिन धारण करना चाहिए। इससे धन की प्राप्ति होती है। इसके धारण करने से धारक को किसी प्रकार का भय नहीं होता व निरंतर आय में (नौकरी/व्यवसाय) उन्नति होती रहती है और उसका भाग्योदय हो जाता है एवं लक्ष्मी जी हमेशा उस पर अपना आशीर्वाद बनाये रखती हैं। जो स्त्री अपने पति की निरंतर उन्नति चाहती है उसे अवश्य ही लक्ष्मी जी के श्रीयंत्र के लाॅकेट को धारण करना चाहिए। इससे घर में सुख, शांति व लक्ष्मी जी की कृपा उस घर में स्थाई रूप से हो जाती है। श्रीयंत्र के प्रकार: 1. मेरुपृष्ठीय श्रीयंत्र 2. कूर्मपृष्ठीय श्रीयंत्र 3. धरापृष्ठीय श्रीयंत्र 4. मत्स्यपृष्ठीय श्रीयंत्र 5. उध्र्वरूपीय श्रीयंत्र 6. मातंगीय श्रीयंत्र 7. नवनिधि श्रीयंत्र 8. वाराहीय श्रीयंत्र श्रीयंत्र सोना, चांदी एवं तांबे के अतिरिक्त स्फटिक एवं पारे के भी बनाये जाते हैं तथा आजकल उपलब्ध हैं। श्रीयंत्र विभिन्न आकार के भी बनाये जाते हैं जैसे अंगूठी में पहनने के, लाॅकेट में पहनने के, बांह पर बांधने वाले, ताबीज के रूप में, बटुए में रखने के लिये सिक्के के रूप में आदि। श्रीयंत्र की पूजा में जाप हेतु लक्ष्मी जी का यह मंत्र अति उपयोगी है: ऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ महालक्ष्म्यै नमः। इस जाप में माला कमल गट्टे की प्रयोग करें। सबसे अच्छा श्रीयंत्र स्फटिक का माना गया है। स्फटिक मणि के समान होता है। हिन्दू धर्म में चारों स्तम्भ चारों शंकराचार्य माने जाते हैं, ये भी स्फटिक श्रीयंत्र की पूजा करते हैं। हिन्दू धर्म के सभी ज्ञानी संत, महापुरुष, धर्माचार्य, महामण्डलेश्वर, योगी, तांत्रिक, संन्यासी सभी के पूजा स्थल में इस यंत्र का प्रमुख स्थान है। इस यंत्र को यंत्रराज अथवा यंत्र शिरोमणि भी कहा गया है क्योंकि बाँकी सभी यंत्रों में मंत्रों के साथ धातुओं की शक्ति समाई हुई है परन्तु स्फटिक श्रीयंत्र में मंत्रों के साथ-साथ दिव्य अलौकिक स्फटिक मणि की सम्पूर्ण शक्तियां होती हैं। इसको स्फटिक मणि पर उभारा जाता है जिससे इसकी शक्तियां हजारों गुना बढ़ जाती हैं। इसे पूजा स्थान, कार्यालय, दुकान, फैक्ट्री एवं पढ़ाई के स्थान पर रखने एवं पूजा पाठ करने से धन, धान्य एवं व्यापार में लाभ तथा पढ़ाई में सफलता तथा वाहन में रखने पर दुर्घटना से बचाव होता है। पारे का श्रीयंत्र:- यह भी सर्वश्रेष्ठ माना गया है। पारा भगवान शिव का विग्रह कहलाता है और लक्ष्मी जी ने स्वयं कहा कि पारद ही मैं हंू और मेरा ही दूसरा स्वरूप पारद है। पारद श्रीयंत्र की महत्ता स्वयंसिद्ध है इसकी कोई साधना नहीं होती। यह तो जिस घर में स्थापित होती है वहां स्वयं ही आर्थिक उन्नति होने लगती है। अतः स्पष्ट है कि श्रीयंत्र एक अद्भुत यंत्र है, इसके महत्व का वर्णन करना सूर्य को दीपक दिखाना होगा। इसको घर में स्थापित कर स्वयं अनुभव करें।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.