श्री मंगला गौरी मंत्र

श्री मंगला गौरी मंत्र  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 23177 | आगस्त 2007

विवाह एवं दाम्पत्य सुख के बाधक योगों में मंगली योग प्रमुख है। इसके प्रभाववश न केवल विवाह में देरी ही होती है, अपितु कभी-कभी सगाई या विवाह होकर भी रिश्ता टूट जाता है। इस मंगली योग का हौआ इतना है कि कुछ लोग यह पता लगने पर कि उनका लड़का या लड़की मंगली है, इस बात को छुपाने का प्रयत्न करते हैं और कुछ लोग तो मंगली योग के डर के मारे नकली जन्मपत्री तक बनवा लेते हैं।

वस्तुतः मंगली योग से न तो डरने की और नहीं उसे छुपाने की आवश्यकता है क्योंकि ज्योतिष शास्त्र में इस योग के निवारण के अनेक उपायों का प्रतिपादन किया गया है। मंगली योग के हौआ से बचने के लिए इन तीन बातों की जानकारी आवश्यक है: 

1. यह योग क्या है ? 

2. यह विवाह एवं दाम्पत्य सुख में कैसे बाधा डालता है? 

3. इसके निवारण का उपाय क्या है ?

मंगली योग: वैदिक ज्योतिष के अनुसार व्यक्ति की जन्म कुंडली में लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में मंगल हो, तो मंगली योग बनता है। व्यक्ति की जन्म कुंडली में सप्तम भाव उसके विवाह एवं दाम्पत्य सुख का सूचक होता है। इस योग में लग्न, चतुर्थ या द्वादश स्थान में स्थित मंगल अपनी दृष्टि से सप्तम भाव को प्रभावित करता है जबकि सप्तम भाव में स्थित मंगल अपनी युति से उसे प्रभावित करता है।

अष्टम स्थान में स्थित मंगल पति या पत्नी के कुटुंब/परिवार को प्रभावित करता है। इस प्रकार लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में मंगल होने पर यह योग बनता है। इसी प्रकार कुंडली में चंद्र से इन्हीं स्थानों में कहीं भी मंगल होने पर चंद्र मंगली योग बनता है, जिसे आम तौर पर लोग चुनरी मंगली या पाग मंगली योग भी कहते हैं।

दक्षिण भारत में इस योग के उक्त पांच भावों में से लग्न के स्थान पर द्वितीय भाव का ग्रहण कर इस योग का विचार किया जाता है। दक्षिण में इस योग को कुज दोष कहा जाता है। मंगली योग का प्रभाव: वैदिक ज्योतिष के प्रवर्तक ऋषियों एवं मनीषी आचार्यों ने मंगल को जल्दबाजी, जिद्दीपन एवं अहंकार का सूचक माना है।

अतः जिस व्यक्ति की कुंडली में यह योग होता है, उसका विवाह तय करने की प्रक्रिया कभी जल्दबाजी के कारण, कभी जिद्दीपन के कारण और कभी-कभी पारिवारिक या वैयक्तिक अहंकार के कारण सिरे नहीं चढ़ पाती और परिणामस्वरूप विवाह में रुकावट एवं देरी हो जाती है। दाम्पत्य संबंधों में घनिष्ठता या प्रगाढ़ता के लिए पति पत्नी में आपसी लगाव एवं अटूट विश्वास होना आवश्यक होता है।

यदि पति-पत्नी दोनों मंगली हों, तो उनके स्वभाव में समानता होने के कारण उनमें घनिष्ठता बनी रहती है। किंतु यदि उन दोनों में से एक मंगली और एक सादा हो, तो यह योग उनके आपसी संबंध को उनकी जल्दबाजी, जिद्दीपन या उनका अहंकार पलीता लगा देता है।

परिणामतः उनमें तू-तू मैं-मैं से लेकर अलगाव तक की नौबत आ जाती है। इस प्रकार यह मंगली योग विवाह से पहले रिश्ता तय होने में रुकावट एवं देरी तथा विवाह के बाद पति-पत्नी के आपसी संबंधों में खींचतान के रूप में बाधा डालता है।

मंगली योग का उपाय: मंगली योग के प्रभाववश विवाह में आनेवाली रुकावट एवं देरी से बचने के लिए मंगला गौरी मंत्र का अनुष्ठान एक अचूक उपाय है। इसका परंपरागत मंत्र, विनियोग, न्यास, ध्यान, पूजन यंत्र एवं विधि इस प्रकार हैं:

श्री मंगला गौरी मंत्र: ¬ ह्रीं मंगले गौरि विवाहबाधां नाशय स्वाहा।

विनियोग:

अस्य श्री मंगला गौरि मन्त्रस्य अजऋषिः

गायत्री छन्दः श्री मंगलागौरि देवता ह्रीं बीजं स्वाहा

शक्तिः ममाभीष्टं सिद्धये जपे विनियोगः।

ऋष्यादि न्यास ¬ अजाय ऋषये नमः, शिरसि।

¬ गायत्री छन्दसे नमः, मुखे।

¬ मंगला गौरि देवतायै नमः, हृदि।

¬ ह्रीं बीजाय नमः, गुह्ये।

¬ स्वाहा शक्तये नमः, पादयोः।

करन्यास ¬ अंगुष्ठाभ्यां नमः।

ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः।

मंगले गौरि मध्यमाभ्यां नमः।

विवाहबाधां अनामिकाभ्यां नमः।

नाशय कनिष्ठिकाभ्यां नमः।

स्वाहा करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।

अंगन्यास ¬ हृदयाय नमः।

ह्रीं शिरसे स्वाहा।

मंगले गौरि शिखायै वषट्।

विवाह बाधां कवचाय हुम्।

नाशय नेत्रत्रयाय वौषट्।

स्वाहा अस्त्राय फट्।

ध्यान:

गीर्वाणसंधार्चितपाद पंकजारूण् ाप्रभा बाल शशांक शेखरा।

रक्ताम्बरा लेपन पुष्पयुंग मुदे सृणिं सपाशं दधतीं शिवास्तु नः।।

पूजन यंत्र अनुष्ठान विधि: नित्य कर्मों से निवृत्त होकर आचमन एवं मार्जन कर चैकी या पटरे पर पीला कपड़ा बिछाकर उस पर अष्ट गंध एवं चमेली की कलम से भोजपत्र पर लिखित श्री मंगला गौरी पूजन यंत्र स्थापित कर विधिवत विनियोग, न्यास एवं ध्यान कर पंचोपचार (रोली, चावल, फूल, धूप एवं दीप) से उस पर श्री मंगला गौरी का पूजन कर उक्त मंत्र का जप करना चाहिए।

जप संख्या 64,000, मतांतर से 1,25,000 अनुष्ठान के नियम नित्य कर्मों के बाद आसन पर पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख बैठकर चंदन/टीका लगाकर प्रसन्न भाव से अनुष्ठान करना चाहिए। विश्वासपूर्वक विनियोग, श्रद्धापूर्वक पूजन एवं मनोयोगपूर्वक जप करने से अनुष्ठान सफल होता है। सूर्योदय से एक प्रहर (तीन घंटे) का समय उत्तम तथा मध्याह्न का समय मध्यम होता है। 

If you are facing any type of problems in your life you can Consult with Astrologer In Delhi



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.