ज्योतिष द्वारा कैसे जानें मानसिक रोग

ज्योतिष द्वारा कैसे जानें मानसिक रोग  

ब्रजमोहन तिवारी
व्यूस : 19683 | अप्रैल 2011

मन के हारे हार है 'मन के जीते जीत' उक्त कहावत हमारे जीवन में बहुत सार्थक प्रतीत होती है। मानसिक बल के आगे शारीरिक बल न्यून हो जाता है। व्यक्ति का मन अगर भ्रष्ट या अविवेकी हो जाए तो व्यक्ति का चरित्र लांछित हो जाता है। मन रोगी व कमजोर हो तो वह जीवन के सभी सुखों की संभावनाओं से ही वंचित हो जाता है। 'मनसो जातक चन्द्रमा' लग्नेश, चतुर्थ एवं एकादश भाव जब दुष्प्रभाव में आ जाते हैं

तो मानसिक विकार का कारण बन जाते हैं। इस विषय पर प्रस्तुत है एक ज्योतिषीय विश्लेषण ... मानसिक रोग ऐसा रोग है जो मानव विवेक, तन, मन, धन, विद्या, यश सब नष्ट कर देता है। ज्योतिष द्वारा जानने की कोशिश करते हैं कि मानसिक रोग कैसे होता है। भावों में मन का कारकत्व प्रथम भाव से मन, चतुर्थ भाव से सुख, एकादश भाव से लाभ विचार, परंतु यहां तीनों भावों से मन का ही संयोग होता है।

ग्रहों में चंद्र, गुरु, शुक्र द्वारा विचार करना चाहिए। चंद्रमा का विशेष कारकत्व सर्दी, बुखार, जल संबंधी रोग, पाण्डु रोग, मानसिक रोग, देवियों द्वारा होने वाली बाधाएं चंद्र प्रदान करता है। चंद्र शीतल ग्रह और इसका देवता जल है सत्व गुणी तथा जल तत्व युक्त ग्रह हैं और चंद्र को प्राण माना गया है। ग्रंथों में चंद्रमा रात्रि में बलवान होता है व अपने द्वारा शीतलता पहुंचाने में सक्षम होता है। यही एक ग्रह ऐसा है

जो 211 दिन में ही राशि परिवर्तन कर लेता है अन्य ग्रह यह क्षमता नहीं रखते परंतु यह ग्रह दूसरों के दबाव में जल्दी आता है और अपने प्रभाव को खो देता है।  लग्न में राहु का प्रभाव हो तो मानसिक रोग होती है। सिंह चंद्र लग्न में हो तो मतिभ्रम योग होता है।  लग्न में चंद्रमा हो तो तनावयुक्त होता है। यदि लग्नेश अष्टम भाव में हो तो मतिभ्रम होता है।  लग्न में पाप ग्रह हों तो तनाव होता है। लग्नेश मंगल के साथ हो तो मानसिक मनाव होता है।  यदि लग्नेश षष्ठ, अष्टम, द्वादश भाव से किसी प्रकार का संबंध रखता हो तो तनावग्रस्त होता है।


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यदि षष्ठ अष्टम, द्वादश भाव में लग्नेश युक्त केतु बैठा हो तो मतिभ्रम होता है। यदि लग्नेश के साथ सूर्य हो और वह अस्त हो तो मानसिक रोग होता है। यदि लग्नेश शत्रु क्षेत्री हो तो तनावयुक्त होता है।

यदि लग्नेश अस्त नीच का निर्बल पीड़ित हो तो अवश्य ही तनाव को बढ़ाता है।  यदि वक्री गुरु लग्न में या चंद्र के साथ बैठा हो तो मानसिक तनाव होता है।  राहु से युक्त गुरु कहीं बैठ जाय तो तनाव पैदा करता है। कुंडली 1 लग्नेश जो गुरु है अष्टम भाव में बैठा है जो प्रथम तनाव का कारण हो सकता है। अष्टमेश शुक्र के साथ चंद्र एवं केतु है

जो मानसिक रोग उत्पन्न करते हैं, और मन को विस्मृत करते हैं और कर्म में ढीलापन उत्पन्न करते हैं। चतुर्थ भाव जो सुख, मानसिक शांति, हृदय, पारिवारिक समृद्धि और भूमि मकानादि का प्रतीक है। अतः इस भाव से भी मानसिक तनाव हो सकता है। उपरोक्त पत्री में चतुर्थेश बुध नवम भाव में अस्त है और चतुर्थ भाव में राहु बैठा है चतुर्थेश स्वयं सप्तमेश बना हुआ है और उस पर शनि बैठा है।

जो निम्न तनाव के कारण हो सकते हैं। प्रथम - विवाह संबंधी, द्वितीय- धन संबंधी, तृतीय - रोग से चतुर्थ- तनाव से पीड़ित, पंचम- पारिवारिक कलह इस जातक को तनाव पीड़ित कर सकता है जो मन में अनेक प्रकार के नकारात्मक विचार उत्पन्न करता है जिससे मति भ्रम हो जाती है। एकादश भाव जो इच्छाओं की पूर्ति अथवा लाभ, व्यापार आदि का प्रतीक है। लाभेश एवं व्ययेश शनि है जो सप्तम भाव में बैठा है और भाग्य स्थान को देखरहा है जिसमें सूर्य बुध जो शनि की दृष्टि से प्रभावित है। जो कि लाभ से ज्यादा खर्च का संकेत करता है लाभ में अनेक व्यवधान उत्पन्न होते हैं जिस कारण जातक को तनाव का शिकार होना पड़ता है। कुंडली 2 अष्टमेश गुरु पंचमेश बना हुआ है और उस पर सूर्य, बुध, राहु बैठे हैं जो कि लग्नेश सूर्य ही है परंतु जातिका को अत्यधिक तनावग्रस्त जीवन बिताना पड़ रहा है और बाल्यावस्था से ही मानसिक रोग की शिकार है।

कई डाॅक्टरों की दवा ली परंतु कोई लाभ नहीं हुआ। परंतु इन्होंने गुरु की व्रत कथा आरंभ किया तो काफी लाभ हुआ परंतु विवाह पक्ष में काफी कष्ट उठाना पड़ रहा है, जिस कारण तनाव ग्रसित रहती है। इसका कारण साफ है कि सप्तमेश शनि षष्ठेश भी है जो लाभ स्थान में केतु के साथ बैठा है। जो लाभ का संकेत करता है परंतु विवाह में बाधा उत्पन्न कर रहा है।


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सप्तम भाव में चंद्र बैठा है षष्ठेश भाव में गुरु शुक्र बैठे जो कि जीवन में इन्होंने किसी से प्रेम किया परंतु उसने इनका साथ नहीं दिया। चतुर्थेश मंगल, लाभेश बुध व भाग्येश मंगल अपने ही घर को देख रहे हैं, जो आकस्मिक धोखा का संकेत है क्योंकि लाभेश और धनेश बुध में अनेक पापत्व प्रभाव है जिससे जातिका को धोखा और तनावग्रसित जीवन व्यतीत करती है। कुंडली 3 त्रिभुवन नरायणजी , तपोवन शिक्षण संस्थान के प्रिंसिपल हैं इनके जन्मांग का आकलन किया तो देखा कि  लग्नेश व्ययेश शनि षष्ठ भाव में चंद्र राशि में बैठा हें

जो जातक को अनेक प्रकार के चिंता तथा तनाव उत्पन्न करते हैं।  शुक्र चतुर्थेश होकर भाग्येश है जिस पर राहु बैठा है और गुरु से द्रष्ट हैं जो कि केतु से युक्त गुरु है इस कारण कार्य में बाधा एवं भाग्य में रुकावट तनाव का कारण है।  पंचमेश बुध अष्टमेश होकर लाभ स्थान में मंगल के साथ बैठा है, जिसके कारण जातक का कार्य अल्प होता है और रोगादि अनेक व्याधि रहती है जिस कारण जातक के तनाव रहता है। चंद्रमा षष्ठेश होकर कर्म स्थान में बैठा है, जिसके कारण जातक के शरीर में रोग रहता है। 

षष्ठ भाव में शनि चंद्र राशि में बैठा है जिस कारण मित्रों से असहयोग की भावना होती है जिससे मानसिक रोग होना स्वाभाविक है। कुछ अन्य योग  पंचम स्थान में बुध, राहु या चैथे स्थान में मंगल हो।  आठवे स्थान में शनि हो तो मानसिक तनाव होता है।  लग्न में पाप ग्रह हो तो मानसिक तनाव होता है।  लग्नेश पाप ग्रहों से युक्त हो तो मानसिक रोग होता है। सुख स्थान का स्वामी निर्बल हो तो मानसिक तनाव होता है। सुख स्थान में पाप ग्रह हो तो मानसिक तनाव होता है।

सुख भाव का स्वामी पाप ग्रहों से युक्त हो तो मानसिक तनाव होता है। कुंडली 4 लग्नेश शनि सुख स्थान में बैठा है जिसके कारण तनाव भरा जीवन व्यतीत करना पड़ा, दूसरा देखें सुखेश अष्टम भाव में बैठा है और वही भाग्येश भी है जो शुक्र है इस कारण नको हमेशा बेचैनी अथवा मानसिक रोग से प्रताड़ित होना पड़ता है। लाभेश गुरु स्वयं धनेश है, जो कि षष्ठ भाव में बैठा है अतः इनको शत्रुओं से तनाव ग्रसित होना पड़ा। अष्टमेश बुध पंचमेश भी है।


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अष्टम भाव में बैठा है उसके साथ शुक्र मंगल सूर्य जो कि अस्त है इसी कारण इनको धन संबंधी कुछ समय पहले तनाव उठाना पड़ा और शारीरिक पीड़ा और कई प्रकार की व्याधियां उठानी पड़ी इस तरह से मानसिक रोगों का आंकलन भली भांति किया जा सकता है। कुंडली 5 लग्नेश जो स्वयं धनेश भी हैं और रोग स्थान में बैठा है, जिस कारण हमेशा शरीर में रोग व तनाव ग्रसित रहता है।

मंगल चतुर्थ भाव का स्वामी है, चतुर्थ भाव सुख स्थान है और मंगल लाभेश का भी स्वामी है, मंगल पराक्रम स्थान में गुरु के साथ है अतः जातक पराक्रम से परिपूर्ण है परंतु अनेक बाधाओं से घिरा हुआ है जिस कारण मानसिक रोग होने की संभावना रहता है। अष्टमेश सूर्य पंचम भाव में केतु से युक्त है लग्नेश और षष्ठेश निर्बल है जो जातक को शारीरिक पीड़ा व नेत्र रोग देते हैं। जिस कारण अनेक प्रकार से तनाव होने से मानसिक रोग होना संभव माना जा सकता है।

कुंडली 6 देखएि हर्षद मेहता जी की कुंडली वर्तमान समय से कुछ दिनों पहले तनाव भरी जिंदगी व्यतीत करनी पड़ी। लग्नेश बुध कर्म स्थान का स्वामी है और कर्म स्थान में गुरु केतु के साथ बैठा है। गोचरोक्त शनि भी कर्म स्थान में बैठा था। इस कारण मानसिक तनाव से गुजरना पड़ा और काफी समय तक स्थिति अनुकूल नहीं हुई चतुर्थ स्थान में मंगल राहु हैं जो कि गुरु की राशि पर है और गुरु से दृष्ट भी है परंतु शनि की तृतीय दृष्टि, गोचरोक्त सप्तम दृष्टि शारीरिक मानसिक पीड़ा उत्पन्न करता है। पंचमेश षष्ठेश शनि द्वितीय भाव में बैठा है

उस पर गुरु की पांचवीं दृष्टि है जिस कारण जातक को धन के पक्ष में तनाव, सरकारी व्यस्तता के कारण तनाव ग्रस्त रहना पड़ रहा है। तृतीयेश $ अष्टमेश मंगल - तनाव कारण हो सकते हैं लेकिन क्षणिक मात्र के लिए रहता है। सुख स्थान का स्वामी पाप ग्रहों के नवांश में हो सूर्य मंगल से युत हो और शुभ ग्रह नहीं देखते हों तो हमेशा तनाव से दुःखी रहता है। मस्तिष्क पीड़ा से युक्त जीवन होता है पीड़ा कभी खत्म नहीं होती जिसको मानसिक रोग समझ सकते हैं। अष्टम भाव में शनि हो तो मानसिक रोग से प्रताड़ित होता है। पाप ग्रहों के बीच में चंद्र हो तो तनाव होता है। महत्वपूर्ण योग सुख स्थान का स्वामी मंगल से युत हो तो हमेशा मानसिक रोग से दुःखी रहता है। अष्टम भाव का स्वामी एकादश भाव में बैठा हो।  लग्न में शनि, अष्टम में राहु, षष्ठ भाव में मंगल हो। 


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लग्नेश बारहवें स्थान में हो तो मानसिक तनाव होता है।  चंद्र मंगल का योग कहीं हों तो मानसिक तनाव होता है।  अगर लग्न अशुभ हो, सूर्य शत्रु क्षेत्र में हों, और सूर्य की दशा में शुक्र की अंतर्दशा में मानसिक पीड़ा होता है।  मंगल की दशा, केतु की अंतर्दशा में सिर की पीड़ा अर्थात मानसिक तनाव होता है।  चंद्र की महादशा में शनि की अंतर्दशा हो तो मानसिक रोग होता है।  बुध की महादशा, मंगल की अंतर्दशा में मानसिक रोग।  बुध की दशा, राहु की अंतर्दशा हो तो मानसिक तनाव । 

बुध की दशा सूर्य की अंतर्दशा हो तो कुष्ठ रोग के कारण तनाव होता है।  गुरु की दशा में शनि की अंतर्दशा हो तो मानसिक तनाव। गुरु की अंतर्दशा में केतु की प्रत्यंतर्दशा हो तो तो गुप्त चिंताओं के कारण तनाव रहता है। गुरु की दशा, चंद्र का अंतर्दशा में दिमागी हालत ठीक नहीं रहती अर्थात मानसिक रोग होता है। यदि लग्न में मंगल हो तो पत्नी के कारण तनाव होता है। यदि सप्तम भाव शनि हो तो पत्नी के कारण तनाव। यदि द्वितीय भाव में सूर्य हो तो नेत्रों के कारण तनाव। यदि चतुर्थ भाव में केतु हो तो माता के कारण तनाव। यदि पंचम भाव में मंगल हो तो पुत्रों के कारण तनाव। यदि दशम भाव में राहु युक्त शनि हो तो पिता कारण तनाव होता है।

यदि षष्ठ भाव में सूर्य, राहु हों तो शत्रु के कारण तनाव होता है। यदि पंचमेश षष्ठ भाव में हो तो मित्रों के कारण तनाव होता है। यदि सप्तम भाव में सूर्य, शनि हो तो ससुराल के कारण तनाव होता है। द्वितीय भाव में गुरु हो तो धन के लिए तनाव होता है। यदि एकादश भाव में मंगल से युक्त चंद्र हो तो व्यापार को लेकर तनाव होता है। द्वादश भाव में राहु या सूर्य हो तो मुकदमा आदि से तनाव होता है।



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