कालसर्प योग भी ग्रहण योग है

कालसर्प योग भी ग्रहण योग है  

महेश चंद्र भट्ट
व्यूस : 8663 | मई 2011

कालसर्प योग भी ग्रहण योग है पं. महेश चंद्र भट्ट (ज्योतिषाचार्य) पथ्वी पर सूर्य-चंद्र ग्रहण होते हैं और उनका दीर्घकालीन प्रभाव भी चल-अचल सभी पर होता है। कालसर्प योग भी ग्रहण का ही प्रतिरूप है। जन्मकुंडली में यह होने पर उसका भला-बुरा प्रभाव जातक पर होता है। बृहत् संहिता में बराहमिहिर ने इसकी काफी चर्चा की है। कुछ ज्योतिषियों के अनुसार कालसर्प योग की कुंडली के जातक को 42 से 45 वर्ष की आयु तक परेशानी सहन करनी पड़ती है। उसके बाद पीड़ा अपने आप दूर हो जाती है, परंतु इस बात को मानने के लिए कोई ठोस शास्त्रीय आधार नहीं है।

'जातक तत्वम्' ज्योतिष रत्नाकर, जैन ज्योतिष एवं पाश्चात्य ज्योतिष विद्वानों ने कालसर्प योग को मान्यता दी है। जैन ज्योतिष और दक्षिण भारत के प्राचीन एवं आधुनिक ग्रंथों में भी कालसर्प योग का उल्लेख मिलता है। हमारे पूर्वाचार्यों ने कालसर्प शांति का विधान बताया है। यह विधान अनेक वर्षों से प्रचलन में है। 'शांतिरत्नम्' ग्रंथ में तो कालसर्प शांति को जनन शांति माना है।

यह विधि नदी के किनारे या श्मशान में शंकर जी के स्थान पर की जानी चाहिए, परंतु कुछ पुरोहित अपने ही घरों में या यजमानों के घरों में यह विधि संपन्न कराते हैं। लेकिन यह विधि शास्त्र सम्मत नहीं है। विधि हेतु मुहूर्त्त : यह कर्म काम्य है। इसके लिए मुहूर्त्त जरूरी है। अश्विनी, रोहिणी, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, उत्तरा, हस्त, स्वाति, अनुराधा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शततारका, रेवती इन सोलह नक्षत्रों में से कोई भी एक नक्षत्र इस विधि के लिए उपयुक्त है। यह विधि तीन घंटों की है। यानी एक दिन में यह विधि पूर्ण हो जाती है। कालसर्प एवं राहु की प्रतिमाओं को कलश पर स्थापित कर पूजा आरंभ की जाती है।

सुवर्ण के नौ नाग, कालसर्प एवं राहु की प्रतिमा, उन्हें भाने वाले अनाज, दशधान्य, ह्वन सामग्री, पिंड आदि तैयार करने के बाद पूजा संपन्न होती है। संकल्प, गणपति पूजन, पुण्याहवाचन, मातृ पूजन, नांदी श्राद्ध, नवग्रह पूजन, होम ह्वन ये प्रमुख बातें इस विधान की है। इस विधि हेतु स्वयं के लिए नये वस्त्र धारण किये जाते हैं तथा ब्राह्मण के लिए नये वस्त्र, कम से कम एक ग्राम सोने की नाग प्रतिमा और अपनी शक्ति अनुसार दक्षिणा दी जाती है। 'जातक तत्वम्' ज्योतिष रत्नाकर, जैन ज्योतिष एवं पाश्चात्य ज्योतिष विद्वानों ने कालसर्प योग को मान्यता दी है।

जैन ज्योतिष और दक्षिण भारत के प्राचीन एवं आधुनिक ग्रंथों में भी कालसर्प योग का उल्लेख मिलता है। कालसर्प शांति विधान : ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जातक की कुंडली का परीक्षण करना चाहिए। राहु का अधिदेवता काल और प्रत्यधिदेवता सर्प है। ज्योतिषाचार्यों के मतानुसार ग्रह की शांति के लिए अधिदेवता व प्रत्यधिदेवता की पूजा करनी चाहिए। इसलिए इस शांति का नाम 'कालसर्प शांति' रखा गया है।

राहु, काल और सर्प तीनों की पूजा, मंत्र जप, दशांश होम, ब्रह्म भोजन, दान आदि करना आवश्यक है। कई विद्वान कालसर्प को नागदोष मानकर नागबलि एवं नारायण बलि को भी आवश्यक मानते हैं। जिस प्रकार अन्य ग्रहों की शांति के उपाय किये जाते हैं, वैसे ही यह भी एक शांति-विधि है। यह अशुभ कर्म नहीं है। पीड़ा निवारण के लिए यह शांति भी घर में ही नियमानुसार करनी चाहिए। नारायणबलि एवं नागबलि के लिए तीर्थ स्थान या शिवालय उत्तम स्थल है।

मन की शांति के लिए तीर्थ का महात्म्य है, लेकिन यदि घर के पास में ही शांत व पवित्र स्थान हों तो वहीं सांगोपांग विधि करना अधिक उचित है। प्रवास में जितना समय लगे, उतनी अधिक विधि करने से लाभ होगा। मंत्रजप के लिए शिवमंदिर को श्रेष्ठ स्थल कहा गया है।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.