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फ्यूचर समाचार
व्यूस : 5653 | आगस्त 2006

आपके विचार प्र श्न: रुद्राक्ष कहां पाए जाते हैं? इनकी कितनी किस्में होती हैं? असली एवं नकली रुद्राक्ष की क्या पहचान है?

रुद्राक्ष की उत्पत्ति की कथा पाताल नरेश मय के लिए यम बने रौद्र रूपधारी भगवान शिव के साथ जुड़ी है। प्राचीन काल में पाताल नरेश मय दानव ने पाताल लोक निवासी दानवों के साथ मिलकर मानवों, देवताओं, गंधर्वों पर अत्याचार, तथा तीन पुर बनवा लिए, जो अभेद्य दुर्ग थे इनमें रहने वाले त्रिपुरासुरों ने देवताओं को अति कष्ट दिया। इन त्रिपुरासुरों ने तीनों लोकों को जीत लिया। इस महान विपत्ति से त्राण पाने के लिए ब्रह्मा, विष्णु सहित इन्द्रादि देवगण कैलाश शिखर पर भगवान शंकर के पास गए और अपनी विपदा सुनाकर उन्हें प्रसन्न कर लिया। देवताओं को अभय दान देकर भोले नाथ बोले युद्ध सामग्री तैयार की जावे। आदेशानुसार पल भर में युद्ध के लिए तैयारी की गई तथा दानवेंद्र मय और त्रिपुरासुरों का नाश कर भगवान शंकर ब्रह्मा, विष्णु आदि देवताओं को लेकर हिमालय के सुंदर शिखर पर विश्राम करने पहुंुचे। थकान मिट जाने पर शिव हर्षित हो हंस पड़े। उन रुद्र की आंखों से खुशी के चार आंसू शैल शिखर पर टपके जिन से चार अंकुर निकले और पल्लवित, पुष्पित, फलदार होकर हरे भरे रुद्राक्ष वृक्ष बन गए।

रुद्राक्ष की पैदावार एवं प्राप्ति स्थल: रुद्राक्ष समुद्र तल से 2000 मीटर की ऊचांई तक प्राप्त होता है। यह उष्र्ण एवं अर्धउष्ण जलवायु में प्राप्त होता है। भारत में रुद्राक्ष मुख्यतः बंगाल एवं आसाम के जंगलों, हरिद्वार एवं देहरादून के पहाड़ी क्षेत्रों तथा दक्षिण भारत के नीलगिरी, मैसूर और अन्नामलै क्षेत्रों में पाया जाता है। इडोनेशिया में विशेष तौर पर एक मुखी दोमुखी एवं तीनमुखी रुद्राक्ष पाए जाते हंै। ये नेपाल में कम पाए जाते हंै। रुद्राक्ष एक विशेष किस्म का जंगली फल है जो अधिकांशतः हिमालय के वनों में पैदा होता है। ये वृक्ष नेपाल, आसाम, भारत के उत्तराचंल प्रदेश के उत्तरकाशी, गंगोत्री यमुनोत्री, देहरादून के अतिरिक्त तिब्बत, इंडोनेशिया, जावा, सुमात्रा व चीन के कुछ भागों में उत्पन्न होते हंै। सबसे बड़े आकार का रुद्राक्ष (बिना धारी वाला) जावा में उत्पन्न होता है। इसका वानस्पतिक नाम एलियोकार्पस गैनिट्रस है औ इसे उगाना अति दुस्तर कार्य है। आजकल वृक्षों के शौकीन लोग अपने उद्यानों में रुद्राक्ष का वृक्षारोपण करने लगे हैं। एक बार लग जाने पर यह पेड़ बिना किसी देखरेख के फलता-फूलता रहता है।

रुद्राक्ष का नाम स्मरण करने मात्र से अथवा रुद्राक्ष को देखते ही सहसा लोगों को नेपाल के पशुपतिनाथ की स्मृति हो आती है। ऐसा हो भी क्यों नहीं। नेपाल देश, जहां भगवान पशुपतिनाथ विराजमान हैं, सारी दुनिया में रुद्राक्ष के लिए प्रसिद्ध है। नेपाल में रुद्राक्ष के पेड़ बड़ी मात्रा में पाए जाते हैं। आंवले के समान गोलाकार बड़े रुद्राक्ष के दाने नेपाल में ही पाए जाते हैं जिन्हें सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। नेपाल में एकमुखी से चैदहमुखी तक रुद्राक्ष पाए जाते हंै। भारत में रुद्राक्ष मुख्यतः बंगाल और के घने वनों में पाए जाते हैं। हिमालय के पहाड़ी क्षेत्रों हरिद्वार और देहरादून के वृक्षों में प्रायः दोमुखी और तीनमुखी रुद्राक्ष ही फलते हैं। दक्षिण भारत में नीलगिरी, मैसूर तथा अन्नामलै क्षेत्रों पाए जाने वाले वृक्ष मोटे तथा मजबूत होते हैं। इन वृक्षों में प्रायः दो से लेकर ग्यारह मुखी तक रुद्राक्ष उत्पन्न होते हैं दक्षिण भारत में ही काजू दाना एकमुखी रुद्राक्ष मिलता है। एकमुखी असली नेपाली गोल दाना अलभ्य ही है। दक्षिण भारतीय काजू दाना एकमुखी रुद्राक्ष प्रचलन में है। पंचमुखी रुद्राक्ष भारत, नेपाल एवं इंडोनेशिया में प्रमुख रूप से उत्पन्न होते हैं। छोटे दानों वाले रुद्राक्ष अधिकतर इंडोनेशिया, जावा, बाली तथा मलयद्वीप में मिलते हैं जिनमें इंडोनेशिया के छोटे दानों वाले रुद्राक्ष सर्वोत्कृष्ट कहे जाते हैं।

रुद्राक्ष की किस्में या प्रजातियां: रुद्राक्ष एक से चैदहमुखी तक होते हैं। इनमें पांचमुखी रुद्राक्ष सबसे अधिक पाया जाता है। मुख भेद के अनुसार कहीं-कहीं एक से लेकर सत्ताइस मुखी रुद्राक्षों का उल्लेख मिलता है, परंतु जुड़वां रुद्राक्ष के अलावा चैदह मुखी तक ही पाए जाते हैं। रुद्राक्ष के विभिन्न रंग उत्तम कोटि का रुद्राक्ष गहरे चाकलेटी, गहरे कत्थई अथवा छुहारे के रंग का भी होता है। गुलाबी रंग का रुद्राक्ष भी होता है। मध्यम कोटि का का रुद्राक्ष हल्का चाॅकलेटी, मध्यम कत्¬थई और बादाम की गिरी के रंग का होता है। कहीं-कहीं मटमैले रंग का भी पाया जाता है। तीसरी श्रेणी का रुद्राक्ष कुछ सफेदी लिए हुए, कत्थई अथवा भूरे रंग का होता है। इस रंग में पाया जाने वाला अधिकांश रुद्राक्ष दोमुखी होता है। अधिकांश रुद्राक्ष गोल होते हंै। कुछ रुद्राक्षों का आकार अंडे जैसा कुछ का लंबा और कुछ का चपटे होता है। कभी कभी चक्राकार और अर्ध चंद्राकार भी पाए जाते हैं। आंवले के फल जैसे बड़े दाने, झरबेरी के समान मंझोले दाने एवं काली मिर्च के समान बिल्कुल छोटे दाने जैसे रुद्राक्ष भी मिलते हैं। आंवले जैसे बड़े आकार के रुद्राक्ष सर्वोत्तम, बेर के समान मंझोले रुद्राक्ष मध्यम एवं मटर या चने के आकार के रुद्राक्ष निम्न वर्ग के माने गए हैं, जबकि इंडोनेशिया के छोटे दाने वाले रुद्राक्षों को सर्वोत्कृष्ट माना जाता है। इस संबंध में स्पष्ट करना आवश्यक हो जाता है कि निम्न वर्ग की श्रेणी रुद्राक्षों को तुच्छ या घटिया नहीं समझना चाहिए, क्योंकि रुद्राक्ष तो रुद्राक्ष ही है, चाहे वह बड़ा हो या छोटा। निकृष्ट रुद्राक्ष उन्हें कह सकते हैं जिनमें रूखापन हो, चमक व चिकनाई न हो अर्थात आभाहीन हों, सड़े-गले से दिखाई देते हों, टूट-फूट हो जाने से जो खंडित हो चुके हों, धारियां छिन्न-भिन्न हो गई हों, अथवा फट गए हों। रंगों के आधार पर यदि देखा जाए तो रुद्राक्ष चार किस्म के होते हैं। श्वेत, लाल, पीत और श्याम। कच्चे और पके फलों से प्राप्त बीजों को क्रमशः भद्राक्ष और रुद्राक्ष कहते हैं। इस आधार पर इनकी ये मात्र दो ही प्रजातियां हुई- भद्राक्ष और रुद्राक्ष।

यद्यपि देखा जाए तो इनमें आकृति की दृष्टि से कोई फर्क नहीं होता, तथापि भद्राक्ष गुण-विहीन होता है जबकि रुद्राक्ष गुणकारी। बड़े छोटे के भेद देखा जाए तो बड़े बीजों वाले रुद्राक्ष का वृक्ष अलग होता है और छोटे फलों बीजों वाला अलग जैसे कि विभिन्न प्रजातियों के आम, नीबू, आंवला, नारंगी, जामुन, झरबेरी आदि के वृक्ष।

फांकों के भेद से रुद्राक्ष की किस्में/पंचमुखी माला माह¬ात्म्य आदि: रुद्राक्ष में नीबू, नारंगी, मोसम्मी की तरह कलियां या फांकें होती हंै। फर्क इतना होता है कि रुद्राक्ष के दानों को देखकर ही उनकी कलियों या फांकों को गिन सकते हैं जबकि नीबू, नारंगी, मौसम्मी की फांकों को गिनने के लिए उन्हें काटना या छीलना पड़ता है। यद्यपि बेर, जामुन आदि के समान गूदा रुद्राक्ष की गुठली पर भी चढ़ा रहता है, परंतु विक्रय हेतु आने के पूर्व ही उसे हटा दिया जाता है। रुद्राक्ष की फांकों को देखकर ही यह ज्ञात किया जा सकता है कि रुद्राक्ष का कौन सा दाना कितने मुखी है। जिस जुड़वां दाने का, एक दाना बड़ा और दूसरा छोटा होता है, गणेश गौरी रुद्राक्ष कहते हैं। दो लगभग समान दानों वाला जुड़वां दाना गौरीशंकर या शिवगौरी रुद्राक्ष कहलाता है।

जिस रुद्राक्ष में किसी भी आकार के तीन दाने जुड़े हुए हो, उसे त्रिजुटी या त्रिजुगी रुद्राक्ष कहते हैं। परंतु ऐसे रुद्राक्ष दुर्लभ ही होते हैं, जिस तरह एकमुखी गोल नेपाली बड़ा रुद्राक्ष दुर्लभ होता है। शुंडाकार दुर्लभ रुद्राक्ष को गणपति रुद्राक्ष की संज्ञा दी जाती है। रुद्राक्ष शिवलिंग की भांति पूजे भी जाते हैं, रुद्राक्ष की मालाएं प्रायः पांचमुखी दाने से ही बनाई जाती हैं। इसका कारण यह है कि शिव जी कृपा से पांच मुखी रुद्राक्ष की पैदावार सबसे ज्यादा होती है। यह स्वयं पंचानन है।

उनके दरबार में शिव, शक्ति, गणेश, कार्तिकेय और नंदी ये पांच ही प्रमुख हैं। वे कंठहार के रूप में पंचमी तिथि के देवला नाग (वासुकि) को धारण करते हैं। इसकी सबसे सरल पूजन पद्धति पंचोपचार ही है। ‘नमः शिवाय’ का मंत्र पंचाक्षर मंत्र कहलाता है जो पढ़ने, लिखने, बोलने, सुनने और जपने में सबसे सरल, सुंदर, सुखद, सुमधुर और सर्वश्रेष्ठ है। पंचम माह श्रावण शिव जी को अति प्रिय है।

असली-नकली रुद्राक्ष की पहचान कहा जाता है कि पानी में डूबने वाला रुद्राक्ष असली होता है तथा जो तैर जाए वह नकली होता है। किंतु यह बात सत्य नहीं है। जो रुद्राक्ष पका हुआ होता है वह पानी में डूब जाता है तथा जो कच्चा होता है वह तैरता है। यदि पके हुए पांच मुखी में लाइनें बनाकर उसके मुख बढ़ा दिए जाएं तथा लाइनें मिटाकर उसके मुख कम कर दिए जाएं तो वह पानी में डूब जाएगा।

नकली गौरी शंकर रुद्राक्ष, मुंह कम किए गए रुद्राक्ष अथवा शिवलिंग, त्रिशूल और सांप आदि से युक्त नकली रुद्राक्षों की असली पहचान का तरीका निम्न प्रकार है। एक कटोरे में पानी को उबालें। उबलते हुए पानी में रुद्राक्ष को एक दो मिनट के लिए रखें तथा कटोरे को चूल्हे से उतारकर ढक दें। दो चार मिनट के बाद ढक्कन उतारकर रुद्राक्ष को निकाल लें। उसे गौर से देखें। यदि रुद्राक्ष में जोड़ लगाया गया होगा तो वह फट जाएगा। यदि दो रुद्राक्षों को जोड़कर गौरी शंकर बनाया गया होगा तो वह अलग-अलग हो जाएंगे।

जिन रुद्राक्षों में सोल्यूशन भरकर मुख बंद किया गया होगा, वे बंद किए गए मुख स्पष्ट दिखाई देने लगेंगे। ऐसे में यदि रुद्राक्ष प्राकृतिक तौर पर कुछ फटा हुआ होगा तो वह थोड़ा और फट जाएगा। यदि बेर की गुठली को रुद्राक्ष बताकर दिया जा रहा है तो यह क्रिया करने से वह गुठली काफी मुलायम पड़ जाएगी जबकि असली रुद्राक्ष में अधिक अंतर नहीं पड़ेगा। यदि रुद्राक्ष की माला से रंग उतारना है तो थोड़े पानी में नमक डालकर उसमें माला डाल दें तथा उसे थोड़ा गर्म करें! तत्पश्चात् उसे निकालकर सुखा लें। रंग काफी हल्का हो जाएगा। सामान्यतया रंग करने से रुद्राक्ष में कोई हानि नहीं होती। रुद्राक्ष खरीदते वक्त सर्व प्रथम इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह यथार्थ में रुद्राक्ष ही हो। किसी अन्य वृक्ष के फल का बीज न हो। गौर से देखने पर आसानी से समझ में आ जाता है कि कौनसा रुद्राक्ष नकली है और कौन सा असली।

यदि रुद्राक्ष का रंग सामान्य रुद्राक्ष के रंग से अलग हो जैसे किसी लकड़ी या वृक्ष की जड़ जैसा हो तो वह नकली हो सकता है। लकड़ी पर विभिन्न कीमती औजारों की सहायता से रुद्राक्ष की तरह आकार देकर उन्हें सुंदर और अजूबेदार बना दिया जाता है ताकि उन्हें खरीदने वाला देखते ही लोभ में आ जाए और ऐसे कृत्रिम रुद्राक्ष को अधिक दाम देकर खरीदने को विवश हो जाए। यदि किसी रुद्राक्ष को मध्य से काट दिया जाए तो उसमें नीबू के फल सरीखी उतनी ही कटी फांकें दृष्टिगोचर होंगी जितने मुखी वह रुद्राक्ष होगा। अक्सर ऐसा होता है कि अधिक लाभ के लोभ में विक्रेता कम मुखों वाले रुद्राक्षों पर कृत्रिम धारियां बनाकर उन्हें अधिक मुखों वाला बना देते हैं।

ऐसे में यदि उन रुद्राक्षों को काट कर देखा जाए तो कृत्रिम धारियांे का फर्क नजर आएगा। इसी प्रकार अधिक मुखों और कम मूल्य वाले किसी रुद्राक्ष के मुखों और धारियों को कम कर उसे कम मुखों वाला या एकमुखी रुद्राक्ष बना लिया जाता है ताकि उसे अधिक से अधिक मूल्य पर बेचा जा सके। ऐसे कृत्रिम रुद्राक्ष असली दिखाई देते हैं और भोले-भाले क्रेता झांसे में आकर उन्हें खरीद भी लेते हैं। ऐसे रुद्राक्ष को यदि काटकर देखा जाए तो असलियत अपने आप सामने आ जाएगी। असली रुद्राक्ष का गोल दाना तांबे के दो सिक्कों के बीच रखने पर घूमने लगता है और तेजी के साथ घूमकर पलट जाता है यह उक्ति अनुभव और अभ्यास पर आधारित हो सकती है, परंतु वास्तविकता यह है कि अन्य गोलाकार और रवेदार वस्तुएं भी दो सिक्कों के बीच में रखने से घूमने लगती हैं और लुढ़क जाती हैं, भले ही वे बिलकुल धीमी गति से ही चलायमान क्यों न हों।

जैसे बेर की गुठली को, जो रवेदार, खुरदरी और गोलाकृति सी लिए हुए होती है, तांबे के दो सिक्कों के बीच रखकर दबाया जाए तो वह घूम जाएगी। जबकि तांबे के सिक्कों के मध्य रखकर दबाव देने पर असली रुद्राक्ष का दाना तत्काल दिशा बदलकर घूम जाता है। यदि सूक्ष्मता के साथ रुद्राक्ष का अवलोकन किया जाए तो रुद्राक्ष की कुदरती एवं कृत्रिम धारियों में अंतर खोजा सकता है।

कसौटी पर रुद्राक्ष घिसने या रगड़ने से उसकी रेखा पड़ जाए तो उसे उत्तम क्वालिटी का रुद्राक्ष माना जाता है। मोम, राल, लाख, सीसा, रांगा इत्यादि को रुद्राक्ष के धागा पिरोने वाले छिद्र में भरकर उसे वजनदार बना लिया जाता है। संदेह होने पर खरीदते वक्त ऐसे रुद्राक्ष को गर्म जल में उबालिए। यदि कोई पदार्थ उसमें भरा होगा तो वह पिघलकर निकल पड़ेगा। कम मूल्यों वाले रुद्राक्षों जैसे पंाचमुखी आदि को जल के संयोग से पत्थर आदि पर घिसकर सफाचट करते हुए घिसे गए हिस्सों को कीमती एडहेसिव, रासायनिक पदार्थों आदि से जोड़कर गणेश-गौरी, गौरीशंकर (जुड़वा) या त्रिजुगी या त्रिजुटी रुद्राक्ष बनाकर बेचा जाता है, क्योंकि वे महंगे होते हैं। इन्हें यदि पानी में उबाल दिया जाए तो जुड़े हिस्से खुल रुद्राक्ष अलग- अलग हो जाएंगे जबकि असली रुद्राक्ष जैसे के तैसे ही रहेंगे।

असली गौरीशंकर, गणेश गौरी, त्रिजुटी रुद्राक्ष वज्र के समान कठोर होने से शक्ति लगाने पर भी तोड़े नहीं जा सकते। परीक्षण के दौरान यदि किसी तरह इन्हें तोड़ ही दिया जाए तो इनका टूटा हुआ हिस्सा कभी भी चिकना, समतल या सपाट नहीं होगा। उनकी टूटन साफ नजर आएगी। खौलते हुए घी की कड़ाही में यदि असली रुद्राक्ष को छोड़ दिया जाए तो घी का उबाल कुछ शांत सा हो जाता है जबकि नकली रुद्राक्ष होने पर कड़ाही शांत नहीं होती।

परखने की अन्य विधियां: मुखों की गिनती के लिए उसे शीशे के गिलास में भरे पानी में डालकर उससे उठने वाले बुलबुलों को गिनते हैं, पर यह रुद्राक्ष की सही परख नहीं है क्योंकि उनके मुंह बंद भी हो सकते हैं। नकली रुद्राक्ष के मुख में यदि गर्म करके पारा भर दिया जाए तो वजन के कारण वह भी डूब जाएगा। ऐसे में इसे गर्म कर इसकी परख की जा सकती है। रुद्राक्ष से संबंधित अन्य जानकारियां रुद्राक्ष भगवान शंकर का प्रिय आभूषण है। रुद्राक्ष अकाल मृत्यु हारी है। रुद्राक्ष दीर्घायु प्रदान करता है। रुद्राक्ष संन्यासियों को धर्म और मोक्ष प्रदान करता है। रुद्राक्ष गृहस्थों को अर्थ और काम का दाता है। रुद्राक्ष से स्त्रियों को पुत्र लाभ होता है। रुद्राक्ष शारीरिक व्याधियों का शमन करता है। रुद्राक्ष मन को शांति प्रदान करता है। रुद्राक्ष कुंडलिनी जाग्रत करने में सहायता करता है। रुद्राक्ष सभी वर्णों के पापों का नाश करता है।

रुद्राक्ष भूत प्रेतादि बाधाओं से छुटकारा दिलाता है। रुद्राक्ष की पूजा से सभी दुखों से मुक्ति मिलती है। 100 दानों की माला मोक्ष प्रदान करती है। 140 दानों की माला बल व आरोग्य प्रदान करती है। 108 दानों की माला समस्त कार्यों में सिद्धि देने वाली होती है। 32 दानों की माला धनदायिनी होती है। जप के लिए प्रयुक्त की जाने वाली माला 108 दानों की होती है। 54 दानों की आधी और 27 दानों की माला को सुमरनी कहते हैं। फल सभी का एक समान होता है। 54 दानों की माला को दो बार और 27 दानों की माला को चार बार फेर लेने पर एक माला संपूर्ण होती है। शिखा में एक, कानों में छःछ, कंठ में एक सौ एक या पचास बाहों में ग्यारह, कर्पूर व मणिबंध में ग्यारह। और कटि में पांच रुद्राक्ष धारण करने चाहिए।

रुद्राक्ष कब धारण करना चाहिए: सूर्य अथवा चंद्र ग्रहण के अवसर पर पूजा करने के उपरांत धारण करना चाहिए। सोमवार को ब्राह्ममुहूर्त में भी इसे धारण करना लाभदायक है। इसे पुनः ऊर्जावान करने के लिए शुद्ध घी के साथ चंदन की लकड़ी के बुरादों तथा पिसी हुई हल्दी में शिवरात्रि से एक सप्ताह पूर्व रख देना चाहिए। शिवरात्रि के दिन इसे गंगाजल से धोकर नियत मंत्रोच्चार के साथ धारण करना चाहिए। साधना में रुद्राक्ष महत्व: किसी भी प्रकार की साधना चाहे सात्विक हो, तामसिक अथवा, अघोर पंथी, सभी में रुद्राक्ष की मालाएं सहायक एवं लाभदायक होती हैं। मोक्ष प्राप्ति हेतु 25 दानों की रुद्राक्ष माला से जप करना चाहिए। अभिचार कर्म से संबंधित साधना के लिए 15 दानों की माला से जप करें। लक्ष्मी एवं धन प्राप्ति के लिए 30 दानों की रुद्राक्ष माला से जप करना चाहिए। मनोकामना सिद्धि हेतु 25 दानों की माला से जप करना चाहिए। मंत्र सिद्धि के लिए 108 दानों की पूर्ण माला से साधना व जप करें।

चिकित्सा क्षेत्र में रुद्राक्ष का उपयोग: रुद्राक्ष उच्च रक्त चाप और मिर्गी रोगियों के लिए अत्यंत लाभदायक है। इसकी माला इस प्रकार धारण की जाए कि वह हृदय स्थल को स्पर्श करे तो अधिक लाभ देती है। उत्तरकाशी के जंगलों में आंवलाकार दुर्लभ रुद्राक्ष मिलता है। इस पर धारियां नहीं होतीं, पृष्ठ भाग भी उभरा नहीं होता। आयुर्वेद, चरक संहिता आदि में औषधि के रूप में इसके उपयोग का उल्लेख मिलता है। क्षयरोग, चर्म रोग, कुष्ठ रोग और कैंसर रोग मंे इसका उपयोग लाभकारी होता है।

इसका शुद्धिकरण नारियल पानी में 24 घंटे डालकर करते हैं। रुद्राक्ष के तेल का भी विभिन्न रोगों में उपयोग किया जाता है। इसकी एक ग्राम भस्म एक ग्राम स्वर्ण भस्म के साथ 21 दिन दो बार मक्खन के साथ सेवन करने से अनिद्रा रोग मुक्ति मिलती है और अच्छ नींद आती है। तकिए में रुद्राक्ष रख कर सोने से बुरे स्वप्न नहीं आते। तीन रुद्राक्ष (बीज आकार के) रात भर तांबे के गिलास में रखकर प्रातः उस पानी के साथ एक लहसुन लेने से हृदय की समस्त पीड़ाएं दूर होती है। यह मधुमेह के रोगियों के लिए भी लाभकारी है।

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