दीपावली: एक महान राष्ट्रीय पर्व

दीपावली: एक महान राष्ट्रीय पर्व  

सतीश उपाध्याय
व्यूस : 3366 | अकतूबर 2017

भारतीय परंपरा एवं मान्यताओं के अनुसार सभी त्योहार मनाये जाते हैं। दीपावली एक राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाता है। अन्य त्योहार एक-एक दिन के मनाये जाते हैं। सिर्फ दीपावली पर्व कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से कार्तिक शुक्ल द्वितीया तक सतत पांच दिन तक मनाया जाता है। दीपोत्सव का आरंभ कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को ‘‘धनतेरस’’ के दिन से होती है। इस दिन चांदी का बर्तन खरीदना शुभ माना गया है। परंतु वास्तविकता में यह पर्व यमराज से संबंध रखने वाला है।

इस दिन सायंकाल में घर के बाहर मुख्य द्वार पर एक पात्र में अन्न रखकर उस पर यमराज के निमित्त दक्षिणाभिमुख होकर दीपदान करना चाहिए तथा उसका गंधादि से पूजन करना चाहिए। दीपदान करते समय निम्नलिखित मंत्र को पढ़ना चाहिए - मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्यया सह। त्रयोदशां दीपदानात्सुर्यजः प्रीयतामिति।। यमुना जी यमराज की बहन हैं। इसलिये पुराणों के अनुसार कार्तिक मास मंे यमुना स्नान और दीपदान तथा उपवास रखा जा सके तो अति उत्तम है। धनतेरस नाम आयुर्वेद के प्रवर्तक भगवान धन्वंतरि के जयंती दिवस के आधार पर भी प्रचलित है।

Book Shani Shanti Puja for Diwali

धनतेरस की पौराणिक कथा एक बार यमराज ने अपने दूतों से कहा कि तुम लोग मेरी आज्ञा से मृत्युलोक के प्राणियों के प्राण हरण करते हो, क्या तुम्हें ऐसा करते समय कभी दुख भी हुआ है? या कभी दया भी आयी है? इस पर यमदूतांे ने कहा- महाराज ! हमलोगांे का कर्म अत्यंत क्रूर है परंतु किसी युवा प्राणी की असामयिक मृत्यु होने पर उसका प्राण हरण करते समय वहां का करूण क्रन्दन सुनकर हम लोगों का पाषाण हृदय भी विचलित हो जाता है। एक बार हम लोगों को एक राजकुमार के प्राण उसके विवाह के चैथे दिन ही हरण करना पड़ा।

उस समय वहां करूण क्रन्दन, चित्कार और हाहाकार देख- सुनकर हमें अपने कृत्य से अत्यंत घृणा हो गयी। उस मंगलमय उत्सव के बीच हम लोगों का यह कृत्य अत्यंत घृिणत था, इससे हम लोगों का हृदय अत्यंत दुखी हो गया। परंतु क्या करते? यमराज इस घटना को सुनकर कुछ देर चुप रहे और फिर बोले- तुम्हारी इस कारूणिक बात से मैं स्वयं विचलित हो गया हूं। पर क्या करूं? विधि के विधान की रक्षा के लिए ही हमें और तुम्हें यह अप्रिय कार्य सौंपा गया है। दूत ने यह सुनकर पूछा - स्वामी ! क्या ऐसा कोई उपाय नहीं है, जिससे इस प्रकार की दुःखद अकाल मृत्यु से प्राणियों को मुक्ति मिल सके? कथन सुनकर यमराज ने कहा- धनतेरस के पर्व पर मेरे निमित्त दीपदान करने से मनुष्य को कभी अकाल मृत्यु का सामना नहीं करना पड़ेगा।

यही नहीं, जिस घर में यह पूजन विधान और दीपदान किया जाएगा, उस घर में भी कोई अकाल मृत्यु का शिकार नहीं होगा। तभी से धनतेरस के दिन यमराज के निमित्त दीपदान की प्रथा चली आ रही है। भगवान धन्वन्तरि का प्राकट्य धनतेरस के दिन हुआ था, अतः उनकी जयंती के रूप में धनतेरस को उनकी पूजा कर रोगाविमुक्त स्वस्थ- जीवन की याचना की जाती है। रूप चैदस- नरक चतुर्दशी दीपोत्सव पर्व का दूसरा दिन कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी ‘नरकचतुर्दशी’ अथवा ‘‘रूपचैदस’’ के रूप में मनाया जाता है।

इसे ‘छोटी दिवाली’ भी कहा जाता है। इस दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करने से मनुष्य को यमलोक का दर्शन नहीं करना पड़ता। नरक न प्राप्त हो तथा पापों की निवृत्ति हो, इस उद्देश्य से प्रदोष काल में चार बत्तियों वाला दीपक जलाना चाहिये। इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर शौचादि से निवृत्त होकर तेल मालिश कर सुगंधित उबटन लगाकर स्नान करना चाहिए। स्नान से पूर्व शरीर पर से अपामार्ग को मस्तक पर घूमाकर स्नान करने से नरक का भय नहीं रहता। जो मनुष्य इस दिन सायंकाल यमराज के निमित्त दीपदान नहीं करते उनके शुभ कर्मों का नाश हो जाता है। स्नान करने के बाद शुद्ध वस्त्र पहनकर, तिलक लगाकर दक्षिणाभिमुख होकर निम्न नाम मंत्रों से प्रत्येक नाम से तिलयुक्त तीन-तीन जलांजलि देनी चाहिये। यह यम तर्पण कहलाता है।

इससे वर्षभर के पाप नष्ट हो जाते हैं। ‘ऊँ यमाम नमः,’ ऊँ धर्मराजाय नमः, ‘ऊँ मृत्यवे नमः,’ ‘ऊँ अन्तकाय नमः,’ ‘ऊँ वैवस्वताय नमः, ‘ऊँ कालाय नमः,’ ‘ऊँ सर्वभूतक्षयाय नमः, ‘ऊँऔदुम्बराय नमः, ‘ऊँ दधाय नमः,’ ‘ऊँ चित्राय नमः,’ ‘ऊँ चित्रगुप्ताय नमः,’। और संध्या समय देवताओं का पूजन करके दीपदान के समय निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिये। दत्तो दीपश््रचतुर्दश्यां नरकप्रीतये मया। चतुर्वर्तिसमायुक्तः सर्वपापापनुत्तये।। मंदिर, गुप्तगृह, रसोईघर, देववृक्षों के नीचे, सभा भवन, नदियों के किनारे, चारदीवारी, बगीचा, बावड़ी आदि प्रत्येक स्थान पर दीपक जलाना चाहिए।

नरक चतुर्दशी पौराणिक कथा

1. पुराणों के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध करके संसार को भयमुक्त किया था। इस विजय की स्मृति में यह पर्व मनाया जाता है।

2. वामनावतार में भगवान श्रीहरि ने संपूर्ण पृथ्वी नाप ली। बलि के दान और भक्ति से प्रसन्न होकर वामन भगवान ने उनसे वर मांगने को कहा। उस समय बलि ने प्रार्थना की कि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी सहित इन तीन दिनांे में मेरे राज्य का जो भी व्यक्ति यमराज के उद्देश्य से दीपदान करे, उसे यमयातना न हो और इन दिनों में दीपावली मनाने वाले का घर लक्ष्मीजी कभी न छोड़ें। भगवान ने कहा ‘एवमस्तु’! जो मनुष्य दीपोत्सव करेगा, उसे छोड़कर मेरी प्रिया लक्ष्मी कहीं नहीं जायेंगी।

दीपावली स्कंद पुराण, पद्मपुराण तथा भविष्य पुराण में विभिन्न मान्यताएं उपलब्ध होती हंै। महाराज पृथु द्वारा पृथ्वी दोहन कर देश को धन-धान्यादि से समृद्ध बनाने के उपलक्ष्य में दीपावली मनाये जाने का उल्लेख है तो कहीं आज के दिन समुद्र मंथन से भगवती लक्ष्मी के प्रादुर्भाव होने की प्रसन्नता में जनमानस के उल्लास का दीपोत्सव मनाये जाने का उल्लेख है।

वहीं कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अत्याचारी नरकासुर का वध कर उसके बंदीगृह से सोलह हजार राजकन्याओं का उद्धार करने पर दूसरे अर्थात अमावस्या के दिन अभिनंदन करने के लिए दीपमालिका मनाई गयी थी तो कहीं महाभारत के आदि पर्व में पांडवों के सकुशल वनवास से लौटने पर उनके अभिनंदनार्थ दीपमाला से उनका स्वागत करने के प्रसंग को इस पर्व से जोड़ा गया है तो कहीं श्रीराम के विजयोपलक्ष्य में अयोध्या में उनके स्वागतार्थ प्रज्ज्वलित दीपमाला से दीपावली का संबंध स्थापित किया गया है।

कहीं सम्राट विक्रमादित्य के विजयोपलक्ष्य में जनता द्वारा दीपमालिका प्रज्ज्वलित कर उनका अभिनंदन करने का उल्लेख है। ‘कल्पसूत्र’ नामक जैन ग्रंथानुसार आज ही के दिन जैन संप्रदाय प्रवर्तक श्री महावीर स्वामी ने अपनी ऐहिक लीला संपन्न की थी। उस समय देश देशांतर से आये हुए उनके शिष्यों ने यह निश्चय किया कि ‘‘ज्ञान सूर्य’’ तो अस्त हो गया अब दीपों का प्रकाश कर यह दिन मनाना चाहिये। इसी प्रकार अनेक पौराणिक ग्रंथ तथा 15वीं सदी तक के इतिहास में इस पर्व के विषय में वर्णन प्राप्त हुआ है। इसलिये यह राष्ट्रीय पर्व बहुत पुराने काल से अखंडित चला आ रहा है।

दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टियों से विशेष महत्व है। इस पर्व के साथ हमारे युग का इतिहास जुड़ा हुआ है। सामाजिक दृष्टि से इस पर्व का महत्त्व इसलिये है कि दीपावली आने के पूर्व से ही घर-द्वार की स्वच्छता पर ध्यान दिया जाता है। घर का कूड़ा-करकट साफ किया जाता है। टूट-फूट सुधार दीवारों पर तथा दरवाजे पर रंग-रोगन किया जाता है जिससे वर्षाकालीन अस्वच्छता का परिमार्जन हो जाता है। स्वच्छ और सुंदर वातावरण, शरीर और मस्तक को नवचेतना तथा स्फूर्ति प्रदान करता है। ब्रह्मपुराण में लिखा है कि कार्तिक की अमावस्या को अर्धरात्रि के समय लक्ष्मी महारानी सद्गृहस्थों के घर में यहां-वहां विचरण करती है। इसलिए अपने घर को सभी प्रकार से स्वच्छ, शुद्ध, सुशोभित करके दीपावली मनाने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं, वहां स्थायी रूप से निवास करती है।

प्रायः प्रत्येक घर में लोग अपने रीति-रिवाज के अनुसार संपन्न लक्ष्मीपूजन तथा द्रव्यलक्ष्मी पूजन करते हैं। दीपावली के दिन संपन्न धनकुबेरों के घर से लेकर श्रमिकों के झोपड़ियों तक दीपावली का प्रकाश दृष्टिगोचर होता है। दीपावली के दिन मन और विचारों को पवित्र कर उत्साह और उल्लास से परिपूर्ण होकर प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर दैनिक कृत्यांे से निवृत्त हो, पितृगण तथा देवताओं का पूजन करना चाहिये। संभव हो तो दूध, दही और घृत से पितरों का श्राद्ध करना चाहिए। यदि यह संभव न हो तो दिन भर उपवास करके गोधूलि वेला में अथवा वृषभ, सिंह, वृश्चिक आदि स्थिर लग्न में श्रीगणेश, कलश, षोडश मातृका एवं ग्रह पूजन पूर्वक भगवती लक्ष्मी का षोडशोपचार पूजन करना चाहिए।

Buy Now : श्री कुबेर यंत्र 

कुछ स्थानों में दीवार पर खड़ी या मिट्टी तथा विभिन्न रंगों द्वारा चित्र बनाकर थाली में तेरह अथवा छब्बीस दीपक तेल से प्रज्ज्वलित चैमुखा दीपक रखकर दीपमालिका का पूजन करते हैं। गणेश एवं भगवती लक्ष्मी की मूर्ति पाटे पर रखकर कुछ चांदी आदि के सिक्के रखकर पूजन करते हैं और उन दीपों को घर के मुख्य स्थानों पर रख देते हैं। चैमुखा दीपक रात भर प्रज्ज्वलित रहे ऐसी व्यवस्था करते हैं। पूजन के अंत में महाकाली का दवात के रूप में, महासरस्वती का कलम, बही आदि के रूप में तथा कुबेर का तुला के रूप में सविधि पूजन करना चाहिए। पूजन के अनन्तर प्रदक्षिणा कर भगवती को पुष्पांजलि समर्पित करनी चाहिए।

अर्धरात्रि के बाद घर की स्त्रियां सूप आदि बजाकर दरिद्रा का निवारण करती हैं। महाभारत में स्पष्ट रूप से बतलाया गया है कि घर की स्वच्छता, सुंदरता और शोभा तो लक्ष्मी के निवास की प्राथमिकता है ही, साथ ही यह सब भी अपेक्षित है। जैसा कि देवी रूक्मिणी ने लक्ष्मीजी से प्रश्न किया हे देवी ! आप किन-किन स्थानों पर रहती हैं तथा किस-किस को कृपा दृष्टि से अनुगृहीत करती हैं? तब स्वयं देवी लक्ष्मी बताती हैं ! उन पुरूषों के घरों में सतत निवास करती हूं, जो सौभाग्यशाली निर्भीक, सच्चरित्र तथा कर्तव्य परायण हैं, जो अक्रोधी, भक्त, कृतज्ञ, जितेंद्रिय तथा सत्व संपन्न होते हैं, जो स्वभावतः निजधर्म, कर्तव्य तथा सदाचरण में सतर्कतापूर्वक तत्पर होते हैं, धर्मज्ञ तथा गुरुजनों की सेवा में निरत रहते हैं। मन को वश में रखने वाले, क्षमाशील और सामथ्र्यशाली हैं।

इसी प्रकार उन स्त्रियों के घर प्रिय हैं, जो क्षमाशील, जितेंद्रिय, सत्य पर विश्वास रखने वाली, जिन्हें देखकर सभी प्रसन्न हों, शीलवती, सौभाग्यवती, गुणवती, पतिपरायणा, सबका मंगल चाहने वाली तथा सद्गुण संपन्न होती हैं। भगवती लक्ष्मी किन व्यक्तियों के घरों को छोड़कर चली जाती हैं, इस विषय में स्वयं देवी रूक्मिणी से कहती हैं - जो पुरूष अकर्मण्य, नास्तिक, कृतघ्न, दुराचारी, क्रूर, चोर तथा गुरुजनांे के दोष देखने वाला हो उसके घर में निवास नहीं करतीं।

जिनमें तेज, बल, सत्व कम हो, हर बात में जो खिन्न रहता हो, मन में हमेशा दूजा भाव रखता हो, ऐसे मनुष्य के घर में मैं निवास नहीं करती हूं। इसी प्रकार उन स्त्रियों के घर भी मुझे प्रिय नहीं जो अपने गृहस्थी के सामानों की चिंता नहीं करतीं, बिना सोचे समझे काम करती हैं, पति के प्रतिकूल बोलती हैं, पराये घर में अनुराग रखती हैं, निर्लज्ज, पाप कर्म में रूचि रखने वाली, अपवित्र, चटोरी, अधीर, झगड़ालू तथा सदा सोने वाली ऐसी स्त्रियों के घर को छोड़कर मैं चली जाती हूं। गोवर्धन पूजा - ‘‘पड़वा’’ दीपावली पर्व के चैथे दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को (पड़वा) यह गोवर्धन नामक पर्व मनाया जाता है।

Book Laxmi Puja Online

इस दिन पवित्र होकर प्रातःकाल गोवर्धन तथा गोपेश भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करना चाहिये। गोवर्धन पूजा के समय निम्न मंत्र बोलना चाहिये - ‘‘गोवर्धन धराधार गोकुलत्राणकारक। विष्णुवाहकृतोच्छाय गवां कोटिप्रदो भव।।’’ अर्थात पृथ्वी को धारण करने वाले गोवर्धन ! आप गोकुल के रक्षक हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने आपको अपनी भुजाओं पर उठाया था। आप मुझे करोड़ों गौएं प्रदान करें। दूसरी बात यह है कि इस समय तक शरदकालीन उपज परिपक्व होकर घरों में आ जाती है। भंडार परिपूर्ण हो जाते हैं। शारदीय उपज से जो धान्य प्राप्त होते हैं, उससे छप्पन प्रकार के भोग बनाकर, गव्य पदार्थों को भी इस उत्सव में सजाकर, गोमय का गोवर्धन बनाकर तथा श्रीमननारायण को भोग लगाकर पूजन किया जाता है।

भैयादूज दीपोत्सवपर्व का समापन दिवस है कार्तिक शुक्ल द्वितीया, जिसे भैय्यादूज कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार भैय्यादूज अथवा यम द्वितीया को मृत्यु के देवता यमराज का पूजन किया जाता है। इस दिन बहनें भाई को अपने घर आमंत्रित कर अथवा सायंकाल उनके घर जाकर उन्हंे तिलक करती हैं और भोजन कराती हैं। ब्रजमंडल इस दिन बहन-भाई के साथ यमुना-स्नान करती है, जिसका विशेष महत्त्व बताया गया है। भाई के कल्याण और वृद्धि की कामना से बहनें इस दिन कुछ अन्य मांगलिक विधान भी करती हंै और भाई-बहन का समवेत भोजन कल्याणकारी माना गया है।

पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन भगवान यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने जाते हैं। उन्हीं का अनुकरण करते हुए भारतीय भ्रातृ-परंपरा अपनी बहनों से मिलती है और उनका यथेष्ट सम्मान- पूजनादि कर उनसे आशीर्वाद रूप तिलक प्राप्त कर कृत कृत्य होती है। बहनों को इस दिन नित्य कृत्य से निवृत्त हो अपने भाई के दीर्घ जीवन, कल्याण एवं उत्कर्ष तथा स्वयं के सौभाग्य के लिए अक्षत, कुंकुमादि से अष्टदल कमल बनाकर इस व्रत का संकल्प कर मृत्यु के देवता यमराज की विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिये। इसके पश्चात यम-भगिनी यमुना, चित्रगुप्त और यमदूतों की पूजा करनी चाहिए। तदनन्तर भाई को तिलक लगाकर भोजन कराना चाहिये। इस विधि के संपन्न होने तक दोनों को व्रती रहना चाहिये।

इस पर्व के संबंध में पौराणिक कथा इस प्रकार मिलती है- सूर्य को संध्या से दो संतानें थीं- पुत्र यमराज तथा पुत्री यमुना। संध्या सूर्य का तेज सहन न कर पाने के कारण अपनी छाया- मातृ-पितृ का निर्माण कर उसे ही अपने पुत्र-पुत्री को सौंप वहां से चली गयी। छाया को यम और यमुना से किसी प्रकार से लगाव न था, किंतु यम और यमुना में बहुत प्रेम था। यमुना अपने भाई यमराज के यहां प्रायः जाती और उनके सुख, दुःख की बातें पूछा करती। यमुना यमराज को अपने घर पर आने के लिये कहती, किंतु व्यस्तता तथा दायित्व बोझ के कारण वे उसके घर न जा पाते थे। एक बार कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमराज अपनी बहन यमुना के घर अचानक जा पहुंचे। बहन यमुना ने अपने सहोदर भाई का बड़ा आदर-सत्कार किया। विविध व्यंजन बनाकर उन्हें भोजन कराया तथा उनके भाल पर तिलक लगाया। यमराज अपनी बहन द्वारा किये गये सत्कार से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने यमुना को विविध भेंट समर्पित की। जब वे वहां से चलने लगे, तब उन्होंने यमुना से कोई भी मनोवांछित वर मांगने का अनुरोध किया।

यमुना ने उनके आग्रह को देखकर कहा- भैया ! यदि आप मुझे वर देना ही चाहते हैं, तो यही वर दीजिये कि आज के दिन प्रतिवर्ष आप मेरे यहां आया करें और मेरा आतिथ्य स्वीकार किया करें। इसी प्रकार जो भाई अपनी बहन के घर जाकर उसका आतिथ्य स्वीकार करे तथा उसे भेंट दे, उसकी सब अभिलाषाएं आप पूर्ण किया करें और उसे आपका भय न हो। यमुना की प्रार्थना को यमराज ने स्वीकार कर लिया। तभी से बहन-भाई का यह त्योहार मनाया जाने लगा। वस्तुतः इस त्योहार का मुख्य उद्देश्य है भाई-बहन के मध्य सौमनस्य और सद्भावना का पावन प्रवाह अनवरत प्रवाहित रखना तथा एक दूसरे के प्रति निष्कपट प्रेम को प्रोत्साहित करना। समष्टि रूप में, स्वास्थ्यसम्पद्, धनसम्पद्, शस्यसम्पद, शक्तिसम्पद तथा उल्लास और आनंद को परिवर्धित करने वाले ‘दीपावली पर्व’ का धार्मिक, सामाजिक और राष्ट्रीय महत्त्व अनुपम है और वही इसे पर्वराज बना देता है।

जीवन में जरूरत है ज्योतिषीय मार्गदर्शन की? अभी बात करें फ्यूचर पॉइंट ज्योतिषियों से!



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.