नीतीश कुमार - बिहार के सुशासन बाबू

नीतीश कुमार - बिहार के सुशासन बाबू  

आभा बंसल
व्यूस : 4515 | अकतूबर 2017

नीतीश जी का जन्म बिहार के पटना जिले के बख्तियारपुर में 1 मार्च 1951 को हुआ था। इनके पिता स्वतंत्रता सेनानी थे। नीतीश जी ने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की और कुछ समय तक बिहार राज्य विद्युत निगम में काम भी किया लेकिन बाद में नौकरी छोड़कर पूरी तरह राजनीति में सक्रिय हो गये। 1970 के दशक में जब इंदिरा गांधी और कांग्रेस सरकार की नीतियों के खिलाफ पूरे देश में गुस्सा था और जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में बिहार के साथ पूरे देश में आंदोलन चल रहा था तब जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति के आह्नान पर नीतीश जी भी इस आंदोलन से जुड़ गये और जे. पी. के इस आंदोलन में केंद्र की इंदिरा सरकार को गिराने में अहम भूमिका निभाई। नीतीश जी ने अपने राजनैतिक जीवन की शुरूआत जनता पार्टी के कार्यकत्र्ता के तौर पर की। इनका शुरूआती सफर ढेरों मुश्किलों से भरा था। 1977 में जब जनता दल अपने पूरे परवान पर था तब नीतीश बाबू को विधान सभा चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा।

बिहार के कुर्मी समुदाय के प्रमुख नेता होने की वजह से इन्हें एक बार फिर 1980 में विधान सभा चुनाव में भाग्य आजमाने का मौका दिया गया। लेकिन इस बार भी हार ही इनके हिस्से में आई। लगातार दो बार हारने के बाद भी इनका आत्मविश्वास नहीं टूटा। परिवार के दबाव के बावजूद ये राजनीति के मैदान में डटे रहे। लगातार काम करते रहे और इन प्रयासों के कारण एक बार फिर 1985 में इन्होंने अपना भाग्य आजमाया और इस बार विजय श्री इनके साथ रही। 1987 में इनकी नेतृत्व क्षमता के कारण इन्हें युवा लोकदल का अध्यक्ष चुना गया और इस जीत के बाद इन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और राजनीति में इनका कद बढ़ता गया। 1989 में इन्हें जनता दल का प्रदेश सचिव चुना गया और पहली बार लोक सभा चुनाव लड़ने का मौका मिला। इस चुनाव में इन्हें जीत मिली और सांसद के साथ केंद्र में मंत्री बनने का मौका भी मिला। 1990 के केंद्रीय मंत्रीमंडल में इन्हें कृषि राज्य मंत्री का पद प्राप्त हुआ।


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2000 में ये पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने लेकिन इनका कार्यकाल महज सात दिन चल पाया और सरकार गिर गई। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में इन्हें फिर से 2001 में रेलमंत्री बना दिया गया, लेकिन ये बिहार की राजनीति में भी सक्रिय रहे और 2005 में इन्हें फिर से पूर्ण बहुमत के साथ बिहार का मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला। इन्होंने भाजपा के साथ गठबंधन की सरकार बनाई और 2010 में तीसरी बार भी अपने बेहतरीन काम की वजह से बिहार के मुख्य मंत्री चुने गये। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की ओर से नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित करने पर ये एनडी. ए. से बाहर हो गए और लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल से गठबंधन कर लिया। 2014 के लोक सभा चुनाव में हालांकि इनकी पार्टी की जबर्दस्त हार हुई और इन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इसके उपरांत 2015 का विधान सभा चुनाव इन्होंने राजद के साथ गठबंधन कर लड़ा और इस चुनाव में भी इनके गठबंधन को बहुमत मिला और ये पुनः बिहार के मुख्यमंत्री बन गये।

लेकिन नीतीश जी के विचार लालू जी से काफी भिन्न थे। मजबूरी में ये सरकार चल रही थी। पिछले कुछ समय से नीतीश जी मोदी जी की खिलाफत करने की बजाय उनकी नीतियों का समर्थन कर सबको चैंका रहे थे और हाल ही में 27 जुलाई को तेजस्वी यादव व लालू यादव से बिगड़ते संबंधों के कारण नीतीश जी ने 20 महीनों तक चली महागठबंधन की सरकार से अचानक इस्तीफा दे दिया और तुरंत ही भाजपा का समर्थन प्राप्त कर फिर से पांचवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बन गये। नीतिश जी की गहन कूटनीति और राजनीति की सही समझ उनके राजनीतिक उत्थान में सदा सहायक रही है। ज्योतिषीय विश्लेषण: नीतीश कुमार जी का लग्न मिथुन है तथा उस पर सौम्य ग्रह गुरु की पूर्ण दृष्टि है इसलिए इनके स्वभाव में नम्रता, सौम्यता व सहनशीलता का भाव विद्यमान है। इनकी लग्न कुंडली व चंद्र कुंडली दोनों ही बहुत बलवान हैं। दोनों लग्नों से केंद्र व त्रिकोण भावों में अधिकांश ग्रह स्थित हैं।

इसी बलवान ग्रह स्थिति के कारण नीतीश जी अपने प्रारंभिक संघर्ष के बावजूद लगातार सफलता की सीढ़ियां चढ़ते चले गये। इनकी कुंडली में पंचमेश शुक्र दशम में मंगल के साथ स्थित है और चलित में राहु भी है इसलिए इन्होंने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की और फिर राजनीति के क्षेत्र में इन्हें सफलता प्राप्त हुई। इनकी कुंडली में कुटुम्बेश चंद्र अपनी नीच राशि में छठे भाव में होने से इन्होंने परिवारवाद को बढ़ावा नहीं दिया और वंशवाद की राजनीति से दूर रहे। इनके पुत्र भी इंजीनियर हैं किंतु राजनीति से दूर हैं। पत्नी मंजू रानी भी अब इस दुनिया में नही हैं और काफी पहले ही इनका साथ छोड़ चुकी हैं। इनकी कुंडली में भाग्य, धर्म भाव में चतुर्ग्रही योग बनने से इनके दिल में सभी धर्मों के प्रति सद्भाव तथा साधु, संत, फकीरों के प्रति पूर्ण आस्था व सद्भाव है। इनकी कुंडली में कुछ बहुत अच्छे योग बन रहे हैं। मालव्य महापुरूष योग - शुक्र के दशम में अपनी उच्च राशि में होने से यह योग बन रहा है और इन्हें अपने राजनैतिक जीवन में उच्च पद प्रतिष्ठा की प्राप्ति हो रही है।


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प्रव्रज्या योग: नवम भाव में चार ग्रह होने से इस योग का निर्माण हो रहा है जिसके फलस्वरूप ये स्वच्छ प्रशासनिक व्यवस्था कायम करने के कारण सुशासन बाबू के नाम से भी जाने जाते हैं। इनके ऊपर कोई भ्रष्टाचार के दाग नहीं हैं और जब भी इन्हें कुछ आपत्तिजनक लगा तो इन्होंने अपना त्यागपत्र दे दिया। बुधादित्य योग - नवम भाव में सूर्य और बुध की युति से यह योग बन रहा है और इसके फलस्वरूप इनमें तीव्र बुद्धि तथा निर्णय लेने की क्षमता भी अचूक है। अभी इनकी शनि की साढ़ेसाती चल रही है जिसकी वजह से इनके राजनैतिक जीवन में कुछ उथल-पुथल भी हुई लेकिन विजय श्री इन्हीं के साथ रही। ऐसा देखा गया है कि राजनीतिज्ञों के जीवन में साढ़ेसाती सत्ता प्राप्ति में विशेष सहायक रहती है। नीतीश के राजनैतिक जीवन में भी सफलता का आगाज 1985 में साढ़ेसाती के समय में ही हुआ और उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा तथा 30 वर्ष तक ये निरंतर अपनी पहचान बनाते रहे और 30 वर्षों के पश्चात जब ऐसा लगने लगा कि अब उनकी राजनीतिक सफलता का सूर्य अस्त होने वाला है तो शनि महाराज ने अपना 30 वर्षीय चक्कर पूरा करके फिर से साढ़ेसाती के द्वारा इनके राजनैतिक कद को बरकरार रखते हुए सभी को अचंभित कर दिया।

साढ़ेसाती के प्रभाव से हाथ से फिसलती सत्ता मजबूती से पुनः स्थापित हुई और वो भी अधिक सशक्तिकरण के साथ और इनके शत्रु हाथ मलते रह गए। आगे भविष्य में आगामी दस वर्षों तक इन्हें राजनीति में और अधिक ऊंचे पद व प्रतिष्ठा की पूर्ण संभावनाएं हैं। राजनीति में सफलता के कारक राहु की महादशा भी अभी एक दशक से लंबे समय तक चलेगी। 26 अक्तूबर के बाद भाग्य भाव में बन रहे चतुर्ग्रही योग पर गुरु व शनि के संयुक्त गोचरीय प्रभाव से इनका विशेष भाग्योदय होने का योग बनेगा। 2029 तक राहु की महादशा तक इनका राजनीतिक सफर उच्च सोपान पर कायम रहेगा और राजनीति के क्षेत्र में ये नित नये मुकाम हासिल करेंगे।


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