क्यों?

क्यों?  

यशकरन शर्मा
व्यूस : 5348 | फ़रवरी 2015

प्रश्न: घर के आंगन में तुलसी का वृक्ष क्यों? उत्तर: प्रत्येक सद्गृहस्थ के घर के आंगन में प्रायः तुलसी का पौधा लगा होता है। यह हिंदू परिवार की एक विशेष पहचान है। स्त्रियां इसके पूजन के द्वारा अपने सौभाग्य एवं वंश की रक्षा करती हैं। रामभक्त हनुमानजी जब सीता जी की खोज करने लंका गये तो उन्हें एक घर के आंगन में तुलसी का वृक्ष दिखलाई दिया। ‘‘रामायुध अंकित गृह, शोभा बरनि न जाय। नव तुलसि का वृन्द तंह, देखि हरष कपिराय।।’’ अर्थात अति प्राचीन परंपरा से तुलसी का पूजन सद्गृहस्थ परिवार में होता आया है। जिनके संतान नहीं होती, वे तुलसी-विवाह भी कराते हैं। तुलसी पत्र चढ़ाये बिना शालिग्राम का पूजन नहीं होता। विष्णुभगवान को श्राद्ध भोजन में, देवप्रसाद, चरणामृत, पंचमामृत में तुलसीपत्र होना आवश्यक है अन्यथा वह प्रसाद भोग देवताओं को नहीं चढ़ता। मरते हुये प्राणी को अंतिम समय में गंगाजल व तुलसी पत्र दिया जाता है।

तुलसी जितनी धार्मिक मान्यता किसी भी वृक्ष की नहीं है। इन सभी धार्मिक मान्यताओं के पीछे एक वैज्ञानिक रहस्य छिपा हुआ है। तुलसी वृक्ष एक दिव्य औषधि वृक्ष है तथा कस्तूरी की तरह एक बार मृत प्राणी को जीवित करने की क्षमता रखता है। तुलसी के माध्यम से कैंसर जैसी असाध्य बीमारी भी ठीक हो जाती है। आयुर्वेद के ग्रंथों में तुलसी की बड़ी भारी महिमा वर्णित है। इसके पत्ते उबाल कर पीने से सामान्य ज्वर, जुकाम, खांसी एवं मलेरिया में तत्काल राहत मिलती है। तुलसी के पत्तों में संक्रामक रोगों को रोकने की अद्भुत शक्ति है। प्रसाद पर इसको रखने से प्रसाद विकृत नहीं होता। पंचामृत व चरणामृत में इसको डालने से बहुत देर रखा गया जल व पंचामृत खराब नहीं होते, उसमें कीड़े नहीं पड़ते। तुलसी की मंजरिओं में एक विशेष खूशबू होती है, जिससे विषधर सांप उसके निकट नहीं आते।

इसके अनेक औषधीय गुणों के कारण ही, इसकी पूजा की जाती है। ‘रणवीर भक्ति रत्नाकर’ ग्रंथ के अनुसार- ‘‘तुलसीगन्धमादाय यत्र मच्छति मारूतः। विदिशा दिशश्च पूताः भूतग्रामश्चतुर्विधः।।’’ तुलसी की गंध से सुवासित वायु जहां तक घूमती है, वहां तक दिशा और विदिशाओं को पवित्र करता है और उद्भिज, श्वेदज, अंडज तथा जरायुज- चारों प्रकार के प्राणियों को प्राणवान करता है। ‘क्रियायोगसार’ नामक एक अन्य ग्रंथ के अनुसार-तुलसी के स्पर्श मात्र से मलेरिया इत्यादि रोगों के कीटाणु एवं विविध व्याधियां तुरंत नष्ट हो जाती हैं। प्रश्न: परमात्मा एक है या अनेक? प्रायः सभी धर्म-सम्प्रदाय में परमात्मा के रूप में एक ईश्वर को माना जाता है पर हिंदू धर्म में ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इंद्र, वरुण, गणेश, हनुमान एवं नाना प्रकार के देवी-देवता हैं? ऐसा क्यों? उत्तर: ‘ब्रह्मसूत्र’ में कहा है- ‘एकं सद्विप्राः बहुधा वदन्ति’।

उस एक ही परमतत्त्व परमात्मा को लोग अनेक नामों से पुकारते हैं। ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, इंद्र, वरुण, यम, दुर्गा आदि एक ही परमतत्त्व परमात्मा के विभिन्न निर्विशेष नाम हैं। इसे लौकिक दृष्टांत से समझें, जैसे - ‘भारत सरकार’ शब्द भारत पर शासन करने वाली एक राजसत्ता का समष्टि नाम है। परंतु प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, प्रधान सेनापति, वित्तमंत्री, रक्षामंत्री, न्यायमंत्री, यातायात मंत्री, संचार मंत्री - ये सभी व्यक्तिगत नाम अलग-अलग रूप व स्वरूप में होते हुये भी अपनी-अपनी परिभाषा के अनुसार एक खास विभाग व महकमे का परिचय देते हैं।

समष्टि दृष्टि से चाहे इन सबको भारत सरकार ही कहा जायेगा पर व्यष्टि दृष्टि से प्रधानमंत्री, सेनापति, उद्योगमंत्री या वित्त मंत्री को परस्पर उलट-फेर करके नहीं बोल सकते। अर्थात् सेनापति को वित्तमंत्री नहीं कह सकते, वित्त मंत्री से संचार मंत्रालय का काम नहीं ले सकते। उसी प्रकार जल का देवता वरुण, सृष्टि का कर्ता ब्रह्मा, पालन कर्ता विष्णु, संहारक रुद्र, शक्ति की अधिष्ठात्री दुर्गा, धन की अधिष्ठात्री लक्ष्मी, विद्या की देवी सरस्वती, ऋद्धि-सिद्धि के दाता गणेश- सबके अलग-अलग विभाग हैं, अलग-अलग स्वरूप व अलग-अलग कार्य हैं जो कि पूर्णतः व्यावहारिक व वैज्ञानिक हैं।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.