भगवान शिव के आंसुओं से रुद्राक्ष का निर्माण हुआ है। सिद्धि में इनका उपयोग किया जाता है। रुद्राक्ष अपने विशेष गुणों के कारण शिवतुल्य और मंगलकारी कहा जाता है। रूद्राक्ष पर पड़ी धारियों के आधार पर ही इनके मुखों की गणना की जाती है। रूद्राक्ष एकमुखी से लेकर सत्ताईस मुखी तक पाए जाते हैं जिनके अलग.अलग महत्व व उपयोगिता हैं। रुद्राक्ष कालसर्प योग के दोषों को शांत करता है। इसे धारण करने से चंद्र दोष भी दूर होते है। साथ ही रुद्राक्ष रोगों का निवारण करता है। यह धारक के लिए एक सुरक्षा कवच का कार्य करता है। बाहरी नकारात्मक ऊर्जाओं से यह धारक की रक्षा करता है। यात्रियों के लिए रुद्राक्ष विशेष लाभदायक कहा गया है। जो लोग रुद्राक्ष धारण करता है उसका प्रभामंडल शुद्ध होता है। तथा मुख पर एक विशेष तेज आता है। रुद्राक्ष की जांच के विभिन्न मापदंड़ों का प्रयोग किया जाता है। रुद्राक्ष क्यों धारण करना चाहिए। जन्म कुंडली में जो ग्रह शुभ भावों का स्वामी होकर शुभ भाव में स्थित हो उस ग्रह का रत्न धारण करना शुभ रहता है। इसी तरह से जब ग्रह अशुभ भावों का स्वामी होकर अशुभ भाव में स्थित हो तो रुद्राक्ष धारण करने की सलाह दी जाती है। रुद्राक्ष कब धारण करना चाहिएघ् इसके उपयोगी बिन्दू इस प्रकार हैं. रुद्राक्ष को ग्रह के दोष दूर करने के लिए धारण किया जाता है। ग्रह ६ए ८ व १२ वें भाव का स्वामी होकर त्रिक भावों में शामिल हो तो रुद्राक्ष धारण करना शुभ होता है। रोगों की शांति के लिए रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। विशेष समस्यानुसार रुद्राक्ष धारण किया जा सकता है। अशुभ ग्रहों की शांति के लिए रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। अलग.अलग ग्रहों की अशुभता का निवारण करने के लिए भिन्न भिन्न रुद्राक्ष धारण किए जाते है। आपके लिए कौन सा रुद्राक्ष उपयोगी हो सकता है। इसकी जानकारी आपकी जन्मकुंडली की जांच के आधार पर ही की जा सकती है। जैसे . जन्मपत्री में सूर्य दोष दूर करने के लिए एक मुखी रुद्राक्षए चंद्र के लिए दो मुखीए मंगल के लिए तीन मुखी इसी प्रकार शेष३।।
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