राजनीति में सफलता

राजनीति में सफलता  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 2011 | दिसम्बर 2015

प्रश्न: राजनीति में सफलता प्राप्त करने के लिए ज्योतिष, अंकशास्त्र व हस्तरेखा शास्त्र में क्या-क्या योग हैं, विस्तारपूर्वक वर्णन करें।

ज्योतिष की दृष्टि से दशम भाव को राज्य (सत्ता) स्थान भी कहा जाता है और इसी स्थान से राजयोग की विशिष्ट जानकारी भी ज्ञात की जा सकती है। च्वसपजपबंस यूनानी भाषा का शब्द है, जिसका ‘अर्थ’, राज्य, सत्ता, शासन से है। ‘राजनीति’ दो शब्दों राज$नीति से मिलकर बना है जिसका अर्थ है, एक ऐसा शासक जिसकी नीतियां व राजनैतिक गतिविधियां इतनी परिपक्व व सुदृढ़ हों, जिसके आधार पर वह अपनी जनता का प्रिय शासक बन सके और अपने कार्यक्षेत्र में सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त करता हुआ उन्नति की चरम सीमा पर पर पहुंचे। राजनीति कारक ग्रह: राजनीति का मुख्य कारक ग्रह कूटनीतिज्ञ ‘राहु’’ है, जो कालसर्प योग के लिये तो जिम्मेदार है ही, साथ ही छलकपट भी करवाता है, इसकी महादशा में कई महापुरूषों जैसे- भूतपूर्व प्रधानमंत्री डाॅ. मनमोहन सिंह आदि को राजनीति में उच्चपद प्राप्त करते देखा गया है।

राहु ग्रह कुंडली में बली अर्थात उच्च, मित्रराशि आदि में स्थित होकर केंद्र, त्रिकोण के अलावा 2, 3, 11 भाव में स्थित हो तो प्रबल योग बनता है। यदि राहु शत्रु राशिगत आदि हो तो, त्रिक भाव 6, 8, 12 में स्थित हो तो राजनीति में सफलता नहीं देता है। इसके अलावा ग्रहों का राजा सूर्य, देवगुरु बृहस्पति और मंगल का बली होना भी आवश्यक है। चतुर्थ, पंचम व दशम भाव तथा इनके स्वामी यदि बली हों तो राजनीति में सफलता देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। साथ लग्न-लग्नेश, राशि राशीश व चंद्र का बली होना आवश्यक है। यदि लग्न व राशि का स्वामी एक ही हो और पंचम व भाग्य भाव के स्वामी से युति करे तो ऐसा जातक विश्वविख्यात राजनीतिज्ञ होता है। उदाहरण - ऐसा भगवान श्रीकृष्ण की कुंडली में देखने को मिलता है जो आगे दर्शायी गयी है।


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राजनीति क्षेत्र के योग:

- सूर्य एवं राहु बली होना चाहिए।

- दशमेश स्वगृही हो अथवा लग्न या चतुर्थ भाव में बली होकर स्थित हो।

- दशम भाव में पंचमहापुरूष योग हो एवं लग्नेश भाग्य स्थान में बली हो तथा सूर्य का भी दशम भाव पर प्रभाव हो।

- ग्रहों का रश्मि बल 50 प्रतिशत होने पर सफलता मिलती है।

- 2 एवं 5 भाव में क्रमशः बली मंगल एवं बुध$शुक्र$शनि हों।

- कुंडली में नीचत्व भंग योग इसमें सफल बनाता है।

- 2 एवं 5 भाव में क्रमशः बली गुरु एवं शनि$राहु$मंगल हों।

- दोनों त्रिकोणेश एवं दोनों धनेश 8 या 12 भाव में हो।

- कुंडली में 2, 5 एवं 8 भाव में क्रमशः बली सूर्य$गुरु, शनि$राहु एवं मंगल हो।

- कुंडली में भाव परिवर्तित हो तथा इनका संबंध केंद्र या त्रिकोण से हो।

- यदि दशमेश मंगल होकर 3, 4, 7, 10 भाव में स्थित हो।

- यदि 1, 5, 9 एवं 10 भाव में क्रमशः बलवान सूर्य, बृहस्पति, शनि एवं मंगल स्थित हो।

- यदि 1, 5, 9 एवं 7 भाव के स्वामी आपास में किसी भी रूप में संबद्ध हों।

- दशम आजीविका भाव बलवान होना चाहिये। अर्थात् यह भाव किसी भी रूप में कमजोर नहीं होना चाहिये। जैसे- दशम भाव में कोई भी ग्रह नीच का नहीं होना चाहिये चाहे वह नीचत्व भंग ही क्यों न हो जाये तथा त्रिकेश दशम भाव में नहीं होने चाहिये।

- जिस जातक की जन्मपत्री में 3 या 4 ग्रह बली हों अर्थात् उच्च, स्वगृही या मूल त्रिकोण में हों तो जातक मंत्री या राज्यपाल पद को प्राप्त कर इसमें सफल होता है।

- जिस जातक के 5 या 6 ग्रह बलवान हांे अर्थात् उच्च, स्वगृही या मूल त्रिकोण में हो तो ऐसा जातक गरीब परिवार में जन्म लेने के बाद भी राज्य शासन कर सफल रहता है।

- पाप ग्रह (मंगल, शनि, सूर्य, राहु, केतु) उच्च के होकर त्रिकोण भाव में स्थित हों ।

- जब प्रथम लग्न भाव में गजकेसरी योग के साथ मंगल हो या इन तीनों में से दो ग्रह मेष राशि/लग्न में हो।

- यदि पूर्णिमा या आस-पास का चंद्रमा, सिंह नवांश में हो और शुभ ग्रह केंद्र में हो।

- यदि कोई भी ग्रह नीच राशि में नहीं हो या नीचत्व भंग हो तथा गुरु व चंद्र केंद्र में हों तथा इन्हें शुक्र देखता हो।

- यदि गुरु व शनि का लग्न हो अर्थात तुला के साथ धनु, मीन, मकर, कुंभ लग्न हो तथा मंगल उच्चस्थ हो एवं धनु राशि के 150 तक सूर्य के साथ चंद्र हो।

- यदि सौम्य ग्रह अस्त न हो (बुध, गुरु, शुक्र, चंद्र) और नवम भाव में स्थित होकर मित्र ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तथा चंद्र पूर्ण बली होकर मीन राशि में स्थित हो एवं इसे मित्र ग्रह देखते हों।

- अग्नि तत्व राशि के लग्न हो अर्थात् 1, 5, 9 लग्न हो तथा इसमंे मंगल स्थित हो व मित्र ग्रह की दृष्टि हो।

- शनि दशम भाव में हो या दशमेश से संबंध बनाये तथा साथ में दशम भाव में मंगल भी हो।

- राजनीति के लिए सिंह लग्न सफलता देने वाला होता है।

- सूर्य, चंद्र, गुरु व बुध दूसरे भाव में हो, मंगल छठे भाव में हो, शनि 11वें व 12 वें में राहु हो तो राजनीति विरासत में ही मिलती है।

- यदि कुंडली में तीन या अधिक ग्रह उच्च या स्वगृही हों तथा साथ में ये केंद्र या त्रिकोण में हों तो ‘‘सोने पे सुहागा’’ वाली बात बन जाती है।

- दशम भाव में बली मंगल$सूर्य हो या इनका प्रभाव हो।

- दशमेश, लग्न में बली हो या इनका भाव परिवर्तन हो।

- 3, 6 या 11 वें स्थान में मंगल, बुध, दूसरे भाव में सूर्य व शुक्र, 4वे भाव में मंगल 10 वें भाव में गुरु लग्न में शनि 11वें भाव में हो।

- राहु का संबंध 6, 7, 10, 11, 3 से हो तो राजनीति में सफलता देता है।

- दशमेश बली हो तथा दशमस्थ ग्रह बली हो अर्थात् - उच्च/स्वगृही, मूल त्रिकोण मित्रराशिगत हो।

- जब कुंडली में 3 या अधिक ग्रह बली हो अर्थात् उच्च स्वगृही हो।

- जब कर्क या सिंह राशि जन्म लग्न में हो या जन्म राशि से दशम भाव का नवांश इन दोनों राशियों से संबंधित हो तो राजनीति में सफल होकर मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री आदि उच्च पद प्राप्त करता है। उदाहरण- कर्क लग्न - स्व. पं. जवाहर लाल नेहरू, श्रीमती इंदिरा गांधी, श्रीमती सोनिया गांधी तथा सिंह लग्न स्वश्री राजीव गांधी आदि।

- यदि 1, 2, 4, 5, 7, 9, 10, 11 भावों में से किन्हीं दो का भाव परिवर्तन हो तो भी राजनीति में सफलता देता है। स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी व कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी में लग्नेश, सप्तमेश में भाव परिवर्तन योग है।

- यदि त्रिक भाव - 6, 8, 12 के स्वामी स्वगृही हों तो राजनीति में सफलता देते हैं।

- कर्क लग्न कुंडली में, दशमेश मंगल द्वितीय भाव (सिंह राशि) में, लग्न (कर्क) में शनि, षष्ठ भाव में राहु, एकादशेश शुक्र के साथ हो तथा लग्न पर लग्नेश की दृष्टि हो, बुधादित्य योग पंचम या दशम भाव में हो, गुरु नवम या एकादश भाव में हो।

- कर्क लग्न की कुंडली में यदि नवमेश गुरु लग्न में हो अर्थात् उच्च का हो, दशमेश मंगल द्वितीय भाव में सिंह राशि में स्थित हो, लग्नेश चंद्र चतुर्थ भाव में तुला राशि में हो, नवमस्थ राहु से दृष्ट हो, शुक्र एकादश भाव में स्वगृही हो, बुधादित्य योग पर शनि का प्रभाव हो।


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- कर्क लग्न की कुंडली में यदि लग्नेश चंद्र, नवमेश गुरु के साथ भाग्य भाव में गजगेसरी योग बना रहा हो। दशमेश मंगल राहु से दृष्ट होकर अष्टम भाव में स्थित हो, दशम भाव में शनि पर राहु/केतु का भी प्रभाव हो। चतुर्थेश व एकादशेश शुक्र पंचम भाव में द्वितीयेश व तृतीयेश सूर्य, बुध के साथ स्थित हो तो जातक राजनीति में उच्च पद पर होता है।

- कन्या लग्न की कुंडली में लग्नेश बुध द्वितीय भाव में सूर्य के साथ बुधादित्य योग में हो, राहु नवम भाव में नवमेश शुक्र, गुरु व केतु से दृष्ट हो, एकादशेश चंद्र, लाभ भाव में स्वगृही हो तथा साथ ही मंगल, शनि भी स्थित हो तथा इनपर गुरु की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक राजीनति में विभिन्न पदों पर होता है।

- कन्या लग्न की कुंडली में लग्नेश बुध व नवमेश शुक्र एकादश भाव में स्थित हो तथा इन पर चंद्र, गुरु का प्रभाव हो, दशम में सूर्य व शनि हो, मंगल$केतु तथा राहु षष्ठ भाव में हो तो व्यक्ति राजनीतिज्ञ होता है।

- वृश्चिक लग्न में लग्नेश मंगल$चंद्र की युति बली हो। अष्टम में राहु बली हो, बुध एकादश भाव में स्वगृही हो, वक्री गुरु पंचम में स्वगृही हो, दशमेश सूर्य व सप्तमेश शुक्र की युति में हो तो जातक राजनेता होता है।

- वृश्चिक लग्न में लग्नेश 12वें भाव में गुरु से दृष्ट हो, शनि एकादश भाव में स्थित हो, ग्रहण योग (राहु$चंद्र) चतुर्थ भाव में हो, शुक्र सप्तम भाव में स्थित होकर पंचमहापुरुष का मालव्य योग बना रहा हो तथा लग्नेश मंगल की अष्टम दृष्टि का प्रभाव हो, बुधादित्य योग शुभ भावों में बन रहा हो तथा गुरु की दृष्टि दशम व द्वितीय भाव पर हो। सफल राजनीतिज्ञ बनने के योग सर्वार्थ चिंतामणि के अनुसार

- चार या अधिक ग्रहों का उच्च का होना तथा बली बृहस्पति लग्न में स्थित हो तो राजा/महाराजा होता है। जैसे-भगवान श्रीराम।

- वर्गोत्तम लग्न या चंद्र कुंडली में बली होना राजनीतिज्ञ बनता है।

- तीन, चार ग्रहों के बली (उच्च, स्वगृही) के साथ तीन चार ग्रहों का राशि परिवर्तन या दृष्टि परिवर्तन राजनेता बनाता है।

- यदि कोई ग्रह कुंडली में अपने पंचमांश में स्थित हो तो जातक एक ‘‘चक्रवर्ती सम्राट’’ होता है। -

यदि कुंडली में दृष्टि या युति द्वारा चांडाल योग निर्मित हो अर्थात् राहु व गुरु का संबंध हो या राहु, गुरु के नक्षत्र में स्थित हो।

- यदि कुंडली में कभी भी तरह से बुध व गुरु का संबंध हो।

- यदि कुंडली में विभिन्न राजयोगों का निर्माण हो जैसे- नीच भंग, पंचमहापुरुष, कीर्ति राजराजेश्वर, अमला, त्रिकोण, केतु से संबंध हो तो जातक सफल राजनीतिज्ञ होता है। फलदीपिका के अनुसार: - यदि दशम सत्ता भाव में लग्नेश और दशमेश का स्थान परिवर्तन योग बन रहा हो।

- नवमेश-दशमेश की युति केंद्र में तथा राहु व केतु भी शुभ व बली हों।

- जब लग्नेश अथवा सूर्य, दशम भाव (सत्ता) में हो। - मंगल बली (उच्च, स्वगृही, मूल त्रिकोण मित्रराशि) होकर केंद्र, त्रिकोण या शुभ भावों में स्थित हो।

- गुरु केंद्र में बली हो तथा अन्य ग्रह शुभ भावों में हों।

- गुरु केंद्र/त्रिकोण में उच्च तथा पक्षबली चंद्र शुभ भावों में हो।

- यदि लग्नेश केंद्र या शुभ भावों में तथा उसका संबंध तृतीयेश या दशमेश से हो तो।

- यदि चतुर्थेश, नवमेश और दशमेश केंद्र या त्रिकोण में हो तथा उनका परस्पर दृष्टि या युति संबंध हो तो ऐसे जातक के पास बलिष्ठ राजनीतिक शक्ति होती है।

विभिन्न जन्म लग्न या सफल राजनीति के योग मेष लग्न: प्रथम भाव में सूर्य, दशम में मंगल व शनि तथा द्वितीय भाव में राहु हो। वृष लग्न: दशम भाव में अकेला राहु या साथ में शुक्र भी हो। मिथुन लग्न: नवम में शनि, सूर्य 11वें भाव में, राहु सप्तम भाव में तथा बुध 4, 7, 10वें भाव में हो। कर्क लग्न: शनि लग्न में, दशमेश मंगल दूसरे भाव में, राहु 6ठे भाव में, सूर्य व बुध पंचम या एकादश भाव में चंद्र से दृष्ट हो। सिंह लग्न: सूर्य, चंद्र, बुध व गुरु 2रे भाव में, शनि 11 भाव में, राहु 12वें भाव में, मंगल छठे भाव में हो। कन्या लग्न: दशम भाव में बुध का संबंध सूर्य से हो, लग्न में राहु शनि के साथ गुरु हो। तुला लग्न: चतुर्थ में चंद्र, शनि हो, सूर्य 7वें में, गुरु अष्टम भाव में, शुक्र नवम में, बुध व मंगल 11वें में हो। वृश्चिक लग्न: लग्नेश मंगल 12वें भाव में हो तथा गुरु का प्रभाव हो, शनि 11वें भव में, चंद्र राहु चतुर्थ भाव में, शुक्र सप्तम भाव में हो तथा सूर्य, एकादशेश के साथ शुभ भाव में हो। धनु लग्न: चतुर्थ भाव में सूर्य, बुध, शुक्र हो तथा दशम में मंगल हो। मकर लग्न: शुक्र व बुध, तीसरे भाव में हो, राहु चैथे भाव में हो तो बुध के नीचत्व भंग से राजनीति का राजयोग प्राप्त होता है। कुंभ लग्न: लग्न में शुक्र के साथ सूर्य हो, दशम में राहु हो। मीन लग्न: लग्न में चंद्र व शनि हो, मंगल 11वें भाव में हो तथा शुक्र 6ठे भाव में हो।


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राजनीति में सफलता के कुछ ज्योतिषीय योग निम्न हैं:

- सुफल योग: जब जन्मकुंडली में सभी ग्रह स्थिर राशियों (2, 5, 8, 11) में हांे तब यह योग बनता है। इसमें जन्मा व्यक्ति राज्याधिकारी, शासनाधिकारी, प्रसिद्ध व ज्ञानी होता है।

- नल योग: जब पत्री में सभी ग्रह द्विस्वभाव राशियों (3, 6, 9, 12) में हो तो यह योग बनता है। इसमें जन्मा जातक राजनीति में दक्ष एवं चुनाव में सफलता प्राप्त करने वाला होता है।

- चक्र योग: लग्न से एक-एक स्थान छोड़कर अर्थात् - 1, 3, 5, 7, 9, 11 भाव में सभी ग्रह हो तो यह योग बनता है जिससे जातक राष्ट्रपति या राज्यपाल अथवा राजा बनता है।

- भूप योग: लग्न से लगातार चारों भाव में अर्थात् 1, 2, 3, 4 में सभी ग्रह हों तो यह योग होता है जिससे जातक पंचायत या नगरपालिका की राजनीति में सफलता प्राप्त करता है तथा विवाद निपटाने में दक्षता प्राप्त होती है।

- कमल योग: जब जन्मकुंडली के केंद्र भाव अर्थात् 1, 4, 7, 10 में सभी ग्रह हों तो यह योग बनता है जिससे व्यक्ति मंत्री व राज्यपाल बनता है तथा धनवान होकर प्रसिद्धि प्राप्त करता है।

- छत्र योग: यदि सप्तम भाव से आरंभ करते हुये आगे के सभी भावों में सारे ग्रह स्थित हों तो यह योग बनता है जिससे जातक उच्च पदाधिकारी, शासनाधिकारी, उच्च/ राज्य/कर्मचारी तथा ईमानदार होता है।

- लग्नाधि योग: यदि कुंडली में लग्न से सप्तम व अष्टम भाव में शुभ ग्रह हो और उन पर किसी भी प्रकार का पाप प्रभाव न हो तो यह योग बनता है जिससे जातक राजनीति में सफल रहता है।

- दामिनी (दाम) योग: जब छः राशियों में सभी ग्रह हों तो यह योग बनता है तथा राजनीति में सफल रहता है।

- कुसुम योग: जब कुंडली का लग्न स्थिर (2, 5, 8, 11) राशि का हो, शुक्र, केंद्र (1, 4, 7, 10) में हो, चंद्र, त्रिकोण (5, 9) में शुभ ग्रहों से युक्त हो तथा शनि, दशम भाव में हो तो यह योग बनता है जिससे जातक राज्यपाल, मंत्री, एम. एल. ए. या गवर्नर होता है।

- काहल योग: लग्नेश बली हो व या तो चतुर्थेश व गुरु परस्पर केंद्र में हो या एक साथ उच्च या स्वगृही हो तो यह योग बनता है, जिससे जातक राजनीति में अच्छी सफलता प्राप्त कर राजदूत आदि बनता है।

- महाराज योग: जब लग्नेश व पंचमेश क्रमशः पंचम व लग्न भाव में स्थित हो यानि भाव परिवर्तन हो तो यह योग बनता है जिससे जातक मुख्यमंत्री/राज्यपाल होता है।

- श्रीनाथ योग: जब सप्तमेश, दशम भाव में उच्च का हो तथा दशमेश व नवमेश की युति हो तो यह योग बनता है। यह योग केवल धनु लग्न में ही बनता है। धनु लग्न में सप्तमेश बुध, दशम भाव में कन्या राशि में उच्च, स्वगृही होता है तथा नवमेश सूर्य की युति भी होनी चाहिए। इससे जातक पी. एम., मंत्री, एम. एल. ए. आदि बनता है। यह योग श्री मनमोहन सिंह जी की कुंडली में देखने को मिलता है।

- शंख योग: जब कुंडली में लग्नेश बली हो तथा पंचमेश व षष्ठेश केंद्र में एक साथ हो अर्थात् नवमेश बली हो तथा लग्नेश, दशमेश चर राशि में हो तो यह योग बनता है, जिससे जातक राजनीति के क्षेत्र में मंत्री, मुख्यमंत्री आदि पद प्राप्त करता है।

- गजकेसरी योग: जब चंद्र से गुरु केंद्र स्थान (1, 4, 7, 10) में पाप रहित तथा शुभ ग्रह से प्रभावित हो तो यह योग बनता है, जिससे जातक मंत्री, मुख्यमंत्री आदि पद प्राप्त करता है।

- अधियोग: जब चंद्र से 6, 7, 8 वें भाव में सभी शुभ ग्रह हों तो यह योग बनता है, जिससे जातक राज्यपाल, सेनाध्यक्ष आदि पद प्राप्त करता है।

- पंचमहापुरुष योग: जब कुंडली में पंचमहापुरूष योग हो अर्थात मंगल, बुध, गुरु, शुक्र व शनि लग्न से केंद्र स्थानों में स्वगृही या उच्च के हो तो क्रमशः रूचक, भद्र, हंस, मालव्य, शश नामक योग बनते हैं इनमें जन्मा जातक राजनीति में अपार सफलता प्राप्त करता है। डाॅ. मनमोहन सिंह एवं नरेंद्र मोदी की कुंडली में दशम भाव से भद्र योग व लग्न में रूचक योग बन रहा है।

- वर्तमान में सत्ता व राजनीति कारक राहु की महादशा चल रही है।

- दशम भाव में भद्र योग पंचमहापुरूष व भाग्येश बुध की भुक्ति में बुधादित्य योग।

- लग्नेश, भाग्य स्थान में बली।

- अष्टम भाव में चंद्र (स्वगृही) से सरल योग। उपरोक्त कारणों से राजनीति में सफल होकर प्रधानमंत्री पद पर थे। स्वर्गीय इंदिरा गांधी - कर्क लग्न पर चंद्र की दृष्टि, लग्नेश, सप्तमेश में भाव परिवर्तन - पंचम भाव में बुधादित्य योग।

- पंचमेश व दशमेश मंगल का द्वितीय भाव में राजयोग - महाभाग्य योग, वीणा योग - द्वितीयेश व दशमेश, पंचमेश में भाव परिवर्तन। अतः 1966-1977 तक 1980-84 तक राज किया। स्वर्गीय श्री राजीव गांधी - सूर्य का लग्न सिंह व लग्न में सूर्य स्वगृही, लग्न में चंद्र भी ।

- लग्नेश, दशमेश का लग्न में संबंध।

- षष्ठेश व सप्तमेश शनि की 11वंे भाव में बली।

- छठे भाव पर राहु का प्रभाव - लग्न में बुधादित्य कालनिर्णय योग।

- लग्नेश, पंचमेश अष्टमेश की लग्न में युति (सूर्य, गुरु) - लग्न में पांच ग्रहों की युति। उपरोक्त योगों से श्री राजीव गांधी जी ने 1984-1991 तक राजनीति में राज किया। राजनीति से संबंध के लिये षष्ठ भाव सेना का, दशम कर्म का, सप्तम भाव, दशम से दशम होने से महत्वपूर्ण है। इनका संबंध राजनीति में सफलता दिलाता है। इसके अलावा इनका संबंध राहु से हो तो सोने पे सुहागा होता है क्योंकि राहु को नीति’ का कारक ग्रह माना गया है। यदि कुंडली में राहु का सूर्य ‘‘आत्मकारक’’ हो तो राजनीति में सफलता देता है। सूर्य ग्रहों का राजा व राज्य सरकार व दशम भाव का कारक है। नरेंद्र मोदी - भाग्येश चंद्र लग्न में नीच का तथा इसका नीचत्व मंगल जो पंच महापुरूष का रूचक योग बना रहा है, ने भंग किया। मंगल षष्ठेश भी है।


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- दशमेश व एकादशेश की एकादश भाव में बुधादित्य योग द्वारा युति।

- वर्तमान में 2010-20 तक चंद्र महादशा, उससे पूर्ण 2004 से 10 तक सूर्य की महादशा, अतः सफल राजनीतिज्ञ हैं। अंक विद्या द्वारा इसमें अंकों का विशेष महत्व होने से ये अंक मूल रूप में 1 से 9 तक होते हैं जो सौरमंडल के 9 ग्रहों का ही प्रतिनिधित्व करते हैं। जैसे अंक: 1- सूर्य, 2- चंद्र, 3-गुरु, 4- राहु, 5-बुध, 6-शुक्र, 7-केतु, (नेप्चून/वरुण) 8. शनि व 9. मंगल। अंक विद्या द्वारा जातक के सटीक भविष्य कथन में 3 प्रकार के अंकों का विशेष महत्व है- 1 मूलांक, 2. भाग्यांक/ संयुक्तांक, 3. नामांक मूलांक: जातक की जन्मतारीख ही उसका मूलांक होता है जो सदैव एक अंक तथा 1 से 9 के बीच ही होता है। यदि मूलांक दो अंकों में हो तो इसका योग कर सदैव एक अंक में परिवर्तित कर लेते हैं। भाग्यांक/संयुक्तांक: भाग्यांक का मूल आधार, जन्मतिथि होता है, जो जन्म तारीख, जन्म मास व जन्म वर्ष के अंकों को योग कर एक अंक में परिवर्तित कर प्राप्त करते हैं। इस तरह मूलांक एवं भाग्यांक सदैव जन्मतिथि के आधार पर प्राप्त किये जा सकते हैं। मूलांक से ज्यादा भाग्यांक प्रभावशाली होता है। नामांक: नामांक का अर्थ व्यक्ति के नाम विशेष से होता है।

इसमें व्यक्ति की जन्मतिथि (भाग्यांक) के साथ-साथ व्यक्ति के नाम के ‘‘वर्णों’’ को भी महत्वपूर्ण माना गया है। इसमें प्रत्येक वर्ण के अपने-अपने अंक निर्धारित किये होते हैं, उनके योग से उस व्यक्ति के नामांक का निर्धारण किया जाता है। व्यक्ति का मूलांक व भाग्यांक, नामांक से मैच होना चाहिये, तभी यह शुभ रहता है अन्यथा नहीं। चूंकि शुभ नहीं हो तो नामांक में कुछ परिवर्तन कर (जोड़ या तोड़कर) नामांक को शुभ बनाया जाता है। क्योंकि मूलांक व भाग्यांक में परिवर्तन संभव नहीं है क्योंकि यह प्राकृतिक है, जब कि नामांक बनावटी है। नामांक का निर्धारण करने के लिए निम्न तीन पद्धतिया हैं। लेकिन इनमें से कीरो की पद्धति काफी प्रचलित हैः 1. कीरो 2, सेफेरियल 3. पाइथागोरस पद्धति। उदाहरण: भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री डाॅ. मनमोहन सिंह जन्म तिथि: 26/9/1932 मूलांक: 2$6 = 8 भाग्यांक: 2$6$9$1$9$3$2 = 32 = 5 कीरो के अनुसार, इनके नाम के प्रथम दो शब्दों का नामांक - मनमोहन 4$1$5 = 10 4$7$5$1$5 = 22 इनकी माता का नाम- अमृत कौर ;।उतपज ज्ञंनतद्ध 1़4़2़1़4 ़ 2़1़6़2 त्र 23 त्र 2़3 त्र 5 विवाह तिथि - 14/9/1958 मूलांक - 1$4 = 5 सन् 1958 = 1$9$5़8 = 23 = 5 इनके परिवार में सदस्यों की संख्या = स्वयं$पत्नी $3 पुत्रियां = 5 देश के 14वें प्रधानमंत्री - अंक 5 14वीं लोकसभा में ही प्रधानमंत्री बने अंक 5 इन्होंने प्रथम वार 23/5/2004 को कार्यभार संभाला - मूलांक = 2$3= 5 इनका विवाह 26 वर्ष की उम्र में हुआ = 2$6 = 8 (1958) = 23 = 5 वर्ष 1952 में स्नातक की उपाधि प्राप्त की = 8 इसके अलावा प्रधानमंत्री के जीवन की कई महत्वपूर्ण घटनाएं जैसे- पुरस्कार प्राप्त करना, वित्त मंत्री बनना, विदेश दौरे, सम्मान, अर्थशास्त्री होना व उसमें योगदान आदि में 5 व 8 अंक आता है। अर्थात इनके जीवन पर 5 व 8 अंकों का प्रभाव शुभ व महत्वपूर्ण है। 5 का स्वामी बुध है जो कुंडली में भाग्येश के साथ बुधादित्य योग के साथ दशम भाव में भद्र येाग बना रहा है। इनके मूलांक, भाग्यांक व नामांक में अति मित्रता है। शनि ग्रह द्वितीय धन भाव में स्वगृही है। अतः अर्थ से जुड़े व्यक्ति भी रहे हैं। शनि व बुध में परम मित्रता भी है। भाग्यांक, मूलांक से ज्यादा प्रभावशाली होता है। यह प्रधानमंत्री की कुंडली/ जीवन में देखने को मिलता है। यह जीवन में सफलता, उच्च पद, आर्थिक मजबूती आदि देता है।

हस्तरेखा द्वारा राजनीतिक योग

- यदि मध्यमा अंगुली का अग्र भाग नुकीला हो तथा सूर्य रेखा विकसित और लंबी हो अथवा बुध पर्वत पर त्रिकोण का चिह्न हो तो जातक राजनीतिज्ञ बनकर मुख्यमंत्री व प्रधानमंत्री जैसे पदों पर आसीन होता है।

- यदि मस्तिष्क रेखा, बृहस्पति पर्वत के मध्य से आरंभ हो तथा हृदय रेखा भी बृहस्पति पर्वत से मस्तिष्क रेखा को काटती हुई आरंभ हो तो जातक कुशल राजनीतिज्ञ होता है।

- यदि मस्तिष्क रेखा, बृहस्पति पर्वत से तर्जनी के मूल से आरंभ हो तो वह सफल राजनीतिज्ञ होता है।

- जिनके हाथ में गुरु व मंगल पर्वत ऊंचे उठे हों, मस्तक रेखा द्विभाजित हो कनिष्ठिका अंगुली लंबी व नुकीली हो तथा नाखून चमकदार हो वह जातक राजदूत /राजनेता होता है।

- जिनके हाथ में तिल, कलश, स्तंभ दंड या घोड़े आदि के चिह्न हों या सूर्य पर्वत पर त्रिशूल हो तो वह राजा/महाराजा व करोड़पति, अरब, खरब पति होता है।

- जन्मकुंडली की भांति हाथ में भी पंचमहापुरुष योग हो अर्थात् गुरु, शनि, बुध, शुक्र व मंगल पर्वत उठे हों तो वह राजनेता होता है। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह जी का हाथ चैकोर है तथा चारों अंगुलियों के आधार व अंगुलियों के सभी पर्व समान हैं। जीवन रेखा दोहरी है तथा मष्तिष्क रेखा गहरी से पतली होती हुई शनि पर्वत के बीच में समाप्त हो गयी है। इनका हाथ कोमल, गुलाबी एवं मांसल है। इनकी हृदय रेखा भी शनि पर्वत के मध्य में समाप्त हो गयी है। चंद्र पर्वत उभरा एवं साफ सुथरा है। ऐसे हाथ के लक्ष्ण वाले जातक प्रधानमंत्री जैसे उच्च पद के अलावा अन्य उच्च पद पर होते हैं। जैसे- मनमोहन सिंह अर्थशास्त्री होकर रिजर्व बैंक के गवर्नर जैसे उच्च पद पर रह चुके हैं। ऐसे लक्षणों वाले जातक सरल, सौम्य, अंतर्मुखी, भलाई के कार्य करने वाले, देश-विदेश में मान-सम्मान बना रहना, समाजसेवा, गलत कार्यों से दूर रहना, अतिशिक्षित होते हैं।



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