विभिन्न भावों के विशिष्ट फल

विभिन्न भावों के विशिष्ट फल  

ललित पंत
व्यूस : 5534 | जुलाई 2017

- दीर्घायु संतान व समृद्धि लग्नेश, गुरु या शुक्र केंद्र में स्थित हो।

- पूर्णायु लग्नेश गुरु से केंद्र में तथा कोई शुभ ग्रह लग्न से केंद्र में।

- सुखी जीवन लग्नेश लग्न से या चंद्र से केंद्र में हो तथा उदित भाग में हो। (सप्तम से दशम तक व दशम से लग्न तक उदित भाग) या नवमेश-लग्नेश की युति दशम में हो।

- उच्च शिक्षा नवमेश-लग्नेश की युति केंद्र में हो और उन पर पंचमेश की दृष्टि हो।

- ख्याति व समृद्धि लग्नेश उच्च राशि में हो और उन पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो, एक शुभ ग्रह चंद्र या लग्न से युत हो।

- दुर्बल शरीर निर्बल लग्नेश शुष्क राशि (मेष, 5, 9) में स्थित हो और उस पर पाप ग्रह की दृष्टि हो।

- राज्य कृपा लग्न में शुभ ग्रह व नवमेश-दशमेश की युति हो।

- जुड़वां संतान राहु लग्न में, लग्न पर मंगल व शनि की दृष्टि तथा लग्नेश गुलिक से युत हो।

- चंद्र व सूर्य एक ही राशि व एक ही नवांश में हों तो जातक का भरण/पालन-पोषण माता सहित तीन स्त्रियां करेंगी।

द्वितीय भाव

- धनी गुरु लग्नेश होकर द्वितीय भाव में मंगल से युति करे। 2, 4 या 2 व 11 का राशि परिवर्तन योग।

- अतुल धन लाभ द्वितीयेश केंद्र में व एकादशेश उससे केंद्र में या त्रिकोण में तथा गुरु व शुक्र से युत या दृष्ट हो।

- शत्रु से धन लाभ द्वितीयेश की छठे भाव में एकादशेश से युति होने पर।

- दरिद्रता द्वितीयेश + एकादशेश नीचस्थ व पापग्रह युक्त होने पर।

- धन कुबेर द्वितीयेश परमोच्च स्थिति में होने पर

- असीमित धन प्राप्ति द्वितीयेश एकादश में वर्गोत्तम भी (नवांश में), स्वराशि, निम्न राशि या शुक्र/बुध से युक्त हो, गुरु की दृष्टि भी हो।

- नेत्र बली द्वितीयेश-सुंदर नेत्र, द्वितीयेश 6, 8, 12 में नेत्र कष्ट/नेत्र/प्रकाशहीन की संभावना।

- क्रूर व असत्यवादी द्वितीय में पापग्रह तथा द्वितीयेश भी पापयुक्त होने पर।

तृभाव तृतीयेश

- केंद्र/त्रिकोण/उच्च या स्वराशि के अथवा शुभवर्गों में हो और कारक (मंगल) शुभग्रह से युक्त हो तो भाई-बहनों का सुख निश्चित है।


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चतुर्थ भाव

- सुख व वाहन चतुर्थेश वर्गोत्तम या उच्चस्थ तथा शुभ ग्रह चतुर्थ भावस्थ।

- समृद्धि चतुर्थेश दशम में तथा नवमेश, दशमेश व लग्नेश चतुर्थस्थ।

- प्रतिष्ठा चतुर्थेश शुभ ग्रह हो, उस पर शुभ दृष्टि भी हो तथा चंद्र सशक्त हो।

- माता की आयु चतुर्थेश उच्चस्थ, चतुर्थ में शुभ ग्रह व चंद्रमा बली हो,

- ग्रह तथा भूमि संपत्ति चतुर्थेश स्थिर राशि (2, 5, 8, 11) तथा शुभ षडवर्गों में, दशमेश उच्चस्थ होने पर भी।

- आयु व शिक्षा गुरु व शुक्र लग्न या चंद्रमा से चतुर्थ में स्थित, बुध उच्चस्थ।

- धार्मिक प्रवृत्ति सूर्य-चतुर्थस्थ, चंद्र-नवमस्थ व मंगल एकादशस्थ।

- शराबी पाप ग्रह 6, 8, 12 में, चतुर्थ में नीचस्थ ग्रह या चतुर्थेश स्वयं नीचस्थ या नीच ग्रह से युति करे।

- यात्रा चतुर्थेश-अष्टमेश चर राशियों में (1, 4, 7, 10) या चर नवांश में हो,उनपर द्वादशेश की दृष्टि हो या द्वादशेश नीच हो।

- ऋण छठे भाव का स्वामी चतुर्थ में, चतुर्थ भाव का स्वामी स्थिर राशि में और दशमेश की दृष्टि पड़े।

- गृह संपत्ति चतुर्थेश निर्बल हो, अष्टम या नीच राशि के निकट हो तो गृह/सम्पत्ति नहीं, यदि जन्म नक्षत्रेश एकादशेश भी हो तो स्वयं के लिए गृह निर्माण करायेगा।

- सुख-शांति दशमेश जलीय राशि में हो तो जल संबंधी व्यवसाय से सुख (व्यवसाय, जल सेना, जल यान, यात्रा)।

पंचम भाव - दत्तक पुत्र

1. पंचम में बुध या शनि की राशि तथा शनि/गुलिक से युत/दृष्ट हो।

2. पंचममेश षष्ठ में, षष्ठेश द्वादश में व द्वादशेश लग्न में हो तो।

- बहुसंतान बली पंचमेश व शुभ ग्रह भी हो।

- संतान सुख पंचम में वृष या तुला राशि हो, शुक्र हो, पाप ग्रह की दृष्टि/प्रभाव से भी कोई बाधा नहीं।

- संतान हानि शनि पंचम में, पंचमेश द्वादश में तथा चंद्र-राहु युति।

- पर स्त्री/पुरुष से संतान ए. स्वराशि के पंचमेश की पंचम में राहु से युति हो और गुरु व चंद्र की दृष्टि न हो। बी. चंद्रमा द्वादश में गुरु अष्टम में पाप प्रभाव में।

- संतान संख्या लग्नेश से पंचम भाव तक जितने अंश हों उन पर 12 से भाग देने पर शेष संख्या।

- संतान नाश राहु उच्चस्थ हो, पंचमेश पापग्रह हो और गुरु नीच राशिस्थ हो। षष्ठ भाव ए. छठे में पापग्रह, छठे भाव का स्वामी पापस्थ तथा शनि-राहु युति। बी. मंगल छठे में षष्ठेश अष्टम में हो।

- पाप कर्म षष्ठेश व नवमेश दोनों पापग्रह युक्त होकर दशम में षष्ठ में स्थित हो।

- मृत्यु लग्नेश व नवमेश-दशमेश से युत या दृष्ट हो, एकादशेश शुभ हो तो शांतिपूर्ण मृत्यु।

- दुर्घटना/प्रेतात्मा पीड़ा अष्टम भाव का स्वामी छठे में, लग्नेश द्वादश में, चंद्रमा क्रूर राशि/ग्रहों के साथ दुर्घटना या प्रेतात्माओं की पीड़ा।

- पीड़ित ग्रहों से रोग ए. सूर्य - अग्नि, ज्वर, जलन, क्षय। चंद्रमा - कफ, अग्नि, धात, घाव।

बुध - गुह्य, उदर, वायु, कुष्ठ।

गुरु - शाप दोष, गुल्भ (जिगर, तिल्ली)।

शुक्र - गुप्तांग।

शनि - रोगों की वृद्धि, गठिया, क्षय राहु- मिर्गी, फांसी, संक्रामक, नेम, कृमि, प्रेत पिशाच भय।

केतु - राहु व मंगल के समान।


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सप्तम भाव - दांपत्य सुख ए. सप्तमेश शुभ ग्रह युक्त या दृष्ट हो। बी. ग्रहों के बल से सुख की प्रचुरता का अनुमान। सप्तमस्थ ग्रहों से जातकों का संबंध पता चलता है।

सूर्य सप्तम - जातक को अधिकार में रखने वाला/वाली।

चंद्र- कल्पना के श्रोत में बहाव।

मंगल - मासिक रक्तस्राव में भी रतिक्रिया पसंद/ आपत्ति नहीं।

बुध - नपुंसकता/ बंध्या गुरु - ब्राह्मण/धार्मिक प्रवृत्ति। शुक्र - संदेहास्पद आचरण।

शनि - राहु व केतु- नीच जाति या स्तर। - बंध्या - द्वादश में पापग्रह, निर्बल चंद्र व पंचम में सप्तमेश बंध्या।

- आचरण संदेहास्पद ए. शनि सप्तमस्थ व सप्तमेश शनि की राशि में बी. शुक्र मंगल युति। राशि या नवांश में हो तो अधिक कामवासना/ अनैतिक व अप्राकृतिक क्रियायें करने वाले।

- सदाचारी - सप्तमेश शुभग्रह, सप्तमस्थ शुभ ग्रह व शुक्र केंद्रस्थ हो।

- पति/पत्नी की आयु: शुक्र नीचस्थ व दशमेश निर्बल होकर 6, 8, 12 में हो तो अल्पायु, मंगलीक योग भी जीवनसाथी की अल्पायु का कारण। - मंगलीक योग: मंगल 1, 4, 7, 8 या 12 में।

- शीघ्र विवाह: बली सप्तमेश शुभ ग्रह की राशि में। शुक्र केंद्र या त्रिकोण में शुक्र द्वितीय में व एकादशेश अपने भाव में, शुक्र चंद्र से सप्तम में शुक्र, लग्न से केंद्र त्रिकोण में।

- विलंब से विवाह: लग्न-लग्नेश, सप्तम-सप्तमेश व शुक्र स्थिर राशियों में हो और चंद्रमा चर राशि में हो। ग्रह निर्बल हो (लग्न का स्वामी, सप्तम भाव का स्वामी व शुक्र)। शनि भी ऊपरी योग बनाये तो वृद्धावस्था में विवाह।

अष्टम भाव - अल्पायु - निर्बल अष्टमेश अष्टम में या केंद्र में और लग्नेश भी कमजोर।

- मध्यायु: अल्पायु के योगों के साथ लग्नेश व चंद्र बली हो तो मध्यायु।

- आयु की वृद्धि - तृतीय भाव में स्वराशि, उच्च या मित्र राशीश हों तो वृद्धि।

- दीर्घायु - बुध, गुरु, शुक्र केंद्र त्रिकोणस्थ।

- लग्न/लग्नेश चंद्र व सूर्य यदि बली हो तो दीर्घायु व भविष्य भी निष्कंटक व सुख-शांतिपूर्ण।

नवम भाव: ए. चतुर्थेश नवम में शुक्र/गुरु की शुभ राशियों में तथा नवमेश चतुर्थ/ त्रिकोण या अष्टम में हो। बी. शुक्र-चंद्रमा-बुध यदि गुरु की राशि या केंद्र त्रिकोण में हो पैतृक संपत्ति: बली नवमेश दशम में, चंद्र सूर्य से नवम में व गुरु चंद्र से नवम।

- धनहीन पिता चंद्र-मंगल द्वितीय या नवमस्थ और नवमेश नीचस्थ।

- समृद्धि व दीर्घायु शुक्र चतुर्थ में, नवमेश परमोच्च में तथा नवम में गुरु।

- पिता की समृद्धि केंद्रस्थ नवमेश पर गुरु व सूर्य की दृष्टि हो।

- पितृ भक्ति सूर्य केंद्र या त्रिकोण में, नवम में शुभ ग्रह, गुरु लग्न में हो।

- नवमेश नीचस्थ और उसका स्वामी नवम में हो और तृतीय में पाप ग्रह हो उस पाप ग्रह की दशा में पिता की मृत्यु। 

भाव - गंगा स्नान राहु-सूर्य का संबंध।

- संन्यास दशम में मीन राशि, सांसारिक प्रलोभनों का त्याग।

- ज्ञान व सम्मान गुरु-शुक्र की दशम में युति, लग्नेश बली, शनि उच्च के।

- सफलता दशमेश-लग्नेश की एकादश में युति पर मंगल की दृष्टि।

- ख्याति दशमेश केंद्र-त्रिकोण में और गुरु उससे त्रिकोण में - पापकर्म - अष्टमेश-दशमेश का परिवर्तन योग।

- असफलता - दशमेश निर्बल व दशम में पापग्रह युक्त हो।

- प्रतिष्ठा - लग्न, दशम व चंद्र बली प्रतिष्ठा प्राप्त।

- आयु - दशमेश - नवमेश द्वादश में अल्पायु - राजयोग - बली नवमेश व दशमेश हो, उच्च के ग्रह केंद्र/त्रिकोण में ।

- राजदंड- दशम में सूर्य-राहु-मंगल युति हो और शनि द्वारा दृष्ट हो। एकादश भाव

- भारी आर्थिक लाभ। ए. एकादश में गुरु बी. एकादशेश तीव्रगति का ग्रह स्थिर राशि में हो।


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- धन लाभ ए. चंद्रमा द्वितीय में, शुक्र नवम में और गुरु एकादश में। बी. 11 भाव चर राशि में, द्वितीयेश स्थिर ग्रह व द्वितीय में चंद्रमा।

- लाभ की सीमा दशमेश व लग्नेश के बल पर निर्भर।

- एकादश में पापग्रह व ग्यारहवां भाव का स्वामी पाप ग्रह युत/दृष्ट व लग्न में भी पापग्रह होने पर आप कम व जो भी हो वह भी तुरंत समाप्त।

- एकादशेश अस्त हो तो भीख मांगकर उदर पूर्ति। सप्तमेश एकादश में हो तो विवाह पश्चात धनोपार्जन।

द्वादश भाव - राहु, मंगल या सूर्य द्वादश में हो, द्वादशेश नीचस्थ हो तो नर्क प्राप्ति

 - द्वादश में गुरु पर शुभ दृष्टि हो, केतु उच्च का हो तो स्वर्गलोक।

- द्वादशेश पापयुक्त तथा द्वादश में भी पाप ग्रह हो तथा उस पर पापग्रह की दृष्टि हो तो अपमानित होकर मातृभूमि का त्याग।

- द्वादशेश शुभ ग्रह की राशि में, शुभ दृष्टि भी हो तो सुखपूर्वक भ्रमण।

- शनि द्वादश में हो, मंगल की उस पर दृष्टि-संपत्ति दुष्कर्मों में नष्ट।

- लग्नेश-द्वादशेश में परिवर्तन योग- दान, धार्मिक व परोपकार के कार्यों में धन व्यय।

- द्वादश में स्थित ग्रह से धन का कारण/कार्य पता।

- लग्न या चंद्र लग्न से द्वादशेश या उसमें जो भी ग्रह स्थित हो वह शुभ हो तो शुभ फल और पापग्रह हो तो अशुभफल।



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