प्र्रश्न कुडलियों का विश्लेषण

प्र्रश्न कुडलियों का विश्लेषण  

रश्मि शर्मा
व्यूस : 5725 | अकतूबर 2009

कुंडली सं. 1 की जातका विवाह के लगभग 4 वर्ष बीत जाने पर भी संतान सुख से वंचित रही। वह एक बार गर्भवती हुई लेकिन उसका गर्भपात हो गया। डाॅक्टर ने उससे कहा कि वह अब कभी मां नहीं बन पाएगी-चाहे तो टी.वी.एफ. करवा ले। टी.वी.एफ. लाखों का खर्चा था और उम्मीद सिर्फ 30-40 प्रतिशत थी। जातका की प्रश्न कुंडली का विश्लेषण इस प्रकार है।

कुंडली (1): चर लग्न व चर नवांश परिस्थिति में परिवर्तन दर्शा रहे हैं। लग्न शीर्षोदय है जो अच्छा है परंतु पाप दृष्ट भी है। लग्न को पंचमेश शनि निकटतम अंशों से देख रहा है जो संतान प्रश्न बताता है। चंद्र का पंचमेश शनि से कंबूल योग में लिप्त होना संतान प्रश्न के साथ ही शीघ्र संतान प्राप्ति दिखा रहा है। लग्नेश व सप्तमेश (शुक्र व मंगल) पूर्ण इत्थशाल युक्त हैं। यह संतान प्राप्ति का शुभ संकेत है। शुक्र व मंगल, जो क्रमशः रक्त व वीर्य का प्रतिनिधित्व करते हैं, एक शुभ राशि में गोचर कर रहे हैं। इस तरह सभी योग कुछ परेशानियों के साथ ही सही परंतु शीघ्र संतान प्राप्ति दर्शा रहे हैं। जातका ने जानना चाहा कि वह किस महीने में गर्भवती होगी। शुक्र व मंगल में 20 का अंतर है अतः जातका से पूरे 2 महीने बाद उसने तारीख जाननी चाही। शुक्र व मंगल 21 जून को एक ही अंश पर आने थे अतः 21 जून की तारीख कही। 22 जून को जातका ने अपने गर्भवती होने की शुभ सूचना दी। प्रश्न के बाद जातिका की कुंडली देखकर प्रश्न भी वही दर्शाता है जो जन्म कुंडली दर्शा रही है।

कुंडली (2): यह कुंडली मिथुन लग्न की है। इसमें लग्न व लग्नेश शुभ प्रभाव में हैं। पंचम भाव में राहु केतु का प्रभाव है लेकिन पंचमेश दो शुभ ग्रहों बुध व गुरु के साथ शुभ भाव (नवम) में स्थित है। बुध लग्नेश व गुरु स्वयं संतान का कारक है। पंचम भाव व पंचमेश दोनों का गुरु से संबंध होने के कारण जातका को संतान प्राप्ति की संभावना प्रबल। नवांश में लग्न कुंडली का पंचमेश शुक्र स्वराशि का है। नवांश का पंचमेश सूर्य पंचम में है व अष्टम में बैठे शनि से दृष्ट है जो थोड़ा विलंब दर्शाता है। सप्तमांश में पंचम भाव में तीन शुभ ग्रह हैं व पंचम भाव स्वयं अपने स्वामी से दृष्ट है। लेकिन सप्तमांश के लग्न व पंचम दोनों पर शनि मंगल के संयुक्त प्रभाव के कारण कुछ परेशानियां अवश्य है। प्रश्न पूछे जाने के वक्त जातका पर राहु/शुक्र/शुक्र की दशा प्रभावी थी जो संतान जन्म के संबंध में शुभ है। लग्न कुंडली में राहु पुत्रकारक होने के साथ ही एकादश भाव से पंचम पर दृष्टि डाल रहा है। शुक्र पंचमेश होकर नवम में स्थित है। सप्तमांश में राहु नवम भाव में व उसका राशीश बुध पंचम भाव में स्थित है। शुक्र सप्तमांश का लग्नेश है तथा पंचम भाव में स्थित है। यह दशा संतान उत्पत्ति हेतु उपयुक्त थी । गोचर: गोचर में शनि सिंह राशि से पंचम भाव व पंचमेश दोनों पर दृष्टि डाल रहा है। गुरु ने मई से जुलाई तक कुंभ में गोचर करके पंचम भाव व पंचमेश को प्रभावित किया। 22 जून को जातका के गर्भ की पुष्टि हुई। संतान जन्म के वक्त गुरु कुंभ में होंगे। गुरु के आशीर्वाद के फलस्वरूप एक नाउम्मीद मां को आशा की किरण दिखाई दी। व्यक्ति को जन्म समय जो ग्रहों का प्रभाव मिलता है या जिस प्रकार की दशाएं चलती हैं उन्हीं के अनुरूप उसका प्रश्न भी होता है। 

(3): इस कुंडली में चर लग्न, चर नवांश राहु व केतु पर अष्टमेश सूर्य व षष्ठेश बुध की दृष्टि है जो जातक के गंभीर रूप से पीड़ित होने की सूचक है। सप्तम भाव में सूर्य, बुध, केतु व राहु और अष्टम में शनि लंबी बीमारी दर्शा रहा है। शनि लग्नेश भी है। दशम भाव पर शनि की दृष्टि रोग का जल्द ठीक न होना दर्शा रही है। चंद्र अष्टम में बैठे शनि से इत्थशाल कर रहा है। पंचम पर शनि की दृष्टि है। ये सभी अशुभ प्रभाव बीमारी के असाध्य होने एवं लंबे चलने के सूचक हैं। कुछ दिनों बाद पता चला के उन्हें कैंसर है जो लीवर को खराब कर चुका है।


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कुंडली (4): कुंडली 4 में लग्न में षष्ठेश, सप्तमेश, अष्टमेश तथा द्वादशेश का स्थित होना बिमारी का सूचक है। दशानाथ शुक्र सप्तमेश द्वादशेश है और वक्री है। यह योग बीमारी से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता में कमी का सूचक है। राहु और केतु यहां भी लग्न स्थान में हैं जो लंबी बीमारी दर्शा रहे हैं और इलाज का व्यक्ति पर असर न होना भी बता रहे हैं। प्रत्यंतर्दशानाथ द्वादश में स्थित गुरु अस्पताल में खर्च का कारण बना। इस प्रकार प्रश्न कुंडली में जो प्रश्न है उसका संबंध जन्म कुंडली में भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है।

कुंडली (5): यह एक ऐसी विद्यार्थी की कुंडली है जिसने यह जानना चाहा कि क्या उसका नामांकन फैशन डिजाइनिंग के इन्स्टिट्यूट में होगा जो पूना में है। वह पढ़ाई के लिए बाहर जाना चाहती थी। इसकी प्रश्न कुंडली में द्विस्वभाव लग्न व द्विस्वभाव नवांश परंतु शीर्षोदय लग्न व शुभ दृष्ट है। केंद्र में शुभ उच्च के शुक्र के अलावा मंगल भी स्थित है। लग्न चंद्र के नक्षत्र में है। चंद्र पंचम में स्थित है जो शिक्षा का प्रश्न बता रहा है। चंद्र स्वयं अपने नक्षत्र में पंचम में है जो शुभ है। पंचमेश का द्वादश में जाना पढ़ाई का बाहर से संबंध दिखाता है। लग्न को द्वितीयेश व भाग्येश शुक्र उसी अंश से देख रहा है जो फैशन डिजाइनिंग आदि के विषय में बहुत ही शुभ है। नवांश में भी लग्न पर शुक्र का प्रभाव है। अतः यह पूरी उम्मीद जताई गई कि जातका नामांकन पाने में सफल रहेगी। परंतु द्विस्वभाव लग्न का होना तथा तृतीयेश, अष्टमेश मंगल का लग्न को प्रभावित करना अशुभ है। चंद्र भी राहु, केतु के अंश के करीब है व लग्नेश वक्री है व वक्री शनि से दृष्ट है। अतः अड़चन आती है। 18 मई 2009 को जातका का रिजल्ट आया और वह नामांकन पाने में सफल रही। लेकिन जिस दिन उसे पूना जाना था उससे अगले दिन किसी अन्य परीक्षा की दुविधा के कारण जातका ने अपना विचार बदला और इस कोर्स के लिए बाहर नहीं गई। नामांकन होने के बाद भी छोड़ देना यह अष्टमेश मंगल का प्रभाव था।

कुंडली (6): इस कुंडली का पंचमेश द्वादश में है जो परीक्षा का बाहर से संबंध दर्शाता है। प्रश्न के वक्त दशा बुध, शुक्र व राहु की थी। बुध द्वादशेश है व दशम में स्थित है। शुक्र योगकारक होने के साथ दशम में है। राहु सप्तम भाव में अष्टमेश व सप्तमेश शनि से युक्त होकर लग्न को प्रभावित कर रहा है। योगकारक शुक्र व द्वादशेश बुध की दशा ने जातका का बाहर के इन्स्टिट्यूट में नामांकन कराया, वहीं सप्तम में बैठे राहु ने उसे भ्रमित किया और उसने कोर्स में नामांकन नहीं लिया। गोचर - गोचर में राहु और केतु लग्न व सप्तम में ही गोचर कर रहे थे। गुरु अष्टम में निर्बल था व शनि लग्न को वक्री प्रभाव दे रहा था। अतः जातका ने भ्रमवश एक सुनहरा अवसर गंवा दिया।

कुंडली (7): इस कुंडली की जातका पेशे से शिक्षिका है। उसे एक लड़की भी है। जब वह दूसरी बार गर्भवती हुई तो बहुत खुश थी, लेकिन अचानक पिलिया की शिकार हो गई और गर्भस्थ बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर बहुत ही परेशान हुई। उस वक्त जातका की उस वक्त की प्रश्न कुंडली का विश्लेषण इस प्रकार है। पृष्ठोदय चर लग्न व चर नवांश, जो राहु व केतु के साथ है, अशुभ है। केंद्र में कोई शुभ प्रभाव नहीं है व चंद्र, जो लग्नेश भी है, स्वयं राहु केतु के साथ है। नवांश स्वामी शुक्र किसी और के नवांश में नवम भाव में जीव चिंता दर्शाता है। लग्नेश चंद्र का निकटतम इत्थशाल पंचमेश मंगल से है जो संतान संबंधित प्रश्न की पुष्टि करता है। लग्न शनि के नक्षत्र में है जो अष्टमेश व सप्तमेश होकर अशुभ है। लग्न पर राहु व केतु का निकटतम अंशों से प्रभाव है जो शुभ नहीं है और कोई न कोई पीड़ा दर्शाता हैं।

कुंडली (8): इस कुंडली में पंचमेश मंगल बुध के नक्षत्र में है। बुध 11वें घर में वक्री है व सूर्य से अस्त है। पंचम भाव पर सूर्य व केतु की दृष्टि है। प्रश्न पूछने के वक्त जन्म कुंडली में जातका पर बुध/बुध/शुक्र की दशा थी। बुध लग्न कुंडली के नवम में है व सप्तमांश में एकादश भाव में है। बुध लग्न कुंडली में अष्टमेश व एकादशेश होकर नवम में है व पंचमेश गुरु से द्वितीय भाव में स्थित है। बुध पंचम भाव से भी सप्तमेश है। नवांश में बुध राहु और केतु के अक्ष में है व सप्तमांश में द्वितीयेश व एकादशेश होकर एकादश भाव में है। यह सप्तमांश लग्नेश सूर्य से सप्तम में है अतः संतान के लिए ठीक नहीं है। शुक्र लग्न कुंडली का प्रबल मारक है और पंचम भाव से अष्टमेश होकर पंचम से छठे में स्थित है। नवांश में भी मारक है व सप्तमांश में राहु व केतु के अक्ष में है। अतः यह दशा गर्भस्थ शिशु के लिए घातक सिद्ध हुई। शुक्र लग्न कुंडली के पंचम से छठे भाव में पंचम से द्वादशेश शनि व द्वितीयेश मंगल के साथ स्थित है।

गोचर: गोचर में गुरु, जो लग्न कुंडली का पंचमेश है, शनि से दृष्ट है। मंगल, जो षष्ठेश है व रक्त से संबंधित है, पंचम भाव से द्वादशेश व सप्तमेश शुक्र के साथ स्थित है। महादशा व अंतर्दशानाथ बुध पर केतु व राहु का प्रभाव है और प्रत्यंतर दशानाथ शुक्र और शनि गोचर में पीड़ित हैं। यह योग भी संतान जन्म में शुभ संकेत नहीं देता। कुछ समय के बाद जातका का गर्भपात हो गया और उसे मानसिक पीड़ा उठानी पड़ी। जन्म कुंडली के शनि पर गोचर के शनि का दुष्ट प्रभाव भी इस घटना की पुष्टि करता है।


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