मुहूर्त विचार

मुहूर्त विचार  

व्यूस : 53606 | अकतूबर 2012
मुहूर्त विचार प्रश्न: प्रमुख मुहूर्तों जैसे विवाह, गृह प्रवेश, नींव पूजन, नामकरण संस्कार, व्यापार प्रारंभ, सेवाकरण, नवीन वाहन क्रय आदि से संबंधित नक्षत्र, तिथि, वार, मास आदि का चयन करने के लिये शास्त्रसम्मत निर्णय क्या है। धार्मिक संस्कारों व सामाजिक परंपराओं से जुड़े भारतीय अपने समस्त कार्य मुहूर्त निकलवा कर करते हैं। फलित ज्योतिष के अनुसार गणना कर के निकाला गया कालखंड ‘मुहूर्त’ कहलाता है। दिन व रात मिलाकर 24 घंटे के समय में, दिन में 15 व रात्रि में 15 मुहूर्त मिलाकर कुल 30 मुहूर्त होते हैं अर्थात् एक मुहूर्त 48 मिनट (2 घटी) का होता है। भारतीय जनमानस में शुभ व अशुभ दो प्रकार के मुहूर्त प्रचलित हैं। शुभ मुहूर्त चयन मंे कतिपय सावधानियां: मुहूर्त, वास्तव में एक मंगलमयी बेला है जो जातक के भाग्य को प्रभावित करती है। अतः मुहूर्त चयन में विशेष सावधानियां अपेक्षित हैं। मुहूर्त चयन में जातक की वर्तमान दशा-अंतर्दशा का भी ध्यान रखना चाहिए। चयनित मुहूर्त में इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि गोचरवश अंतर्दशा का स्वामी, महादशेश से षडाष्टक या द्वादश भावगत न हो। शुक्र ग्रह सांसारिक सुखो का कारक है। अतः समस्त कार्यों में शुक्र दोष पर अवश्य ध्यान देना चाहिए। अस्त शुक्र के समय में चिरस्थायी कार्य प्रारंभ नहीं करना चाहिए। मुहूर्त चयन में चर कार्यों हेतु चर लग्न व स्थिर कार्यों हेतु स्थिर लग्न को प्राथमिकता देनी चाहिए। 1, 4, 7, 10 लग्न, चर व 2, 5, 8, 11 लग्न, स्थिर लग्न होता है। शुभ तिथि के चयन में इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि उस समय चंद्रमा, जन्म राशि से 4, 6, 8, 12 भावगत न हो। मुहूर्त चयन में ‘भद्रा’ का भी विचार आवश्यक है। जो सभी पंचांगों में दिया रहता है। यदि चंद्रमा 1, 2, 3, 8 राशि में हो तो भद्रावास, स्वर्ग में, 6, 7, 8, 10 राशि में हो तो भद्रा का वास पाताल लोक में तथा 4, 5, 11, 12 राशि में हो तो भद्रा का वास मृत्यु लोक में होता है। भद्रा का वास जहां होता है, वहीं का फल प्राप्त होता है। द्रष्टव्य है कि ‘मृत्यु लोक’ की भद्रा अत्यन्त खराब होती है। इस काल में किए गए कार्य पूर्णतः निष्फल होते हैं। जन्म नक्षत्र, जन्म मास, जन्म तिथि, पिता की मृत्यु की तिथि, क्षय तिथि, क्षय मास, अधिक मास, 13 दिन का पक्ष तथा शुक्रास्त में शुभ कार्यों को नहीं करना चाहिए। नवीन कार्यों हेतु शुभ तिथियों के चयन में युग तिथियों व अमावस्या का बचाव करना चाहिए। युग तिथियां निम्नवत हैं- कार्तिक शुक्ल नवमी - सतयुग आरंभ की तिथि। वैशाख शुक्ल तृतीया - त्रेता युग आरंभ की तिथि। माघ कृष्ण अमावस्या - द्वापर युग आरंभ की तिथि। श्रावण शुक्ल त्रयोदशी - कलियुग आरंभ की तिथि। तिथियां 4 प्रकार की होती हैं- 1, 6, 11 तिथि को ‘नंदा’ 2, 7, 12 तिथि को ‘भद्रा’ 3, 8, 13 तिथि को ‘जया’ 4, 9, 14 तिथि को ‘रिक्ता’ और 5, 10, 15 तिथि को ‘पूर्णा’ तिथि कहते हैं। यदि नन्दा तिथियां (1, 6, 11) शुक्रवार को, भद्रा तिथियां (2, 7, 12) बुधवार को, जया तिथियां (3, 8, 13) मंगलवार को, रिक्ता तिथियां (4, 9, 14) शनिवार को तथा पूर्णा तिथियां (5, 10, 15) गुरुवार को पडे़ं, तो सिद्ध योग होता है। अतः शुभ तिथि के चयन में उपरोक्त तिथियों को प्राथमिकता देना कल्याणकारी होता है। ‘पुष्य नक्षत्र’ को नक्षत्रों का सम्राट कहा गया है जो कि शनि ग्रह का नक्षत्र है। यह नक्षत्र, केवल ‘विवाह’ को छोड़कर शेष अन्य कार्यों के लिए शुभ होता है। वार और नक्षत्र भी मिलकर ‘सिद्ध योग’ का निर्माण करते हैं। अतः शुभ मुहूर्त के चयन में निम्न योगों का सहारा लिया जा सकता है। ये योग निम्न हैं- रविवार को अश्वनी, तीनो उत्तरा, हस्त, मूल, पुष्य नक्षत्र, सोमवार को मृगशिरा, अनुराधा, रोहिणी, श्रवण और पुष्य नक्षत्र, मंगलवार को अश्वनी, आश्लेषा, कृत्तिका और उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र, बुधवार को कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, अनुराधा और हस्त, गुरुवार को अश्वनी, अनुराधा, पुनर्वसु, रेवती और पुष्य नक्षत्र, शुक्रवार को अश्वनी, अनुराधा, पुनर्वसु, श्रवण और रेवती नक्षत्र तथा शनिवार को रोहिणी, स्वाती और श्रवण नक्षत्र ‘सिद्धि योग’ विनिर्मित करते हैं जो कि समस्त कार्यों के लिए सफलतादायक है। इनमें रवि-पुष्य व गुरु-पुष्य योग सर्वाधिक लोकप्रिय योग हैं। जिस दिवस नक्षत्र व तिथि का योग 13 आए, उस काल खंड में मुहूर्त विचार से दूर ही रहना चाहिए। इसी प्रकार यदि कोई मुहूर्त पंचम नक्षत्रों में पड़ रहा है तो चंद्रमा का बल जरूर देख लेना चाहिए। कोई कार्य प्रारंभ करते समय ‘तारा’ का विचार जरूर करना चाहिए। इसकी विधि निम्नवत है- जन्म नक्षत्र से, जिस नक्षत्र में कार्य का आरंभ होना हो, वह नक्षत्र ले। जन्म नक्षत्र से अमुक नक्षत्र को गिन ले। जो संख्या आए, उसमें 9 से भाग दें। शेष के अनुसार फलकथन निम्न होगा। यदि- 1 शेष आए तो शारीरिक कष्ट। 2 शेष आए तो उन्नति। 3 शेष आए तो नुकसान 4 शेष आए तो विशेष उन्नति। 5 शेष आए तो बाधा। 6 शेष आए तो कार्य सिद्धि। 7 शेष आए तो अत्यंत अशुभ। 8 शेष आए तो मिलन तथा 9 शेष आए तो अत्यंत शुभ होता है। कुछ अबूझ तिथियां होती है जिनमें मुहूर्त विचार की आवश्यकता नहीं पड़ती। जैसे चैत्र शुक्ल प्रतिपदा - नव संवत् आरंभ या बासंतिक नवरात्रि का प्रथम दिन। आश्विन शुक्ल दशमी - दशहरा माघ शुक्ल पंचमी - बसंत पंचमी वैशाख शुक्ल तृतीया - अक्षय तृतीया कार्तिक शुक्ल एकादशी - प्रबोधनी एकादशी (देव उठावनी एकादशी) फाल्गुन शुक्ल द्वितीया- फलेरा दोज आषाढ़ शुक्ल नवमी - भड्डली नवमी मुहूर्त चयन में शुभ तिथियां प्राप्त हो जाने के बाद लग्न शुद्धि अवश्य कर लेनी चाहिए। सर्व सिद्धि प्रदायक ‘अभिजीत मुहूर्त’ ज्योतिष में ‘अभिजीत’ 28वां नक्षत्र माना जाता है। जिसके स्वामी ‘ब्रह्मा’ होते हैं। दिन व रात्रि में 15-15 मुहूर्त 2-2 घटी वाले पड़ते हैं। इन 15 मुहूर्तों के आदि के 7 मुहूर्तों के बाद 8वां मुहूर्त ‘अभिजीत मुहूर्त’ कहलाता है। जब शुभ लग्न या शुभ मुहूर्त बनता न दिखायी पड़ रहा हो तो अभिजीत मुहूर्त का सहारा लिया जा सकता है क्योंकि इस मुहूर्त में किए गए कार्य फलीभूत होते हैं। केवल बुधवार को छोड़ना पड़ेगा। मतांतर से इस मुहूर्त का कालखंड प्रातः 11ः36 से लेकर 12ः24 अपराह्न तक होता है तथा राहु काल भी बुधवार के दिन इसी दौरान पड़ जाता है। अतः बुधवार के दिन अभिजीत मुहूर्त से दूर रहना चाहिए। ज्योतिष जगत के शुभ मुहूर्त 1. विवाह मुहूर्त: - शुभ मास: वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, मार्गशीर्ष, माघ और फाल्गुन अर्थात देव शयन काल यथा श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक मास विवाह हेतु वर्जित मास हैं। शुभ वार: सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार शुभ लग्न: 2, 3, 6, 7, 9 लग्न शुभ हैं। तिथियां: 4, 9, 14 व पूर्णिमा के अतिरिक्त अन्य सभी तिथियां शुभ हैं जिसमें कृष्ण पक्ष की पंचमी व दशमी तथा शुक्ल पक्ष की सप्तमी व त्रयोदशी अति उत्तम है। शुभ नक्षत्र: रोहिणी, मृगशिरा, मघा, स्वाती, अनुराधा, मूल, तीनो उत्तरा और रेवती। इसके अतिरिक्त विवाह मुहूर्त हेतु शास्त्रसम्मत निर्णय इस प्रकार हैं। विवाह मुहूर्त की कुंडली में सप्तम भावगत कोई ग्रह नहीं होना चाहिए। विवाह मुहूर्त की कुंडली में शुक्र, षष्टम् भावगत नहीं होना चाहिए। विवाह मुहूर्त की कुंडली में चंद्रमा 6, 8, 12 भावगत नहीं होना चाहिए। विवाह मुहूर्त की कुंडली में मंगल, कदापि अष्टम् भावगत नहीं होना चाहिए। ज्येष्ठ संतान का विवाह ज्येष्ठमाह में करना ठीक नहीं होता है। विवाह के समय गुरु या शुक्र अस्त नहीं होने चाहिए। विवाह मुहूर्त की तिथि चयन में वर/कन्या की जन्म तिथि का चयन नहीं करना चाहिए। विवाह के लिए वक्री गुरु का 28 दिन का समय अशुभ रहता है। इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए। अमावस्या की तिथि, विवाह हेतु पूर्णतः वर्जित है। जन्म राशि व जन्म नक्षत्र का मुहूर्त कन्या के विवाह के लिये उत्तम रहता है। कन्या के विवाह मुहूर्त चयन में इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि गुरु का गोचर, कन्या की जन्म राशि से 4, 8, 12 भावगत न हो। गोचर में जब सूर्य 1, 2, 3, 8, 10, 11 राशियों में भ्रमण कर रहा हो तो विवाह उत्तम रहता है। भद्रा के वास का विचार अत्यंत आवश्यक है। वस्तुतः भद्रा काल में विवाह वर्जित है। गोचर में चंद्रमा यदि शनि के साथ है तो शनि की शांति कराना आवश्यक हो जाता है। साथ ही ‘पुष्य’ नक्षत्र भी विवाह हेतु उत्तम नहीं होता क्योंकि यह शनि का नक्षत्र है। नोट: यदि किसी भी प्रकार विवाह मुहूर्त का चयन नहीं हो पा रहा हो तो ‘अभिजीत मुहूर्त में विवाह किया जा सकता है। 2. यात्रा मुहूर्त: यात्रा मुहूर्त के संदर्भ में शास्त्रसम्मत निर्णय इस प्रकार हैं। उत्तम नक्षत्र: अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, अनुराधा, श्रवण, धनिष्ठा और रेवती। उत्तम तिथियां: रिक्ता तिथियां (4, 9, 12) छोड़कर अन्य सभी तिथियां। नक्षत्र व तिथि विचार के अतिरिक्त निम्न बातेां का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए। 1. गोचर में जब वार का स्वामी वक्री हो तो उस दिन यात्रा कदापि नहीं करनी चाहिए। 2. यात्रा समय शुक्र का विचार अवश्य करना चाहिए। शुक्र का पीछे या बायें भाग में रहना शुभ व दाहिने तथा सम्मुख रहना अशुभ होता है जिसका निर्णय शुक्र के उदय से किया जा सकता है। जैसे शुक्र जब पूर्व में उदय होते हैं तो शुक्र, पूर्व व उत्तर दिशा की यात्रा में क्रमशः सम्मुख व दाहिने होंगे। इसी प्रकार यदि पश्चिम और दक्षिण दिशा की यात्रा में शुक्र पीछे और बायें होगें। 3. यात्रा मुहूर्त में दिकशूल का भी विचार आवश्यक है जैसे - शनिवार, सोमवार और ज्येष्ठा नक्षत्र पूर्व दिशा की यात्रा के लिए वर्जित है। रविवार, शुक्रवार और रोहिणी नक्षत्र, पश्चिम दिशा की यात्रा के लिए वर्जित है। मंगलवार, बुधवार और उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र, उत्तर दिशा की यात्रा के लिए वर्जित है। गुरुवार व पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र, दक्षिण दिशा की यात्रा के लिए वर्जित है। 4. तिथि शूल का भी यात्रा मुहूर्त में विचार करना चाहिए - यथा कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को पूर्व की, पंचमी व त्रयोदशी को दक्षिण दिशा की, षष्ठी व चतुर्दशी को पश्चिम दिशा की तथा द्वितीया व दशमी को उत्तर दिशा की यात्रा करना निषेध माना गया है। 5. यदि यात्रा हेतु स्थान छोड़ने में किसी कारणवश विलंब हो रहा हो तो अभिजीत मुहूर्त में यात्रा की जा सकती है। 6. यात्रा के संबंध में पंचांग में दिए ‘चैघड़िया’ मुहूर्त का भी सहारा लिया जा सकता है। 3. देव प्रतिष्ठा मुहूर्त शुभ मास - चैत्र, फाल्गुन, वैशाख, माघ, ज्येष्ठ शुभ दिवस - सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार। शुभ तिथि - जिस देव की जो तिथि हो, उस तिथि में परंतु तिथियां शुक्ल पक्ष की हों तो उत्तम। विशेष: यदि शिव जी की प्रतिष्ठा करनी हो तो श्रावण मास, विष्णु जी के लिए मार्गशीर्ष तथा देवी के लिए आश्विन मास उत्तम रहता है। 4. गृह निर्माण या शिलान्यास मुहूर्त: नींव की खुदाई, शिलान्यास, गृह निर्माण आदि में शुभ मुहूर्त हेतु लग्न, वार, नक्षत्रादि इस प्रकार हैं। शुभ लग्न: स्थिर लग्न अर्थात् 2, 5, 8, 11 लग्न। शुभ मास - वैशाख, श्रावण, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ फाल्गुन। शुभ वार - सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार, शनिवार। शुभ तिथि: किसी भी पक्ष की 2, 3, 5, 6, 7, 10, 11, 12, 13 व पूर्णिमा तिथि। शुभ नक्षत्र: पुष्य, रोहिणी, मृगशिरा, तीनों उत्तरा, हस्त चित्रा, स्वाती, अनुराधा, धनिष्ठा, शतभिषा रेवती। इ स क े अ ित िर क् त ग ृ ह निर्माण/शिलान्यास आदि में निम्न बातों का भी ध्यान रखना चाहिए। 1. मंगलवार व रविवार के दिन निर्माण कार्य कदापि प्रारंभ नहीं करना चाहिए। 2. निर्माण कार्य प्रारंभ करने के पूर्व ‘भद्रा’ का विचार भी अपेक्षित है। 3. जब गुरु या शुक्र अस्त हो तो निर्माण कार्य कदापि प्रारंभ नहीं करना चाहिए। इसी प्रकार अधिक मास, तिथि क्षय, संक्रांति काल, ग्रहण के दिन भी निर्माण कार्य प्रारंभ नहीं करना चाहिए। 4. सूर्य नक्षत्र से चंद्र नक्षत्र गिनने पर यदि संख्या 5, 7, 9, 12, 19, 26 आए तो निर्माण कार्य से बचना चाहिए। 5. भूशयन का भी विचार अपेक्षित है। बिंदु 4 में उल्लेखित गणना भूशयन की ही विधि है। 5. चूड़ाकर्म (मुंडन) मुहूर्त चूड़ाकर्म के लिए निम्न मुहूर्त प्रचलित है। शुभ वर्ष - जन्म से तीसरा या पांचवा विषम वर्ष। शुभ वार - सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार शुभ नक्षत्र - पुष्य, मृगशिरा, चित्रा, रेवती, स्वाती, पुनर्वसु श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, हस्त, अश्विनी नक्षत्र। शुभ लग्न: 2, 7, 9, 10 लग्न। इसके अतिरिक्त चूड़ाकर्म मुहूर्त परिलक्षित करने के लिए निम्न बातों का भी ध्यान रखना चाहिए। 1. अष्टमी, द्वादशी, प्रतिपदा, षष्ठी, अमावस्या व रिक्ता तिथियों को छोड़कर अन्य समस्त तिथियां चूड़ाकर्म के लिए उत्तम है। 2. मुंडन मुहूर्त की कुंडली का लग्न, जन्म लग्न से या जन्म राशि से अष्टम नहीं होना चाहिए। 3. मुंडन मुहूर्त की कुंडली में लग्नस्थ गुरु उत्तम माना जाता है। 4. मुंडन मुहूर्त की कुंडली में अष्टम भावगत कोई ग्रह न हो तो उत्तम मुहूर्त बनता है। 5. भद्रा का भी विचार अत्यंत आवश्यक है। 6. विद्यारंभ मुहूर्त विद्यारंभ मुहूर्त निम्नवत् है। शुभ दिन - सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार शुभ तिथि - प्रत्येक पक्ष की 2, 3, 5, 7, 10, 11, 12, 13 व पूर्णिमा शुभ नक्षत्र - मृगशिरा, आद्र्रा, पुनर्वसु, हस्त, स्वाती, विशाखा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, मूल, तीनों पूर्वा, आश्लेषा, पुष्य। इसके अतिरिक्त यदि विद्यारंभ मुहूर्त की कुंडली बना दी जाये तथा उस कुंडली में त्रिकोण में शुभ ग्रह पडे हों तो अत्यंत शुभदायी मुहूर्त होता है। 7. उपनयन (यज्ञोपवीत) मुहूर्त: शास्त्रों में प्रमाण है कि ब्राह्मण का यज्ञोपवीत संस्कार पांचवे वर्ष में, क्षत्रिय का छठे या ग्याहरवें वर्ष में और वैश्य का आठवे या बारहवें वर्ष में होता है। परंतु वर्तमान समय में यज्ञोपवीत प्रायः शादी के ठीक पहले होता है। जो कि अत्यंत निंदनीय है। यज्ञोपवीत हेतु शुभ मुहूर्त निम्न है। शुभ वार: गुरुवार, रविवार, सोमवार, बुधवार, शुक्रवार। शुभ नक्षत्र: आश्लेषा, मूल, तीनो पूर्वा, आद्र्रा शुभ तिथि - 2, 3, 5, 10, 11 व 12 तिथियां। इसके अतिरिक्त उपनयन मुहूर्त खोजते समय निम्न बातों का भी ध्यान रखना अपेक्षित है जिनकी शास्त्र-सम्मत मान्यता है। 1. यज्ञोपवीत संस्कार मध्यान्ह के पूर्व होना चाहिए। 2. मुहूर्त कुंडली में 6, 8, 12 भावगत कोई ग्रह नहीं होना चाहिए। 3. मुहूर्त कुंडली मंे लग्न में गुरु का होना अत्यंत शुभ कहा गया है। यह अत्यंत अच्छा योग है। 8. नामकरण मुहूर्त: शुभ वार - सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार शुभ तिथि - दोनों पक्षों की 2, 3, 7, 10, 11, 12 तिथियां, कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा व शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी उत्तम तिथि है। शुभ नक्षत्र: अश्विनी, रोहिणी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, तीनों उत्तरा, हस्त, चित्रा, स्वाती, अनुराधा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, रेवती नक्षत्र। नोट: वैसे तो बच्चे का नामकरण जन्म से 10, 11 या 12वें दिन करना चाहिए। यदि संभव न हो सके तो उपरोक्त प्रकार से वार, तिथि, नक्षत्र का चुनाव कर, नक्षत्र चरणानुसार नामकरण करना चाहिए। नामकरण के पश्चात हवन जरूर करना चाहिए। नामकरण में भद्राकाल, राहुकाल ग्रहणकाल, संक्रांति तिथि का चयन कदापि नहीं करना चाहिए। हस्त, स्वाति, अनुराधा, रेवती। विशेष: प्रसूतिका स्नान एक सप्ताह पर्यन्त करने का विधान है। परंतु यह कार्य षष्ठी पूजन से 5वें दिन भी किया जा सकता है। परंतु तिथि, वार, नक्षत्रादि का विचार आवश्यक है। पूर्णिमा को भी प्रसूतिका स्नान हो सकता है। रिक्ता तिथियां किसी भी दशा में उचित नहीं है। 9. अन्नप्राशन मुहर्त: शुभ मास: लड़के का छठे महीने से सम महीने अर्थात 6, 8, 10, 12 आदि तथा लड़की का पांचवे महीने से विषम मास जैसे 5, 7, 9 आदि। शुभ दिन: रविवार, मंगलवार, शनिवार को छोड़कर अन्य वार। शुभ तिथियां: नन्दा तिथि (1, 6, 11), रिक्ता तिथि (4, 9, 14) अष्टमी, अमावस्या, द्वादशी को छोड़कर अन्य सभी तिथियां। शुभ नक्षत्र: अनुराधा, शतभिषा, स्वाती और जन्म नक्षत्र को छोड़कर अन्य सभी नक्षत्र। 10. कर्ण वेध मुहूर्त: शुभ वर्ष - जन्म से विषम वर्ष शुभ मास - जन्म से 6, 7 व 8 वां महीना। शुभ दिन - सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार शुभ तिथियां - रिक्ता तिथियों को छोड़कर सभी। शुभ नक्षत्र: श्रवण, धनिष्ठा, पुनर्वसु, मृगशिरा चित्रा, अनुराधा, रेवती, अश्विनी पुष्य, हस्त व अभिजीत मुहूर्त। विशेष: हरिशयन दिवसों में कर्णवेध कराना उचित नहीं रहता। 11. नूतन गृह प्रवेश का मुहर्त: शुभ लग्न - स्थिर लग्न शुभ मास - वैशाख, ज्येष्ठ, मार्गशीर्ष, माघ, फाल्गुन शुभ तिथि - पूर्णिमा और 2, 3, 5, 7, 10, 11, 13 तिथियां। शुभ नक्षत्र: अश्विनी, पुष्य, हस्त, मृगशिरा, तीनों उत्तरा, चित्रा, स्वाती, अनुराधा, रेवती, धनिष्ठा, रोहिणी। इसके अतिरिक्त शास्त्रसम्मत कुछ निर्णय निम्न हैं। नूतन गृह प्रवेश के समय सूर्य 3, 9, 12 राशि में नहीं होना चाहिए। साथ ही गृह प्रवेश के समय सूर्य, चंद्र, गुरु, शुक्र नीच के नहीं होने चाहिए। गृह प्रवेश मुहूर्त की कुंडली में चतुर्थ व अष्टम भावगत कोई ग्रह नहीं होना चाहिए। गुरु, शुक्र के अस्तादि दोष रहित उत्तरायण सूर्य में ग्रह प्रवेश अति उत्तम रहता है। रोहिणी, मृगशिरा नक्षत्र में पूर्व दिशा के द्वार वाले घर, उत्तराफाल्गुनी, चित्रा नक्षत्र में दक्षिण दिशा के द्वार वाला घर, अनुराधा व उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में पश्चिम दिशा के द्वार वाला घर तथा उत्तराभाद्रपद व रेवती नक्षत्र में उत्तर द्वार वाले गृह में गृह प्रवेश अति उत्तम कहा गया है। 12. प्रसूतिका स्नान मुहूर्त: शुभ वार - रविवार, मंगलवार, गुरुवार शुभ लग्न - 2, 3, 4, 6, 7, 9, 12 लग्न। शुभ तिथियां - कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा, दोनों पक्षों की 2, 3, 5, 7, 10, 11 व 13 तिथियां। शुभ नक्षत्र: अश्विनी, रोहिणी, मृगशिरा, तीनों उत्तरा। 13. किसी वाहन का क्रय/विक्रय का मुहूर्त: शुभ लग्न - चर लग्न (1, 4, 7, 10) शुभ वार खरीदने के लिए - बुधवार, रविवार। बेचने के लिए- सोमवार, गुरुवार। शुभ तिथि: कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा, दोनों पक्षों की 2, 3, 6, 7, 10, 11, 12, 13 व पूर्णिमा तिथियां। शुभ नक्षत्र: खरीदने के लिए- चित्रा स्वाती, रेवती, श्रवण, शतभिषा, अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, तीनो उत्तरा। बेचने के लिए - तीनो पूर्वा, भरणी, कृत्तिका आश्लेषा व विशाखा नक्षत्र। 14. नया व्यापार/दुकान आरंभ करना शुभ वार - बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार, शनिवार। शुभ तिथियां - रिक्ता एवं क्षय तिथियों को छोड़कर अन्य सभी तिथियां। शुभ नक्षत्र: तीनों उत्तरा, चित्रा, हस्त एवं पुष्य। इसके अतिरिक्त नया व्यापार/दुकान आरंभ करने के मुहूर्त चयन में निम्न बातों का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए। 1. व्यापार मालिक की जन्म राशि से चंद्रमा गोचर वश 6, 8, 12 भावगत नहीं होना चाहिए। 2. व्यापार-दुकान, मंगलवार को कदापि आरंभ नहीं करना चाहिए। 3. इस मुहुर्त के लिए, गुरु या शुक्र जिस मास में अस्त हो उन्हें छोड़कर शेष मासो का चयन कर सकते हैं। 4. मुहूर्त काल की कुंडली में लग्नस्थ चंद्रमा या शुक्र का रहना अत्यंत फलदायी होता है। 15. शासकीय नौकरी/प्राइवेट नौकरी में ज्वायन करने का मुहूर्त ः- शुभवार - सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार। शुभ तिथि: रिक्ता तिथियों (4, 9, 14) को छोड़कर अन्य सभी तिथियां। शुभ नक्षत्र: हस्त, अश्वनी, पुष्य, मृगशिरा, रेवती चित्रा व अनुराधा। नोट: इस मुहूर्त के चयन में इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि जातक की जन्मराशि से चंद्रमा 6, 8, 12 भावगत न हो। अभिजीत मुहूर्त का भी सहारा लिया जा सकता है। 16. चुनाव संबंधी (नामांकन/शपथ ग्रहण) मुहूर्त: शुभवार - सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार शुभ तिथि: कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा, दोनों पक्षों की 2, 3, 5, 9, 10, 12 व पूर्णिमा तिथि। शुभ लग्न: स्थिर लग्न (1, 4, 7, 10 लग्नें) शुभ नक्षत्र: अश्विनी, रोहिणी, पुनर्वसु, पुष्य, तीनो उत्तरा, हस्त, अनुराधा, श्रवण, धनिष्ठा एवं रेवती। इस प्रकार उपरोक्त तथ्यों का ध्यान रखते हुए शास्त्र सम्मत निर्णय के आधार पर शुभ मुहूर्त का चयन कर अपने भाग्य को प्रशस्त किया जा सकता है।



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