चुंबक चिकित्सा से रोगों का निदान

चुंबक चिकित्सा से रोगों का निदान  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 5011 | फ़रवरी 2012

चुंबक चिकित्सा से रोगों का निदान डाॅ. आर. एस. बंसल केवल पृथ्वी ही नहीं, बल्कि मानव शरीर और प्रत्येक कण एक चुम्बक है। यही कारण है कि सभी जीवों के स्वास्थ्य और उनकी जीवन-शक्ति का संबंध पृथ्वी के साथ है। हम सभी जानते हैं कि यदि हम नंगे पांव घास पर चलें तो थकावट और विषाद दूर हो जाते हैं और कुछ ही समय बाद हम भले-चंगे और प्रसन्नचित्त हो जाते हैं।

इसका कारण यह है कि पृथ्वी की चुम्बक शक्ति हमारे शरीर में प्रविष्ट हो जाती है। चुंबक के प्रभाव की प्रक्रिया हमारा शरीर छोटी-छोटी कोशिकाओं से मिलकर बना है जो अपने-आप में नन्हे-मुन्ने चुम्बक हैं। शरीर के सभी अंगों का निर्माण इन्हीं चुम्बकीय कोशिकाओं से हुआ है और प्रत्येक अंग अपना चुम्बकीय क्षेत्र स्वयं बनाता है।

विभिन्न अंगों के ये चुम्बकीय क्षेत्र सदा एक-जैसे नहीं रहते बल्कि उनमें लगातार परिवर्तन होता रहता है। यह उतार-चढ़ाव इस बात पर निर्भर करता है कि शरीर कितना सक्रिय है, उसे आराम मिलता है या नहीं, उस पर बाहरी प्रभाव कौन-कौन से पड़ते हैं और उसे भोजन से कितने पौष्टिक तत्व प्राप्त होते हैं। स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि अलग-अलग चुम्बकीय क्षेत्रों और विभिन्न अंगों के चुम्बकीय क्षेत्रों के बीच संतुलन बना रहे। उदाहरण के लिए यदि मस्तिष्क के चुम्बकीय संतुलन में किसी गहरे आघात के कारण, जैसे मद्यपान के कारण, गड़बड़ हो जाए तो सारा शरीर निष्क्रिय हो जाता है। हाथ-पांव पर चोट आने से ऐसी निष्क्रियता नहीं आती।

इस प्रकार का संतुलन शरीर की सारी क्रियाओं में रहना अनिवार्य है। चुम्बक से चिकित्सा दो प्रकार से की जाती है- अंग विशेष का उपचार और सामान्य उपचार।

अंग-विशेष का उपचार उपचार की इस विधि में चुम्बक का ध्रुव रोगग्रस्त अंग पर लगाया जाता है। चुम्बक चमड़ी के साथ या कपड़े के ऊपर से लगा दिया जाता है और उस पर कोई दबाव नहीं डाला जाता। यदि यह तय हो कि रोग कीटाणुओं के कारण हैं तो उत्तरी ध्रुव लगाना चाहिए अन्यथा दक्षिणी ध्रुव। यदि रोगग्रस्त अंग पर हाथ लगाने से भी पीड़ा होती हो या सूजन अथवा घाव हो या कोई फोड़ा-फुंसी हो, तो चुम्बक उसके पास ही, जहां पर पीड़ा का अनुभव न होता हो, लगा दिया जाता है। यदि यह आवश्यक पाया जाए कि दोनों ध्रुवों का प्रयोग करना चाहिए तो दोनों ध्रुव थोड़े-थोड़े फासले पर रोगग्रस्त अंग पर रख दिए जाते हैं।

दूसरा तरीका यह है कि चुम्बक का एक भाग रोगग्रस्त अंग पर और दूसरा उसी अंग की ओर की हथेली या तलवे से लगा दिया जाए। सामान्य उपचार यह उपचार उस दशा में आवश्यक है जब रोग किसी एक अंग तक ही सीमित न हो बल्कि इतना फैल गया हो कि सारे शरीर या अधिकतर अंगों पर उसका प्रकोप हो। ऐसी दशा में चुम्बक के दोनों ध्रुव हथेलियों या तलवों के साथ लगा दिए जाते हैं।

इस प्रयोजन के लिए दो चुम्बकों की आवश्यकता पड़ती है। कारण यह है कि हथेलियों और तलवों का मस्तिष्क और हृदय से संबंध होता है और स्नायुओं और रक्तवाहिनी नाड़ियों के माध्यम से शरीर के अन्य अंगों से भी। वास्तव में तलवों और हथेलियों में स्नायु पुंज होते हैं और वहां तक पहुंचने वाली नाड़ियां सारे शरीर में फैली होती हैं। उनके माध्यम से चु. म्बक का प्रभाव शरीर के कोने-कोने तक पहुंच जाता है।

यही कारण है कि चुम्बक लगाने के लिए हथेलियां और तलवे शरीर के सबसे उपयुक्त अंग हैं। प्रश्न यह है कि चुम्बक हथेलियों से कब लगाए जाएं और तलवों से कब? और फिर यह भी देखना है कि किस हथेली या तलवे पर चुम्बक का कौन सा ध्रुव लगाना चाहिए। यदि रोग शरीर के ऊपरी भाग में हो तो चुम्बक हथेलियों के नीचे रख दिए जाते हैं और यदि निचले भाग में हो तो तलवों पर चुम्बक का प्रभाव डाला जाता है।

यदि सारे शरीर में या उसके अधिकतर भागों में रोग व्याप्त हो तो चुम्बक एक दिन हथेलियों के नीचे रखे जाते हैं और अगले दिन तलवों के नीचे।यदि दिन में दो बार चुम्बक लगाना आवश्यक हो तो सवेरे हथेलियों के नीचे और शाम को तलवों के नीचे लगाने चाहिए। यदि रोग बहुत बढ़ गया हो तो चुम्बक पहले हथेलियों के नीचे लगाए जाएं और उसके बाद तलवों के नीचे। रोगों की चिकित्सा चुम्बक चिकित्सा शरीर की विभिन्न व्यवस्थाओं अर्थात रक्त-संचार, स्नायु-व्यवस्था, पाचन-क्रिया, श्वास-व्यवस्था और मल-मूत्र तथा प्रजनन-व्यवस्था को नियमित करके रोगों का उपचार करती है।

जब ये सारी व्यवस्थाएं नियमित रूप से चल रही हों तो मनुष्य को कोई भी आंतरिक रोग नहीं होता और वह स्वस्थ रहता है। प्रत्येक रोग या विकार उपर्युक्त व्यवस्थाओं से संबंधित है और चूंकि चुम्बक-चिकित्सा इन विकारों को दूर कर सकती है, इसलिए वह लगभग सभी रोगों के इलाज में सफल होती है। कमर का दर्द अक्सर लोग कमर के किसी न किसी भाग में दर्द होने की शिकायत करते हैं।

इसके कई कारण हो सकते हैं, जैसे कि गलत ढंग से बैठना, अचानक कोई झटका लग जाना, या कठोर परिश्रम। आराम करने से या सेंकने से पीड़ा कम होती है लेकिन नीचे झुकने आदि से बढ़ जाती है। कमर में पीड़ा गठिया या वात के कारण हो सकती है, स्पोंडिलाइटिस के कारण या रीढ़ की हड्डी के किसी टुकड़े के अपने स्थान से हिल जाने के कारण। चिकित्सा यदि कमर के ऊपरी या निचले भाग में पीड़ा हो तो ऊपरी भाग में चुम्बक का उत्तरी ध्रुव और निचले भाग में दक्षिणी ध्रुव लगाना चाहिए। यदि दायीं या बायीं ओर पीड़ा हो तो दायीं ओर उत्तरी ध्रुव और बायीं तरफ दक्षिणी ध्रुव लगाना चाहिए।

ऐसा पानी भी पिलाना चाहिए जो चुम्बक के दोनों ध्रुवों से तैयार किया गया हो। रक्त चाप रक्त चाप सामान्यतया 60-90 से लेकर 100-140 तक होता है। इससे अधिक बढ़ जाए तो उसे उच्च और कम हो तो उसे निम्न रक्त चाप कहते हैं। रक्त चाप बढ़ने का कारण चर्बी में वृद्धि, कठोर परिश्रम, अनिद्रा, मानसिक तनाव या मोटापा हो सकता है। चिकित्सा यदि रक्त चाप बढ़ा हुआ हो तो ऊंची शक्ति के चुम्बक पर दोनों हथेलियां पांच-छः मिनट तक रखी जाएं या मध्यम शक्ति के चुम्बकों पर दस मिनट तक।

अच्छा यही रहेगा कि यह इलाज सबेरे किया जाए। यदि रक्त चाप कम हो तो यही इलाज ऊंची शक्ति के चुम्बकों की सहायता से पंद्रह बीस मिनट तक और मध्यम शक्ति के चुम्बकों से आधे घंटे तक किया जाए। बढे़ हुए रक्त चाप के लिए चुम्बकों से बने बाजूबंद मिलते हैं जिन्हें दायीं कलाई पर बांधा जाता है। उसी बाजूबंद को बायीं कलाई पर बांधा जाए तो निम्न रक्त चाप में लाभ होता है।

ये बाजूबंद एक या दो घंटे तक बंधे रहने चाहिए। चुम्बक के दोनों धु्रवों से तैयार किया गया पानी पीने से भी रक्त चाप सामान्य हो जाता है। पेट की पीड़ा कई बार पेट में वायु के कारण या अंतड़ियों की मांसपेशियों में ऐंठन के कारण घोर पीड़ा होने लगती है। दबाव डालने से, मल के निकास से या वायु के निकास से रोगी को आराम मिलता है। चिकित्सा रोगी को प्रातः और संध्या समय दस मिनट तक अपनी दोनों हथेलियां ऊंची शक्ति के चुम्बकों पर रखनी चाहिए।

उसके बाद अर्ध-चंद्राकार, चीनी मिट्टी के बने चुम्बक दोनों नासिकाओं से लगाने चाहिए। रोगी को ठंडी चीजें खानी या पीनी नहीं चाहिए और हो सके तो नहाने से भी परहेज करना चाहिए। उसे चुम्बक के दक्षिणी ध्रुव से तैयार किया गया पानी भी पीना चाहिए। आंखों की सूजन आंखों में कई बार सूजन हो जाती है और उनसे मवाद निकलता है।

इसके कई कारण हो सकते हैं। आंखें लाल हो जाती हैं और सूजन के कारण पीड़ा भी होती है। चिकित्सा अर्ध-चंद्राकार, चीनी मिट्टी के बने चुम्बक दोनों आंखों से लगाने चाहिए, चाहे एक ही आंख में सूजन हो या एक में अधिक और दूसरी में कम। ये चुम्बक कई बार आठ से दस मिनट तक लगाने चाहिए। आंखों को चुम्बक के उत्तरी ध्रुव से तैयार किए गए पानी से धोना चाहिए और वही पानी पीना भी चाहिए।

घट्टा कई बार तलवों या पैर के ऊपर घट्टे बन जाते हैं जो कांटों के समान चुभते हैं। उनमें बड़ी पीड़ा होती है और रोगी को चलने में कष्ट का अनुभव होता है। चिकित्सा ऊंची या मध्यम शक्ति के चुम्बक तलवों के नीचे दिन में दो बार लगाने चाहिए। चुम्बक के उत्तरी ध्रुव से तैयार किया गया पानी पिया भी जाए और उससे घट्टों को धोया भी जाए। मधुमेह मधुमेह दो प्रकार का होता है। एक में मूत्र में शक्कर आती है और दूसरे में केवल बहुमूत्रता होती है।

पहले प्रकार के मधुमेह में बार-बार मूत्र त्याग करने की इच्छा होती है, रोगी को प्यास लगती है और वह बहुत पानी पीता है और उसके मूत्र और खून, दोनों में शक्कर की मात्रा बढ़ जाती है। दूसरे प्रकार के मधुमेह में मूत्र तो बहुत आता है लेकिन उसमें शक्कर नहीं होती। जब हम मधुमेह की बात करते हैं तो हमारा अभिप्राय मुख्य रूप से पहले प्रकार के मधुमेह से होता है।

मधुमेह का कारण यह है कि पैन्क्रियाज नाम की ग्रंथि ठीक से काम नहीं करती। यह रोग कई मामलों में वंशानुगत होता है। चिकित्सा रोगी को सवेरे दस मिनट तक अपनी हथेलियां ऊंची शक्ति के चुम्बकों पर रखनी चाहिए। यदि रोग बढ़ा हुआ हो या पुराना हो तो ऊंची शक्ति के चुम्बक का उत्तरी ध्रुव पैन्क्रियाज ग्रंथि पर लगा दिया जाए और दक्षिणी ध्रुव पीठ के पीछे। उसके साथ ही दक्षिणी ध्रुव से तैयार किया गया पानी दिन में तीन-चार बार पीने को देना चाहिए क्योंकि उससे पाचन-क्रिया सुधर जाती है और रोगी को शक्ति मिलती है।

इस बीमारी में खान-पान का बड़ा महत्व है। रोगी को कोई भी मीठी चीज और आम, केला, अंगूर जैसे मीठे फल भी नहीं खाने चाहिए। खट्टे और कड़वे पदार्थ रोगी के लिए गुणकारी होते हैं।



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