कालसर्प दोष निवारण के उपाय

कालसर्प दोष निवारण के उपाय  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 5892 | मार्च 2006

काल सर्प दोष निवारण के उपाय जब कोई दोष होता है तो उसका निवारण भी होता है। उचित जानकारी न होने के कारण काल सर्प योग से अक्सर लोग परेशान रहते हैं, यहां काल सर्प योग दोष का असर कम करने के लिए कई सुगम उपाय दिए जा रहे हैं जिन्हें आप स्वयं कर सकते हैं ...

काल सर्प दोष निवारण के अनेक उपाय हैं। इस योग की शांति विधि विधान के साथ योग्य, विद्वान एवं अनुभवी ज्योतिषी, कुल गुरु या पुरोहित के परामर्श के अनुसार किसी कर्मकांडी ब्राह्मण से यथा योग्य समयानुसार करा लेने से दोष का निवारण हो जाता है। इस दुर्योग से पीड़ित जातक को काल सर्प यंत्र की स्थापना कर इसका लाॅकेट या अंगूठी पहननी रुद्राक्ष माला से महामृत्युंजय मंत्र का नित्य 108 बार जप करना चाहिए। साथ ही दशांश हवन भी करना चाहिए।

महाशिवरात्रि, नाग पंचमी, ग्रहण आदि के दिन शिवालय में नाग नागिन का चांदी या तांबे का जोड़ा अर्पित करें। सर्प पकड़े हुए मोर या गरुड़ का चित्र अपने पूजा घर में लगाकर दर्शन करते हुए नव नाग स्तोत्र का जप करें।

स्तोत्र:

अनंत वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कंबल।

शंखपालं धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।

एतानि नवनामानि नागानां च महात्मानां

सायंकालेपठेन्नित्यं प्रातः काले विशेषतः।।

राहु-केतु के बीज मंत्र का 21-21 हजार की संख्या में जप कराएं, हवन कराएं, कंबल दान कराएं व विप्र पूजा करें। चांदी का छर्रा, जो पोला न हो अर्थात ठोस हो, कपूर की डली के साथ पास में रखने से दिन भर सर्प भय नहीं रहता। भगवान गणेश केतु की पीड़ा शांत करते हैं और देवी सरस्वती पूजन अर्चन करने वालांे की राहु से रक्षा करती हैं।

भैरवाष्टक का नित्य पाठ करने से काल सर्प दोष से पीड़ित लोगों को शांति मिलती है। महाकाल शिव के समक्ष घृत दीप जलाकर सर्प सूक्त का नित्य पाठ करना चाहिए। नित्य ऊन के आसन पर बैठकर रुद्राक्ष की माला से नाग मंत्र गायत्री का जप करना चाहिए।

‘‘¬ नवकुलाय विद्महे विषदंताय धीमहि तन्नो सर्पः प्रचोदयात्’’

काल सर्प योग की शांति का मुख्य संबंध भगवान शिव से है। क्योंकि काल सर्प भगवान शिव के गले का हार है, इसलिए किसी भी शिव मंदिर में काल सर्प योग की शांति का विधान करना चाहिए। साथ ही पंचाक्षरीय मंत्र

‘‘¬ नमः शिवाय’’

का जप करना चाहिए। 500 ग्राम, सवा किलो ग्राम या ढाई किलो ग्राम के पारद शिव लिंग की पांच सौ प्राण प्रतिष्ठा कराकर विधिवत रुद्राभिषेक करना चाहिए।

¬ गं गणपतये नमः,

¬ नमो भगवते वासुदेवाय,

¬ रां राहवे नमः,

¬ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः,

अर्धकायं महावीर्यं चंद्रादित्य विमर्दनम्।

सिंहिका गर्भसंभूतं तं राहुं प्राणमाम्यहम्।।

हनुमान चालीसा, सुंदर कांड इत्यादि का पाठ, माता सरस्वती की उपासना, श्री बटुक भैरव मंत्र का जप, रुद्राष्टाध्यायी और नवनाग स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। नाग पाश यंत्र अथवा काल सर्प यंत्र, पारद शिव लिंग, चांदी के अष्ट नागों, अष्टधातु के नाग, तांबे के नाग, रुद्राक्ष, एकाक्षी नारियल और नवग्रहों का पूजन करना चाहिए या नवग्रहों का दान देना चाहिए। नारियल का फल बहते पानी में बहाना चाहिए।

बहते पानी में मसूर की दाल डालनी चाहिए। पक्षियों को जौ के दाने खिलाने चाहिए। मोर या गरुड़ का चित्र बनाकर उस पर नाग विष हरण मंत्र लिखें और उस मंत्र के दस हजार जप कर दशांश होम के साथ ब्राह्मणों को खीर का भोजन कराएं। नाग की पत्थर की प्रतिमा बनवाकर उसकी मंदिर हेतु प्रतिष्ठा कर नाग मंदिर बनाएं। कार्तिक या चैत्र मास में सर्प बलि कराने से भी काल सर्प दोष का निवारण होता है।

अपनी लंबाई का मरा हुआ सर्प कहीं मिल जाए तो उसका शुद्ध घी से अग्नि संस्कार कर तीन दिन तक सूतक पालें और बाद में सर्प बलि कराएं अथवा जीवित सर्प की पूजा कर उसे जंगल में छुड़वा दें। नाग पंचमी के दिन सर्पाकार सब्जियां खुद न खाकर, न काटकर उनका दान करें। अपने वजन के हिसाब से गायों को घास खिलाकर जीवित नाग की पूजा करें। अपने घर में दीवार पर नौ नागों का सचित्र नागमंडल बनाकर अनंत चतुर्दशी से पितृ श्राद्ध तक नित्य धूप, दीप, खीर नैवेद्य के साथ पूजा के बाद अपनी अनुकूलता के अनुसार नाग बलि कराएं।

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