जमीन जायदाद व मकान का योग

जमीन जायदाद व मकान का योग  

व्यूस : 31317 | फ़रवरी 2014
किसी भी व्यक्ति के जीवन में अपना मकान होना बहुत बड़ा सपना होता है जिसके लिए वह रात-दिन मेहनत करता है। मकान अथवा भवन जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक माना जाता रहा है। जन्म लेने से मरण तक व्यक्ति की तीन मूलभूत आवश्यकताएं कही गई हैं जिनमें रोटी, कपड़ा व मकान प्रमुख है। रोटी व कपड़ा प्राप्त हो जाने के पश्चात् व्यक्ति मकान, भवन अथवा आश्रम बनाने की सोचता है परंतु सभी मकान बना सकें या मकान का सुख ले सकंे यह जरूरी नहीं होता। ज्योतिषशास्त्र इस विषय में बहुत सी जानकारी देता है जिनसे यह ज्ञात होता है कि व्यक्ति मकान बना पाएगा या नहीं। जन्मपत्री में चैथा भाव भूमि, गृह, वाहन आदि का होता है जबकि मंगल ग्रह को भूमि का कारक कहा गया है जिससे स्पष्ट होता है कि चतुर्थ भाव, चतुर्थेश व मंगल यदि शुभता लिए हुए हों तो व्यक्ति अवश्य ही मकान अथवा भूमि का स्वामी होता है या हो सकता है। कभी-कभार चतुर्थ भाव, चतुर्थेश व मंगल यदि अशुभावस्था में हों तो भी व्यक्ति किसी अन्य कारणवश मकान व भूमि का स्वामी तो बन जाता है परंतु उनका सुख नहीं भोग पाता। आइए जानते हैं कि कौन-कौन से योग जातक विशेष को जमीन व मकान प्राप्त करवाने में सहायक होते हैं। - चतुर्थेश केंद्र/त्रिकोण में उच्च, स्व व मित्र राशि का हो तथा चतुर्थ भाव पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो व्यक्ति को मकान अवश्य प्राप्त होता है। - जातक तत्वम के अनुसार चतुर्थेश बलवान हो तथा लग्नेश, चतुर्थेश धनेश इन तीनों से जितने भी ग्रह केंद्र/त्रिकोण में होंगे उतनी ही संख्या के मकान या प्लाॅट जातक के होंगे। - चतुर्थ भाव में उच्च चंद्र यदि शुक्र के साथ हो या शुक्र धन भाव में हो और उच्च चंद्र चतुर्थ में हो तो जातक का आलीशान मकान होता है। - चतुर्थेश दशमेश संग केंद्र/त्रिकोण में हो। - धनेश, लग्नेश व चतुर्थेश का संबंध एक से अधिक मकान दिलाता है। - चतुर्थेश का अन्य केंद्रेश/त्रिकोणेश से संबंध संदर मकान की प्राप्ति कराता है। - चतुर्थ भाव में मंगल हो तथा चतुर्थेश शुभावस्था में हो तो जातक स्वयं अपना मकान बनवाता है। - चंद्र-मंगल का केंद्र त्रिकोण योग जातक को स्वयं के प्रयास से मकान व भूमि प्राप्त कराता है। - स्वराशि का सूर्य चतुर्थ भाव में भूमि व मकान सुख अवश्य देता है। - सूर्य शुक्र की (वृषभ लग्न में) युति स्व प्रयास से भूमि-मकान प्रदान करती है। - लग्नेश का चतुर्थ भाव में शुभ प्रभाव में होना। - चतुर्थेश शुक्र संग चतुर्थ भाव में यदि शुभ ग्रहों से देखा जाता हो तो व्यक्ति का मकान आलीशान होता है। - चतुर्थ स्थान या चतुर्थेश चर राशि में हो और चतुर्थेश शुभ ग्रहों से युत/ दृष्ट हो तो जातक के कई मकान होते हैं। - लग्नेश$सप्तमेश लग्न/चतुर्थ में शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो बिना प्रयास के मकान प्राप्त होता है। - मकर लग्न में उच्च का मंगल अथाह भूमि प्रदान करता है। - नवम भाव में उच्च का शुक्र अच्छी भूमि देता है। - शुक्र केंद्र में मंगल से दृष्ट हो तो जातक मकान अवश्य बनाता है। - शुक्र लग्नेश होकर केंद्र में सूर्य/ मंगल से दृष्ट हो तो मकान अवश्य मिलता है। - चतुर्थ भाव में कर्क का राहु व लग्न पर मंगल का प्रभाव जमीन जायदाद तो बहुत देता है परंतु उनका सुख नहीं लेने देता। - चतुर्थ भाव में शनि पुराना घर प्रदान करता है। - अष्टम भाव में गुरु चंद्र जातक विशेष को जमीन-जायदाद उपहार के रूप में दिलाते हैं। - चतुर्थ भाव में शुक्र-चंद्र व लग्न में मंगल उच्च दर्जे का भवन, मकान प्रदान करते हैं। - चतुर्थेश दशमेश संग चतुर्थ भाव में हो तो सरकार द्वारा भवन प्राप्त होता है। - चतुर्थ भाव में गुरु/केतु धर्मस्थान के समीप भवन प्रदान करते हें। - चतुर्थेश बुध यदि चतुर्थ/दशम भाव में हो तो सम्भ्रान्त इलाके में भवन प्रदान करता है। - मेष लग्न में चतुर्थ भाव में स्वगृही चंद्र जल स्थान के नजदीक अथवा मकान जल से पूर्ण भवन प्रदान करता है। आज के संदर्भ में इसे स्वीमिंग पुल से सुसज्जित मकान कहा जा सकता है। इस प्रकार ऐसे कई योग हैं जो व्यक्ति को भूमि व भवन प्रदान करते हैं। संपत्ति कैसी मिलेगी- पैतृक अथवा स्वअर्जित - चतुर्थ भाव में चंद्र पैतृक संपत्ति की प्राप्ति कराता है। - द्वितीय भाव में द्वितीयेश संग मंगल पैतृक संपत्ति दिलाता है। - चतुर्थेश चतुर्थ भाव में मंगल दृष्ट हो तो विरासत में मकान मिलता है। - दशमेश चतुर्थ भाव में हो तो पैतृक मकान प्राप्त होता है। - लग्नेश दशमेश संग चतुर्थ में हो तो व्यक्ति को शासकीय आवास मिलता है। - लग्नेश-चतुर्थेश में स्थान परिवर्तन हो तो स्वप्रयासों से मकान बनता है। - दूसरे भाव में कर्क का बुध पैतृक संपत्ति दिलाता है। - सूर्य लग्नेश होकर चतुर्थ/दशम में हो तो स्वप्रयास से संपत्ति मिलती है। - मकर का गुरु पंचम भाव में पितरों की भूमि प्राप्त कराता है। - उच्च का मंगल चतुर्थ भाव में पैतृक व स्वअर्जित दोनों प्रकार की संपत्ति प्रदान करता है। - तुला लग्न में शुक्र-मंगल की युति लग्न/द्वितीय भाव में पैतृक संपत्ति प्राप्त कराती है। - लग्न में उच्च का शनि उत्तम भूमि-भवन स्वयं के प्रयासों से दिलाता है। - कुंभ का शनि दूसरे भाव में हो तो पैतृक संपत्ति प्राप्त होती है। - चतुर्थ भाव में मीन का शनि गुरु से दृष्ट हो तो पैतृक संपत्ति के साथ-साथ स्वअर्जित संपत्ति भी प्रदान करता है। अचानक भवन की प्राप्ति के योग - यदि लग्नेश व सप्तमेश चतुर्थस्थ होकर शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो अचानक मकान की प्राप्ति होती है। - यदि चतुर्थेश व लग्नेश, चतुर्थ भाव में स्थित हों तो अचानक दूसरों के द्वारा निर्मित भवन की प्राप्ति होती है अथवा किसी अन्य रिश्तेदार द्वारा वसीयत आदि के द्वारा भवन की प्राप्ति होती है। - चतुर्थेश व भाग्येश, चतुर्थ भाव में हो। पैतृक भवन की प्राप्ति के योग - यदि पत्री में चतुर्थेश, द्वितीय भाव में हो तो व्यक्ति को पैतृक संपत्ति प्राप्त होती है। - द्वितीयेश, चतुर्थ भाव में हो तो। - द्वितीयेश, चतुर्थेश में भाव परिवर्तन हो तो। - चतुर्थेश एकादश भाव में स्थित हो। - लग्नेश का द्वितीयेश, चतुर्थेश व एकादशेश से संबंध हो या इनके भाव परिवर्तन हों। - मंगल व शुक्र बली हों अथवा ये दोनों 2, 11 भाव में स्थित हों। - यदि चतुर्थ भाव में कुंभ राशि हो या शनि से दृष्ट राहु हो। बिना प्रयास के अथवा स्वल्प प्रयास से भवन योग - लग्नेश व सप्तमेश लग्न में हो और चतुर्थ भाव पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो। - लग्नेश व चतुर्थेश लग्न में हो और चतुर्थ भाव को शुभ ग्रह देखते हों। - चतुर्थेश बली हो (उच्च, स्वगृही) तथा नवमेश केंद्र में हो। - ‘लग्नेश व सप्तमेश, 1 या 4 भाव में शुभ ग्रहों से दृष्ट हो व नवमेश केंद्र में हो तथा चतुर्थेश बली हो। - चतुर्थेश व दशमेश, केंद्र या त्रिकोण में हो। - यदि चतुर्थ भाव में बुध की राशि में शनि हो और बुध स्वराशि या उच्च का हो। एक से अधिक भवनों का योग - यदि चतुर्थेश या चतुर्थ भाव, चर राशि (1, 4, 7, 10) में हो तथा इनपर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो जातक अनेक भवनों का स्वामी होता है पर भवन बदलते रहते हैं। - यदि चतुर्थेश व दशमेश की युति, मंगल व शनि के साथ हो। - चतुर्थेश बली हो तथा लग्नेश, द्वितीयेश व चतुर्थेश यदि 1, 4, 5, 7, 9, 10 में हों। अन्य संपत्ति के योग - यदि चतुर्थेश बली होकर शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो तथा द्वितीयेश व एकादशेश चतुर्थ भाव में स्थित हो तो धन-संपदा युक्त भवन की प्राप्ति होती है। - यदि तृतीयेश व कारक मंगल, चतुर्थेश से संबंध बनाये तो भाइयों द्वारा भूमि, भवन का सुख मिलता है। - यदि शुक्र चतुर्थ भाव में एवं चतुर्थेश सप्तम भाव में हो और दोनों मित्र हांे तो स्त्री द्वारा भवन की प्राप्ति होती है या चतुर्थेश, सप्तमेश व कारक शुक्र का संबंध हो तो भी स्त्री द्वारा भवन की प्राप्ति होती है। - यदि स्त्री संज्ञक ग्रह चतुर्थ भाव में हो और चतुर्थेश, सातवें भाव में हो तो विवाह के पश्चात भूमि, भवन का सुख प्राप्त होता है। - यदि चतुर्थ व दशम भाव में भाव परिवर्तन हो तथा कारक मंगल बली हो तो जातक बहुत अधिक मकान का स्वामी होता है। भू-संपत्ति अर्जन में शनि की भूमिका भू-संपत्ति अर्जन में शनि की भूमिका का लाल किताब में महत्व है। लाल किताब के अनुसार, जन्मपत्री के सभी द्वादश भावों में शनि, भू संपत्ति से संबंधित क्या-क्या अच्छे बुरे परिणाम देगा, ये निम्न हैं- - प्रथम भाव में शनि के होने पर तथा साथ ही शनि के मंदे होने पर गरीबी एवं चारों तरफ बर्बादी होती है। इसके साथ ही यदि मंगल भी चतुर्थ खाने में हो तो जमीन-जायदाद भी नष्ट करते हैं। लेकिन लग्न के शनि के साथ यदि सातवां तथा दसवां खाना - शनि के द्वितीय खाने (भाव) में होने पर मकान जब भी बने और जैसा भी बने, बनने देना चाहिये क्योंकि इसे इखाली हो तो मकान शुभ फल देता है। सी स्थिति में शुभ माना गया है नहीं तो नुकसान करते हैं। - शनि के तृतीय खाने में होने पर भूखंड पर तीन कुत्ते पालने चाहिए, ऐसा करने से मकान बनने की संभावना काफी बढ़ जाती है और परिणाम भी शुभ मिलते हैं। - शनि के चतुर्थ खाने मंे होने पर मकान अपने नाम का नहीं बनवाना चाहिये, ऐसा करना शुभ रहता है नहीं तो बर्बादी शुरू कर देता है। - पांचवें भाव का शनि संतान हानि देता है। अतः शुभ परिणाम के लिए ऐसे लोगों को भैंसा आदि दान करने के पश्चात ही मकान की नींव डालनी चाहिए तथा यदि हो सके तो 48 वर्ष की उम्र के पश्चात ही मकान बनवाना शुभ रहता है। - शनि के छठे भाव में होने पर लड़कियों के रिश्तेदारों को परेशानी पैदा करता है। अतः उम्र के 36 या 39 वर्ष के पश्चात् ही मकान बनवाना शुभ रहता है। - शनि के सप्तम खाने में होने पर अशुभ परिणाम मिलते हैं। अतः लाभ हेतु पुश्तैनी या बने-बनाये मकान में ही रहना चाहिये। - शनि के अष्टम खाने में होने पर तथा राहु-केतु के नेक होने पर मकान बनवाना शुभ रहता है। यदि राहु-केतु मंदे हों तो अपना मकान नहीं बनवाना चाहिये। - शनि यदि नवम खाने में हो तो तीन से अधिक मकान नहीं बनाने चाहिए। - दसवें खाने का शनि मकान का काम पूरा होते ही धन हानि शुरू कर देता है। अतः ऐसे जातकों को मकान का कार्य पूरा ही नहीं होने देना चाहिये अर्थात् मकान में कोई-न-कोई काम अधूरा रखना चाहिए ताकि धन हानि न हो। - एकादश खाने का शनि शुभ परिणाम दे, इसके लिए उम्र के 55वें वर्ष के पश्चात मकान बनवाना चाहिये। - शनि के द्वादश भाव में होने पर मकान तो आसानी से बनता है, लेकिन ऐसे जातकों को यह ध्यान में रखना चाहिये कि मकान का कार्य आरंभ होने के पश्चात् कार्य को बीच में रोकना शुभ नहीं है, मकान का कार्य पूरा करके छोड़ें। इसके अलावा चार कोने वाला (वर्गाकार/आयताकार) मकान लेना/ बनवाना ही शुभ रहता है।



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