रत्न चिकित्सा : निजी अनुभव

रत्न चिकित्सा : निजी अनुभव  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 4522 | जून 2006

रत्न चिकित्सा: निजी अनुभव पं. छाजूराम शर्मा श्व में अनेक चिकित्सा पद्ध तियां प्रचलित हैं। रत्न चि¬िकत्सा भी एक सरल व प्रभावी पद्धति है।

इसकी मुख्यतः दो विधियां हैं: संबंधित रत्न को पानी में डाल कर वह पानी रोगी को पिलाना तथा उसी पानी से स्नान भी कराना। संबंधित रत्न को अंगूठी में जड़वा कर संबंधित ग्रह की उंगली में पहन¬ाना या लाॅकेट में जड़वा कर संबंधित रंग के धागे में पिरो कर गले में पहनाना। ज्योतिष के प्राचीन ग्रंथों में ग्रहों से संबंधित रोगों का विशद वर्णन मिलता है। कतिपय अर्वाचीन विद्वानों ने भी इस विषय में बहुत कुछ लिखा है। यहां कुछ जांचे-परखे रत्नों का उल्लेख किया जा रहा है। ये रत्न चांदी में जड़वाकर पहनने चाहिए।

रत्न का वजन: महंगा रत्न 3 से 6 रत्ती तक का तथा सस्ता रत्न 6 से 9 रत्ती तक का पहनना चाहिए। रत्न सुंदर, सुडौल व अच्छी कटिंग का होना चाहिए। यदि नीचे नोक है तो वह मध्य में होनी चाहिए। माणिक्य व सफेद मूंगा अनामिका में, मोती व ओनेक्स कनिष्ठा में तथा शेष सभी रत्न मध्यमा में धारण करने चाहिए।

रत्न खरीदा कभी भी जा सकता है परंतु उसकी अंगूठी बनवाने का विधान निम्नानुसार होना चाहिए। माणिक्य/ नवरत्न की अंगूठी रविवार को बनवाएं व उसी दिन दोपहर एक बजे तक पहनें। मोती की अंगूठी शुक्ल पक्ष सोमवार को बनवाएं व शुक्ल पक्ष के सोमवार को ही रात्रि के प्रथम प्रहर में पहनें। ओनेक्स की अंगूठी बुधवार को बनवाएं तथा उसी दिन सूर्यास्त से 12 मिनट पूर्व से 12 मिनट बाद तक के बीच पहनें।

अन्य किसी भी रत्न की अंगूठी शनिवार को बनवा कर शनिवार को ही सूर्यास्त से डेढ़ घंटे तक पहना चाहिए। टाइगर आइ, मरियम, किडनी स्टोन या चुंबक की अंगूठी कभी भी बनवा कर कभी भी पहनी जा सकती है। लाॅकेट सदैव ऊनी धागे में पहनना फलदायी होता है। रत्न के रंग का ही धागा श्रेष्ठ होता है।

जिन बच्चों का जन्म अमावस्या के आसपास की तिथि में हुआ हो उन्हें शुक्ल पक्ष के सोमवार को चंद्राकार लाॅकेट में मोती जड़वा कर उसी रात्रि को सफेद, लाल या मैरून रंग के ऊनी धागे में पहनाने से बालारिष्ट नहीं सताते। साथ में एक पंचमुखी रुद्राक्ष भी उसमें डाल देना चाहिए। पहनने या पहनाने से पूर्व अंगूठी या लाॅकेट को कच्चे दूध से धोना चाहिए। दूध गाय का हो तो प्रभाव बढ़ जाता है।

दूध से धोने के बाद गंगाजल या शुद्ध जल से भी अंगूठी या लाॅकेट को धोना चाहिए। तत्पश्चात अपने इष्टदेव या गुरु को मन में प्रणाम करके श्रद्धापूर्वक अंगूठी या लाॅकेट धारण करना चाहिए। एक बार पहनने के बाद अंगूठी या लाॅकेट को उतार देने से उसका प्रभाव 25 प्रतिशत कम हो जाता है

अतः यदि उतारना आवश्यक हो जाए तो अंगूठी या लाॅकेट को गंगाजल या शुद्ध जल में डाल कर रख देना चाहिए व पुनः संबंधित वार को उचित समय पर विधिपूर्वक धारण करना चाहिए।

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