शिक्षा एवं करियर का चुनाव

शिक्षा एवं करियर का चुनाव  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 1458 | नवेम्बर 2017

मानव (स्त्री/पुरूष) के संपूर्ण विकास के लिए शिक्षा अत्यंत आवश्यक होती है।


    1. ज्योतिषानुसार सामान्यतः शिक्षा का विचार पंचम भाव से किया जाता है तथा पंचम से पंचम यानि नवम भाव भी शिक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अर्थात भाग्य भाव का विचार अत्यंत आवश्यक है। इनके अलावा द्वितीय भाव प्रारंभिक शिक्षा व चतुर्थ भाव से भी शिक्षा का विचार किया जाता है। साथ ही बुद्धि-विवेक का कारक ग्रह बुध व ज्ञान का कारक ग्रह बृहस्पति तथा मन-मस्तिष्क का कारक ग्रह चंद्र का विचार, शिक्षा की दृष्टि से उल्लेखनीय है। लग्नेश, राशीश व पंचम, नवम, द्वितीय भाव के स्वामी व कारक ग्रह गुरु का विचार भी शिक्षा में महत्वपूर्ण है। इन सभी पर विचार के बिना किसी भी विद्यार्थी के शिक्षा व इसके क्षेत्र का सही चुनाव नहीं कर सकते हैं। विद्यार्थी जब शिक्षा का चुनाव करके अपनी पढ़ाई पूर्ण कर लेता है तब उसके बाद उसके करियर का चुनाव महत्वपूर्ण हो जाता है। सामान्यतया, करियर का चुनाव दशम भाव से किया जाता है। इसके अलावा, 3 व 6 भाव का स्वामी व इनके कारक मंगल, शनि, सूर्य, गुरु व बुध की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। उपरोक्त सभी पर किसी भी तरह का पाप प्रभाव (युति, दृष्टि द्वारा) नहीं होना चाहिए। उपरोक्त ग्रह पापकर्तरी में नहीं होना चाहिए। कुंडली में कालसर्प योग, पितृ दोष आदि अशुभ योग भी नहीं होने चाहिए आदि ताकि शिक्षा क्षेत्र व करियर का चुनाव सही कर विद्यार्थी बेहतर भविष्य का निर्माण कर सके। शिक्षा हेतु समय सदैव परिवर्तनशील रहा है। पहले विषय कम हुआ करते थे। विज्ञान के खोजांे, आविष्कारों ने (विषयों) विज्ञान के अलावा अन्य विषयों को भी बढ़ा दिया है। वर्तमान में दसवीं के बाद शिक्षा क्षेत्र व कार्यक्षेत्र का चुनाव होता है। अतः पंचम व नवम भाव पर निम्न ग्रहों का प्रभाव हो तो जातक को संबंधित विषयों का चुनाव करना चाहिए। साथ ही चुनाव के समय चल रही महादशा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

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दसवीं कक्षा के बाद तीन संकाय (विषय) होते हैं:

 

  1. कला (।तजेद्ध गुरु, चंद्र, सूर्य
  2. विज्ञान (ैबपमदबमद्ध मंगल, शनि, शुक्र
  3. वाणिज्य (ब्वउउमतबमद्ध बुध

 

    1. कला संकाय (थ्ंबनसजलद्ध में भी कई विषय हैं जैसे- राजनीति शास्त्र, समाज शास्त्र, इतिहास, हिंदी व अंग्रेजी, लोक प्रशासन, अर्थशास्त्र, सांख्यिकी आदि।

 

    1. विज्ञान संकाय (ैबपमदबमद्ध में भी दो विषय - ए. गणित व बी. जीव विज्ञान होता है। बपमदबमए डंजीे से विद्यार्थी इंजीनियरिंग (बी. ई., बी. टेक व बी एस. सी.) से विद्यार्थी साइंस से शिक्षा अर्जित करता है। विज्ञान संकाय हेतु मंगल, शनि, शुक्र का शिक्षा व करियर भाव पर प्रभाव आवश्यक है। इसके अलावा गणित हेतु मंगल, शनि व शुक्र के अलावा तकनीकी ग्रहों राहु, केतु का प्रभाव भी जरूरी है। जीव विज्ञान प्राणिशास्त्र व वनस्पति शास्त्र) हेतु उपरोक्त के साथ शुक्र का प्रभाव आवश्यक है। जीव विज्ञान के बाद विद्यार्थी या तो बी एस. सी. करता है या सूर्य बली हो तो डाॅक्टर की डिग्री लेकर एम. बी. बी. एस का चुनाव कर सकता है।

 

3. वाणिज्य संकाय हेतु मुख्यतः बुध का प्रभाव होना चाहिए। इसके अलावा गुरु, चंद्र का विचार भी करना चाहिए। दशमांश कुंडली का अध्ययन भी आवश्यक है।

शिक्षा क्षेत्र व करियर क्षेत्र के चुनाव के लिए कुछ मुख्य योग निम्न प्रकार हैं:

 

    1. सूर्य+मंगल = सेना, पुलिस, रक्षा विभाग में नौकरी। चिकित्सक, यांत्रिकी, रेलवे, विज्ञान का ज्ञाता।

 

    1. सूर्य+बुध (बुधादित्य योग) =ज्योतिषी, भविष्यवक्ता, वकील। डाॅक्टर।

 

    1. सूर्य+गुरु = प्रशासनिक अधिकारी, पुरोहित, कथा वाचक, सलाहकार।

 

    1. सूर्य+चतुर्थेश = फर्नीचर, लकड़ी व्यवसाय।

 

    1. सूर्य+शनि = विदेश में नौकरी, डाॅक्टर, चिकित्सा क्षेत्र।

 

    1. सूर्य+केतु = अध्यात्म विज्ञान में व्यवसाय / नौकरी।

 

    1. चंद्र+शुक्र = स्टार, कलाकार (अभिनय), हास्य स्टार, डेयरी, जल से जुड़े, फैंसी स्टोर, इत्र व्यवसाय। सौंदर्य प्रसाधन, कला निपुण।

 

    1. चंद्र+गुरु (गजकेसरी योग) =ज्योतिषी, अपने क्षेत्र का प्रतिष्ठित व्यक्ति धार्मिक प्रवचन, शास्त्र ज्ञाता।

 

    1. चंद्र+बुध = लेखक, कवि,सलाहकार, ज्योतिषी

 

    1. चंद्र+शनि = दार्शनिकता, पुस्तकें लिखना, छपवाना।

 

    1. चंद्र+ राहु = चिकित्सा विज्ञान, डाॅक्टरी, असामाजिक कार्य।

 

    1. मंगल+बुध = हास्य कलाकार, अभियंता (कंप्यूटर साॅफ्टवेयर), कंप्यूटर स्पेशलिस्ट।

 

    1. मंगल+गुरु = फौज, डिफेन्स सेवा, क्रांतिकारी नेता, गुप्त विद्या क्षेत्र, शिक्षा संस्थान, अधिकारी।

 

    1. मंगल+शनि = इंजीनियर (रेलवे, यांत्रिकी, खनिज, भूगर्भ आदि)।

 

    1. मंगल+शुक्र या मंगल$ शुक्र$चंद्र= काम प्रवृत्ति क्षेत्र, सेक्सोलाॅजिस्ट, डाॅक्टर।

 

    1. सूर्य+मंगल/शुक्र = नेत्र डाॅक्टर, (1, 2, 6, 10, 11 भावों में)

 

    1. बुध+शुक्र। शनि (तृतीय भाव में) चर्म रोग विशेषज्ञ।

 

    1. सूर्य+बुध+शुक्र = दंत विशेषज्ञ डाॅक्टर। (1, 2, 6, 10, 11 भावों में)

 

    1. मंगल+बुध+शनि = चोरी चकारी, धोखाधड़ी।

 

    1. मंगल+बुध+शुक्र = अच्छा कलाकार अर्थात चित्रकार, शिल्पकार।

 

    1. मंगल+राहु (अंगारक योग) बिजली एवं तकनीकी कार्य, यांत्रिकी अभियंता।

 

    1. बुध+गुरु = ज्योतिषी, लेखक, संपादक।

 

    1. बुध+शुक्र+गुरु (कलानिधि योग) = कलाकार, कलानिपुण, ज्योतिषी।

 

    1. बुध+गुरु+शनि = ज्योतिषी, गूढ़ ज्ञान/विद्या, अध्यात्म विज्ञान।

 

    1. बुध+शनि = गणितज्ञ, प्रकाशक, क्लर्क, प्रूफ रीडर।

 

    1. बुध+शनि (1, 10, 12 भाव में) वकील।

 

    1. चंद्र+गुरु (5, 9 भाव में) = ज्योतिषी, हस्तरेखा विशेषज्ञ।

 

करियर में संकाय या विषय चयन के लिए उनके कारक ग्रहों की तालिका:-

 

1. बुध, मंगल एवं गुरु तीनों ग्रहों की प्रबलता के अलावा निम्न, विषयों (संकाय) के लिए कारक ग्रह निम्न हैं।

 

      a. चार्टर्ड एकाउंटेंट - शनि

 

      b. काॅमर्स (वाणिज्य) - शुक्र

 

    c. कंपनी सचिव - बुध वायु एवं पृथ्वी तत्व राशियांे वाले जातक उपरोक्त संकाय में आते हैं।

 

2. एम. बी. ए. के लिए ग्रहों शुक्र एवं गुरु की प्रबलता के पश्चात अलग-अलग एम. बी. ए. की शाखाओं के लिए कारक ग्रह निम्न हैं:-

 

      a. मार्केटिंग - बुध एवं तीसरा भाव

 

      b. पर्सनल एडमिनिस्ट्रेशन - गुरु

 

      c. ह्यूमन रिसोर्स (एच. आर) शनि

 

      d. आई. टी. - बुध

 

    e. फाइनेंस - गुरु, बुध

3. अन्य शाखाओं के लिये कारक ग्रह निम्न हैं:

 

      a. कानून - शनि

 

      b. कानून प्रशासन - शनि, गुरु

 

      c. वकालत - शनि, बुध

 

      d. पत्रकारिता - बुध, गुरु

 

      e. लेखन - चंद्र, गुरु, बुध

 

      f. ललित कलायें - बुध, शुक्र, गुरु (कलानिधि योग)

 

    g. बायोटेक्नोलाॅजी - शनि, शुक्र,मंगल

4. अखिल भारतीय सेवाओं की प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए विषय एवं कारक ग्रह:

 

      a. इतिहास - शनि,

 

      b. राजनीति विज्ञान - गुरु, सूर्य

 

      c. लोक प्रशासन - गुरु

 

      d. समाजशास्त्र - शुक्र

 

      e. मनोविज्ञान - बुध, चंद्र

 

      f. एन्थ्रोपोलाॅजी - शनि

 

      g. भाषा विज्ञान -बुध, गुरु

 

    h. संस्कृत - गुरु, चंद्र, बुध पद्ध दर्शन शास्त्र - शुक्र, गुरु, चंद्र इंजीनियरिंग/अभियंता योग किसी भी जातक की कुंडली में इंजीनियरिंग क्षेत्र में सफलता का योग तकनीकी के कारक ग्रह मंगल एवं शनि पर निर्भर करता है। इन दोनों ही ग्रहों का संबंध लोहा धातु एवं मशीनों से होता है तथा इनके बिना इंजीनियरिंग की कल्पना नहीं कर सकते हैं। मंगल एवं शनि ग्रह के पारस्परिक संबंध के आधार पर ही कोई जातक इस क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है। मंगल एवं शनि की युति, दृष्टि संबंध एवं परस्पर राशि परिवर्तन जातक को इंजीनियरिंग क्षेत्र में सफल बनाती है।

 

इसके अलावा निम्न योग हो तो जातक इस क्षेत्र में सफल रहता है:-


    1. कुंडली में मंगल एवं शनि बलवान होकर शुभ स्थान में हो अथवा दशम आजीविका भाव या दशमेश से युति-दृष्टि संबंध बनाकर प्रभाव में हो।

    1. शुक्र एवं शनि की युति हो तथा मंगल का प्रभाव युति या दृष्टि द्वारा एकादश लाभ भाव में हो।

    1. शुक्र एवं शनि की युति पर बृहस्पति का प्रभाव (युति या दृष्टि द्वारा हो) तथा दशम आजीविका भाव में बली मंगल हो।

    1. मंगल एवं शनि पर सूर्य का प्रभाव हो।

    1. लग्नेश एवं दशमेश की युति बलवान राशि में हो अर्थात् दोनों ग्रहों का संबंध उच्च एवं स्वगृही या मूल त्रिकोण से हो तथा बृहस्पति की युति या दृष्टि का संबंध दशम आजीविका भाव से हो।

    1. (सूर्य$मंगल), बुध एवं शनि क्रमशः द्वितीय, पंचम एवं ग्यारहवें भाव में बली होकर स्थित हो।

    1. लग्नेश एवं दशमेश से भाव परिवर्तन बलवान राशि में हो अर्थात उच्च, स्वगृही, मित्र राशि अथवा नीचत्व भंग में हो।

    1. गुरु, मंगल एवं शनि क्रमशः दूसरे, पांचवें एवं आठवें भाव में राशि में स्थित हो।

    1. (शनि$मंगल) का संबंध राहु या केतु से हो।

    1. उच्च या स्वगृही शुक्र की शनि$मंगल से युति तथा इसपर गुरु की दृष्टि हो।

    1. बली गुरु एवं शुक्र युति कर दशम आजीविका भाव या दशमेश के प्रभाव में हों अर्थात-दृष्टि या युति में हों।

    1. लग्न, पंचम, नवम, एकादश एवं तृतीय में क्रमशः सूर्य$बुध (बुधादित्य योग) चंद्र, केतु, गुरु एवं राहु हो तथा ये बली हों।

    1. जब दशम आजीविका भाव में चर (1, 4, 7, 10) या द्विस्वभाव 3, 6, 9, 12 राशियां हों।

    1. जब लग्न, तृतीय, पंचम, नवम तथा एकादश भाव में क्रमशः शनि, राहु, चंद्र, केतु तथा बृहस्पति बली हों।

    1. जब मंगल के साथ शनि, बुध एवं शुक्र की युति केंद्र या त्रिकोण में हो या मंगल द्वादश भाव में हो।

    1. मेष लग्न में द्वादश व्यय भाव में शुक्र उच्च का स्थित हो। शनि केंद्र में स्थित हो तथा मंगल एवं गुरु की दृष्टि हो। इंजीनियरिंग की विभिन्न ब्रांचों के योग: इंजीनियरिंग के लिए मंगल एवं शनि की उपरोक्तानुसार युति के अलावा बुध एवं गुरु को भी प्रबल होना चाहिए। विभिन्न शाखाओं के लिए ग्रह निम्न चार तत्वों के अधीन ही इंजीनियरिंग की समस्त शाखाएं आ जाती हैं। - अग्नि तत्व राशि - मेष, सिंह, धनु। स्वामी ग्रह एवं कारक ग्रह- सूर्य एवं मंगल + गुरु (मुख्यतः) ब्रांच: इलेक्ट्राॅनिक, कंप्यूटर , विद्युत इद्ध पृथ्वी तत्व राशि - वृष, कन्या, मकर। स्वामी ग्रह एवं कारक ग्रह- बुध (मुख्यतः) शुक्र+शनि ब्रांच: सिविल, मैकेनिकल, आॅटो, खनिज, थल सेना (मंगल) मैटेरियल, भूगर्भ बद्ध वायु तत्व राशि: मिथुन, तुला, कुंभ। स्वामी ग्रह एवं कारक ग्रह- शनि (मुख्यतः) + बुध+शुक्र ब्रांच:- वायुयान (वायुसेना), आईटी (संचार या सूचना), एरोनाॅटिक्स, मोबाइल, सिग्नल, टाॅवर या नेटवर्क, पायलट।

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  • जल तत्व राशि - कर्क, वृश्चिक, मीन स्वामी ग्रह एवं कारक ग्रह- चंद्र, शुक्र (मुख्यतः), मंगल + गुरु। ब्रांच:- रसायन (केमिकल) मैरीन, डेयरी, जल सेना या सेवा, नौ सेना, मर्चेंट नेवी, जहाज रानी, कृषि।

 

विभिन्न ब्रांचों में ग्रहों के योग:- अग्नि तत्व की ब्रांचें: -

 

    1. इलेक्ट्राॅनिक Electronic

      : इसके कारक ग्रह सूर्य एवं बुध हैं। इन दोनों ग्रहों के अलावा उपरोक्त इंजीनियरिंग के ग्रह मंगल एवं शनि तथा दशम आजीविका एवं पंचम शिक्षा भाव से भी संबंध होना चाहिए। साथ में दशम आजीविका भाव में अग्नि तत्व की मेष, सिंह एवं धनु राशियां होना जरूरी हैं। इसमें सिंह राशि विशेष भूमिका निभाती है।

 

    1. विद्युत Electrical:

      इसका कारक ग्रह सूर्य है। दशम आजीविका भाव में अग्नि तत्व राशियां 1, 5, 9 होनी चाहिए तथा साथ ही मंगल एवं शनि तथा विद्युत का प्राकृतिक (नैसर्गिक) कारक ग्रह राहु से योग संबंध होना चाहिए।

 

    1. कंप्यूटर:

      मुख्यतः राहु ग्रह इसका कारक ग्रह है। इसके साथ सूर्य, मंगल, बुध, शनि, केतु एवं दशम भाव में अग्नि तत्व की राशियों का संबंध महत्वपूर्ण हैं। इसके अलावा कन्या अथवा कुंभ राशियों का योगदान भी महत्वपूर्ण है।

 

    1. सिविल इंजीनियरिंग ब्रांच इसमें छतों, पुलों, दीवारों आदि का कार्य मुख्यतः

      सीमेंट से किया जाता है तथा सीमेंट का कारक ग्रह शनि है। सीमेंट में पानी मिलाकर कार्य किया जाता है। इसमें जल तत्व राशियों का संबंध महत्वपूर्ण है। उपरोक्त सारे कार्य पृथ्वी या भूमि पर किये जाते हैं। अतः ‘बुध’ (पृथ्वी तत्व) एवं ‘मंगल’ (भूमि का कारक/ भूमिपुत्र) का योगदान भी अहम है। दशम भाव में पृथ्वी तत्व की राशियां कन्या एवं मकर होनी चाहिए तथा इसका संबंध उपरोक्त ग्रहों से होना चाहिए।

 

मैकेनिकल यांत्रिकी:

यांत्रिकी का ग्रह ‘मंगल’ ग्रह है। इसके अंतर्गत मशीनंे काम में आती हैं। इसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार के उपकरणों का निर्माण कर उत्पादन किया जाता है। मशीनों का कारक ग्रह ‘शनि’ भी है क्योंकि मशीनें लौह धातु से बनी होती है तथा लोहे का संबंध शनि से है। इन दोनों ग्रहों का संबंध दशम आजीविका भाव, जिसमें पृथ्वी तत्व राशियां 2-6-10 होनी चाहिए एवं इसका संबंध पंचम शिक्षा भाव से होना चाहिए। इसके अंतर्गत रेलवे विभाग का इंजीनियरिंग क्षेत्र भी आता है।

 

मैटिरियल अभियांत्रिकी शाखा

 

मैटिरियल का संबंध विभिन्न धातुओं (मेटल) से होता है जो पृथ्वी के गर्भ में छिपी होती है। इसके अंतर्गत भूगर्भ एवं खनिज इंजीनियरिंग भी आ जाते हैं। पृथ्वी (भूगर्भ) को खोदकर या खनन करके मेटल, खनिज निकालना। बुध (पृथ्वी तत्व), मंगल (भूमि का कारक) तथा शनि इसके कारक ग्रह हैं। इनका संबंध दशम भाव से, पृथ्वी तत्व (7, 6, 8) या अग्नि तत्व (1, 5, 9) राशियों से होने पर सफलता मिलती है। इसमें (पृथ्वी तत्व के साथ) अग्नि तत्व की राशियां इसलिए ली हैं क्योंकि पृथ्वी (भू) को खोदने पर वह गर्म (अग्नि तत्व) हो जाती है और गर्म का संबंध अग्नि तत्व राशियों से है। थल सेना या सेवा इंजीनियिरिंग यह सेना के तीनों अंगों में से एक अंग है। थल का अर्थ भूमि (जमीन) से होता है तथा इसके लिए मंगल कारक ग्रह होता है। थल सेना के अंतर्गत एन, डी. ए., रक्षा विभाग, फायर इंजीनियरिंग आदि भी आ जाते हैं। इसमें मंगल बलवान अर्थात उच्च या परमोच्च, स्वगृही या मूल त्रिकोण या कम से कम मित्र राशिगत विशेषकर अग्नि तत्व की राशि- सिंह या धनु से होना चाहिए क्योंकि मंगल अग्नि प्रधान ग्रह तथा सेनापति है। अग्नि प्रधान ग्रह जब अग्नि तत्व की राशि मंे होता है तो और भी बली हो जाता है। बली मंगल का संबंध दशम आजीविका भाव मंे स्थित पृथ्वी तत्व की राशियों 2, 6, 10 से होना चाहिए। इसके अलावा अग्नि तत्व की राशियां भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। मंगल ग्रह बहादुरी एवं साहस, पराक्रम का भी द्योतक है। यह बहादुरी एवं साहस, पराक्रम द्वारा अपने शत्रुओं से युद्ध करता है। अतः इसका संबंध एन. डी. ए., रक्षा विभाग, पुलिस से भी है। फायर इंजीनियरिंग के लिये मंगल के साथ सूर्य का उपरोक्त में विचार करना चाहिए।


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बद्ध वायु तत्व की ब्रांचें:

 

 

  • वायु सेना (सेवा) इंजीनियरिंग ब्रांच: इससे जुड़े जातकों जैसे- पायलट आदि की कुंडली में कारक ग्रह बृहस्पति होता है क्योंकि बृहस्पति (गुरु) खुले आकाश का कारक ग्रह होता है तथा खुले आकाश में हवा (वायु) रहती है जिसका कारक ग्रह बृहस्पति के साथ शनि भी है क्योंकि शनि वायु तत्व है। दोनों ग्रह कुंडली में बली स्थिति में होने चाहिये तथा इनका संबंध दशम आजीविका भाव में उपस्थित राशियों वायु तत्व की - मिथुन, तुला एवं कुंभ से होना चाहिए। इसके अलावा, मंगल तथा बुध का वायु तत्व राशियों से संबंध भी इसमें सफलता दिलाता है। यह सेना के तीनों भागों में से दूसरा अंग है।

 

 

  • सूचना एवं संचार इंजीनियरिंग ब्रांच इसके अंतर्गत वायु तत्व की अन्य सभी शाखाएं आ जाती हैं जिनका संबंध इनसे होता है।


अन्य शाखाएं निम्न हैं: कृषि इंजीनियरिंग: इसके लिए

    1. चंद्र $ जल तत्व राशियां $ दशम भाव संबंध।

 

  1. शनि$बुध के प्रभाव (युति/दृष्टि द्वारा), वृष, कन्या, मकर अर्थात् पृथ्वी तत्व राशियों का योगदान क्योंकि कृषि अर्थात- खेती, पृथ्वी (जमीन) यहां पानी (जल तत्व) से ही होती है। आई टी. एरोनाॅटिक्स, मोबाईल नेटवर्क के सिग्नल, पावर, टेलीफोन आदि उपरोक्त से जुड़े होते हैं। इनका कारक ग्रह मुख्यतः बृहस्पति है। इसके अलावा सिग्नल के कारक ग्रह वायु तत्व के शनि एवं राहु ग्रह भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन दोनों ग्रहों की सहायता से नेटवर्किंग का कार्य होता है क्योंकि नेटवर्किंग का जुड़ाव कंप्यूटर से होता है और कंप्यूटर के लिए कारक ग्रह राहु होता है। इन ग्रहों का संबंध शिक्षा भाव एवं दशम आजीविका भाव में मौजूद वायु तत्व की राशियांे 3, 7, 11 से होना चाहिए तथा संवाहक ‘बुध’ पर भी विचार करना चाहिए।

 

    1. रसायन इंजीनियरिंग: ज्योतिष में चंद्र एवं शुक्र दोनों को ‘रस’ का कारक ग्रह बताया गया है तथा रस से रसायन शब्द बना है। दोनों ही ग्रह जल तत्व ग्रह हैं। इनका संबंध जब दशम भाव में स्थित जल तत्व की राशि- कर्क, वृश्चिक एवं मीन से तथा पंचम भाव से हो तो जातक इस क्षेत्र में सफल रहता है। इसके अलावा मंगल, बुध, केतु एवं वृष, कन्या एवं वृश्चिक का आपसी संबंध इस क्षेत्र में जातक को सफल बनाता है।

 

  1. जल सेना (सेवा) इंजीनियरिंग यह सेना का तीसरा अंग है। इसके अंतर्गत नौ सेना, मर्चेंट नेवी आदि आते हैं। इसका कारक ग्रह चंद्र है। इसमें चंद्र बली होना चाहिए एवं शुभ स्थिति में होना चाहिए। दशम भाव में स्थित जल तत्व की राशियों से इसका संबंध होना चाहिए। जहाज एवं पनडुब्बी इंजीनियरिंग ः मंगल$बुध का जल तत्व ग्रह- चंद्र$शुक्र तथा दशम भाव$जल तत्व की राशियों 4, 8, 12 से संबंध महत्वपूर्ण है। जल तत्व के अंतर्गत सिंचाई विभाग, वाटर वक्र्स, पी. डब्लू डी. विभाग आदि भी आते हैं क्योंकि ये सभी पानी से जुड़े विभाग हैं। इनका भी कारक ग्रह उपरोक्त की तरह जल एवं इनकी राशियां हैं।

 

आजीविका अर्जन हेतु निम्नलिखित योग हैं:

 

  1. फिल्म के क्षेत्र में सफलता के योग:-
  2. सूर्य, चंद्र व मंगल का संबंध दशम भाव या दशमेश से हो तो जातक कलाकार, गायक या वाद्य यंत्र वादक होता है।

 

  • दशम भाव या दशमेश शुक्र की दृष्टि या युति हो तो तो जातक अभिनेता, नर्तक या संगीतज्ञ होता है।

 

    1. बुध व शुक्र बली होकर पहले, दसवें या ग्यारहवंे भाव से संबंध स्थापित करे तो जातक अभिनय क्षेत्र में सफलता पाता है।

 

    1. यदि पंचमेश दशम भाव या दशमेश पंचम भावस्थ हो तो जातक को फिल्म क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है।

 

    1. बली शुक्र यदि पंचमेश या दशमेश के साथ संबंध बनाए तो फिल्म क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है। खिलाड़ी बनकर सफलता पाने के योग मंगल-बुध का संबंध यदि दशम भाव से हो तो।

 

    1. तृतीय भाव, तृतीयेश तथा मंगल यदि दशम भाव से संबंध बनाए।

 

  1. लग्नेश का तृतीय भाव, तृतीयेश मंगल से संबंध साहस का परिचय देता है।

 

इंजीनियर बनकर सफलता पाने के योग:

 

    1. पंचम, पंचमेश, दशम व दशमेश का संबंध शुक्र से हो।

 

    1. दशम भाव या दशमेश, पंचम भाव पंचमेश का संबंध सिंह राशि से हो।

 

    1. मंगल व शनि बली होकर दशम व दशमेश से संबंध बनाएं।

 

    1. दशमेश को सूर्य या चंद्र से युति अच्छी नौकरी दिलवाती है। चिकित्सक बनकर सफलता पाने के योग

 

    1. सूर्य, मंगल, गुरु, शनि, राहु कुंडली में बली हो तथा इनका दशम, एकादश, द्वितीय व सप्तम से संबंध बने।

 

    1. राहु-केतु बली होकर शुभ भावों में हो।

 

    1. पंचम व षष्ठ का संबंध भी जातक को चिकित्सक बनाता है।

 

    1. षष्ठ भाव में षष्ठेश का संबंध दशम या दशमेश से हो।

 

    1. कन्या, वृश्चिक या मीन राशि में सूर्य, मंगल, शनि, राहु, केतु की स्थिति दशम व षष्ठ भावस्थ हो।

 

    1. सूर्य-चंद्र या गुरु-मंगल की युति हो।

 

    1. सूर्य या मंगल का राहु या केतु से युक्त या दृष्ट होना।

 

    1. राहु से त्रिकोण भाव में सिंह राशि में शनि लग्न, दशम में स्थित हो। शल्य चिकित्सक होने के योग

 

    1. दशम भाव या दशमेश से मंगल या केतु का दृष्टि या युति संबंध हो।

 

    1. दशम भाव में सूर्य मंगल की युति

 

    1. दशम भाव में तुला राशि में मंगल हो।

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    1. दशम भाव में सूर्य शनि की युति। वकील बनने के योग

 

    1. दशमेश का नवम या छठे भाव से संबंध।

 

    1. वायु तत्व राशि का दशम, दशमेश, एकादश, एकादशेश से संबंध।

 

    1. तुला राशि का संबंध दशम भाव व दशमेश से हो।

 

  1. तुला, धनु, मीन राशि, गुरु बली होकर लग्न या लग्नेश, दशम या दशमेश से संबंध बनाए।

 

वकील व न्यायाधीश बनने के योग:

 

    1. सूर्य या सिंह राशि का लग्न, दशम दशमेश से संबंध हो।

 

    1. यदि शनि दशम भाव में, तुला राशि में हो, गुरु कर्क राशि या स्वराशि का हो।

 

    1. नli>वमेश व दशमेश का परस्पर संबंध हो।

 

    1. गुरु, बुध व शनि नवमेश से संबंध बनाए।

 

    1. दशम भाव पर केतु का प्रभाव, दशमेश बुध से प्रभावित हो।

 

  1. दशमेश का संबंध नवम व एकादश भाव से हो। गुरु या धनु/मीन राशि का संबंध नीति, नियम व न्याय का संबंध है। यदि गुरु बली हो तो जातक को न्यायप्रिय बनाता है। इसी प्रकार धनु व मीन राशि शुभ ग्रहों से युत व दृष्ट हो तो जातक वकील होता है।

 

सेना या पुलिस अधिकारी बनने के योग:

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    1. मंगल को बल, साहस व पराक्रम का कारक माना जाता है। कुंडली में मंगल बली हो तो जातक सेना, पुलिस से संबंध रखता है। मंगल स्वराशि, लग्न, दशम भावस्थ जातक का सेना या पुलिस से संबंध बनाता है।

 

    1. तृतीय भाव साहस, उत्साह, पराक्रम व बल का प्रतीक है।

 

    1. तृतीय भाव पर क्रूर ग्रहों की दृष्टि जातक को साहसी बनाता है।

 

    1. तृतीयेश की दशम भाव पर दृष्टि-युति।

 

    1. षष्ठ भाव संघर्ष व स्पर्धा व शक्ति को दर्शाता है, षष्ठ भाव में क्रूर ग्रह की युति व दृष्टि या षष्ठ व दशम भाव का संबंध

 

    1. एकादश भाव का संबंध षष्ठ या मंगल से होने पर

 

    1. तृतीयेश का लग्न में होना तृतीयेश का तृतीय भावस्थ होना

 

    1. तृतीयेश का षष्ठ भाव में होना

 

    1. सप्तमेश का तृतीय भाव में होना

 

    1. चतुर्थेश का तृतीय भाव में होना

 

    1. षष्ठ भाव का गुरु से संबंध

 

    1. दशम भाव से मंगल व शनि का संबंध शिक्षक, प्राध्यापक या प्रवक्ता बनने का योग

 

    1. चतुर्थ भाव प्राथमिक शिक्षा का है।

 

    1. चंद्र व गुरु का दशम भाव से संबंध युति या दृष्टि

 

    1. दशमेश का संबंध गुरु से संबंध

 

    1. दशमेश का लग्नेश से तथा पंचमेश का संबंध लग्नेश से है।

 

    1. लग्नेश व दशमेश का एक दूसरे से संबंध यह दर्शाता है।

 

    1. दशम भाव का गुरु या बुध से संबंध

 

    1. बुध संबंध पंचम भाव या पंचमेश से हो। बैंक के क्षेत्र से संबंध

 

    1. द्वितीयेश का दशम भाव से संबंध हो।

 

    1. द्वितीयेश का द्वितीय भाव से तथा बुध से संबंध हो।

 

    1. गुरु का संबंध लग्न व दशम भाव से हो।

 

    1. शुक्र व शनि का संबंध हो।

 

    1. शनि का द्वितीय व एकादश भाव से संबंध हो। कंप्यूटर से संबंधित विशेषज्ञ बनने के योग

 

    1. पंचम भाव, पंचमेश, गुरु, मंगल शनि की युति व दृष्टि

 

    1. दशम व तृतीय भाव का संबंध

 

    1. दशम भाव पर शनि या राहु की दृष्टि

 

  1. दशमेश से शुक्र, बुध, राहु व शनि का संबंध।

 

उद्योगपति बनकर सफलता पाने के योग:

 

    1. सूर्य, चंद्र व मंगल उद्योग के कारक ग्रह हैं तथा धन संबंधी द्वितीय व एकादश का बली होना भी अनिवार्य है।

 

    1. द्वितीयेश व एकादश का संबंध द्वितीय व एकादश भाव से हो।

 

    1. द्वितीयेश व एकादशेश का केंद्र व त्रिकोण से संबंध हो।

 

  1. लग्न व लग्नेश से नवम, नवमेश, दशम, दशमेश, एकादश व एकादशेश से संबंध हो।

 

किसान बनकर सफलता पाने के योग:

 

    1. किसान व मजदूर में शनि की भूमिका, चंद्र शनि की भूमिका अहम है।

 

    1. चतुर्थ व नवम भाव बली हो।

 

    1. चतुर्थ व नवमेश का शनि से संबंध हो।

 

दुकानदार बनकर सफलता प्राप्त करना

 

    1. चंद्र शुभ ग्रहों से दृष्ट हो।

 

    1. शुक्र शुभ हो तो जातक सौंदर्य प्रसाधन, वस्त्र आदि का क्रय-विक्रय करता है।

 

    1. बुध व गुरु बली हों तो जातक ट्रेडिंग करता है।

 

    1. बुध व गुरु बली हों तो जातक ट्रेडिंग करता है।

 

    1. सूर्य व राहु शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो जातक औषधि विक्रेता होता है।

 

    1. लग्नेश व दशमेश की युति

 

  1. दशमेश स्वगृही दशम भाव में स्थित हो।

 



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