प्रश्न: किसी भी पुरुष या स्त्री की जन्मपत्री देखकर बच्चों की संख्या व लिंग का
निर्णय कैसे किया जा सकता है गोद लिए बच्चों का क्या प्रावधान है?
लग्न, चंद्रमा और गुरु से पंचम भाव पुत्रप्रद होता है।
इनसे नवम भाव भी पुत्रप्रद होता है। इन स्थानों के
स्वामियों की दशांतर्दशा में जातक को पुत्र लाभ होता है।
पंचमेश छठे, आठवें या 12वें भाव में हो तो संतान का अभाव
होता है। यदि पंचमेश केंद्र और त्रिकोण में हो तो संतान सुख
होता है।
- पांचवें भाव में छः ग्रह हों और पंचमेश 12वें भाव में, लग्नेश,
चंद्र बलवान हो तो दत्तक पुत्र से सुख होता है।
1. संतान सुख:
- यदि पंचमेश अपनी उच्च राशि में होकर लग्न से दूसरे,
पांचवें या नौवें भाव में हो और गुरु से युत या दृष्ट हो तो
पुत्र सुख को भोगने वाला होता है।
- संतान (पांचवें) भाव में शुक्र, गुरु, बुध हों और बलवान ग्रह
से दृष्ट हो और पंचमेश बली हो तो अनेक संतान होती हैं।
लग्न या चंद्रमा से पंचम भाव में शुभ ग्रह या अपने स्वामी से
युत या दृष्ट हो तो जातक पुत्र सुख प्राप्त करता है। लग्न
से पंचम भाव में चंद्रमा या शु़क्र का वर्ग हो और वह चंद्रमा
या शुक्र से युत या दृष्ट हो तथा उसमें पाप ग्रह न हों।
- पंचम से सप्तम (लग्न से एकादश) भाव में शुभ ग्रह की
राशि का नवांश हो और एकादशेश शुभ ग्रह से युत या दृष्ट
होकर केंद्र या त्रिकोण भावों में स्थित हो तो जातक को पौत्र
लाभ होता है।
- शुभ ग्रह की राशिगत पंचमेश यदि केंद्र या त्रिकोण भावों
में स्थित हो और शुभ ग्रह से युत हो तो अल्पायु में संतान
प्राप्ति होती है।
- पंचम भाव और पंचमेश शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो जातक
संतान प्राप्त करता है।
सप्तमांश कुंडली से संतान सुख के बारे में जानकारी
मिलती है।
लग्न और चंद्र कुंडली के पंचमेश कारक गुरु, गुरु से पंचम
भाव में स्थित ग्रह यदि सप्तमांश कुंडली से उच्च, स्वगृही,
मित्रगृही हों संतान सुख होता है, यदि संबंधित ग्रह सप्तमांश
कुंडली में कमजोर हो तो संतानहीन योग बनता है या संतान
होने पर भी संतान सुख प्राप्त नहीं होता है।
- गुरु वर्गोत्तम नवांश में हो, लग्नेश के नवांश में शुभ ग्रह हो
और वह पंचमेश से युत या दृष्ट हो तो पुत्र योग बनता है।
- पांचवें भाव में राहु शनि के नवांश में न हो, यदि शुभ ग्रह
देखता हो तो अनेक पुत्र होते हैं।
- नवांश लग्न से पांचवें भाव का स्वामी यदि शुभ ग्रह से युत
या दृष्ट हो तो जातक सत्पुत्रवान होता है। इसके विपरीत
होने पर विपरीत फल जानना चाहिए।
2. संतान संख्या: आज के वैज्ञानिक युग में एक या दो
बच्चों की अवधारणा है। ऐसे में अतः संतान संख्या का
निर्णय विवेकानुसार करना ही उचित होगा।
- पंचम या भाग्य स्थान में गुरु हो, पंचमेश बली हो और
धनेश दसवें स्थान में हो तो आठ पुत्र होते हैं। पांचवें भाव
भाव से पंचम भाव में शनि हो और पांचवें भाव में पंचमेश हो
तो सात पुत्र होते हैं जिनमें दो जुड़वां होते हैं। धनेश पांचवें
भाव में और पंचमेश पंचम में हो तो छः पुत्र होते हैं जिनमें
तीन मर जाते हैं।
- लग्न से पांचवें भाव में गुरु, गुरु से पांचवें भाव में शनि,
शनि से पांचवें में राहु हो तो एक पुत्र होता है।
- यदि पंचमेश स्वराशिगत हो तो जातक अल्प पुत्रवान होता
है।
- पंचम भाव के स्वामी का नवांशपति यदि स्वराशि के नवांश
में स्थित हो तो जातक को मात्र एक पुत्र की प्राप्ति होती है।
- पंचम भाव में राहु, सूर्य और बुध हों, पुत्रकारक गुरु शुभ
ग्रह युत हो और शुभ ग्रह से देखा जाता हो तो अनेक पुत्रों
का योग बनता है।
- पंचमेश शुभ ग्रह की राशि में, शुभ ग्रह की दृष्टि हो कारक
गुरु केंद्र में हो तो बहु पुत्र योग होता है।
- लग्नेश पांचवें भाव में पंचमेश लग्न में और गुरु केंद्र या
त्रिकोण में हो तो अनेक पुत्र होते हैं।
- पंचमेश उच्च राशि में और लग्नेश या कारक शुभ ग्रह से
युक्त हो तो बहु पुत्र योग बनता है।
- पंचम स्थान में पंचमेश और गुरु हों और दोनों शुभ ग्रह से
दृष्ट या युक्त हों तो बहु संतान योग बनता है।
- गुरु पूर्ण बली हो, लग्नेश पांचवें भाव में, पंचमेश पूर्ण बली
हो तो बहु संतान योग बनता है।
- लग्नेश और पंचमेश केंद्र में शुभ ग्रहों से युत हों, धनेश
बलवान हो तो संतान योग होता है।
- लग्नेश सातवें भाव में, सप्तमेश लग्न में और धनेश बली हो
तो अनेक पुत्र होते हैं।
- जन्म लग्न चक्र के संतान भाव अर्थात पंचम भाव में जितने
ग्रह स्थित हों तथा इस भाव को जितने ग्रह देख रहे हों
उतनी ही संख्या बच्चों की आंकनी चाहिए।
- पंचम भाव में चंद्रमा दो कन्याएं दे सकता है ऐसा कई
आचार्यों का मत है।
- जन्मकाल में जिस जातक के शुभ ग्रहों से दृष्ट सूर्य प्रचम
भाव में बैठा हो, उसे तीन पुत्र होने की संभावना रहती है।
- यदि जन्मकाल में पत्रिका के पंचम भाव में शनि की सम
राशि में मकर का शनि 400 कलाओं के अंतर्गत विराजमान
हो तो उस जातक के तीन पुत्र होते हैं, ऐसा कहा गया है।
- जन्मकाल में किसी भी जातक की जन्मपत्री के पांचवें
स्थान अथवा उसके स्वामी से राशि या शुक्र ग्रह जिस राशि
में विराजमान हों उस राशि तक जितनी राशियां पड़ती हों
उतनी संतान संख्या माननी चाहिए।
- पंचमेश के उच्च बल का साधन करते हुए पंचम भाव के
अधिपति ग्रह की रश्मियां निकाल ली जाती हैं। इस पद्धति
में पंचम भाव के स्वामी की जितनी रश्मियां निर्धारित की गई
हैं उतनी ही संख्या बच्चों की मान ली जाती है।
- मकर राशि के उच्च के मंगल, कन्या राशि के उच्च के बुध
और तुला राशि के उच्च के शनि की 5-5 रश्मियां होती हंै।
- कर्क के उच्च के बृहस्पति की 7 रश्मियां होती हैं।
- वृष राशि के उच्च के चंद्रमा की 9 रश्मियां होती हैं।
- मेष राशि के उच्च के सूर्य की 10 रश्मियां होती हैं।
उदाहरणार्थ जन्म काल में यदि किसी जातक का जन्म तुला
लग्न में शनि के स्थित होने पर हुआ हो तो उसकी संतान
संख्या पांच मानी जाएगी क्योंकि पंचमेश के उच्च के शनि
की रश्मियां पांच हैं।
3. पुत्र योग
- पंचमेश और गुरु यदि वैशिकांश में स्थित हों और नवम
भाव के स्वामी से दृष्ट हों तो पुत्र का जन्म होता है।
- सप्तम भाव और समराशिगत पंचमेश या नवमेश यदि पुरुष
राशि के वर्ग में हो, पुरुष ग्रहों से दृष्ट हो तो पुत्र का जन्म
होता है।
- जन्म लग्न, सूर्य, गुरु और चंद्रमा विषम राशि और विषम
राशि के नवमांश में हों तो पुत्रों का जन्म होता है। पंचमेश
पुरुष ग्रह हो, विषम राशि या विषम नवमांश में हो तो पुत्रों
का जन्म होता है।
- पंचम या सप्तम में बलवान पुरुष ग्रह हों, पंचम भाव पर
बली मित्र ग्रहों की दृष्टि हो, यदि पति की कुंडली में स्त्री
ग्रहों की अपेक्षा पुरुष ग्रह बलवान हों और पत्नी की कुंडली
में भी स्त्री ग्रहों की अपेक्षा पुरुष ग्रह बलवान हों तो उस
दंपति को पुत्र ही पुत्र होंगे, कन्या नहीं होगी।
- पंचम भाव के स्वामी का नवांशपति यदि स्वराशि के नवांश
में स्थित हो तो मात्र एक पुत्र होता है।
- गर्भाधान के समय गोचर के अनुसार पुरुष ग्रह बली हो तो
पुत्र जन्म का योग बनता है, भले ही जन्मकुंडली में कन्या
संतति का योग उपस्थित हो। गोचर के आधार पर पुत्र
प्राप्ति के योग इस प्रकार हैं।
- सिंह लग्न का स्वामी सूर्य स्वगृही हो तो एक पुत्र संतान
देता है।
- पंचमेश उच्च का हो, बली गुरु की पंचम भाव पर दृष्टि हो
और पुरुष ग्रह बली हो तो संतान (पुत्र) का योग बनता है।
- पंचमेश विषम (पुरुष) राशि में हो, पंचम भाव में पुरुष ग्रह
हो और पंचम भाव पर गुरु की दृष्टि हो तो पुत्र योग बनता
है।
4. कन्या संतान योग
- पंचम या नवम का स्वामी लग्न से सप्तम भाव में स्थित हो
या समराशिगत हो और वह चंद्रमा या शुक्र से युत या दृष्ट
हो तो कन्या का जन्म होता है।
- जन्म लग्न, सूर्य, गुरु और चंद्रमा सम राशि और सम (स्त्री
राशि) के नवांश में हों तो कन्याओं का जन्म होता है अर्थात
पुत्र नहीं होता है। यदि बली मंगल, चंद्रमा और शुक्र
समराशिगत हो तो कन्या का जन्म होता है।
- पंचमेश स्त्री ग्रह हो और पंचम भाव में स्त्री ग्रह स्थित हो
तो कन्याओं का जन्म होता है। पंचम या सप्तम में स्त्री ग्रह
हो साथ में लग्न पर स्त्री ग्रहों की दृष्टि हो।
- स्त्री की जन्मपत्री में स्त्री ग्रह पुरुष ग्रहों की तुलना में बली
हों और पति की कुंडली में भी स्त्री ग्रह बली हों तो उस
दम्पति को कन्याएं होती हैं।
- पंचम भाव में समराशि हो पंचमेश भी सम राशि में स्थित
हो और पंचम भाव पर स्त्री ग्रहों की दृष्टि हो।
- पंचम भाव पर स्त्री ग्रहों की दृष्टि हो तो कन्या का जन्म
होता है।
- पंचम भाव में शनि की राशि, शनि की लग्न और गुरु
(संतान कारक) पर दृष्टि हो तो दत्तक योग बनता है।
- पंचम भाव में समराशि, पंचमेश सम राशि में, स्त्री ग्रह बली
हों तो कन्या संतान का जन्म होता है।
- पंचमेश सम राशि में हो और जन्मकुंडली में स्त्री ग्रह प्रधान
हो तो पुत्रियों का जन्म होता है।
5. जुड़वां बच्चों का योग
- द्विस्वभाव राशि के नवांश से युक्त लग्न और ग्रह हों और
उन्हें मिथुन नवांशयुक्त बुध देखता हो तो एक कन्याओं और
और दो पुत्रों का जन्म होता है।
- द्विस्वभाव राशि के नवांश से युक्त लग्न और ग्रह हों और
उनको कन्या नवांश युक्त बुध देखता हो तो दो कन्या एक
पुत्र का जन्म होता है।
- जन्म लग्न, सूर्य, गुरु और चंद्रमा द्विस्वभाव राशि और
द्विस्वभाव राशि के नवमांश में हों और बुध से दृष्ट हों तो
यमल (जुड़वां) का जन्म होता है।
- यदि द्विस्वभाव की विषम राशि का जन्म हो तो दो पुत्रों
का जन्म होता है।
- यदि द्विस्वभाव राशियां सम राशियां हों तो दो कन्याओं का
जन्म होता है।
- यदि द्विस्वभाव राशियां और नवांश राशियां सम और विषम
(मिश्र) हों तो एक कन्या और एक बालक का जन्म होता है।
लग्न और चंद्रमा यदि सम राशि में हों और पुरुष ग्रह (सूर्य,
मंगल, गुरु) उन्हें देखते हों तो जुड़वां का जन्म होता है।
6. दत्तक योग: यदि पति या पत्नी या दोनों में संतान
उत्पन्न करने की क्षमता नहीं हो या संतान आगे वंश वृद्धि
में असमर्थ हो तब पति-पत्नी किसी दूसरे के बच्चे को गोद
लेते हैं।
- जन्मकाल में लग्न से पंचम अथवा सप्तम स्थान में मंगल
तथा शनि ग्रह विराजमान हों और उन पर किसी भी ग्रह की
दृष्टि न पड़ रही हो तो जातक के संतान गोद लेने का योग
बनता है।
- दृष्टिविहीन शनि मंगल की जन्मकालीन पंचमस्थ या
सप्तमस्थ युति दत्तकपुत्र योग दर्शाती है।
इसके अतिरिक्त निम्न योग वाली जन्मकालिक ग्रह स्थिति
के होने पर भी जातक अपने वास्तविक माता-पिता द्वारा
निःसंतान दंपति को अर्थात नए माता-पिता को गोद दिया
जा सकता है:
- शत्रुक्षेत्री ग्रहों से सूर्य या चंद्र की युति।
- चंद्र से चैथे अनिष्टकारी (पापी) ग्रहों की उपस्थिति।
- चतुर्थ भाव से सातवें भाव में अथवा दशम भाव से सातवें
भाव में पहली, पांचवीं, आठवीं और 10वीं राशियों में किसी
भी राशि की उपस्थिति।
- चैथे या दसवें घर में अशुभ पापी ग्रहों की उपस्थिति।
- सूर्य या चंद्र की राशि में अनिष्टकर पापी ग्रहों का होना।
- पापी ग्रहों की सूर्य या चंद्र के साथ युति या दृष्टि।
- सूर्य से नौवें या दसवें भाव में राहु, मंगल और शनि की
उपस्थिति।
- पंचम भाव में भौम व शनि हों, जन्म लग्न में बुध की राशि
हो और बुध से दृष्ट या युत हो तो दत्तक पुत्र होता है।
- पंचम भाव में शनि या बुध की राशि हो और गुलिक या
शनि से युत या दृष्ट हो तो दत्तक पुत्र होता है।
- पंचमेश शनि से युत हो, भौम बुध से दृष्ट हो और लग्नेश
बुध के नवांश में हो तो दत्तक पुत्र से सुख प्राप्त होता है।
- लग्नेश और शुक्र उच्च हांे, पांचवें भाव में शनि हो और
कारक बली हो तो दत्तक पुत्र होता है।
- पंचमेश रवि लग्न में और पंचम भाव में शनि व बुध हों और
पंचमेश बली हो।
- लग्नेश बुध पांचवें भाव में हो और भौम से दृष्ट हो और
कारक एकादश भाव में हो।
- लग्नेश गुरु पांचवें भाव में शनि से दृष्ट हो और पंचमेश
भौम की राशि में हो तो दत्तक पुत्र होता है।
- समराशि के अथवा शनि के नवमांश में स्थित पंचम भाव
का स्वामी यदि सूर्य और बुध के साथ युत हो तो इस योग
में उत्पन्न जातक दत्तक पुत्र से पुत्रवान होता है।
- समराशि के लग्न में या लग्न से चतुर्थ भाव में पंचम भाव
का स्वामी शनि नवांशस्थ होकर स्थित हो।
- यदि लग्नेश और पंचमेश दुःस्थान छठे, आठवें या 12वें भाव
में स्थित होकर शुभ ग्रह से दृष्ट हों तो जातक को दत्तक पुत्र
का लाभ होता है।
- पंचम भाव में स्थित ग्रह और उसके कारक (गुरु) में जो
बलवान हो उसके षडवर्ग में जो राशियां ग्रह विहीन हों वे
जिस जाति की द्योतक हों उस जाति के व्यक्ति से जातक
दत्तक पुत्र प्राप्त करता है।
- शनि या बुध की राशि (मकर, कुंभ, मिथुन, कन्या) पंचम
भाव में शनि से युत या दृष्ट हो, लग्नेश बलवान हो तो
जातक दत्तक पुत्र प्राप्त करता है।
गुणसूत्र वाला शुक्राणु अधिक सक्रिय
या प्रभावी रहेगा।
ज्योतिष द्वारा संतान संबंधी विचार में
लग्न को महत्व दिया जाना हार्मोंस और
आनुवंशिक आधार पर समर्थन मिलता
है।
2. पंचम और पंचमेश: हमारे प्राचीन
ज्योतिषियों ने पंचम, पंचमेश और इनसे
युत या दृष्ट ग्रहों को बहुत अधिक महत्व
दिया है। इस पर पुनः विचार करें। यदि
जन्मकुंडली का अध्ययन शारीरिक अंगों
के आधार पर करें तो पंचम भाव और
पंचमेश का संबंध आमाशय, यकृत और
हृदय से होता है। यकृत द्वारा पाचक
रसों की पूर्ति, आमाशय द्वारा भोजन का
पाचन और हृदय द्वारा पचित उचित
भोज्य पदार्थ समस्त शरीर में (जननांग
को छोड़) भेजा जाता है।
- शुक्ल पक्ष में बल प्राप्त करने वाले ग्रह (बुध, गुरु, शुक्र)
यदि शनि के नवांश में स्थित हों तथा गुरु पंचम भाव में
स्थित हो तो इस योग में उत्पन्न जातक की वंश वृद्धि उसके
दत्तक पुत्र से होती है।
- पंचमेश शनि के नवांश में तथा गुरु और शुक्र अपनी
राशियों में स्थित हों तो इस योग में उत्पन्न व्यक्ति दत्तक
पुत्र प्राप्त करता है और बाद में अपनी पत्नी से भी पुत्र प्राप्त
करता है।
- चंद्रमा यदि पापराशि में स्थित हो, पंचमेश नवम भाव में
और यदि लग्नेश भी पंचम या नवम भाव में स्थित हो तो
जातक को दत्तक पुत्र प्राप्त होता है।
- निर्बल पंचमेश, सप्तमेश और लग्नेश के मध्य यदि किसी
भी प्रकार का संबंध न हो तो जातक दूसरे के पुत्र को गोद
लेता है।
7. ज्योतिष के अनुसार लिंग निर्धारण: ज्योतिष के
अनुसार लग्न, लग्नेश या चंद्र राशि, राशीश पर पुरुष ग्रहों
का प्रभाव यदि अधिक हो तो जातक या जातिका में पुरूषत्व
गुण अधिक होंगे।
यदि लग्न या चंद्र राशि सम हो और लग्न व लग्नेश पर स्त्री
ग्रहों का प्रभाव अधिक हो तो उसके ग्ल् गुणसूत्रों में से ग्
ग्रह की युति या दृष्टि हो तो जातक या जातका में पुरुषत्व
प्रधान होगा।
इसके विपरीत यदि पंचम भाव और पंचमेश के ऊपर स्त्री
ग्रहों का प्रभाव हो तो स्त्रीत्व प्रघान होगा। इस प्रकार पंचम
भाव संतान संबंधी विचार में महत्वपूर्ण है।
3. सप्तम और सप्तमेश: लग्न कुंडली के आधार पर
सप्तम और सप्तमेश का संबंध प्रजननांग से रहता है। लग्न
से ठमहपदपदह ए पंचम से च्तवकनबजपवद सप्तम से ब्वससमबजपवद
ंदक डंजमतदपजल अर्थात मुख्य त्मचतवकनबजपअम डंजमतपंस यहां
तैयार होता है जो प्रजनन के लिये आवश्यक होते हैं। साथ
ही वे स्त्री अंग जिनमें संतान का विकास होता है।
अतः सप्तम भाव और सप्तमेश की शुभ स्थिति और शुभयुति
या दृष्टि परिपक्व जननांग और जनन क्रिया में सहायक
होती है तथा अशुभ दृष्टि या स्थिति असफल जनन क्रिया
का कारक होती है।
चूंकि समस्त नियम एक साथ पूरे होने कठिन हैं लेकिन
जितने नियम पूरे होंगे उस प्रकार से पुत्र या पुत्री की
संभावना अधिक रहेगी।
यदि उक्त प्रकार की सिद्धांतों या नियमों को ध्यान में रखकर
जातक या जातका की जन्मपत्री का अध्ययन किया जाए तो
फलादेश लगभग सही निकलेगा।