वास्तु ज्योतिष में रंग-चिकित्सा

वास्तु ज्योतिष में रंग-चिकित्सा  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 4709 | फ़रवरी 2012

वास्तु ज्योतिष में रंग चिकित्सा गोपाल राजू आज विष्वव्यापी स्तर पर स्वीकार कर लिया गया है कि रंगों में ‘ईष्वर’ की प्राणतत्व की ऐसी अनेकानेक सूक्ष्म शक्तियां सन्निहित हैं जिनका उपयोग कर हम स्वास्थ्य लाभ तो कर ही सकते हैं, अन्य अनन्त शक्तियों के स्वामी भी बन सकते है। आवष्यकता केवल रंग-वर्ण भेद को समझने की है। उनके समायोजन की विधि-व्यवस्था जानने की है और उन्हें अपने जीवन में उतारने की है।

विभिन्न रंगों के गुण-धर्म-प्रभाव का सबसे अच्छा उपयोग वैकल्पिक चिकित्सा में किया जा रहा है। रंगों का सम्बंध भावना से है और बीमारी के बारे में कहा गया है कि यह मष्तिष्क में उत्पन्न होती है और शरीर में पलती है अर्थात् बीमारी मूलतः भावना प्रधान है। रंगों का सीधा प्रभाव हमारे पंचकोषों एवं षट्चक्रों के रंगों पर भी पड़ता है जो हमारे समस्त शरीर-तंत्र के संचालक हैं।

रंगों के प्रभावी गुण के कारण ही रंग-चिकित्सा का चलन हुआ। इस चिकित्सा में शारीरिक तथा मानसिक रुग्णता दूर करने का उपक्रम-साधन रंग ही हैं। रत्न के प्रभाव का मूल कारण रंग ही है। इसीलिए विभिन्न रोगों के निदान में रत्नों का महत्वपूर्ण स्थान है। वास्तु ज्योतिष में ग्रहों तथा विभिन्न रंगों के तारतम्य को जोड़ने पर बल दिया गया है क्योंकि इनमें हुआ असन्तुलन ही बीमारियों का मूल कारण है। वैसे तो रंग विभिन्न बीमारियों पर उनका तरह-तरह से उपयोग ‘फोटो मैडिसन’ के अन्तर्गत आज सर्वविदित है।

परन्तु इनमें भी सबसे अधिक चर्चित, सर्वसुलभ तथा सस्ता वास्तु शास्त्र के अन्तर्गत रंगों का चुनाव करना ही है। कुछ बीमारियों के लिए लाभदायक रंग लिख रहा हॅू। इनका प्रयोग रंगाई-पुताई के साथ-साथ अपने नित्य प्रयोग होने वाले कपड़ों आदि में भी कर सकते हैं ताकि इन रंगों का अधिक से अधिक समावेष आपके भवन तथा शरीर पर हो सके।

बैंगनी रंग का प्रभाव सीधा दमे और अनिद्रा के रोगी पर पड़ता है। आर्थराइट्सि, गाउट्स, ओंडिमा तथा प्रत्येक प्रकार के दर्द में यह सहायक है। जहाॅ मच्छरों का अधिक प्रकोप होता है वहाॅ बैंगनी रंग सहायक है। इसका सीधा प्रभाव शरीर में पोटेषियम की न्यूनता को दूर करता है। शरीर में षिथिलता व नपुंसकता दूर करने के लिए सिंदूरी रंग गुणकारी है।

शरीर में त्वचा संम्बन्धी रोगों में नीला अथवा फिरोजी रंग अच्छा कार्य करता है। जो बच्चे पढ़ाई से जी चुराते है अथवा अल्पबुद्धि के होते हैं उनके कमरे लाल अथवा गुलाबी रंग के करवाएं। उनकी एकाग्रता बढ़ेगी तथा शैतानी कम होगी। पीला रंग हृदय संस्थान तथा स्नायु तंत्र को नियंत्रित करता है। तनाव, उन्माद, उदासी, मानसिक दुर्बलता तथ अम्ल-पित्त जनित रोगों में भी यह सहायक है।

मस्तिष्क को सक्रिय करने का इस रंग में विलक्षण गुण है। इसलिए विद्यार्थी तथा बौद्धिक वर्ग के लोगों के कमरे पीले रंग के रखवाया करें। हरा रंग दृष्टिवर्धक है। उन्माद को दूर कर यह मानसिक शान्ति प्रदान करता है। घाव को भरने में यह जादू-सा असर करता है परन्तु ऊतकों और पिट्यूटरी ग्रंथि पर इस रंग का प्रभाव विपरीत भी हो सकता है।

पेट से सम्बन्धित बीमारी के रोगी आसमानी रंग को जीवन में उतारें। नारंगी रंग तिल्ली, फेफड़ों तथा नाड़ियों पर प्रभाव डालकर उन्हें सक्रिय बनाता है। यह रंग रक्तचाप को भी नियंत्रित करता है। लाल रंग भूख बढ़ाता है।

सर्दी, जुकाम, रक्तचाप तथा गले के रोगों में भी यह रंग महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पक्षाघात वाले रोगियों को सफेद पुते कमरे में रखने तथा अधिकाधिक सफेद परिधान प्रयोग करवाने से चमत्कारिक रुप से लाभ मिलता है।

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