सिकंदर महान

सिकंदर महान  

व्यूस : 16530 | नवेम्बर 2010
''सिकंदर महान'' यद्गाकरन शर्मा सितारों की कहानी सितारों की जुबानी स्तंभ में हम जन्मपत्रियों के विश्लेषण के आधार पर यह बताने का प्रयास करते हैं कि कौन से ग्रह योग किसी व्यक्ति को सफलता के शिखर तक ले जाने में सहायक होते हैं। यह स्तंभ जहां एक ओर ज्योतिर्विदों को ग्रह योगों का व्यावहारिक अनुभव कराएगा, वहीं दूसरी ओर अध्येताओं को श्रेष्ठ पाठ प्रदान करेगा तथा पाठकों को ज्योतिष की प्रासंगिकता, उसकी अर्थवत्ता तथा सत्यता का बोध कराने में मील का पत्थर साबित होगा। संसार के महान योद्धाओं में विश्व विजेता सिकंदर का नाम अग्रणीय है। अगर इतिहास पर दृष्टि डालें तो हमें पता चलता है कि महान पुरुष इस धरती पर कम ही समय के लिए रहे। वे जल्दी ही अपना कार्य समाप्त करके चले गये। इतिहासकारों के अनुसार आदिगुरु शंकराचार्य केवल 32 वर्ष की आयु में और सिकंदर मात्र 33 वर्ष की आयु में इस धरा को छोड़ चल दिए। जब सिकंदर एक शहर जीत कर आया तो उससे किसी ने पूछा, यदि अवसर मिला तो क्या आप अगला शहर भी जीतेंगे? सिकंदर ने कहा,'' अवसर! अवसर क्या होता है? मैं स्वयम् अवसर बनाता हूं।'' इस संसार में जिन्हें महान बनना है वे समय का इंतजार नहीं करते अपितु निरंतर अपनी उन्नति की राह पर आगे बढ़ते चले जाते हैं। सिकंदर बहुत महत्वाकांक्षी थे। वह यूनान के निवासी थे तथा समस्त विश्व पर अपना आधिपत्य जमाना चाहते थे। उन्होंने अपना साम्राज्य यूनान से उत्तर भारत तक फैलाया। भारत में उसकी राजा पोरस से मुठभेड़ हुई। पोरस हार गया लेकिन उसकी वीरता को देख संधि की एवम् मित्र बनाया। भारत से लौटते हुए बेबिलॉन में सिकंदर की मृत्यु हो गई। सिकंदर के जन्म के समय राजा फिलिप को ज्योतिर्विदों ने यह भविष्यवाणी की थी कि युद्ध भूमि में उनका पुत्र अजेय होगा और कालांतर में यह बात सत्य सिद्ध हुई। सिकंदर 336 ई.पू. में अपने पिता फिलिप-प्प् की हत्या हो जाने के बाद यूनान में मैसेडोनिया का शासक बना। उस समय उसकी आयु मात्र 20 वर्ष थी। सिकंदर के गुरु एरिस्टॉटल थे। सिकंदर साहसी और वीर थे। वह बुद्धिमान और कूटनीतिज्ञ थे। अपने बचपन में सिकंदर वीर पुरुषों की गाथाएं सुना करता था। सिकंदर ने बचपन में एक घोड़े को अपनी वीरता और कुशलता से साधकर वश में कर लिया था। बाद में यही घोड़ा सिकंदर के सभी विजय अभियानों में उसका प्रिय साथी बना। सिकंदर एक कुशाग्र बुद्धि शासक था। उसने यूरोप, पर्सिया, दक्षिणपूर्व एशिया, मिश्र और भारत में सिंधु घाटी तक अनेक देशों पर विजय प्राप्त की। सिकंदर ने अपने जीवन में कदापि पराजय का मुंह नहीं देखा और मात्र 13 वर्षों में उस समय के लगभग आधे विश्व पर विजय प्राप्त कर ली थी। 323 ई. पू. में बेबिलॉन में सिकंदर की अचानक ही मृत्यु हो गई। सिकंदर का कोई पुत्र नहीं था इसलिए उसका साम्राज्य टूटने और बिखरने लगा तथा उसके विभिन्न सेनापतियों के अधीन होने लगा। कुछ लोग कहते हैं कि उसे जहर दिया गया था और कुछ का कहना है कि असने आत्मदाह किया था और कुछ लोगों के मतानुसार उसकी मृत्यु शीत ज्वर के कारण हुई थी। प्रस्तुत है इस विश्वप्रसिद्ध योद्धा की जन्मकुंडली का संक्षिप्त विश्लेषण। सिकंदर का जन्म मेष लग्न में हुआ जो दृढ़ लग्न माना जाता है। लग्नेश मंगल पराक्रम के तृतीय भाव में स्थित होकर शुभ ग्रह गुरु से दृष्ट होकर अत्यंत बली है। जहां तृतीयस्थ मंगल ने इन्हें महान पराक्रमी व महान योद्धा बनाया। वहीं चतुर्थ भाव स्थित तृतीयेश बुध ने व आत्माकारक शनि ने इन्हें कूटनीतिज्ञ व राजनीतिविशारद बनाया। मंगल वीरता, बल, पराक्रम, उत्साह तथा व्यक्तिगत, सामाजिक व राजनीतिक प्रभाव का प्रतीक है। इस मंगल का लग्नेश होकर तृतीय भावस्थ होना इस बात का संकेत देता है कि जातक निश्चित रूप से पराक्रमी होगा। लग्न व लग्नेश दोनों पर शुभ ग्रह गुरु की पूर्ण दृष्टि है। सिकंदर महान की कुंडली में अमल, योग, पर्वत योग, वसुमतियोग, गजकेसरी योग, महाभाग्य योग व पारीजात योग विराजमान हैं। भाग्येश गुरु चंद्रमा से संयुक्त होकर सप्तम भाव में गजकेसरी योग बना रहा है तथा बली लग्न, लग्नेश व एकादश भाव में स्थित बली राहु पर दृष्टि डालकर इन्हें महान भाग्यशाली बना रहे हैं। भाग्य भाव के पूर्ण फलीभूत होने के लिए पंचम भाव (नवम से नवम) का बली होना आवश्यक होता है। क्योंकि पूर्वजन्म का विचार, अर्थात् पूर्व जन्मार्जित पुण्य व पाप का विचार इसी भाव से किया जाता है। इस भाव के शुभ होने पर जातक के भाग्य में रुकावटें नहीं आतीं तथा भाग्य निरंतर साथ देता रहता है साथ ही ऐसा जातक बुद्धिमान भी होता है। सिकंदर की कुंडली में नवम व पंचम दोनों की स्थिति श्रेष्ठ है साथ ही लग्नेश भाग्व भाव को व भाग्येश लग्न को देखकर अपूर्व भाग्य योग बना रहे हैं। यही कारण है कि आज भी यदि किसी व्यक्ति का भाग्य प्रखर हो तो उसे मुकद्दर का सिकंदर माना जाता है। सिकंदर का पंचमेश पंचम भाव में स्वगृही होकर द्वितीयेश व केतु से संयुक्त है, जिस कारण यह कुशाग्र बुद्धि संपन्न हुए, साथ ही बुद्धि के कारक गुरु और बुध भी केंद्र भावों में स्थित हैं। पंचमेश सूर्य उच्चनवांश में स्थित है। लग्न में चरराशि मेष (जो प्रभाव, शक्ति और पौरुष की प्रतीक है) का होना तथा पंचम भाव की स्थिति का श्रेष्ठ होना यह बताता है कि सिकंदर में तुरंत निर्णय लेने की पूर्ण क्षमता थी। तृतीय भाव व मंगल की उत्तम स्थिति यह बताती है कि यह अपने निर्णय को शीघ्र ही कार्यान्वित करने की पराक्रम शक्ति से संपन्न थे। पंचम भाव में सूर्य, शुक्र व केतु की युति के फलस्वरूप ही उन्हें राजकार्यों में पूर्ण सफलता मिली। दशमेश व एकादशेश शनि धनभाव में स्थित है। लाभ भाव में राहु की स्थिति अचानक धन लाभ व सफलता देती है तथा चतुर्थेश व भाग्येश की केंद्र में युति ने इन्हें भाग्यशाली तथा ऐसी स्थिति में बलवान लग्नेश ने इन्हें महान पराक्रमी व विश्वविजेता बनाया।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.