विद्या और बुद्धि के योग

विद्या और बुद्धि के योग  

व्यूस : 15837 | फ़रवरी 2008
विद्या और बुद्धि के योग आभा बंसल ज्या तिष शास्त्र में चतुर्थ स्थान से विद्या का और पंचम से बुद्धि का विचार किया जाता है। उच्च शिक्षा एवं विद्या जनित यश का विचार दशम भाव से किया जाता है। विद्या और बुद्धि में घनिष्ठ संबंध है। विद्या की अलग अलग विधाओं के अलग अलग ग्रह हैं। बृहस्पति से वेद, वेदांत, व्याकरण, ज्योतिष, बुध से वैद्यक, शुक्र से संगीत और प्रभावशाली व्याख्यान शक्ति, मंगल से न्याय, शासन एवं गणित, सूर्य से वेदांत, चंद्र से वैद्यक तथा शनि एवं राहु से अन्य देशीय विद्याओं (अंग्रेजी आदि) का विचार किया जाता है। कुंडली में बुध की स्थिति से विद्या अध्ययन और विद्या ग्रहण की शक्ति और बृहस्पति से विद्या के विकास का विचार किया जाता है। सर्वार्थ चिंतामणि, ज्योतिष रत्नाकर, जातक परिजात आदि विभिन्न ग्रंथों में विद्या के अनेक सूत्र दिए गए हैं जिनके आधार पर कुंडली का विष्लेषण कर देख कर हम जातक की विद्वत्ता ज्ञान और विद्या के बारे में जान सकते हैं। यहां कुछ उदाहरण कुंडलियों का विश्लेषण प्रस्तुत है जिसके आधार पर उन सूत्रों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। परंतु यह क्षेत्र भी अपवाद से अछूता नहीं है। अनेक कुंडलियों में ये योग न होने पर भी उनके जातक विद्या अथवा विज्ञान के क्षेत्र में बहुत नाम कमाते हैं। कुंडनी सं. 1: यह कुंडली आदि गुरु श्री शंकराचार्य जी की है। इसमें द्वितीयेश उच्च सूर्य केंद्र अर्थात् दशम स्थान में स्थित है। चतुर्थेश श्ुाक्र भी दशम स्थान में सूर्य के साथ है। नवमेश, जिससे अध्यात्म विद्या का विचार किया जाता है, उच्च एवं केंद्रस्थ है और नवम एवं पंचम भाव को पूर्ण दृष्टि से देख रहा है। बुद्धि का दाता बुध भी दशम भाव में सूर्य व शुक्र के साथ है। बृहस्पति लग्न में उच्च राशि में स्थित है और मंगल भी चंद्र से केंद्र में है। यह सर्वविदित है कि शंकराचार्य जी महान एवं अपने समय के अद्वितीय विद्वान हुए। सर्वार्थ चिंतामणि के अनुसार विद्या कारक बृहस्पति और बुद्धि कारक बुध दोनों एक साथ हों अथवा एक दूसरे से दृष्ट हांे तो भी जातक राजा अथवा जनता से बहुत सम्मान पाता है। कुंडली सं. 2: यह कुंडली श्री सूर्य नारायण राव जी की है। इसमें चतुर्थ भाव का स्वामी सूर्य पंचम भाव के स्वामी बुध के साथ दशम अर्थात विद्या जनित यश स्थान में स्थित है। बुध द्वितीयेश एवं पंचमेश होकर बृहस्पति के साथ दशम में है। चंद्र से पंचमेश सूर्य और लग्न से पंचमेश बुध दोनों गुरु के साथ केंद्र में स्थित हैं। इन्हीं योगों के कारण ये भारत में ही नहीं अन्य देशों में भी महान विद्वान के रूप में प्रसिद्ध थे। ज्योतिष के क्षेत्र में इनका योगदान अतुलनीय है। कुंडली सं. 3: यह कुंडली ज्योतिष को अपने कंप्यूटर साॅफ्टवेयर द्वारा जन-जन तक पहुंचाने वाले एवं भारत में कंप्यूटरीकृत ज्योतिषीय साॅफ्टवेयर के जनक श्री अरुण बंसल जी की है। इस कुंडली में द्वितीयेश बुध वाक् एवं कल्पना शक्ति कारक होकर पंचमेश गुरु के स्थान में और लग्न से पंचमेश एवं चंद्र से नवमेश गुरु विद्या का कारक होकर द्वितीयेश बुध के स्थान में स्थित है और विद्या जनित यश के दशम भाव पर उसकी नवम दृष्टि है। दोनों ग्रहों के परस्पर परिवर्तन ने उन्ह अत्यंत बुद्धिमान, मृदुभाषी, विद्वान, गंभीर एवं तर्क शक्ति का घनी बनाया। इन्हीं ग्रह योगों के कारण श्री बंसल ने अपने साॅफ्टवेयर की सहायता से ज्योतिष को अत्यंत सरल बनाया। कुंडली सं. 4: यह कुंडली देश विदेश में प्रसिद्ध श्री धीरू भाई अंबानी की है। इसमें लग्नेश एवं पंचमेश गुरु लग्न तथा चंद्र दोनों से केंद्र दशम भाव में स्थित है। द्वितीयेश शनि स्वगृही है। पंचमेश एवं द्वादशेश मंगल लग्न से नवम भाव में केतु के साथ स्थित है। द्वितीयेश शनि पर लग्नेश गुरु की पूर्ण पंचम दृष्टि है। यह सर्वविदित है कि धीरूभाई अंबानी ने अपनी बुद्धि से अपने छोटा सा व्यवसाय शुरू कर भारत के सबसे बड़े व्यापारी के रूप में नाम कमाया और अपनी बुद्धि के बल पर ही अपने भाग्य और कर्म क्षेत्र में नये कीर्तिमान स्थापित किए। कुंडली सं. 5: यह कुंडली अत्यंत लोकप्रिय आइ. पी. एस. अधिकारी श्रीमती किरण बेदी जी की है। इनकी तीक्ष्ण बुद्धि, विद्वता, वाक्शक्ति, अध्यात्म विद्या का उनका गहन ज्ञान जग जाहिर है। तिहाड़ जेल में उन्होंने अनुशासन के साथ-साथ कैदियों के उत्तम स्वास्थ्य के लिए अध्यात्म एवं व्यायाम की कक्षाएं कीं। उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए उन्हें मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया। किरण जी की कुंडली में लग्नेश एवं दशमेश बुध शुक्र की राशि में नवम भाव में मंगल और सूर्य के साथ और द्वितीयेश एवं नवमेश शुक्र बुध की राशि मिथुन में दशम भाव में स्थित है अर्थात नवमेश एवं दशमेश का परिवर्तन योग है। चतुर्थेश गुरु पंचम भाव में बैठकर नवम स्थान में तृतीयेश मंगल को पंचम दृष्टि एवं द्वितीय स्थान को नवम दृष्टि से देख रहा है अर्थात गुरु एवं बुध का द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ तथा नवम स्थान से संबंध बन रहा है। ज्योतिष रत्नाकर के अनुसार ऐसा होने पर व्यक्ति की शिक्षा उच्च कोटि की होती है। एक अन्य सूत्र के अनुसार पंचमेश जिस भाव में हो, उस भाव के स्वामी पर यदि शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो बुद्धि तीक्ष्ण होती है। यहां पंचमेश शनि द्वादश भाव में सूर्य के घर में स्थित है और सूर्य नवम भाव में गुरु से पंचम तथा चंद्र से सप्तम दृष्टि से दृष्ट है। इस तरह योग फलीभूत हो रहा है। इसमें लग्नेश एवं दशमेश गुरु अपनी उच्च राशि कर्क में पंचमस्थ है। द्वितीयेश मंगल चतुर्थ स्थान में और चतुर्थेश बुध द्वितीय स्थान में शुक्र और सूर्य के साथ है। पंचमेश चंद्र लग्न में पंचम स्थान स्थित गुरु से नवम दृष्टि से दृष्ट है तथा गुरु व चंद्र के बीच लग्नेश व पंचमेश का अति उत्तम स्थान परिवर्तन योग है। अर्थात् इस कुंडली में विद्या एवं बुद्धि के अनेक योग उपस्थित हैं। कुंडली सं. 7: भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को सभी जानते हों। इनकी कुंडली में विद्या, बुद्धि के साथ-साथ गुणवान व्यक्ति की प्रतिभा देखने को मिलती है। लग्न कुंडली से राशि कुंडली अधिक बलवान दिखती है क्योंकि चंद्र कुंडली में सिंह राशि में सूर्य व चंद्र बलवान हैं। इसलिए वह बृहस्पति की महादशा में भारत के राष्ट्रपति बने। यह समय 11.08.1967 तक रहा। सिंह लग्न से पंचम भाव का स्वामी गुरु चतुर्थ भाव के स्वामी मंगल के साथ चतुर्थ सुख भाव में विद्या के स्थान में राज योग बनाए हुए है क्योंकि मंगल एवं गुरु दोनों मिले हैं और बलवान भी हैं। लग्न कुंडली में भाग्य स्थान में सूर्य व चंद्र और दशम भाव में शुक्र, बुध और शुक्र का नीच भंग राज योग बन रहा है। उनकी कुंडली में महा भाग्य योग भी विद्यमान है क्योंकि लग्न विषम राशि का है और सूर्य व चंद्र भी विषम राशि में हैं और जन्म दिन का है। ऐसे लोग निश्चित रूप से भाग्यवान होते हैं। विद्या, बुद्धि और विवेक के साथ-साथ उनमें ज्ञान का भंडार था। शिक्षक के पद से शुरू करके अपने ज्ञान की वजह से वह भारत के राष्ट्रपति पद तक पहुंचे। बहुत विद्वान ऐसे हैं जो कम पढ़े लिखे होते हुए भी अधिक ज्ञानवान होते हैं। पहले जमाने में ज्योतिष के ज्ञाता सिर्फ श्लोक पढ़ कर भविष्यवाणी करते थे। अपने बुद्धि विवेक से गांव के सरपंच गांव की जनता का न्याय करते थे। उनकी अन्तज्र्ञान शक्ति अत्यंत प्रबल थी परंतु हर व्यक्ति का एक समय होता है जिसकी अवधि के अंदर ही उसे सफलता मिलती है। कभी-कभी ज्ञानी व्यक्ति का समय भी खराब चलता है। तब उसे न तो ज्ञान का लाभ मिलता है और न ही वह उचित मार्गदर्शन में उसका उपयोग पाता है। इसी परिपे्रक्ष्य में देखें तो पाते हैं कि इस कुंडली में प्रभावी शनि की महादशा के दौरान वह केवल नौंवी कक्षा तक पढ़े होने के बावजूद मंत्री पद तक पहुंचे। पंचम भाव के गुरु ने तीक्ष्ण बुद्धि दी। लग्नेश शनि चतुर्थ केंद्र में है, पर राहु की महादशा में पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए क्योंकि राहु सप्तम भाव में अस्त है। कभी-कभी ऐसे विद्वान व्यक्ति भी, जिनकी शिक्षा अधूरी रह जाती है, दूसरों पर राज करते हैं। विद्या और बुद्धि से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण योग पाठकों के लिए नीचे दिए जा रहे हैं। बुद्धि बुध स्वगृही अथवा उच्च लग्न से केंद्र अथवा त्रिकोण में हो तो विद्या, वाहन और संपत्ति की विभूति होती है। नवमस्थ गुरु पर बुध और शुक्र की दृष्टि हो तो जातक उच्च कोटि का विद्वान होता है। यदि बुध, बृहस्पति और शुक्र नवम भाव में हों तो जातक प्रसिद्ध विद्वान और यदि बुध और बृहस्पति के साथ शनि नवम में हो तो वाग्मी और विद्वान होता है। यदि पंचम स्थान का स्वामी बुध हो और वह किसी शुभ ग्रह के साथ हो अथवा उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो, यदि पंचमेश शुभ ग्रहों से घिरा हो या यदि बुध उच्च हो, पंचमस्थ हो, या पंचमेश जिस नवांश में हो, उसका स्वामी केंद्रस्थ हो और शुभ ग्रह से दृष्ट हो, तो जातक बुद्धिमान होता है। पंचमेश जिस भाव में हो, उसके स्वामी पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो अथवा दोनों तरफ शुभ ग्रह स्थित हों तो बुद्धि तीक्ष्ण होती है। पंचम स्थान दो शुभ ग्रहों के बीच हो, गुरु पंचमस्थ स्थित हो तथा बुध दोषमुक्त हो, तो बुद्धि तीक्ष्ण होती है। स्मरण शक्ति पंचमेश शुभ दृष्ट या युक्त हो अथवा पंचम स्थान शुभ दृष्ट या युक्त हो या बृहस्पति से पंचम स्थान का स्वामी केंद्र या त्रिकोण में स्थित हो, तो स्मरण शक्ति अच्छी होती है। व्याकरण विद्या बृहस्पति और द्वितीयेश बली हांे और उन पर सूर्य तथा शुक्र की दृष्टि हो, तो जातक व्याकरण का विद्वान होता है। बलवान गुरु द्वितीयेश हो और सूर्य के साथ हो तो जातक व्याकरण का ज्ञाता होता है। गणित विद्या गणित विद्या के लिए गुरु का केंद्र में होना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त बुध द्वितीय भाव का स्वामी हो अथवा शुक्र उच्च या स्वगृही हो तो जातक को गणित शास्त्र से प्रेम होता है। यदि मंगल द्वितीय भाव में हो और शुभ ग्रह के साथ या बुध से दृष्ट हो अथवा बुध केंद्र में हो, तो जातक गणितज्ञ होता है। गुरु केंद्र या त्रिकोणस्थ हो या शुक्र उच्च हो और बुध व मंगल धन भाव में हों या शुक्र किसी केंद्र में बुध द्वारा दृष्ट हो तो जातक गणित शास्त्र ज्ञाता होता है। चंद्र और बुध केंद्रस्थ हों या तृतीयेश बुध के साथ केंद्रस्थ हो या शनि से बुध षष्ठ भाव में और गुरु लग्न से द्वितीय में हो, तो जातक फलित ज्योतिष का ज्ञाता होता है। वाक् शक्ति योग यदि द्वितीयेश द्वितीयस्थ हो और गुरु बैठा हो और उस पर किसी पाप ग्रह दृष्टि न हो तो जातक उच्च कोटि का वाग्मी होता है और अपने मंतव्य का दृढ़तापूर्वक अपने व्याख्यान में उपयोग करता है। यदि बृहस्पति और बुध द्वितीय स्थान में हों और पाप ग्रह से दृष्ट न हांे तो जातक का व्याख्यान अत्यंत प्रभावशाली होता है। यदि तृतीय स्थान बली हो और बुध व गुरु से दृष्ट अथवा युक्त हो या बुध और गुरु तृतीय स्थान से केंद्र में हों, तो जातक का कंठ स्वर अत्यंत मधुर होता है।



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