कुंडली में संतान योग

कुंडली में संतान योग  

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व्यूस : 55552 | मार्च 2009

कुंडली में संतान योग प्रश्न: कैसे जानें कि संतान कब और कितनी होंगी? पुत्रा और पुत्राी की संख्या कैसे जानंे? संतान प्राप्ति या उत्तम संतान सुख हेतु कारगर उपायों का वर्णन करें। जीजीवन के समस्त सुखों में महत्वपूर्ण है संतान सुख। भारतीय हिन्दू धर्मशास्त्र में पांच प्रकार के ऋणों की चर्चा की गई है जिनमें एक है पितृ ऋण। पितृ ऋण बगैर संतानोत्पŸिा के नहीं चुकाया जा सकता। वंश को आगे बढ़ाने हेतु पुत्रोत्पŸिा ही पितृ ऋण चुकाने का मार्ग है। कहा गया है अपुत्रस्य गति नास्ति शास्त्रेषु श्रुयते मुने (पाराशर होरा शास्त्र) अर्थात् पुत्रहीन व्यक्ति को सद्गति नहीं मिलती। जब लोग विवाह बंधन में बंध जाते हैं, तो संतानोत्पŸिा की ओर अग्रसर होते हैं।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जातक की जन्मकुंडली उसके कर्मों का लेखा-जोखा है। संतान सुख प्रारब्ध, जिसे हम नियति कहते हैं, से जुड़ा हुआ है। संतान सुख कब और कितना मिलेगा यह भी प्रारब्ध से जुड़ा हुआ है। संतान प्राप्ति कब? शीघ्र संतान प्राप्ति- पंचम भाव में मेष, वृष या कर्क राशि में राहु या केतु हो तो संतान सुख की प्राप्ति शीघ्र होती है।


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सप्तमेश की नवांश राशि के स्वामी पर लग्नेश, द्वितीयेश व नवमेश की दृष्टि हो तो संतान शीघ्र होती है। लग्नेश पंचम में हो तथा उस पर चंद्र की पूर्ण दृष्टि हो तो पुत्र संतान होती है। स्त्री का क्षेत्र सम राशि व सम नवांश में तथा पुरुष का बीज विषम राशि व विषम नवांश में हो तो अविलम्ब संतान की प्राप्ति शीघ्र होती है। बली गुरु पर लग्नेश की दृष्टि हो तो संतानोत्पत्ति शीघ्र होती है। विलंब से संतान प्राप्ति: राहु एकादश भाव में हो तो संतान अधिक आयु में होती है। चंद्र कर्क राशि में पाप युत या पाप दृष्ट हो तथा सूर्य पर शनि की दृष्टि हो तो अधिक आयु में संतान की प्राप्ति होती है। लग्नेश, पंचमेश और नवमेश शुभ ग्रहों से युत होकर त्रिक भावों में हों तो संतान विलंब से होती है। पंचम भाव में पाप ग्रह तथा दशम भाव में शुभ ग्रह हों तो संतान होने में विलंब होता है।

पंचम मंे गुरु हो तथा पंचमेश शुक्र के साथ हो तो 32 वर्ष के आयु के पश्चात् संतान होती है। पंचम में केवल गुरु हो, अष्टम में चंद्र हो, चतुर्थ या पंचम में पाप ग्रह हो तो 30 वर्ष की आयु के पश्चात् संतानोत्पŸिा होती है। नवम भाव में गुरु हो तथा गुरु से नवम में शुक्र लग्नेश से युत हो तो 40 वर्ष की आयु में संतानोत्पŸिा होती है। केंद्र में गुरु तथा पंचमेश हो तो 36 वर्ष की आयु में संतान लाभ होता है। लग्न में मंगल, पंचम में सूर्य तथा अष्टम में शनि हो तो संतान प्राप्ति में विलम्ब होता है।

लग्न में शनि, अष्टम में गुरु और द्वादश में मंगल हो तथा पंचम में जलीय राशि न हो तो संतान विलंब से प्राप्त होती है। लग्न में अशुभ राशि (मेष, सिंह, वृश्चिक, मकर या कुंभ) में पाप ग्रह हों, मंगल सम राशि में हो तथा सूर्य निर्बल हो तो 30 वर्ष की आयु के पश्चात् संतान होती है। गुरु चतुर्थ में, चंद्र अष्टम में तथा पाप ग्रह पंचम भाव में हो तो 30 वर्ष की आयु के बाद संतान प्राप्त होती है। वृष, सिंह, कन्या और वृश्चिक अल्प सुत (कम संतान वाली) राशि कहलाती है। यह राशियां पंचम में हों तो थोड़ी सन्तति होती है और वह भी बहुत समय के बाद। निम्न स्थिति में बहुत यत्न करने पर संतान प्राप्ति होती है- पंचम में अल्पसुत राशि (वृष, सिंह, कन्या और वृश्चिक) में सूर्य हो, शनि अष्टम में हो और मंगल लग्न में हो। शनि लग्न में हो, गुरु अष्टम में हो और मंगल द्वादश में तथा पांचवें भाव में अल्पसुत राशि हो। चंद्र एकादश भाव में हो, गुरु से पांचवें भाव में पाप ग्रह हो और लग्न में कई ग्रह हों। संतान प्राप्ति का समय: लग्नेश, सप्तमेश, पंचमेश, गुरु एवं जो पांचवे भाव को देखने वाले ग्रहों में से किसी एक की महादशा या अंतर्दशा हो तो संतान की प्राप्ति होती है।


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पंचमेश या यमकंटक जिस राशि या नवांश में हो उससे त्रिकोण मंे जब गोचरवश गुरु आता है, तब भी संतान प्राप्ति होती है। लग्नेश जब गोचरवश- पंचमेश से योग करे, अपनी उच्च राशि में आए, अपनी स्वराशि में आए तब पुत्र प्राप्ति हो सकती है। यदि लग्नेश गोचरवश पंचम में आए या पंचमेश जहां स्थित है उस राशि में आए तब भी संतान प्राप्ति के लिए अनुकूल अवसर होता है। ;पद्ध लग्नेश की राशि, अंश, कला, विकला ;पपद्ध सप्तमेश की राशि, अंश, कला, विकला ;पपपद्ध पंचमेश की राशि अंश कला, विकला- (राश्यांशों का योग करने पर यदि राशियों का योग 12 से अधिक आए तो 12 राशियां घटाकर) इनको जोड़ने से जो राशि अंश, कला, विकला आए वह किस नक्षत्र के अंतर्गत पड़ती है, यह निकालें।

उस नक्षत्र के स्वामी की जब महादशा आए और पंचम भावस्थ ग्रह या पंचम को देखने वाले ग्रह अथवा पंचमेश की अंतर्दशा हो तो संतान प्राप्ति होती है। यह देखिए कि पंचमेश, पंचमेश जिस राशि में है उसका स्वामी, पंचमेश जिस नवांश में है उसका स्वामी, गुरु, गुरु जिस राशि में है उसका स्वामी गुरु जिस नवांश में है उसका स्वामी इनमें से कौन बलवान है? उपर्युक्त में जो बलवान हो उसकी दशा-अंतर्दशा में संतान प्राप्ति होती है। यह देखा जाए गुरु से पंचम कौन सा स्थान है? गुरु से पंचम में जो राशि हो उसका स्वामी किस राशि और नवांश में है? उस राशि या नवांश से जब त्रिकोण में गोचरवश गुरु आए तब संतान प्राप्ति होगी। यह भी देखिए कि चंद्र किस नक्षत्र में है।

इस नक्षत्र का स्वामी और इस नक्षत्र से पांचवे नक्षत्र का स्वामी जो ग्रह हो उसकी राशि अंश, कला, विकला आपस में जोड़ लीजिए। जो योग आए, उस राशि अंश, कला, विकला, पर या उससे नवम, पंचम गोचरवश गुरु आए तो संतान प्राप्ति होगी। गर्भ ठहरने की स्थिति- यदि पुरुष की कुंडली में सूर्य और शुक्र अपनी राशि और अपने अंश में बलवान होकर उपचय स्थानों में जा रहे हों और स्त्री की कुंडली में मंगल और चंद्रमा अपने भाव और अंश में बलवान होकर उपचय स्थान में जा रहे हों तो गर्भ धारण का योग बनता है। गर्भाधान के लिए अनुकूल स्थितियां- रजोदर्शन के बाद 16 दिनों तक स्त्री प्रायः गर्भधारण के योग्य होती है, किंतु यह आवश्यक नहीं कि वह इस अवधि में गर्भवती हो ही। गर्भाधान की संभावना ग्रह स्थितियों पर निर्भर है।


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पंचम भाव एवं भावेश के आधार पर स्त्री व पुरुष की प्रजनन शक्ति का पता लगाया जाता है। यदि पंचम भाव एवं भावेश शक्तिशाली हों, तो संतान प्राप्ति का संकेत मिल जाता है। पुरुष की जन्म कुंडली से पंचम भाव की क्षमता को बीज तथा स्त्री के पंचम भाव की क्षमता को क्षेत्र कहा जाना उपयुक्त है। यों कहें कि अप्रत्यक्ष रूप से बीज शुक्र का तथा क्षेत्र रज का प्रतिनिधित्व करता है। यदि बीज और क्षेत्र दोनों ही कमजोर हों तो प्रजनन संभव नहीं है। सामान्य रूप से सूर्य प्रजनन शक्ति तथा शुक्र शुक्राणुओं का कारक है, इसलिए कुंडली में इन ग्रहों की अनुकूल स्थितियां जरूरी हैं।

जब ये विषम राशियों में हों, तब संभावना बढ़ जाती है। इसी प्रकार स्त्री की जन्म कुंडली में मंगल रक्त का स्वरूप बदलने की क्षमता रखता है तथा चंद्र गर्भधारण की क्षमता, इसलिए इन दोनों का सम राशि में होना लाभप्रद होता है, बशर्ते अन्य ग्रहों का प्रतिकूल प्रभाव न हो। संतान होगी या नहीं, शीघ्र होगी या विलंब से आदि की जानकारी के लिए सर्वप्रथम पुरुष एवं स्त्री की जन्म कुंडलियों के विश्लेषण से बीज एवं क्षेत्र स्पष्ट कर विचार करना जरूरी है। पुरुष की कुंडली में सूर्य स्पष्ट, शुक्र स्पष्ट और गुरु स्पष्ट, सूर्य, गुरु और शुक्र तीनों ग्रहों की राशि, अंश, कला और विकला जोड़ लें। जोड़ने पर यदि विषम राशि और विषम नवांश आए तो समझें कि इस पुरुष में पुत्र उत्पन्न करने की पूर्ण क्षमता है। यदि राशि और नवांश में से एक विषम और एक सम आए तो मिलाजुला फल समझना चाहिए और यदि सम राशि तथा सम नवांश आए तो समझना चाहिए पुरुष में संतानोत्पŸिा की क्षमता नहीं है।

स्त्री की कुंडली में चंद्र स्पष्ट, मंगल स्पष्ट और गुरु स्पष्ट (अर्थात् इन तीनों ग्रहों की राशि, अंश, कला और विकला) को जोड़ने से जो फल आए वह यदि सम राशि, सम नवांश में हो तो उस स्त्री में संतानोत्पŸिा की पूर्ण क्षमता, राशि और नवांश में एक सम और एक विषम हो, तो आधी और दोनों विषम हों, तो पूर्ण अक्षमता समझनी चाहिए। संतान कितनी होंगी? गुरु और शुक्र पंचम भाव में हो, तो अनेक संतान होती हैं। पंचम भाव में शुक्र की राशि या नवांश हो तथा पंचम पर शुक्र की दृष्टि हो, तो संतान अधिक होती हैं। पंचम भाव में पंचमेश तथा गुरु हो तथा सूर्य स्वगृही हो, तो पांच संतानें होती हैं। बुध या राहु तृतीय भाव में हांे, तो दो पुत्र व तीन पुत्रियां होती हैं। बुध मकर राशि में पंचम भाव में हो, तो तीन संतान होती हैं। चंद्र व केतु पंचम में हों, तो केवल एक संतान होती है। बुध व शनि पंचम में हों, तो भी केवल एक संतान होती है। मंगल मकर राशि में पंचम भाव में हो, तो तीन संतानंे होती हैं।


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कर्क राशि में शनि पंचम में हो, तो अनेक संतानें होती हैं। जितने पुरुष ग्रह पंचम को देखते हों उतने पुत्र और जितने स्त्री ग्रह को देखते हों उतनी पुत्रियां होती हैं। शनि कुंभ राशि में पंचम भाव में हो, तो पांच संतान होती हैं। पुत्र कितने होंगें? यदि पाप ग्रह पंचमेश होकर पंचम में हो तथा पंचम में अन्य पाप ग्रह हांे, तो पुत्र अधिक होते हैं। गुरु, मंगल, सूर्य तथा पंचमेश पुरुष राशि के नवांश में हों अथवा पुरुष ग्रहों से युत या दृष्ट हों तो पुत्रों की संख्या अधिक होती है। पंचम भाव में पंचमेश पुरुष राशि के नवांश में हो अथवा पुरुष ग्रहों से युत या दृष्ट हो तो पुत्रों की संख्या अधिक होती है। मकर राशि में केवल गुरु हो और वह पंचम में हो तो कई पुत्र होते हैं। लग्न में राहु, पंचम में गुरु तथा नवम में शनि हो, तो छह पुत्र होते हैं। कुंभ राशिस्थ शनि एकादश में हो, तो अनेक पुत्र होते हैं। पंचम भाव में तुला राशि हो तथा पंचम भाव पर चंद्र व शुक्र की दृष्टि हो, तो कई पुत्र होते हैं। पंचम भाव में सूर्य शुभ ग्रहों से दृष्ट हो, तो तीन पुत्र होते हैं। पंचम में सूर्य हो, तो एक पुत्र, मंगल हो, तो तीन तथा गुरु हो, तो पांच पुत्र होते हैं। मकर अथवा कुंभ से पंचम राशि क्रमशः वृष या मिथुन में शनि हो तो केवल एक पुत्र होता है। पुत्रियां कितनी होंगी? एकादश में बुध, चंद्र या शुक्र हो, तो पुत्रियां अधिक होती हैं। चंद्र और बुध पंचम में हो, तो अनेक पुत्रियां होती हैं। लग्न या चंद्र मंगल की राशि में तथा शुक्र के त्रिशांश में हो तो कई पुत्रियां होती हैं।

पंचम में सम राशि या नवांश हो, उसमें बुध या शनि स्थित हो तथा उस पर शुक्र या चंद्र की दृष्टि हो तो अनेक पुत्रियां होती हैं। पंचम भाव में चंद्रमा की राशि अथवा शुक्र की सम राशि हो उस पर चंद्रमा या शुक्र की दृष्टि हो तो अनेक पुत्रियां होती हैं। पंचमेश द्वितीय या अष्टम में हो तो अनेक पुत्रियां होती हैं। चंद्र, बुध या शुक्र पंचम में हो तो पुत्रियां अधिक होती हैं। चंद्रमा, बुध या शुक्र पंचमेश होकर द्वितीय या अष्टम में हो तो पुत्रियों की संख्या अधिक होती है। मकर राशिस्थ शनि पंचम में हो तो पुत्रियां अधिक होती हैं। बुध पंचम या सप्तम भाव में सम राशि में हो तो अनेक पुत्रियां होती हैं। पंचम में सम राशि हो तथा एकादश में बुध, चंद्रमा व शुक्र हो तो पुत्रियां अधिक होती हैं। पंचम में चंद्रमा हो तो दो, बुध हो तीन, शुक्र हो तो पांच तथा शनि हो तो सात पुत्रियां होती हैं। तृतीय भाव में बली बुध हो तथा पंचम में चंद्रमा हो तो पांच पुत्रियां होती हैं। बुध पंचम में हो अथवा पंचमेश बुध हो तो तीन पुत्रियां होती हंै। कर्क राशि में गुरु पंचम में हो तो कन्याएं अधिक होती हैं।


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चंद्र या शुक्र मकर राशि में पंचम में हो, तो पुत्रियां अधिक होती हैं। संतान प्राप्ति में बाधाकारक योग: फलदीपिका के अनुसार यदि जन्म कुंडली में पंचम भाव का स्वामी शत्रु राशि या नीच राशि में हो या अस्त हो और लग्न से षष्ठ, अष्टम या द्वादश हो तो संतान प्राप्ति में बाधा आती है। इसी प्रकार कोई नीच, शत्रु अथवा अस्त ग्रह पंचम भाव में स्थित हो या षष्ठ, अष्टम अथवा द्वादश का स्वामी होकर पंचम भाव में स्थित हो, तो भी पुत्र का अभाव या पुत्र कष्ट होता है। जो बाधाकारक ग्रह जिस राशि में स्थित हो उसके अनुसार यह निर्णय करना चाहिए कि किस देवता, वृक्ष या जीव के कारण बाधा आ रही है, और फिर उसकी शांति का उपाय करना चाहिए। यदि संतान बाधाकारक ग्रह सूर्य हो, तो समझना चाहिए कि यह भगवान शंभु और गरुड़ के द्रोह या पितरों के शाप का फल है। यदि संतान प्रतिबंधक ग्रह चंद्र हो, तो माता या किसी अन्य सधवा स्त्री को दुःख पहुंचाने या भगवती के शाप के कारण संतान में बाधा होती है। यदि संतान प्रतिबंधक ग्रह मंगल हो, तो ग्राम देवता या भगवान कार्तिक के प्रति अनास्था या शत्रुओं अथवा भाई बन्धुओं के शाप के कारण संतान कष्ट होता है।

यदि बुध बाधाकारक हो, तो बिल्ली को मारने के कारण या मछलियों अथवा अन्य प्राणियों के अंडों को नष्ट करने के कारण या कम उम्र के बालक-बालिकाआंे के शाप अथवा भगवान विष्णु के कोप के कारण संतानोत्पत्ति में कठिनाई आती है। यदि जन्म कुंडली में गुरु की स्थिति शुभ नहीं हो और उसके कारण संतान नहीं हो रही हो, तो समझना चाहिए कि व्यक्ति ने वर्तमान जन्म में या पूर्व जन्म में फलदार वृक्षों को कटवाया है या अपने कुल गुरु या कुल पुरोहित से द्रोह किया है। यदि शुक्र बाधाकारक है, तो समझना चाहिए कि व्यक्ति ने पुष्प के वृक्षों को कटवाया है या गाय को कष्ट दिया है अथवा यह बाधा किसी साध्वी के शाप के कारण आया है। यदि जन्म कुंडली में शनि की स्थिति ठीक नहीं हो, तो संतान बाधा पीपल के पेड़ को कटवाने या पिशाच, प्रेत तथा यमराज के शाप के कारण आ सकती है। कालसर्प योग एवं संतान बाधा: यदि कुंडली में पंचम भाव से कालसर्प योग निर्मित हो रहा हो, तो ऐसी स्थिति में संतान बाधा होती है। पंचम भाव में राहु या केतु हो और राहु और केतु की धुरी में सभी ग्रह आएं या कुंडली में राहु-चंद्र, राहु-मंगल, राहु-शुक्र, शनि-चंद्र, राहु-गुरु या चंद्र-केतु की युति हो, पंचमेश और पंचम भाव दूषित हों या पंचमेश के साथ राहु या केतु द्वारा कालसर्प योग निर्मित हो रहा हो, तो संतानोत्पŸिा में बाधा होती है और इस योग की शांति के उपरांत संतान सुख की प्राप्ति होती है।


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सर्पशाप के कारण संतान बाधा: बृहत् पराशर होरा शास्त्र के अनुसार निम्नलिखित योगों में सर्पराज के शाप अथवा पूर्व जन्म या वर्तमान जन्म में जाने-अनजाने की गई सर्प हत्या के दोष के कारण भी संतान प्राप्ति में कठिनाई होती है- पंचम में स्थित राहु को मंगल पूर्ण दृष्टि से देखे अथवा राहु मेष या वृश्चिक में हो। पंचमेश राहु के साथ कहीं भी हो तथा पंचम में शनि हो और शनि या मंगल को चंद्र देखे या उनसे उसकी युति हो। संतानकारक अर्थात् पंचम भाव का कारक गुरु राहु के साथ हो और पंचमेश निर्बल हो तथा लग्नेश व मंगल साथ-साथ हों। गुरु व मंगल एक साथ हों, लग्न में राहु स्थित हो, पंचमेश भाव 6, 8 या 12 में हो। कुछ अन्य योगों का विवरण, जिनमें सर्प शाप के कारण संतानोत्पत्ति में बाध आती है, इस प्रकार है- पंचम में 3, 6 राशि हांे, मंगल अपने ही नवांश में हो, लग्न में राहु व गुलिक हों। पंचम में 1, 8 राशि हों, पंचमेश मंगल राहु के साथ हो अथवा पंचमेश मंगल का बुध के साथ दृष्टि संबंध हो। पंचम में सूर्य, मंगल और शनि या राहु, बुध और गुरु एकत्र हों और लग्नेश व पंचमेश निर्बल हों। लग्नेश व राहु, पंचमेश व मंगल और गुरु व राहु एक साथ हांे। सर्पशाप की निवृŸिा के लिए नागपूजा कुल परंपरानुसार करनी चाहिए। नागराज की मूर्ति की प्रतिष्ठा अथवा सोने के नागराज की मूर्ति बनवाकर नित्य पूजा करनी चाहिए।

इसी प्रकार, पितृशाप, मातृशाप, भ्रातृशाप, मातुलशाप, ब्रह्मशाप, पत्नीशाप या प्रेतादिशाप के कारण संतान हानि होती है। इन शापों से मुक्ति का उपाय करने के पश्चात् संतान सुख की प्राप्ति हो सकती है। वंश आगे चलेगा या नहीं: फलदीपिका में बताया गया है कि निम्न योगों से प्रभावित जातक का वंश आगे नहीं चलता। चतुर्थ में अशुभ ग्रह हों, सप्तम भाव में शुक्र हो और दशम भाव में चंद्र हो। प्रथम, पंचम, अष्टम या द्वादश भाव में अशुभ ग्रह हों। सप्तम भाव में बुध और शुक्र हों, पंचम में गुरु हो और क्रूर ग्रह चतुर्थ भाव में हो। चंद्र पंचम में हो और प्रथम, अष्टम तथा द्वादश भाावों में पाप ग्रह हों। यदि संतानोत्पत्ति में बुध और शुक्र बाधक हों, तो शिव पूजन करना चाहिए। गुरु या चंद्रकृत दोष हो, तो मंत्र, यंत्र और औषधि प्रयोग का प्रयोग करना चाहिए। राहु बाधक हो, तो कन्यादान कन्यादान करना चाहिए।

सूर्य का दोष हो तो भगवान विष्णु के मंत्र का जप या हरिवंश पुराण का श्रवण करना चाहिए। सामान्यतः संतान से जुड़े सब दोषों को दूर करने तथा अच्छी संतान की प्राप्ति के लिए हरिवंश पुराण का भक्तिपूर्वक श्रवण करना चाहिए।



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