जब हनुमान ने ऋण चुकाया

जब हनुमान ने ऋण चुकाया  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 3936 | मार्च 2009

जब हनुमान ने ऋण चुकाया ऋण विभिन्न हैं। इनसे मनुष्य तो क्या देवी देवता भी प्रभावित होते हैं और उन्हें भी इनसे मुक्त होना पड़ता है। महाबली हनुमान को भी माता अंजनी की आज्ञा से ये ऋण चुकाने पड़े थे। हनुमान का यह प्रसंग भी उनके अन्य प्रसंगों की भांति ही प्रेरणादायी है। कथा है कि संजीवनी बूटी लाने के क्रम में भगवान अर्धनारीश्वर के उपदेश सुनने के बाद महाबली हनुमान जब थोड़ा सुभ्यस्त हुए कि सहसा उन्हें एक मृदु स्वर सुनाई दिया, “हे महावीर! अवसर आ गया है, जब तुम्हें अपने कुछ ऋणों से मुक्त हो जाना चाहिए।” पवनपुत्र ने नेत्र उठाए तो देखा कि माता अंजनी प्रसन्न मुद्रा में सामने खड़ी थीं। उनकी दृष्टि से वात्सल्य उमड़ रहा था। उन्होंने अपने पुत्र को गोद में लेने के लिए अपने हाथ बढ़ाएं और हनुमान एक नन्हे बालक की भांति उनमें समा गए। माता ने बड़े स्नेह और दुलार से पुत्र के माथे पर तीन बार हाथ फिराया जिसके फलस्वरूप उनके हनुमान के तीन केश उनके हाथ में आ गए। उन केशों को यत्नपूर्वक संभाले रहीं। बालक हुनमान को कुछ क्षणों के पश्चात अपने कर्तव्य का ध्यान आया और शिशु की भाव-भूमि से बाजर आकर उन्होंने अत्यंत विनीत भाव से माता के चरणों में शीश नवाया।

भाव-विह्वल अंजनी के मुंह से बोल नहीं फूट रहे थे, पर उनका हृदय पुत्र को आशीर्वाद दे रहा था। अंजनी पुत्र की इच्छा हुई कि माता को कुछ अर्पित करें। इच्छा होते ही संजीवनी पवर्त की सारी दिशाओं से रंगबिरंगे और सुगंध वाले दिव्य पुष्प झर-झर कर हनुमानजी की दाईं ओर एकत्र होने लगे और देखते देखते वहां दिच्य पुष्पों का एक ढेर सा लग गया। उस ढेर से हनुमान जी ने अंजुलि भर कर फूल उठाए और माता के चरणों में अर्पित करने की चेष्टा की, किंतु माता ने आगे बढ़कर सारे पुष्पों को अपने आंचल में ग्रहण कर लिया। यह देखकर हनुमान जी ने दो और पुष्पांजलियां माता के आंचल में डाल दीं। फिर वह चैथी पुष्पांजलि डालने ही जा रहे थे कि माता बोलीं, “बस पुत्र! मुझे और नहीं चाहिए। तुम मातृ ऋण से मुक्त हुए। इन तीनों पुष्पांजलियों के फूलों को, जिनमें से प्रत्येक में तुम्हारा एक-एक केश भी रहेगा, मैं तीन अलग-अलग स्थानों श्री सालासर बाला जी, श्री महंदीपुर बालाजी और वड़ाला बाला जी पर स्थापित करूंगी। इन तीनों ही स्थानों पर तुम्हें अनंत काल तक विद्यमान रहकर भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करनी होंगी। अब एक आदेश है वत्स!” नतमस्तक हनुमान ने कहा, “आज्ञा माता जी! आपके आदेश का पालन करके मैं कृतकृत्य हो जाऊंगा।”

माता बोलीं, “वत्स! अब इन शेष फूलों से अपने पिता के उनचास स्वरूपों को, ग्रहों को, सभी देवी देवताओं को यक्ष-गंधर्व-किन्नरों को, सभी शक्तियों को, सभी ऋषि-मुनियों को, दसों महाविद्याओं और शास्त्रों को, सभी इंद्रियों को और सभी जीवों के आत्मस्वरूपों को पुष्पांजलि अर्पित करों। इस सत्कर्म से तुम्हें सभी के ऋण से मुक्ति मिल जाएगी ओर तुम सर्वशक्तिसंपन्न, सर्वसमर्थ तथा सर्वशक्तिदायक बन जाओगे। तुम जैसा पुत्र पाकर मेरा जीवन धन्य हो गया। अब में जाऊंगी, तुम अपना शेष कार्य पूरा करो।” पुत्र हनुमान ने पुनः माता के चरणों में शीश नवाया और माता स्नेहमयी दृष्टि से पुत्र को देखती हुई वहां से चली गईं। फिर हनुमान जी ने माता के आदेशानुसार श्रद्धा भक्तिपूर्वक अपने पिता के उनचास रूपों अर्थात मरुतों को दिव्यपुष्प अर्पित किए जिन्हें उन्होंने सहर्ष अपने अपने उत्तरीय पट में ग्रहण कर लिया। पुनः उसी श्रद्धाभाव से तीनों लोकों के सभी प्राणियों, प्रकृति तत्वों तथा सभी महाविद्याओं और शास्त्रों को पुष्पांजलि अर्पित की। पुष्पांजलि क्रिया समाप्त होते ही दिव्य वाद्य-ध्वनि के साथ संजीवनी पर्वत के एक भाग में राम, सीता, लक्ष्मण और उन्हें वंदन करने की मुद्रा में स्वयं हनुमान भी प्रकट हुए। यह देखकर वह कुछ चैंके, किंतु फिर सहज हो गए।

उन्होंने अपने आराध्य श्री राम से पूछा, “प्रभो! अब मेरे लिए क्या आदेश है?” अंजनी पुत्र के प्रश्न का कोई उत्तर श्रीराम ने नहीं दिया। किंतु उन चारों के स्थान पर एक अद्भुत विग्रह प्रकट हुआ। हनुमान जी ने देखा कि अपने चतुर्भुज रूप में स्वयं श्रीकृष्ण सामने खड़े मंद-मंद मुस्करा रहे थे। उनके दो हाथों में बांसुरी, और एक में दिव्य पुष्प था जबकि चैथा हाथ वर मुद्रा में उठा हुआ था। प्रभु की झांकी विचित्र थी। वह एक ओर से गोलोकेश्वरी श्रीराधा और दूसरी ओर से साक्षत् श्यामसुंदर दिखाई दे रहे थे। उनका यह रूप देखकर हनुमान चकित रह गए। उन्हें चकित देखकर भगवान श्रीराधाकृष्ण बोले, “अंजनी पुत्र! मैं ही राम हूं, मैं ही हनुमान हूं, मैं ही अर्धनारीश्वर हूं, मैं ही योगीश्वर हूं। हे हनुमान! इन दिव्य पुष्पों की एक अंजलि मुझे भी दो।” महावीर हनुमान ने उन्हें एक पुष्पांजलि अर्पित की। तब केशव ने उन्हें कुछ शास्त्रीय सिद्धांतों से अवगत कराने के उद्देश्य से कहा, ‘‘देखो पवनसुत! यह संपूर्ण विश्व प्रकृति-पुरुषात्मक है। यह चराचर जगत इन्हीं दोनों के संयोग और संयोजन का परिणाम है तथा इन्हीं पर टिका है। सृष्टि के पांच तत्वों में वायु प्रमुख तथा महत्वपूर्ण है। जल तत्व भाव बनकर भाव बनकर और अग्नि तत्व तेज रूप होकर वायु में मिल जाता है।

आकाश भी वायु के पार्थिव या प्राणवायु के रूप में सदापूर्ण रहता है। पृथ्वी तत्व तिं्रस रेणुओं में बिखरकर वायु में विलीन हो जाता है। इस प्रकार शब्द, रूप, रस, गंध और गुण वायु के स्पर्श से गुण में समा जाते हैं। कभी-कभी सृष्टि में विचित्रता भी घटित हो जाती है, जैसे तुम्हारे पुत्र का जन्म। आश्चर्य मत करो वत्स! क्योंकि तुम अपने बाल-ब्रह्मचारी समझते हो और संसार भी तुम्हें ऐसा ही जानता है। किंतु सच बात तो यह है कि सीताजी की खोज के क्रम में जब उड़ते हुए समुद्र के ऊपर से उड़ रहे थे, तब तुम्हारे कुछ स्वेद-बिंदु नीचे गिरे थे, जिन्हें एक मकड़ी ने भक्षण कर लिया था। उसके प्रभाव से उसने एक पुत्र को जन्म दिया। वह मकरध्वज कहलाया और इस समय अहिरावण का सेवक बनकर वह पाताल का द्वार-रक्षक है। वह कामरूप है, क्योंकि कामदेव भी मकरध्वज कहलाते हैं। द्वापर में मैं भी मकरध्वज के नाम से पूजित होता हुं। कालांतर में मकरध् वज नामक सिद्धिदायक महारसायन होगा। हे पवनसुत! तुमने जिन देवी देवताओं को पुष्पांजलि दी है, वे सब अहोभाव से तुम्हें देख रहे हैं। अब इन्हें अपने-अपने स्थान पर जाने को कहो। तुम्हारा सदा मंगल होगा।’’ इतना कहकर भगवान अंतर्धान हो गए। तब हनुमानजी ने सब से पहले हाथ जोड़कर पिता वायु देव की और दिव्य शक्तियों की परिक्रमा की, फिर सबको संबोधित करते हुए कहा, ‘‘हे दिव्य शक्तियों! मेरी पुष्पांजलि ग्रहण करने के लिए आप सभी ने यहां पधारने की कृपा की।

अतः मैं सदा आपका ऋणी रहूंगा। अब आप सब अपने-अपने स्थानों पर जाएं।’’ पवनसुत के ऐसा कहने पर साधुवाद की ध्वनि से आकाश गूंज उठा। वायु देवता की श्रेष्ठता को स्वीकार करते हुए सभी शक्तियों ने अपने-अपने पुष्प उन्हें देकर कहा कि जगत के कल्याण के लिए आप इन्हें सर्वत्र बिखेर दें। किंतु रंभा, उर्वशी, ग्रहों आदि ने अपने पुष्प वायु देवता को नहीं दिए। भविष्य में अवतरित होने वाले ग्रह हर्षल, नेप्च्यून और प्लूटो ब्रह्मा,विष्णु और महेश के रूप में वहां उपस्थित थे। इन ग्रहों की पूजा भी वर्तमान समय में की जाती है। सूर्य ग्रहों के राजा हैं। वह हनुमान जी के इस दिव्य कर्म से अत्यंत प्रभावित एवं प्रसन्न हुए। कुछ आगे बढ़कर उन्होंने कहा, ‘‘प्रिय हनुमान! मैं सभी ग्रहों का स्वामी होने के नाते तुम्हें वरदान देता हूं कि जिस प्राणी पर तुम्हारी कृपादृष्टि होगी, कोई भी ग्रह उसके प्रतिकूल नहीं होगा।’’ इस तरह महावीर हनुमान की नम्रता से प्रभावित भगवान श्रीकृष्ण और अन्य देवतागण ने उन्हें वरदान दिए। यही कारण है कि हनुमान की निष्ठापूर्वक पूजा आराधना करने वालों का ग्रह आदि भी कुछ बिगाड़ नहीं पाते। तात्पर्य यह कि ऋण मनुष्य, देवता, ईश्वर सब को प्रभावित करते हैं। इन्हें चुकाना सब का कर्तव्य है। प्रस्तुत प्रसंग में हमने देखा कि परम बलशाली महावीर हनुमान को भी इन्हें चुकाना पड़ा। अतः इनसे मुक्ति के हर संभव उपाय करने चाहिए। अन्यथा ये मनुष्य के इहलोक तथा परलोक दोनों को बिगाड़ देते हैं, उसे शारीरिक तथा मानसिक कष्टों का सामना करना पड़ता है।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.