पाराशरी पद्धति में उपाय अंकुर नागपाल भारतीय ज्योतिष में ऋषि पाराशर द्वारा बताए गए उपाय दैवज्ञ समाज में सर्वाधिक लोकप्रिय माने गए हैं। इस आलेख में प्रस्तुत है इन्हीं उपायों का संक्षिप्त वर्णन। हिदू समाज में प्रारब्ध की तीन प्रकार से व्याखया की गयी है।
1. दृढ़ प्रारब्ध (अर्थात् कभी न बदलने वाला प्रारब्ध)
2. अदृढ़ प्रारब्ध (अर्थात् बदले जा सकने वाला प्रारब्ध)
3. दृढ़ादृढ़ प्रारब्ध (अर्थात् आधा बदले जाने वाला व आधा नहीं बदले जाने वाला प्रारब्ध)
इन्हीं सब में दृढ़ादृढ़ प्रारब्ध की प्रधानता है। जिसके अंतर्गत जो प्रारब्ध में लिखे गए हैं, उन कष्टों को ग्रहशांति प्रयोगों की सहायता से घटा सकते हैं। ज्योतिष शास्त्र के पितामह भगवान पाराशर ने जो उपाय कहे हैं, हमें सर्वथा उन्हीं को मानना चाहिए। पाराशरी उपाय लाल किताब या किसी अन्य विधा से अधिक शीघ्र प्रभावी होते हैं। जब किसी ग्रह की दशा प्रारंभ हो, तो उससे संबंधित उपाय अवश्य करने चाहिए। चाहे अच्छी ग्रहदशा हो या खराब, पाराशरी उपाय हमेशा करने चाहिए ताकि गोचर में दशानाथ/अंतर्दशानाथ की खराब स्थिति कहीं अशुभफलप्रद न हो जाए। पाराशरी उपायों का कुप्रभाव भी नहीं होता।
पाराशर ने जो कुछ भी दर्शन दिया, उसका सारांश यहां प्रस्तुत है। सूर्य की महादशा में महामृत्युंजय मंत्र व शिवजी की कर्मकांड, स्तोत्रपाठ, अथवा मंत्रजाप आदि रूपों में अराधना करना श्रेयस्कर है। चंद्रमा की महादशा में शिवसहस्त्रनामस्तोत्र का नियमित पाठ करें। सफेद गाय का दान करना श्रेयस्कर है। मंगल की महादशा में वैदिक मंत्र व सूक्तों का जाप, अथर्वशीर्षों का जप, वैदिक मंत्रों से संध्यावन्दन, चंडी पूजन आदि करें। बुध की महादशा में विष्णु सहस्त्रनामस्तोत्र का पाठ सभी कष्टों का हनन करेगा जैसे राम का ब्रह्मास्त्र रावण का वध करता है। गुरु की महादशा में शिवसहस्त्रनामस्तोत्र का नियमित पाठ करें, अपने इष्ट को प्रसन्न रखें, गुरु का आदर करें।
शुक्र की महादशा में यजुर्वेद में प्रदर्शित व प्रचलित रूद्री का पाठ व अनुष्ठान करें, यथाशक्ति भगवान महामृत्युंजय का जप करें। शनि की महादशा में महामृत्युंजय मंत्र का यथाशक्ति जातक स्वयं ही जप करें। राहु की महादशा में दुर्गाजी की आराधना कर्मकांड, स्तोत्रपाठ, अथवा मंत्रजाप रूप में करें, काली गाय अथवा भैंस का दान, आदि करें। केतु की महादशा में देवी दुर्गा के मंत्रों का जाप शतचंडीपाठ का अनुष्ठान बकरी का दान करना श्रेयस्कर है। द्वितीयेश या सप्तमेश की दशा अथवा द्वितीया या सप्तम भाव में स्थित ग्रह की दशा में महामृत्युंजय मंत्र का जप, हवन आदि करें। सारांश में भगवान पाराशर द्वारा कहे गए दशानुसार उपाय का उपदेश हमने वर्णन किया है। मंत्रजाप कभी विफल नहीं होते तथा ग्रहदोष कम करने में पुर्णरूप से सहायक सिद्ध होते हैं। अंततः कोई भी महादशा हो, शिवमंत्रों का व विष्णुसहस्त्रनाम का जाप भी हमेशा करना चाहिए- ये सभी मनीषियों का मत है।