पितृ दोष या शाप से मुक्ति पाएं

पितृ दोष या शाप से मुक्ति पाएं  

व्यूस : 12629 | सितम्बर 2008
पितृ दोष या शाप से मुक्ति पाएं पं. लोकेश द. जागीरदार भारतीय वैदिक परंपरा के अनुसार प्रत्येक मनुष्य तीन ऋण से ग्रस्त होता है- देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण। मनु और याज्ञवल्क्य आदि ऋषियों ने कहा है कि प्रत्येक व्यक्ति को इन तीनों ऋणों से मुक्त होने का प्रयास करना चाहिए ताकि मोक्ष की प्राप्ति हो सके। पितृ ऋण इन तीनों में प्रमुख हैं, क्योंकि पितृ अर्थात् हमारे पूर्वज के पुण्य कर्म अथवा पुण्य अंश से ही हमारी उत्पत्ति हुई है। यदि वे हमारी उत्पत्ति नहीं करते तो मोक्ष प्राप्त कर लेते, किंतु ‘‘वंशोविस्तारतां आयु’’ अर्थात् वंश के विस्तार के लिए उन्होंने ब्रह्मचर्य का खंडन व वीर्य का क्षरण करके हमारी उत्पत्ति की है। अतः हमारा कर्तव्य है कि हम उन्हें श्राद्ध, तर्पण आदि से कृतार्थ करें, ताकि वे मोक्ष के भागी बन सकें और हम उनके ऋण से मुक्त हो सकें। जो लोग दान, श्राद्ध, तर्पण आदि नहीं करते, माता-पिता और बड़े बुजुर्गों का आदर-सत्कार नहीं करते, पितृ गण उनसे कुपित रहते हैं जिसके कारण वे या उनके परिवार के अन्य सदस्य रोगी, दुःखी या मानसिक कष्ट से पीड़ित होते हैं। वे निःसंतान भी हो सकते हैं। जन्मांगचक्र में सूर्य पिता का और बृहस्पति बड़े-बुजुर्गों का कारक होता है। उक्त दोनों ग्रहों का अल्पबली, नीच या पापयुक्त होना, पितृ दोष का सूचक है जो कि पूर्व जन्म कृत पाप के कारण इस जन्म में हमें प्रभावित करते हैं। प्राचीन ग्रंथों में ऐसे अनेकानेक ग्रह योगों का उल्लेख है, जो पितृ दोष के सूचक हैं। इनमें कुछ प्रमुख योगों का विवरण यहां प्रस्तुत है- सूर्य का नीच राशि में मकर या कुंभ के नवांश में होना। सूर्य का या सिंह राशि का पाप मध्य होना। सूर्य और राहु या सूर्य व केतु की युति होना। लग्नेश का अल्पबली होकर दशम अर्थात् पिता के भाव में होना। दशमेश (पिता के भाव का स्वामी) का नीच, अस्त या पापी ग्रह के साथ होना। दशमेश का षष्ठ, अष्टम या द्वादश भाव में होना व लग्न का अल्पबली होना। सूर्य या गुरु का षष्ठ, अष्टम या द्वादश भाव में होना। दशम भाव में पापी ग्रह का होना अथवा दशम भाव का पापकर्तरी में होना। लग्न एवं त्रिकोण में सूर्य, शनि व मंगल तथा अष्टम या द्वादश में राहु और गुरु का होना। किसी का जन्म अश्लेषा, मघा, मूल, ज्येष्ठा, रेवती, अश्विनी जैसे गंडमूल, खासकर मघा नक्षत्र में होना जिसका स्वामी स्वयं पितृ हैं। उक्त योगों में कोई भी योग यदि जन्मांगचक्र में विद्यमान हो तो समझना चाहिए कि पूर्व जन्मकृत पाप के कारण जातक पितृ दोष से पीड़ित है। यदि उसकी अथवा उसके किसी बच्चे या किसी अन्य सदय की भी जन्मकुंडली में उक्त योग हों तो अविलंब पितृ दोष की शांति करानी चाहिए। पितृ दोष के निवारण के उपाय- गया तीर्थ में वेदोक्त रीति से पूर्वजों का श्राद्ध-तर्पण कराना चाहिए। नासिक के त्र्यंबकेश्वर में नारायण नागबलि कराएं। गंडमूल नक्षत्र में जन्म हुआ हो, तो जन्म नक्षत्र के मंत्र का 28000 जप कराकर दशांश हवन कराएं। अमावस्या तिथि के स्वामी पितर हैं, अतः इस दिन पूजा-पाठ, दान, पुण्य आदि करने चाहिए। पूर्वजों की पुण्य तिथि पर गरीबों को अन्न-वस्त्र का दान दें। पीपल के वृक्ष को पितरों का प्रतिनिधि माना गया है, अतः इसे नित्य जल चढ़ाना चाहिए। कौवों को नित्य अनाज खिलाएं। पितृ दोष निवारण यंत्र का पूजन करें। श्राद्ध पक्ष (पितृ पक्ष) में अथवा सर्व पितृ अमावस्या के दिन पूर्वजों को याद करें और उनके निमित्त श्राद्ध करें। जब भी श्राद्ध करें, तिल, जौ, गोपीचंदन, कुश, गंगाजल आदि का उपयोग अवश्य करें। ये वस्तुएं मोक्ष का कारक हैं, अतः पितरों को बहुत प्रिय हैं। सूर्य पिता का कारक है, अतः सूर्य की दान सामग्री जैसे लाल कपड़े, लाल मसूर, गेहूं, तांबे, लाल फल आदि का सामथ्र्य के अनुसार रविवार को दान करें। अमावस्या, पुण्य तिथि अथवा श्राद्ध तिथि को पितरों के निमित्त शिव पूजन या रुद्राभिषेक कराना चाहिए, इससे पितृ दोष का शमन होता है। श्राद्ध पक्ष में श्रीमद्भागवत महापुराण का पाठ कराना चाहिए।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.