अंक ज्योतिष और द्वादश राशियां

अंक ज्योतिष और द्वादश राशियां  

व्यूस : 13087 | सितम्बर 2008
अंक ज्योतिष और द्वादश राशियां बंसत कुमार सोनी क विद्या का आविर्भाव आज से लगभग छह हजार वर्ष पूर्व ऋषि पराशर एवं ऋषि अगस्त्य द्वारा हुआ माना जाता है। यद्यपि अंक शास्त्र का उदय भारत में ही हुआ है, परंतु अंक विद्या का प्रचार और नव अन्वेषण अधिकांशतः विदेशों में हुए हैं। पश्चिमी दुनिया में पाइथागोरस को अंक शास्त्र का जनक माना जाता है, जिन्होंने अपनी पुस्तक ‘दुर्लभ परिसंवाद’ में उल्लेख किया है - ‘‘अंक सभी के विचारों, उनके तौर तरीकों, यहां तक कि आकृति को भी नियंत्रित करते हैं। यही कारण है कि दैनिक आपदाग्रस्तता हो या किसी भी तरह का दैविक विध्वंस, उसके मूल में अंकों की ही भूमिका होती है।’’ सेफेरियल हिब्रू यहूदी कबाला पद्धति के अंक विज्ञानी माने जाते हैं। सेफेरियल को छोड़कर अंक विद्या के शेष सभी विद्वानों ने एक से नौ तक के अंकों का विश्लेषण-प्रतिपादन किया। अंक वैज्ञानिकों मंे सर्वाधिक प्रचलित नाम कीरो का है। अंक शास्त्र में 0 (शून्य) को कोई महत्व नहीं दिया गया। इस शास्त्र में इकाई 1 से 9 तक के अंकांे का विश्लेषण करते हुए भविष्य कथन किया जाता है। इन अंकों को एकल अंक की संज्ञा प्राप्त है। सौर मंडल में देखा जाए तो वस्तुतः नौ ग्रह ही हैं। सर्वांग गणनाआंे का आधार भी यही अंक हंै। दहाई की सबसे छोटी संख्या दस से अनंत संख्याओं में इन्हीं अंकों की पुनरावृŸिा होती है। किसी भी बड़ी संख्या में प्रयुक्त अंकों को परस्पर एक-दूसरे से जोड़कर एकल अंक में बदला जा सकता है। ऐसी संख्या को अंक शास्त्र में मूल अंक या मूलांक कहते हैं। अंक शास्त्र के आधार पर राशि जानने के लिए वर्ष का विभाजन बारह भागों में किया गया है। जिस निश्चित समय सीमा में किसी जातक का जन्म होता है, वह उसकी राशि होती है। राशियों की यह प्रणाली भारतीय ज्योतिष की राशि प्रणाली से सर्वथा भिन्न है। भारतीय ज्योतिष में किसी भी व्यक्ति की राशि का आधार चंद्र नक्षत्र का नामाक्षर होता है, जबकि अंक शास्त्र में राशि का आधार कैलेंडर वर्ष की तारीख वाली द्वय मासों की कुछ निश्चित समयावधि होती है जिसका समन्वय सूर्य की संक्रांति से होता है। जन्म दिनांक के आधार पर बनने वाली द्वादश राशियां - अंक ज्योतिष के आधार पर किसी भी वर्ष में जन्म लेने वाला जातक निम्न काल खंडों के अंतर्गत पड़ने वाली जन्म तारीख को देखकर अपनी राशि ज्ञात कर सकता है। 23 दिसंबर से 20 जनवरी: इस अवधि में जन्म होने पर ‘‘मकर राशि’’ मानी जाती है। इस राशि में जन्म लेने वाले जातक आमतौर पर सामान्य स्तर का जीवन बिताते हुए उन्नति के पथ पर अग्रसर होते हैं और दूसरों की उन्नति देखकर प्रसन्न भी रहते हैं। 30 वें वर्ष में ऐसे जातकों का भाग्योदय होना माना जाता है। इस राशि का अधिपति शनि और राशि रत्न नीलम है। भारतीय ज्योतिष के अनुसार मकर लग्न में जन्म लेने वाले जातक को अपनी उन्नति हेतु नीलम, पन्ना और हीरा अथवा इनके उप-रत्नों से बना त्रिशक्ति रत्न कवच या लाॅकेट धारण करना चाहिए। 21 जनवरी से 19 फरवरी: इस अवधि में जन्म लेने वालों की राशि ‘‘कुंभ’’ मानी गई है। कुंभ राशि की आकृति जल वाहक जैसी है। 36 वर्ष की आयु के उपरांत कंुभ राशि के जातक अक्सर धनवान होते देखे जाते हैं। इस अवधि के दौरान जिनका जन्म होता है, वे प्रायः भीरु, परंपरावादी, व्यवसायी, कार्य-पटु और स्वाभिमानी होते हैं। इनकी कार्य-सिद्धि अकस्मात रूप में होती है। किंतु इन्हें वांछित संतान सुख मिलने की संभावना कम रहती है। यह राशि भी शनि के स्वामित्व वाली राशि है। नीलम इस राशि का अनुकूल रत्न है। इस अवधि के दौरान उत्पन्न हुए लोगों की जन्म कुंडली का लग्न यदि कुंभ हो तो उनके लिए नीलम, पन्ना और हीरा रत्न समान रूप से लाभदायक होते हैं। उन्हें अपनी भाग्योन्नति के लिए इन रत्नों का अथवा इनके उपरत्नों त्रिशक्ति लाॅकेट धारण करना चाहिए। 20 फरवरी से 21 मार्च: अंक विद्या के अनुसार इस अवधि में उत्पन्न जातकों की राशि ‘‘मीन’’ मानी जाती है। यह बृहस्पति के आधिपत्य वाली राशि है। इसकी आकृति जलक्रीड़ारत मत्स्य युगल जैसी होती है। मीन राशि का जातक भले ही अल्प शिक्षित हो, फिर भी उसमें कोई न कोई विशिष्ट गुण या ज्ञान अवश्य पाया जाता है। इस अवधि में जन्म लेने वाले जातकों का संबंध बौद्धिक या कला के कार्यों से अधिक होता है, परंतु वे दैनिक जीवन में चिंतित एवं अव्यवस्थित रूप में जीवन-यापन करने वाले हो सकते हैं। जीवन का 21, 30, 39 या 48 वां वर्ष इनकी भाग्योन्नति का वर्ष या महत्वपूर्ण वर्ष हो सकता है। मीन राशि का भाग्य-रत्न पीला पुखराज है। यदि ऐसे जातकों का जन्म कालीन लग्न भारतीय ज्योतिष पद्धति के अनुसार मीन हो तो वे पुखराज, मोती और मूंगे का बना लाॅकेट धारण कर लाभान्वित हो सकते हैं। यह एक जलतत्व राशि है, अतः ऐसे जातक को गणेशार्चन करना चाहिए, इससे शीघ्र ही सुख-शांति-समृद्धि की प्राप्ति होती है। 22 मार्च से 20 अप्रैल: इस अवधि में जिनका जन्म होता है, अंक शास्त्र के अनुसार उनकी ‘‘मेष राशि’’ होती है। ऐसे जातकों के लिए जीवन का 18वां, 21वां और 25वां वर्ष विशेष महत्व के होते हैं। इस राशि वालों के जीवन का पूर्वार्द्ध संघर्षमय, किंतु उŸारार्द्ध सुखमय हो सकता है। बचपन और किशोरावस्था में मेष राशि के जातक उपद्रव-प्रिय भले ही हों, परंतु युवावस्था में वे साहसी, धीर और प्रतिभा संपन्न हो जाते हंै। सैनिक, सेनानायक, इंजीनियर अनुसंधानकर्ता, अभिनेता, अन्वेषक, आॅपरेटर, लिपिकादि, रक्षात्मक कार्यों से आजीविका चलाने वाले लोग, इलेक्ट्रीशियन, शस्त्रागार संचालनकर्ता, शल्य क्रिया विशेषज्ञ, भू-कार्य से जुड़े लोग इत्यादि मेष राशि प्रधान होते हैं। मेष राशि का रत्न प्रवाल अर्थात मूंगा है। यदि 22 मार्च से 20 अप्रैल के मध्य जन्मे जातकों की कुंडली मेष लग्न वाली हो, तो उन्हें भाग्यवृद्धि हेतु मूंगा, माणिक्य और पुखराज अथवा इनके उपरत्नों का त्रिशक्ति लाॅकेट धारण करना चाहिए जो उनके साहसी, स्वस्थ और समृद्ध बनाने में सहायक सिद्ध होगा। 21 अप्रैल से 21 मई: इस अवधि के मध्य जन्मे जातकों की राशि अंक शास्त्रानुसार ‘‘वृषभ’’ होती है। इस राशि के लोग अपने जीवन मंे आने वाली कठिनाइयों को पार करते हुए गंतव्य को पहुंच जाते हैं। धनोपार्जन कर अपना जीवन सफल बनाना इनका मकसद होता है। वे संुदर वस्त्र, आभूषण, शृंगार, मनोरंजन आदि के शौकीन होते हैं। वृष राशि अधिक संतान वाली, कोमलांगी, शांत प्रकृति, गौर वर्णा, पुष्ट शरीर वाली मानी गई है इसकी आकृति वृष जैसी है। इस राशि वाले व्यवसायी, कृषक, पाक कलाविद, राजकर्मी, पशुधन प्रेमी, आढ़तिए, कवि, लेखक, सुगंधित वस्तुओं के व्यापारी, वस्त्र विक्रेता आदि होते हैं। 15वां, 24वां, 29वां अथवा 25वां वर्ष इनके लिए उŸाम होता है। इन्हें हृदय, मूत्र, फेफड़े आदि से संबंधित रोग होने की संभावना रहती है। वृष राशि का भाग्यशाली रत्न हीरा है। वृष राशि एवं वृष लग्न में जन्मे जातकों के लिए हीरा, पन्ना और नीलम अथवा इनके उपरत्नों का लाॅकेट धारण करना शुभ माना जाता है। 22 मई से 21 जून: इस समयावधि में पैदा हुए लोगों की राशि ‘‘मिथुन’’ मानी जाती है, जो बुध के आधिपत्य वाली राशि है। ‘काम के मामलों में सब कुछ सही’ वाली मानसिकता ऐसे लोगों में विशेष रूप से पाई जाती है। 17,23,28,32 व 41वां वर्ष इनके जीवन के महत्वपूर्ण वर्ष माने जाते हैं। हरे रंग के मयूरपंखी और मोगरा रंग के वस्त्र-रत्नादि धारण करना मिथुन राशि के जातकों के लिए शुभ होता है। मिथुन राशि का प्रिय रत्न पन्ना माना गया है। इस अवधि में जन्मे लोगों को, जिनकी कुंडली में मिथुन लग्न हो, पन्ना, हीरा और नीलम अथवा उनके उपरत्नों की बनी अंगूठियां अथवा लाॅकेट धारण करना शुभ होता है। मिथुन राशि वाले शिल्पज्ञ, कलाकार, गायन, वादन और नृत्य प्रेमी, चित्रकार, इंजीनियर, वक्ता, भविष्यवक्ता, अधिवक्ता, शास्त्रानुरागी, कामुक, हास्य प्रेमी, मिलनसार, वणिक वृŸिा वाले, ज्ञानी विज्ञानी, दार्शनिक, सचिवादि होते हैं। 22 जून से 23 जुलाई: इस अवधि में जिनका जन्म होता है उनकी राशि अंक शास्त्रानुसार ‘‘कर्क’’ है। इस राशि पर चंद्र का आधिपत्य होता है। इसकी आकृति केकड़े जैसी होती है। रजोगुणी और जल तत्व वाली इस राशि के लोग प्रायः दो प्रकार के कार्य-व्यवसाय अपनाकर धनोपार्जन करने वाले और माता के भक्त होते हैं। यह राशि सहानुभूति, सुकुमारता, सहकारिता आदि का बोधक मानी गई है। भाषाविद, राज्याधिकारी, नौसैनिक, राजनेता, जलवैज्ञानिक, लेखक, संपादक, प्राध्यापक, चिकित्सक, कवि, नाविक, न्याविद, नीति विशारद जैसे लोगों पर कर्क राशि का प्रभुत्व होता है। इस राशि के लोगों में उŸोजना अधिक होती है। जीवन का 16,22,24,28,35 और 47वां वर्ष कर्क राशि वालों के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। कर्क राशि का रत्न मोती है। कर्क राशि वालों के लिए मोती, मूंगा व पुखराज धारण करना शुभ होता है। 24 जुलाई से 23 अगस्त: इस अवधि में जन्म लेने वालों को सिंह राशि से प्रभावित माना गया है। सिंह राशि के जातक स्वच्छंदतापूर्वक रहना पंसद करते हैं। वे बलिष्ठ, निर्भीक, साहसी, क्रोधातुर होते हैं। वक दयालु भी होते हैं। ऐसे लोग शत्रु के साथ घोर शत्रुता रखते हैं। इन्हें भूख-प्यास व्याकुल कर देती है। ऐसे लोग निरोग होते हुए भी उदर पीड़ा से ग्रस्त पाए जाते हैं। वे गृह सज्जाकार, वास्तुकार, कलाकार, शिल्पकार, चित्रकार, लेखक, लिपिक, मुनीम, सैनिक, शिक्षक, प्रबंधक, शासक, प्रकाशक, अधिकारी या मंत्री हो सकते हैं। सिंह राशि का प्रतीक रत्न माणिक्य या सूर्यकांत मणि है। इनके लिए 19,22,31,40,46 और 58वां वर्ष भाग्यवर्धक होते हैं। सिंह राशि से प्रभावित लोगों को माणिक्य, पुखराज व मूंगा अथवा इनके उपरत्नों के मेल से बना लाॅकेट पहनना चाहिए। 24 अगस्त से 23 सितंबर: इस अवधि में पैदा हुए लोग कन्या राशि वाले माने जाते हैं। इस राशि पर बुध का आधिपत्य होता है। कन्या की आकृति वाली इस राशि से प्रभावित लोग आडंबर पसंद नहीं होते। 34 वर्ष की आयु के उपरांत इनका भाग्य इनका साथ देता है। तीव्र स्मरण शक्ति, स्त्री सदृश्य प्रकृति, धैर्य, लजीला स्वभाव आदि इस राशि वालों के विशेष गुण हंै। सद्साहित्य, गणित, विज्ञान, मनोविज्ञान आदि के अध्ययन-अध्यापन तथा हस्तकला, विपणन, एजेंसी, आशुलिपि, सार्वजनिक जैसे कार्यों से इस राशि से प्रभावित जातकों का संबंध होता है। ऐसे लोग अपनी मान-मर्यादा का सदैव ख्याल रखने वाले होते हैं। इनके लिए पन्ना भाग्यवर्धक होता है। यदि इस समयावधि में जन्मे लोगों की जन्म पत्रिका में कन्या लग्न हो, तो वे पन्ना, नीलम और हीरा या उनके उपरत्नों से बना त्रिशक्ति लाॅकेट धारण कर सकते हैं। इनके लिए जीवन का 29, 33, 41 और 50वां वर्ष महत्वपूर्ण होते हैं। 24 सितंबर से 23 अक्टूबर भारतीय अंक शास्त्र या पाश्चात्य पद्धति के अनुसार इस अवधि में जन्मे लोगों की राशि ‘‘तुला’’ है। यह शुक्र के स्वामित्व वाली राशि है जिसकी आकृति तुला जैसी है। इस राशि के जातकों को सदैव व्यापार में लाभ और धनोपार्जन की चिंता रहती है। वे सत्यनिष्ठ, न्यायप्रिय, दार्शनिक बुद्धि वाले, नृत्य संगीत प्रेमी, शृंगार मंे अभिरुचि रखने वाले, सच्चे प्रेमी, प्रसन्न रहने वाले तथा स्वच्छताप्रिय होते हैं। वकील, बैरिस्टर, रंगमंच कर्मी, दूरदर्शन के कलाकार, अभिनेता, न्यायविद, लेखक, संपादक, पत्रकार, रेडियोसिंगर, उच्च पदस्थ अधिकारी, उच्चवर्गीय व्यापारी, आयात-निर्यातकर्ता, संगीतज्ञ आदि तुला राशि से प्रभावित होते हैं। इस राशि वालों को गुर्दे, मूत्र, रक्त आदि की बीमारी हो सकती है। रत्नराज हीरा इनके लिए शुभ है। इन्हें नीलम, पन्ना और हीरा अथवा इनके उपरत्न एक साथ धारण करना समान रूप से लाभदायक होता है। 24 अक्टूबर से 23 नवंबर: इस अवधि में जन्मे जातकों की राशि अंक शास्त्र के अनुसार वृश्चिक है। इनके भाग्यवर्धक वर्ष 18,26,34,44 और 68 माने गए हंै। इस राशि पर मंगल का प्रभाव अधिक होता है। भू-उत्खनन, भवन-निर्माण, इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रिसिटी, तस्करी, राजदूतावास, गुप्तचरी, खिलाड़ी, एलोपैथी, शल्य-क्रियाएं, आलोचना, जादूगरी, सेना आदि से संबंधित लोग इसी राशि से प्रभावित होते हैं। वृश्चिक लग्न वालों को मूंगा, पुखराज और मोती निर्मित लाॅकेट पहनना चाहिए। 24 नवंबर से 22 दिसंबर: इस कालखंड में जन्मे लोगों की राशि धनु होती है। यह गुरु के स्वामित्व वाली राशि है। ऐसे जातकों के लिए उनके जीवन का 21,30,39,48,66वां वर्ष शुभ माने गए हैं। इस राशि का रत्न पुष्पराग मणि तथा सहायक रत्न विद्रुम और मुक्ता हैं। इनके बच्चे कम होते हैं। अर्थ-संपन्न होते हुए भी इस राशि के जातकों के जीवन में धन की कमी बनी रहती है। इन्हें हर कार्य में सफलता मिलती है। मूल नक्षत्र इनके लिए अशुभत्व कारक है। मठाधीश, प्राध्यापक, पुरोहित, दार्शनिक, र ा ज न ी ित ज्ञ , प र ा म शर्् ा द ा त ा , अर्थ-धर्म-न्यायशास्त्री त थ् ा ा घ् ा ु ड ़ द ा ै ड ़ , आयुर्वेद और चिकित्सा से जुड़े लोग इस राशि से प्रभावित होते हैं। धनु लग्न वालों को गुरु, मंगल और चंद्र के रत्न या उपरत्न संयुक्त रूप में धारण करना चाहिए, इससे धन-संपदा में वृद्धि होती है।



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