बिहार का खजुराहो - नेपाली मंदिर

बिहार का खजुराहो - नेपाली मंदिर  

राकेश कुमार सिन्हा ‘रवि’
व्यूस : 8881 | अप्रैल 2013

आदि-अनादि काल से सामाजिक प्रकाश स्तंभ की भांति मंदिरों का अस्तित्व भारतीय समाज में विद्यमान रहा है। समाज को सही, स्वच्छ व सटीक मार्गदर्शन देने वाले इन देवालयों में प्राकृतिक देवों के अलावे विभिन्न देवी-देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित की र्गईं जिनमें शिवलिंग का समृद्ध संसार है।

मंदिरों से जुड़े तथ्य विषयक अध्ययन यह स्पष्ट करते हैं कि देश में मंदिर निर्माण की द्वय शैली का खूब जोर रहा, उत्तर में नागर शैली और दक्षिण में द्रविड़ शैली; ऐसे कहीं-कहीं बेसर शैली और स्थानीय शिल्प कौशल का भी प्रयोग किया गया है पर किसी मंदिर के निर्माण में एक ही साथ चारां शैली का उपयोग यत्र-तत्र ही किया गया है।

ऐसा ही एक देवालय है हाजीपुर (पटना) का नेपाली मंदिर जिसे ‘बिहार प्रदेश का खजुराहो’ कहा जाता है। पटना-मुजफ्फरपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर गांधी सेतु पुल पार कर जडुआ मोड़ से छः कि.मी. दूरी तय करके इस स्थान तक आया जा सकता है।

यहां नारायणी गंडक के किनारे का दृश्यावली बड़ा ही मनभावन है जहां एक तरफ महाश्मशान में चिता अहर्निश जलती रहती है और इसी के बगल में है नारायणी नदी घाट। इसके आगे एक विशाल कक्ष के बीचों-बीच नेपाली मंदिर विराजमान है जिसके बाह्य ऊपरी भाग व शिखर नेपाल के विश्वविख्यात पशुपतिनाथ मंदिर का एकदम साम्य रूप है।

मूलतः लकड़ी के बने इस देवालय की शिल्पकृति देवालयों से भिन्न व बिल्कुल अलग है। जानकारी मिलती है कि हाजीपुर के इस नेपाली मंदिर का निर्माण हरि सिंह के दादा राजा रंजीत सिंह द्वारा करवाया गया। मंदिर के पुजारी पंराम बाबू दास कहते हैं कि तकरीबन 550 वर्ष पूर्व राना ने अपने स्राम्राज्य विस्तार व अधीनस्थ राजाओं पर विजय प्राप्ति के उपलक्ष्य में इस मंदिर का निर्माण समाज में काम विद्या के लोक शिक्षण हेतु करवाया। इस मंदिर के दर्शन से खुजराहो के मूत्र्त शिल्प और कोणार्क की कलाकृतियों का स्वतः स्मरण हो जाता है।


क्या आपकी कुंडली में हैं प्रेम के योग ? यदि आप जानना चाहते हैं देश के जाने-माने ज्योतिषाचार्यों से, तो तुरंत लिंक पर क्लिक करें।


ऐसे देश भर में ऐसी मिथुन मूर्तियां व युग्म जोड़े अन्य देवालयों में भी हं जिनमें डेलमेल का लिंबोजी माता मंदिर, सुनक का नीलकंठ मंदिर, भुवनेश्वर का लिंगराज मंदिर व छत्तीसगढ़ का भोरम देव मंदिर आदि का नाम विशिष्ट रूप से उल्लेखनीय है। मंदिर के दर्शन से स्पष्ट होता है कि इस मंदिर का निर्माण किसी विशेष उद्देश्य की संपूर्ति हेतु कराया गया। ऐसे इस मंदिर के संस्कारक के रूप में नेपाल के सूबेदार काजी हीरा लाल का भी नाम मिलता है जिन्होंने 12वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में इसका नव संस्कार करवाया।

काशी प्रसाद जायसवाल शोध संस्थान, पटना के निदेशक डाॅ. विजय कुमार चैधरी का मानना है कि बिहार प्रदेश के उत्तर मुगलकालीन देवालय में नेपाली मंदिर अपनी बनावट व युग्म मूर्तियों के लिए देश-विदेश में प्रसिद्ध है। जनमानस में काम संदर्भित ज्ञान के उद्देश्य से इस देवालय का निर्माण नदी तट पर इस कारण किया गया ताकि दूर-देश के जलीय मार्ग से जाने वाले पथिक भी इसका दर्शन लाभ कर सकें।

कारण प्राचीन भारतीय जलमार्गों में एक मार्ग गंडक नदी का भी था। इस मंदिर के निर्माण में पिरामिड आकार को प्राथमिकता दी गई है और यह तीन तल्ले का है जिसके मध्य कोने के चारां किनारों पर कलात्मक काष्ठ स्तंभ हैं, उसी के बीच चारों स्तंभों पर युग्म मूर्तियों का दृश्य रोचक है। कुल मिलाकर यहां काम विद्या के सोलह विशेष आसनों का उत्कृष्ट प्रदर्शन दर्शनीय है।

इन सभी पट्टिकाओं पर वाहन के साथ देव विग्रह का अंकन इस तथ्य का परिचायक है कि भगवान पर ध्यान लगा कर ही सांसारिक कार्यों में सफलता प्राप्त की जा सकती है। नेपाली मंदिर के निर्माण में पाषाण खंड, ईंट, लौह स्तंभ व लकड़ी के लंबे-चैड़े पट्टिकाओं का बहुतायत प्रयोग हुआ है। मंदिर के चारों तरफ प्रदक्षिणा पथ बने हैं। मंदिर के गर्भगृह में एक आकर्षक प्रभायुक्त लाल बलुए पत्थर का शिवलिंग विराजमान है और यह देवालय चारांे दिशाओं में चार द्वारों से युक्त है जिसके सटे भी एक प्रदक्षिणा पथ अंदर की ओर है।

मंदिर के ऊपरी तल में पाषाण व काष्ठ जाली का सुंदर प्रयोग दर्शनीय है। गंडक नदी पर बने कौशल्या घाट, सीढ़ी घाट व नया घाट के अलावे बड़ी काली मंदिर, दुर्गा स्थान, श्री गणीनाथ मंदिर, श्री योगनाथ बदरी विशाल मंदिर, विशाल शिव मंदिर, विश्वकर्मा मंदिर व मठ- आश्रम से शोभित इस स्थान की प्राकृतिक दृश्यावलियां भी चित्ताकर्षक हैं। ऐसे तो यहां सालों भर देशी-विदेशी पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है पर प्रत्येक वर्ष पूरे श्रावण व कार्तिक माह में यहां भक्तों के आगमन से विशाल मेला लग जाता है।

कुछ लोग यहां से पास का पुरास्थल राम चैड़ा भी जाते हैं जहां प्राचीन स्तूप-गढ़, चरण मंदिर और प्राचीन शिवालय दर्शनीय हैं। मंदिर के पास भी टीलानुमा स्थल किसी प्राचीन संस्कृति का गवाह स्थल प्रतीत होता है। कुल मिलाकर बिहार प्रदेश का यह मंदिर अपने अनूठे बनावट व शिल्पकृति के लिए भारत प्रसिद्ध है जहां के दर्शन की स्मृति वर्षों जीवंत बनी रहती है।


जीवन की सभी समस्याओं से मुक्ति प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करें !




Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.