जीवन का निश्चित व्रत: नाम स्मरण

जीवन का निश्चित व्रत: नाम स्मरण  

व्यूस : 11940 | जून 2009
जीवन का निश्चित व्रतः नाम स्मरण पं. ब्रजकिशोर भारद्वाज ‘ब्रजवासी’ जीवन का एक निश्चित व्रत होता है। इस व्रत के पालन से मनुष्य चारों पुरुषार्थ धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष प्राप्त कर लेता है। जगत् में क्रमशः सत्ययुग (कृतयुग), त्रेत्रा युग, द्वापर युग और कलियुग क्रमशः बदलते रहते हैं और इन युगों में भगवत् तत्त्व की प्राप्ति के साधन भी अलग-अलग वर्णित हैं जैसे सत्युग में तपस्या, त्रेतायुग में अश्वमेधादि यज्ञ, द्वापर में विविध उपचारों से भगवान् श्री हरि की पूजा और कलियुग में श्री हरि का नाम स्मरण। सत्ययुग में मानव हजारों-हजारों वर्षों तक तपस्यारत रहते हुए, त्रेतायुग में सौ-सौ अश्वमेधादि यज्ञों के द्वारा, द्वापर युग में विविध सामग्रियों से घंटों पूजा के द्वारा मानवजीवन का जो प्रधान लक्ष्य है उस अभीष्ट साधन भगवत् तत्त्व की प्राप्ति कर पाता था; परंतु कलियुग में तो सहज साधन नाम स्मरण ही सर्वोपरि है। कहा भी गया है कि कलियुग केवल नाम अधारा, सुमिर-सुमिर नर उतरहिं पारा। नाम स्मरण में देश - काल - परिस्थिति, आचार - विचार - पवित्रता, वेशभूषा आदि का भी अधिक महत्व नहीं है। यदि महत्व है तो केवल नाम स्मरण का। नाम मंत्र का स्मरण सोते-जागते, उठते-बैठते, खाते-पीते, चलते-फिरते, सफर में, व्यापार में, व्यवहार में, प्रातःकाल मध्याह्न काल, सायंकाल, रात्रिबेला में, किसी भी स्थान, किसी भी देश, किसी भी भेष में, सबके समक्ष एकांत या समूह मंे, जल-थल-नभ में और भाव-कुभाव आदि से भी किए जाने पर कल्याण ही करता है। कहा भी गया हैः भाव कुभाव अनख आलसहुं नाम जपत मंगल दिसि दशहुं।। श्रीमद् भागवत में कहा गया हैः यत्फलं नास्ति तपसा न योगेन समाधिना। तत्फलं लभते सम्यक्कलौ केशव कीर्तनात्।। जो फल तपस्या, योग एवं समाधि से भी नहीं मिलता, कलियुग में वही फल श्री हरिकीर्तन से सहज ही मिल जाता है। नाम स्मरण का तात्पर्य- वाणी से प्रभु नाम का गायन, मन से स्मरण, चित्त से चिंतन एवं हृदय से धारण करने से है। नाम ही जगत् का बीज है। नामैव जगतां बीजं नामैव पावनं परम्। नामैव शरणं जन्तोर्नामैव जगतां गुरुः ।। न नाम सदृशं ध्यानं न नाम सदृशो जपः। न नाम सदृशस्त्यागो न नाम सदृशो गतिः।। नामैव परमं पुण्यं नामैव परमं तपः। नामैव परमो धर्मः नामैव परमो गुरुः।। नामैव जीवनं जन्तोर्नामैव विपुलं धनं। नामैव जगतां सत्यं नामैव जगतां प्रिय।। श्रद्धया हेलया वापि गायन्ति नाम मंगलम्। तेषां मध्ये परं नाम वसेन्नित्यं न संशयः।। येन केन प्रकारेण नाम मात्रैक जल्पकाः। भ्रमं विनैव गच्छान्ति परे धाम्नि समादरात्।। नमोऽस्तु रामरूपाय नमोऽस्तु नाम जल्पिने। नमोऽस्तु नाम शुद्धाय नमो नाममयाय च।। नाम के द्वारा तो अजामिल जैसे पापी को भी श्री हरि ने उबार दिया। नामोच्चारणमाहात्म्यं हरेः पश्यत पुत्रकाः। अजामिलोऽपि येनैव मृत्यु पाशादमुच्यत।। भगवान के नामोच्चारण की महिमा तो देखो, अजामिल जैसा पापी भी ए बार नामोच्चारण करने मात्र से मृत्युपाश से छुटकारा पा गया। भगवान के गुण, लीला और नामों का भलीभांति कीर्तन मनुष्यों के पापों का सर्वथा नाश कर दे, यह कोई उसका बहुत बड़ा फल नहीं है, क्योंकि अत्यंत पापी अजामिल ने मरने के समय चंचल चित्त से अपने पुत्र का नाम ‘नारायण’ उच्चारण किया। इस नामाभास मात्र से ही उसके सारे पाप तो क्षीण हो ही गए, मुक्ति की प्राप्ति भी हो गई। बड़े-बड़े विद्वानों की बुद्धि कभी भगवान् की माया से मोहित हो जाती है। वे कर्मों के मीठे-मीठे फलों का वर्णन करने वाली अर्थवादरूपिणी वेदवाणी में ही मोहित हो जाते हैं और यज्ञ-यागादि बड़े-बड़े कर्मों में ही संलग्न रहते हैं तथा इस सुगमातिसुगम भगवन्नाम की महिमा को नहीं जानते। यह कितने खेद की बात है। संत तुलसीदास जी ने लिखा है कि कलियुग के प्राणी नाम के गुणों को गाकर बिना प्रयास के ही भव से पार हो जाएंगे, क्योंकि कलियुग में नाम की विशेषता है। कलियुग सम जुग आन नहिं जो नर कर विश्वास। गाइ राम गुन गन विमल भव तर बिनहिं प्रयास।। नाम तो वह धन है जो निर्धन को धनवान बनाए। नाम ही नर को नारायण की सही पहचान कराए। इसीलिए संत कहते हैं। मन भज ले हरि का नाम, उसके नाम से बन जाएंगे तेरे बिगड़े काम। सूरज, चांद, सितारे, नदिया, नाव, समंदर, नाम के बल से ही चलते हैं ये धरती ये अम्बर। नाम ही ले कर दिन उगता है, नाम ही लेकर ढलती शाम ले ले हरि का नाम।। टेक ।। नाम के द्वारा तो समुद्र में पत्थर भी तैर गए, तो क्या आश्चर्य है कि नाम के द्वारा मानव का उद्धार हो जाए, वह भव सागर से तर जाए। नाम जप के बारे में विद्वानों ने बताया हैः एक करोड़ नाम जपने से तन का सुख, दो करोड़ से धन का सुख, तीन करोड़ से पराक्रम व बल का सुख, चार करोड़ से मातृ सुख, पांच करोड़ से विद्या व ज्ञान का सुख, छह करोड़ से अंदर के शत्रु (काम-क्रोध-लोभ-मोह, अहंकार ईष्र्या आदि) एवं जगत के शत्रु से मुक्ति, सात करोड़ से पति को पत्नी सुख तथा पत्नी को पति सुख अर्थात वैवाहिक जीवन का आनंद और आठ करोड़ से मृत्यु स्थान सुधर जाता है और अकाल मृत्यु, नहीं होती। नौ करोड़ से प्रारब्ध कर्म का नाश, दस करोड़ से क्रियमाण कर्म का नाश, ग्यारह करोड़ से संचित कर्म का नाश अर्थात तीनों कार्यों के शुभाशुभ फल से मुक्ति, बारह करोड़ से पराम्बा मां भगवती जगत् जननी का स्वप्न में मंगलमय आशीर्वाद पूर्ण दर्शन तथा तेरह करोड़ मंत्र जपने पर विराट् विराटेश्वर जगत नियंता कोटि-कोटि ब्रह्मांड नायक श्री हरि का साक्षात्कार हो जाता है। नाम में बड़ी शक्ति है अतः प्रत्येक श्वास पर नाम स्मरण करो- श्वास श्वास में हरि भजो, वृथा श्वास मत खोय। ना जाने या श्वास कौ, फिर आवन होय ना होय। ये जीवन क्षणभंगुर है, न जाने कब समाप्त हो जाए इसलिए प्रत्येक क्षण नाम का स्मरण करें यही मानव जीवन की सार्थकता है, क्योंकि मानव जीवन भोग के लिए नहीं यह योग के लिए है, तपश्चर्या के लिए है, भगवद्भक्ति के लिए है। श्री शुकदेव बाबा ने महाराज परीक्षित को बताया था कि राजन् ! यों तो कलियुग दोषों का खजाना है, परंतु इसमें एक बहुत बड़ा गुण है। वह गुण यही है कि कलियुग में केवल भगवान श्री कृष्ण का संकीर्तन करने मात्र से ही सारी आसक्तियां छूट जाती हैं और परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है। मनुष्य मरने के समय आतुरता की स्थिति में अथवा गिरते या फिसलते समय विवश होकर भी यदि भगवान के किसी एक नाम का उच्चारण कर ले, तो उसके सारे कर्म बंधन छिन्न-भिन्न हो जाते हैं और उसे उत्तम से उत्तम गति प्राप्त होती है। यह सब तभी संभव है जब अनवरत नाम जपने का अभ्यास हो और जब यह पूर्णता प्राप्त होगी तभी अंत समय में प्रभु नाम वाणी से उच्चरित होकर मुक्तिदाता बन जाएगा। नहीं तो अंत समय में सुहृद बंधुओं के बुलवाने पर भी नाम निकल नहीं पाता। अतः सतत अभ्यास के द्वारा नाम का अवलंबन लें जैसे भक्त प्रह्लाद, ध्रुव, मीरा, नरसी आदि ने लिया। नाम साधना के लिए जीवन में किसी भी नाम (राम, कृष्ण, गोविंद, माधव, नारायण या शिव ) को धारण करें। महामंत्र भी उत्तम है। हरे राम हरे राम राम-राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण-कृष्ण हरे हरे।। गृहस्थ जीवन में नियम बना दें कि जब तक नाम संकीर्तन नहीं होगा किसी को भोजन (महाप्रसाद) प्राप्त नहीं होगा। 24 घंटे में एक ऐसा समय निश्चित कर लें जब परिवार के सभी जन उपस्थित हों। सामूहिक रूप से ताली बजाकर या वाद्यादि के द्वारा प्रभु नाम का संकीर्तन करें, निश्चिय ही कल्याण होगा। जीवन की रिक्तता, अभाव, दरिद्रता, दैन्यता, अपूर्णता, विषाद सब समाप्त हो जाएंगे। परम संतुष्टि एवं शांति प्राप्त कर जीवन समृद्धिशाली एवं ऐश्वर्यपूर्ण हो जाएगा। फिर आपको किसी ज्योतिषी, तांत्रिक, मांत्रिक, ब्राह्मण, आचार्य, गुरु आदि से यह कहना ही नहीं पड़ेगा कि हमारे जीवन में अमुक अभाव या संकट है। हमारा बालक हमारा कहना नहीं मानता। संकीर्तन में रत व्यक्ति अनुकूलता को प्राप्त कर लेगा। प्रतिकूलता जीवन से उसी प्रकार समाप्त हो जाएगी जिस प्रकार एक छोटी सी माचिस की तीली बड़े-बड़े विशालकाय रूई के ढेर को क्षण भर में जलाकर भस्म कर देती है। गोस्वामी जी ने कहा है- बारि मथे घृत होई बरू सिकता ते बरू तेल। बिनु हरिभजन न भव तरिअ यह सिद्धांत अपेल।। जल के मथने से घी तथा बालू पेरने से तेल की प्राप्ति होना संभव है; परंतु बिना हरि भजन के भव सागर से पार होना सहज नहीं है। यह सिद्धांत प्रामाणिक है। आदि कवि बाल्मीकि जी ने नाम का प्रताप जाना और उल्टा जपकर सिद्ध हो गए। उल्टा नाम जपा जग जाना, बाल्मीकि भए ब्रह्म समाना। बंदऊ नाम राम रघुवर को, हेतु कृसानु भानु हिमकर को। विधि हरि हर मय वेद प्राण सो, अगुन अनुपम गुन निधान से।। नाम की वंदना में संत तुलसीदास जी ने लिखा है कि मैं रघुवर राम के उस नाम की वंदना करता हूं जो अग्नि, सूर्य, चंद्रमा का हेतु (कारण) है और ब्रह्मा, विष्णु और शंकर तथा वेदों का भी प्राण है। जिस प्रकार प्राण के बिना शरीर में कुछ भी सार नहीं रहता, उसी प्रकार नाम के बिना ब्रह्मा, विष्णु, शिव तथा वेद में भी कुछ सार नहीं है, क्योंकि सतोगुण में विष्णु, रजोगुण में ब्रह्मा और तमोगुण में शिव हैं परंतु वह नाम इन तीनों गुणों से न्यारा है, अनुपम है और सब गुणों का निधान है। महामंत्र जोई जपत महेसू। कासी मुकुति हेतु उपदेसू। महिमा जासु जान गनराऊ। प्रथम पूजियत नाम प्रभाऊ ।। वह नाम महामंत्र है जिसे महादेव जी जपते हैं और जिसका उन्होंने काशी में मुक्ति के लिए उपदेश किया, जिसकी महिमा जानकर गणेश जी प्रथम पूजनीय हुए। यह नाम का प्रभाव है। उस नाम को हजारों नामों के समान जानकर भवानी जी शंकर जी के साथ जपती हैं। यह गृहस्थ जीवन के लिए उच्चतम आदर्श है। इससे मानव मात्र को शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए, और नाम के प्रभाव को समझकर सतत उसका जप-स्मरण- चिंतन-गायन करना चाहिए। निर्गुण और सगुण दोनों ब्रह्म के ही स्वरूप हैं, अकथ हैं, अपार हैं, अनुपम हैं, अनादि हैं पर दोनों से नाम बड़ा है, क्योंकि नाम ने अपने बल से दोनों को अपने वश में किया है। नाम के बारे में कहा है- कहै नाम आधो सो आधो नसावै। कहै नाम पूरो सो वैकुंठ पावै।। सुधारै दुहुं लोक को वर्ण दोऊ। हिए छद्म छाड़े कहै वर्ण कोऊ ।। सर्वे क्षयान्ता निचयाः पतनान्ताः समुच्छया।। संयोगान्ता मरणान्तं च जीवितम्। समस्त संग्रहों का अंत विनाश है, लौकिक उन्नतियों का अंत पतन है, संयोगों का अंत वियोग है और जीवन का अंत मरण है। परंतु मानव जीवन के कल्याण व मोक्ष का मार्ग एकमात्र नाम स्मरण- नाम संकीर्तन है। तीन प्रकरणों ध्यान, अर्चन और नाम में इस कराल कलिकाल में नाम प्रकरण ही श्रेष्ठतम साधन है। स्वरूप सेवा कलियुग में सिद्ध नहीं है, क्योंकि इसमें पवित्रता की आवश्यकता है। कलिकाल में ध्यान लगाना भी सहज नहीं है। पांच कर्मेंद्रियों, पांच ज्ञानेंद्रियों, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार को परमात्मा में लगाना भी बड़ा ही दुष्कर कार्य है। केवल मात्र नाम सेवा ही कलियुग में प्रधान है। कहा भी गया है। नारायण जिन नाम लिया तिन और नाम लिया न लिया। अमृत पान किया घट भीतर गंगाजल भी पिया न पिया।। जग में सुंदर हैं दो नाम, चाहे कृष्ण कहो या राम, एक हृदय में प्रेम बढ़ावै, एक पाप के ताप मिटावै। दोनों बल के सागर हैं, दोनों हैं पूरण काम।। नाम की महिमा अपरंपार है। वेदों, उपनिषदों एवं गीता आदि में नाम की महिमा का वर्णन किया गया है। चारों युगों में भी नाम का प्रभाव है तो फिर कलियुग में क्या विशेषता है? इसके लिए संत तुलसीदास जी ने बताया है कि- सोई भव तर कछु संशय नाहीं। नाम प्रताप प्रगट कलि माहीं। नामु राम को कल्पतरू कलि कल्याण निवासु। जो सुमिरत भायो मांग ते तुलसी तुलसीदासु।। वे भव से पार हो जाएंगे जो राम नाम का स्मरण करते हैं; इसमें कुछ भी संशय नहीं है क्योंकि नाम का प्रताप कलि में प्रकट होगा अथवा राम का नाम जो बीज मंत्र है वह कल्पवृक्ष का रूप धारण कर कलि के जीवों का कल्याण करने के लिए निवास करेगा। इसके स्मरण मात्र से तुलसी ‘तुलसीदास’ अर्थात् संत हो गए। राम नाम मणि दीप धरू जीह देहरी द्वार। तुलसी भीतर बाहेरहु जो चाहोसि उजियार।। दहलीज में धारण कर लो, यदि भीतर और बाहर उजाला चाहते हो। नाम ही इह लौकिक और पारलौकिक अर्थात सांसारिक और आध्यात्मिक सुखों का दाता है। नाम व्रत का पालन करें और जीवन में सर्वस्व को प्राप्त करते हुए परमपिता परमेश्वर की कृपा से मानव जीवन का जो अभीष्ट लक्ष्य है, मोक्ष उसे प्राप्त करें। कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्सेन। प्रणत क्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नमः।। प्रणाम करने वालों के क्लेश का नाश करने वाले श्रीकृष्ण वासुदेव, हरि, परमात्मा एवं गोविन्द के प्रति हमारा बार-बार नमस्कार है। नाम संकीर्तन यस्य सर्वपाप प्रणाशनम्। प्रणामो दुख शमनस्तं नमामि हरिं परम्।। जिन भगवान के नामों का संकीर्तन सारे पापों को सर्वथा नष्ट कर देता है और जिन भगवान के चरणों में आत्मसमर्पण, उनके चरणों में प्रणति सर्वदा के लिए सब प्रकार के दुखों को शांत कर देती है, उन्हीं परमतत्त्व स्वरूप श्री हरि को मैं नमस्कार करता हूं। अतः आज से अभी से यह संकल्प लें कि हम सदासर्वदा परमात्मा के मंगलमय नाम का स्मरण संकीर्तन हमेशा करते रहेंगे। नाम व्रत जीवन में किसी भी क्षण धारण किया जा सकता है। कृष्ण नाम सुखदायी, भजन कर भाई। ये जीवन दो दिन का।। राम नाम सुखदायी, भजन कर भाई। ये जीवन दो दिन का।।



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