अग्नि तत्व राशि षष्ट भाव में सूर्य

अग्नि तत्व राशि षष्ट भाव में सूर्य  

व्यूस : 15511 | जून 2009
अग्नि तत्व राशि षष्ठ भाव में सूय आचार्य किशोर षष्ठ भाव से शत्रु, क्रूर कर्म, रोग, चिंता, फुंसी, चोट, विमाता, भय, माता आदि का ज्ञान होता है। पाश्चात्य ज्योतिष में इस स्थान से अधिनस्थ व्यक्ति, नौकर पालतु पशु पक्षी, स्वतंत्रता आदि का विचार किया जाता है। छठा, आठवां, बारहवां स्थान दुस्थान माना जाता है। छठा भाव दुःस्थान है। उपचय भाव 3, 6, 10, 11 है। इसमें 8, 12 का नाम नहीं है। फिर भी छठा भाव दुःस्थान है। छठे भाव का स्वामी और छठे भाव में बैठे ग्रह दोनों बुरा फल देने वाले हैं। किंतु उपचय स्थान के स्वामी कि दशा अंर्तदशा अशुभ फलदायी है जो ग्रह वहां स्थित होते हैं वो हमेशा अशुभ फलदायी नहीं होते फिर भी षष्ठ भाव में बैठे पाप ग्रह शुभ फलदायी होते हैं। शास्त्रों में सूर्य को पाप ग्रह मानते हुए भी सर्वदा फलदायी नहीं माना। कुछ ज्योतिर्विद सूर्य को सम ग्रह मानते हैं। क्योंकि सूर्य, गुरु और शुक्र की तरह शुभ फल नहीं देता और मंगल शनि की तरह अशुभ फल नहीं देता वो बुध की तरह सम फल देता है। इसलिए सूर्य को सम मानते हैं। बुध और सूर्य में अंतर है। बुध जिस ग्रह के साथ होता है। उसकी तरह फल देता है। और सूर्य जिसके साथ होता है उसे ह्रास करता है या उसके गुणों को कम करता है इसलिए छठे भाव में सूर्य शुभफलदायक है लेकिन छठे भाव का स्वामी यदि सूर्य हो तो दशा में क्षति होती है वहीं सूर्य यदि अष्टम, द्वादश के स्वामी से संबंध बनाता है तो मृत्यु या मृत्युतुल्य कष्ट देता है। षष्ठ भाव से आध्यात्मिकता का विचार किया जाता है। लेकिन द्वितीय, षष्ठ, दशम भाव से मनुष्य जीवन में कर्म, धन, परिश्रम, समय, प्रतिष्ठा, प्रभुत्व और ख्याति प्राप्त करने का सूचक है। इसलिए षष्ठ भाव से संबंध सांसारिक जीवन में प्रभाव डालता है। सूर्य अगर षष्ठ भाव में तो जातक सुखी, शत्रु पर विजयी, आकर्षक और उच्च पद पर आसीन होता है। सूर्य यदि शत्रु ग्रह द्वारा दृष्ट या युक्त होता है तो जातक के शत्रु होते हैं। फिर भी जातक पर विजय प्राप्त करता है। वह समर्थवान होता है। छठे भाव में यदि सूर्य शुभ द्वारा दृष्ट होता है तो मनुष्य अपने आपको बीमारी और विपत्तियों से मुक्त रखता है। यदि इसके विपरीत होता है तो जातक को कष्ट होता है। अ यदि अग्नि तत्व राशि मेष राशि छठे भाव में सूर्य हो तो मनुष्य के कर्म क्षेत्र में बहुत से बलवान शत्रु होते हैं। अर्थात् शत्रु अधिक शक्तिशाली होते हैं। उनसे बहुत कष्ट का सामना करना पड़ता है। यदि सूर्य राहु और शनि के संपर्क में होता है तो शत्रु पराजित होता है। यदि बुध गुरु से संबंध होता है तो जातक अपने बुद्धि बल से शत्रु को पराजित करता है यदि सूर्य के साथ मंगल हो तो भी जातक शत्रु को पराजित करता है। केंद्र में यदि शुभ ग्रह न हो और सूर्य भी शुभ ग्रहों द्वारा दृष्ट या युक्त न हो तो जातक उग्र या दुष्ट प्रवृत्ति का होता है। परंतु जातक स्वस्थ, पराक्रमी, साहसी, शक्तिशाली और अपने कर्म क्षेत्र में क्षमता ाप्राप्त करता है लेकिन सर में दर्द और रक्तचाप (बी. पी.) जैसी बीमारी भी हो जाती है। अपने पिता से उसके विचार मेल नहीं खाते। कर्म क्षेत्र में बराबर स्थानांतरण होता है। जातक के लग्न में प्राकृतिक शुभ ग्रह गुरु और सप्तम भाव में शुक्र के साथ उच्च का चंद्रमा होने के कारण जातक बचपन से सात्विक प्रवृत्ति और सुंदर रहा। परिवार का हर व्यक्ति उससे प्रेम करता रहा। घर से अच्छे संस्कार मिले फिर भी छठे भाव में सूर्य मंगल बुध और राहु की महादशा में सब चीजों में परिवर्तन करवाया। दशम भाव का स्वामी सूर्य छठे भाव में मंगल के साथ बहुत अच्छी नौकरी का लाभ अवश्य मिला। राहु की महादशा 2022 तक चलेगी। इस अवधी में जातक किसी की परवाह नहीं करता और माता-पिता की बात अनसुनी करता है। सुनता सबकी है करता अपने मन की है। अपनी इच्छा से विवाह करके पत्नी के साथ अकेला रहता है। फिर भी पति-पत्नि आपस में झगड़ा करते हैं। इसका कारण यह है कि राहु की दशा चल रही है। षष्ठ भाव में प्राकृतिक पाप ग्रह सूर्य एवं मंगल अग्नि तत्व राशि में, शनि की दृष्टि में जातक के दिमाग को बिगाडा़ है। चंद्र और शुक्र दोनों पाप कर्तरी में पीड़ित है इसलिए गुरु की दृष्टि भी काम नहीं कर रही। भले ही गुरु की महादशा में जातक सुधर सकता है। चंद्र लग्न से सूर्य, मंगल, बुध द्वादश होने के कारण जातक अपने घर से अवश्य निकल गए हैं। सिर्फ गुरु की दृष्टि होने के कारण जातक ने अपने परिवार से थोड़ा संबंध बनाकर रखा है। जन्म के समय सूर्य की महादशा में जातक का जन्म हुआ। उच्च का सूर्य 1987 तक का समय अपने खेल कूद में विताया फिर 1997 तक चंद्र की महादशा में पढ़ाई-लिखाई में रूचि दिखाई। मंगल की दशा 2004 तक छठे भाव के मंगल ने भी जातक को शुभ फल दिया। जब से राहु की महादशा चली जातक का चरित्र धीरे-धीरे बदलने लगा। लिखने का तात्पर्य यह है कि समय से पहले कुछ नहीं होता। बुरी दशा के समय बुरा फल, शुभ ग्रह की दशा में शुभ फल निश्चित रूप से मिलता है। सिर्फ अग्नि तत्व ग्रह अग्नि तत्व राशि में अत्यधिक क्रोध, निडर, घमंडी और दूसरों को इज्जत नहीं देता। लग्न में प्राकृतिक शुभ ग्रह, चंद्र लग्न में शुक्र चंद्र गुरु की दृष्टि में इतना सब शुभ प्रभाव होते हुए भी अग्नि तत्व ग्रहों के फल का प्रभाव अधिक दिखता है। प्राकृतिक पाप ग्रह सूर्य दशम केंद्र का स्वामी होकर छठे घर में बलवान होने के कारण उच्च पद तो दिया परंतु राहु की दशा में अपनी मर्यादा को बचा नहीं पाया। बाकी ग्रहों से सूर्य यहां सबसे अधिक बलवान है। इसलिए इनके चरित्र में सूर्य का प्रभाव अधिक रहा। सूर्य पिता है पिता से नहीं बनती चंद्रमा माता है। माता से नहीं बनती। वृहस्पति की दृष्टि होने के बावजूद पाप कर्तरी में चंद्रमा ने माता को भी कष्ट दिया, चतुर्थ भाव का स्वामी, द्वादश भाव में उच्च का होकर शुभ फल नहीं दे पाया और दशम भाव का स्वामी जो पिता का कारक है छठे भाव में उच्च राशि में होने के कारण जातक अपने पिता को सलाह देने की कोशिश करता है अपने आपको पिता से अधिक ज्ञानी समझता है। मेष राशि पित्त प्रकृति, चंचल प्रवृत्ति, चर राशि, विषम राशि में सूर्य का छठे भाव में बैठना शुभ फल से अशुभ फल अधिक देने लगा है। परंतु वहीं सूर्य दशम भाव का स्वामी होने के कारण अच्छा प्रशासक है और हर आदमी उसे देखते ही घबराता है इसका अर्थ है कि सूर्य का शुभ फल भी इस राशि में मिला। इस जातक में प्राकृतिक पाप ग्रह सूर्य मंगल के साथ बुध भी पापी बन चुके हैं। छठे भाव में पाप ग्रहों का होना स्वभाविक है और चंद्र लग्न से ये तीनों ग्रह अष्टम भाव में है। लग्न और चंद्र लग्न से पाप ग्रह मेष राशि में छठे भाव में कहीं-कहीं शुभ फल और कहीं-कहीं अशुभ फल भी देंगे। यहां पर शनि की पूर्ण दृष्टि छठे भाव को और षष्ठ भाव में स्थित तीनों ग्रहों को है। लग्न से अष्टम भाव में राहु पाप ग्रह होकर बलवान है। किसी शुभ ग्रह की दृष्टि इन पाप ग्रहों पर नहीं पड़ रही स्वभाविक है कि जातक की कुंडली में पाप ग्रह बलवान है। इसलिए जातक क्रूर कार्य अत्यधिक कर रहा है। जबकि लग्न में वृहस्पति और सप्तम भाव में शुक्र दोनों शुभ ग्रह एक दूसरे को देख रहे हैं। जातक का चंद्र की दशा में जन्म हुआ। चंद्र की दशा 27-10-1992 तक रही। 1997 तक मंगल की दशा और वर्तमान समय में 27-10-2007 तक राहु की दशा चल रही है। राहु की दशा में जातक जेल जा चुका है और विदेश में रहकर सब गलत कार्य कर रहा है। लिखने का तात्पर्य यह है कि सूर्य का मेष राशि षष्ठ भाव में बलवान होने का मतलब यह है कि शुभ ग्रह का प्रभाव बिल्कुल नहीं रहा और वृश्चिक लग्न के लिए सूर्य दशम भाव का स्वमी सबसे बड़े केंद्र का स्वामी होकर उच्च राशि में स्थित है। अतः पाप कार्यों को अधिक बढ़ाया। कर्म जीवन के स्वामी सूर्य षष्ठ भाव में बैठकर द्वादश भाव को देख रहे हैं। इसलिए जातक लंदन में जन्म होते हुए भी दुबई में रह रहे हैं। चतुर्थ भाव के स्वामी शनि भी द्वादश भाव में है इसलिए जातक जन्म स्थान से बाहर जाकर रह रहे हैं। सूर्य 130 के अंदर होने से अश्विनी नक्षत्र में स्वामी केतु लग्न से धन स्थान में गलत ढंग से काम करके धन कमा रहे हैं। यदि चंद्र लग्न से देखें तो अष्टम भाव में पाप ग्रह पाप कार्य ही करवाते हैं जबकि लग्न में स्थित गुरु को शुक्र की दृष्टि गलत कार्य नहीं करवाना चाहिए- इसका अर्थ यह है कि राहु की दशा तक जातक इस प्रकार के कार्यों में लिप्त रहेगा। मेष राशि का सूर्य उच्च राशि में काल पुरूष की कुंडली में मस्तक पर बैठा है और शनि की दृष्टि में है। सूर्य सभी ग्रहों का राजा है वहीं सूर्य यदि बलवान होकर अग्नि तत्व ग्रह होकर अग्नि तत्व राशि में पाप ग्रहों के प्रभाव में रहता है तो ऐसे व्यक्ति दुनिया में किसी से नहीं डरते। क्या राहु की महादशा के बाद लग्न के गुरु की महादशा में जातक का चरित्र बदल सकता है। मेरे विचार में अवश्य बदलाव आएगा। क्योंकि नवांश में गुरु वर्गोत्तम है और सूर्य जलचर राशि कर्क राशि में है इसलिए गुरु की दशा में बदलाव आएगा फिर भी जातक जितनी आग उगलता उतना नहीं उगलेगा अर्थात गलत कार्य कम करेगा। छठा भाव मामा का घर है। इसलिए जातक को मामा के घर से भी समर्थन मिल रहा है। गर्व अहंकार दुराचार इसलिए अधिक है कि शत्रु के घर में ये पाप ग्रह अधिक बलवान हैं परंतु मस्तिष्क विकृति का रोग भी दिया है। अति हर चीज की बुरी होती है। जब तक अच्छी दशा नहीं आती तब तक प्राकृतिक शुभ ग्रह गुरु का लग्न में होना भी जातक के चरित्र को सुधार नहीं पाता। पाप ग्रह पाप स्थान में और अग्नि तत्व ग्रह होकर अग्नि तत्व राशि में कभी-कभी अपने आपको भी नुकसान पहुंचाते हैं।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.