मंगलाष्टकवर्ग से सटीक फलकथन

मंगलाष्टकवर्ग से सटीक फलकथन  

संजय बुद्धिराजा
व्यूस : 5187 | जुलाई 2009

पिछले अंक में चंद्राष्टकवर्ग पर किये गये शोध की चर्चा की गई थी। इस अंक में प्रस्तुत है - मंगलाष्टकवर्ग पर किए गए शोध का विश्लेषण। भारतीय ज्योतिष में फलकथन हेतु अष्टकवर्ग विद्या की अचूकता व सटीकता का प्रतिशत सबसे अधिक है। अष्टकवर्ग विद्या में लग्न और सात ग्रहों (सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि) को गणना में सम्मिलित किया जाता है।

मंगल ग्रह द्वारा विभिन्न भावों व राशियों को दिए गए शुभ बिंदु तथा मंगल का ‘शोध्यपिंड’ - ये ‘मंगलाष्टकवर्ग’ से किए गए फलकथन का आधार होते हैं। (मंगलाष्टकवर्ग जैसे अनेक वर्ग व शोध्यपिंड की गणना कंप्युटर में ‘‘स्मव ळवसक ।ेजतवसवहपबंस ैवजिूंतमष् की मदद से आसानी से की जा सकती है)। अष्टकवर्ग विद्या में नियम है कि कोई भी ग्रह चाहे वह स्वराषि या उच्च का ही क्यों न हो, तभी अच्छा फल दे सकता है जब वह अपने अष्टकवर्ग में 5 या अधिक बिंदुओं के साथ हो क्योंकि तब वह ग्रह बली माना जाता है।

अतः यदि मंगल ग्रह मंगलाष्टकवर्ग में 5 या इससे अधिक बिंदुओं के साथ है तथा सर्वाष्टक वर्ग में भी 28 या अधिक बिंदुओं के साथ है तो मंगल से संबंधित भावों के शुभ फल प्राप्त होते हैं। यदि सर्वाष्टकवर्ग में 28 से अधिक बिंदु व मंगलाष्टकवर्ग में 4 से भी कम बिंदु हैं तो फल सम आता है। यदि दोनों ही वर्गाें में कम बिंदु हैं तो ग्रह के अषुभ फल प्राप्त होते हैं। कारकत्व के अनुसार मंगल से साहस, भ्रातृ सुख, मज्जा, रक्त, यश, दुर्धटना आदि का विचार किया जाता है। मंगलाष्टकवर्ग: यदि कुंडलियों में मंगलाष्टकवर्ग का उपयोग कर फलकथन हेतु निम्न सिद्धांतों या नियमों को अपनाया जाए तो अधिक सटीक परिणाम सामने आते हैं -

Û मंगल के अष्टकवर्ग में मंगल से तीसरे भाव में जितने शुभ बिंदु होंगे, उतने ही भाई जातक के होते हैं। नीच या शत्रु ग्रहों द्वारा दिए गए बिंदुओं की संख्या को हटा देना चाहिए। उदाहरण: अमिताभ बच्चन (11.10.1942, 16ः00, इलाहाबाद) जातक की कुंभ लग्न की कुंडली में मंगल अष्टम भावस्थ है और मंगल से तीसरे भाव में वृश्चिक राशि है। वृश्चिक राशि को मंगल के अष्टकवर्ग में कुल 4 बिंदु मिले हैं। ये बिंदु वृश्चिक राशि को शनि, बुध, सूर्य व लग्न से मिले हैं। इन चारों में से शनि, बुध व लग्न कुंभ, मंगल के शत्रु हैं। अतः इनके दिए बिंदुओं को छोड़ देने से केवल एक ही बिंदु सूर्य का दिया हुआ बच जाता है और जातक का भी एक ही छोटा भाई अजिताभ बच्चन है।

Û मंगल के साथ यदि शनि की युति हो या मंगल ग्रह शनि से दृष्ट हो तथा मंगल के अपने अष्टकवर्ग में अधिक बिंदु हांे तो यह एक राजयोग बनता है जो जातक को साहस, बेहतर निर्णय क्षमता और विजय देता है। उदाहरण: फिल्म कलाकार राजेष खन्ना (29.12.1949, 17ः45, अमृतसर) इनकी जन्मकुंडली के मंगलाष्टकवर्ग में मंगल छठे भाव में 5 बिंदु लेकर बैठा है और 12वें भाव के शनि से दृष्ट भी है। इस योग ने उन्हें फिल्मों में साहस व बेहतर निर्णय क्षमता दी और वे बहुत जल्द ही भारत की जनता के दिल पर छा गए।


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Û शोधन से पूर्व मंगल से तृतीय राषि के बिंदुओें को मंगल के शोध्यपिंड से गुणाकर 27 से भाग देने पर शेष तुल्य नक्षत्र में या इसके त्रिकोण नक्षत्र में शनि के गोचरवश आने पर भ्रातृकष्ट होता है। उदाहरण: भावना (18.04.1979, 23.00, पलवल) जातिका की जन्मकंुडली में पंचमस्थ मंगल के मंगलाष्टकवर्ग में मंगल से तीसरी राषि में 4 बिंदु हैं । मंगल का शोध्यपिंड = 135 इसलिये 4 ग 135 = 540 » 27 शेषफल = 0 या 27 27वां नक्षत्र है रेवती व इसके त्रिकोण नक्षत्र हैं - आष्लेषा व ज्येष्ठा। जातिका के छोटे भाई को जब फरवरी 1998 में टाईफाइड हुआ तो उसे ठीक होने में लगभग छः महीने लग गए और खर्च भी बहुत हो गया। इसी दौरान उसकी पढ़ाई भी छूट गई। उन दिनों शनि का गोचर रेवती नक्षत्र पर से था।

Û मंगल से तृतीय राषि के बिंदुओं को मंगल के शोध्यपिंड से गुणाकर 12 का भाग देने पर शेष तुल्य राषि या इसके त्रिकोण राषि में शनि आने पर भ्रातृकष्ट होता है। पिछला उदाहरण: भावना (18 अप्रैल 1979, रात्रि 11.00 बजे, पलवल) जातिका की जन्मकंुडली में मंगल के अष्टकवर्ग में मंगल से तीसरी राषि में बिंदु हैं - 4 और मंगल का शोध्यपिंड है - 135। इसलिये 4 ग 135 = 540 » 12 शेषफल = 0 या 12 12वीं राषि है मीन व इसके त्रिकोण राषियां हैं - कर्क व वृष्चिक। जातिका के छोटे भाई को जब फरवरी 1998 में टाईफाइड हुआ और खर्च भी बहुत हो गया था तथा उसकी पढ़ाई भी छूट गई तब शनि का गोचर मीन राषि से था।

Û मंगल राषि से तृतीय भाव भ्रातृ गृह होता है। त्रिकोणषोधन करने पर जिस राषि में अधिक बिंदु हों, उस राषि में गोचरवश मंगल आने पर भूमि तथा भाई का शुभ कहना चाहिए और जिस राषि में बिंदु शून्य हो, उसमें मंगल आने पर भ्रातृ कष्ट कहना चाहिए। उदाहरण: राजीव गांधी (20.08.1944, 07ः11, मुंबई) जातक की जन्मकंुडली में मंगल के अष्टकवर्ग में त्रिकोणषोधन के पष्चात जिन राषियों में शून्य बिंदु हैं, वे राषियां हैं - सिंह, कन्या, वृष्चिक व कंुभ। जातक के छोटे भाई संजय गांधी की जब 23 जून 1980 को मृत्यु हुई तो उस समय मंगल का गोचर सिंह राषि पर से ही था।

Û मंगल के अष्टकवर्ग में मंगल के शोध्यपिंड को गुरु से सातवें या सूर्य से सातवें में शोधन से पूर्व बिंदु की संख्या से गुणा करके 27 का भाग दें और शेषफल प्राप्त करें तो शेषफल तुल्य नक्षत्र या इसके त्रिकोण नक्षत्र में गुरु या सूर्य के गोचर से भाई के लिए परेषानी पैदा होगी । उदाहरण: आरती (25 मार्च 1969, 11.34, दिल्ली) जातिका की जन्मकुंडली में मंगल के अष्टकवर्ग में गुरु व सूर्य दोनों से सातवें घर में 2-2 बिंदु हैं। मंगल का शोध्यपिंड 153 है। इसलिए 2 ग 153 = 306 » 27 शेषफल = 9 नौवां नक्षत्र आष्लेषा है और इसके त्रिकोण नक्षत्र ज्येष्ठा व रेवती हैं। जातिका के छोटे भाई का जब 10 अगस्त 1979 को जंघा की हड्डी का आपरेषन हुआ तो उस समय गुरु व सूर्य दोनों ही आष्लेषा नक्षत्र से गोचर कर रहे थे जो कि जातिका के भाई के लिए घातक सिद्ध हुआ।

Û मंगल के अष्टकवर्ग में मंगल से तीसरे स्थान में शोधन से पूर्व बिंदुओं की संख्या को मंगल के शोध्य पिंड से गुणा कर 12 का भाग दें तो भागफल तुल्य राषि में गुरु का गोचर भाई के लिए लाभकारी होता है। उदाहरण में दी गई जातिका की कुंडली में मंगल के अष्टकवर्ग में मंगल से तीसरे घर में 2 बिंदु हैं ओैर मंगल का शोध्यपिंड 153 है। इसलिए 2 ग 153 = 306 » 12 शेषफल = 6 छठी राषि कन्या है और इसकी त्रिकोण राषियां मकर व वृष है। सितंबर 1997 में जातिका के छोटे भाई की पहली नौकरी लगी। उस समय गुरु का गोचर मकर राषि पर से था जो कि जातिका के छोटे भाई के लिए लाभदायक सिद्ध हुआ।


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Û 3, 6, 11 भाव में मंगल बहुत अच्छे फल देता है। यदि वह बली है यानि स्वराषि, उच्च राषि और अधिक बिंदुओं के साथ अपने अष्टकवर्ग में है तो जातक को प्रसिद्धि, साहसी और शत्रु पर विजयी बनाता है। उदाहरण: जवाहर लाल नेहरु (14.11.1889, 23ः06, इलाहाबाद) जातक की जन्मकुंडली में मंगल तृतीय स्थान में 6 बिंदुओं के साथ है और दषम भाव में अपनी राषि को ही देख रहा है तो मंगल की दषा (अप्रैल 1948 से अप्रैल 1955) में वे अत्यंत प्रसिद्ध हुए और उच्च पद को भी प्राप्त किया।

Û मंगल के अष्टकवर्ग में - लग्न से मंगल राषि तक के शुभ बिंदुओं का जोड़ तथा मंगल राषि से लग्न तक के बिंदुओं तक का जोड़ निकाल लें और इन संख्याओं को आयु के वर्ष मानें तो इन वर्षाें में दुर्घटना, अग्नि कांड, अस्त्र, शस्त्र से कष्ट होता है। उदाहरण: संजीव मदान (14.12.1946, 12.16, पटना) जातक की जन्मकंुडली में मंगल के अष्टकवर्ग में लग्न से मंगल स्थित राषि धनु तक सभी शुभ बिंदुओं का जोड़ किया जाए तो वह 32 आता है। जातक की भी 32 वर्ष की आयु में ट्रेन में सफर करते समय अज्ञात लोगों ने गोली मार कर हत्या कर दी थी।

Û बिना शोध्य पिंड के भी भाई के अनिष्ट को देखा जा सकता है। दोनों शोधन के बाद मंगल के अष्टकवर्ग में शुभ बिंदुओं की संख्या को मंगल से तीसरे भाव की संख्या से गुणाकर 27 का भाग देने पर प्राप्त शेष तुल्य नक्षत्र या त्रिकोण में गोचर का शनि आने पर भाई को कष्ट होता है। उदाहरण: आरती (25 मार्च 1969, 11.34 बजे, दिल्ली) जातिका की जन्मकुंडली में मंगल के अष्टकवर्ग में मंगल से तीसरे घर में 2 बिंदु हैं। दोनों शोधन के बाद मंगल के अष्टकवर्ग में कुल शुभ बिंदु 12 हंै। इसलिए 2 ग 12 = 24 » 27 शेषफल = 24 चैबीसवां नक्षत्र शतभिषा है और जातिका के छोटे भाई का जब 10 अगस्त 1979 को जंघा की हड्डी का आपरेषन हुआ तो उस समय शनि शतभिषा नक्षत्र को पार करके पू. फाल्गुनी नक्षत्र से गोचर कर रहे थे जो कि जातिका के भाई के लिए घातक सिद्ध हुआ।

Û यदि किसी जन्मकुंडली के 3, 6, 8, 11, 12वें भाव में मंगल 6 या अधिक बिंदुओं के साथ हो तथा उस पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो जातक को भाई का सुख नहीं मिलता। उदाहरण: पं. नेहरु (14.11.1889, 23ः06, इलाहाबाद) जातक की जन्मकुंडली में मंगल तीसरे भाव में 6 बिंदु के साथ है तथा उनका कोई भाई भी नहीं था।

Û यदि मंगल व बुध में कोई संबंध हो तथा मंगलाष्टकवर्ग में मंगल के पास 4 से कम बिंदु हों तो यह निर्धनता व दुख देता है तथा षिक्षा में रुकावट पैदा करता है। परंतु यदि मंगलाष्टकवर्ग में ही बुध के पास 5 या अधिक बिंदु हैं तो मंगल से ऊर्जा लेकर जातक को बुद्धिमान बनाता है। यदि कम बिंदुओं वाले बुध से दूसरे घर में मंगल हो तो षिक्षा में रुकावट आती है या विषय बदला जाता है।

उदाहरण 1: अंजुमन (8.3.1980, 12ः35 बजे, दिल्ली) जातिका की जन्म कंुडली में, मंगल व बुध में सम सप्तक योग है। मंगल के अष्टकवर्ग में मंगल के पास केवल 2 ही शुभ बिंदु हैं जो कि बहुत ही कम हैं। जिस कारण जातिका केवल पांच कक्षा ही पास कर सकी। उसके बाद चाह कर भी निर्धनता व बीमारी की वजह से आगे नहीं पढ़ सकी।


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