कारकांश लग्न से डॉक्टर बनने के योग

कारकांश लग्न से डॉक्टर बनने के योग  

अनुपम गर्ग
व्यूस : 6892 | जुलाई 2009

Û ”जैमिनी सूत्रम्“ के श्लोक नं. 87 के अनुसार यदि कारकांश लग्न में शुक्र या चंद्र हो और वहां स्थित चंद्र को बुध देखता हो तो जातक डाॅक्टर होता है।

Û आचार्य मुकंद देवज्ञ के अनुसार यदि आत्मकारक ग्रह मंगल हो या मेष या वृश्चिक नवांश में हो तो जातक डाॅक्टर होता है।

Û यदि आत्मकारक ग्रह मंगल का संबंध चंद्र या सूर्य से हो तो जातक सरकारी अस्पताल में डाॅक्टर होता है। विवेचन एवं विश्लेषण: इसमें हमने 36 कुंडलियों का अध्ययन किया। इस सर्वेक्षण में हमने पाया कि अधिकतर जातक की कुंडलियों में आत्मकारक ग्रह बुध है और बुध का दृष्टि-युति प्रभाव कुल मिलाकर 52 प्रतिशत सबसे अधिक पाया गया। बुध का जो कि बुद्धि, स्मरण शक्ति, तर्क का प्रतीक है जातक को चिकित्सक बनाने में महत्वपूर्ण योगदान है। बुध के बाद सूर्य का आत्मकारक ग्रह के रूप में महत्वपूर्ण योगदान रहा, सूर्य जो कि औषधि और स्वास्थ्य का कारक है। चिकित्सक बनने के लिए इसका बली होना जरूरी है। इसके बाद मंगल का जो कि शक्ति, ऊर्जा और उत्साह का प्रतीक है। प्रभाव सबसे अधिक पाया गया। अगर आत्मकारक ग्रह मंगल हो या मंगल के नवांश में हो या नवांश कुंडली में मंगल से दृष्ट हो या युक्त हो तो डाॅक्टर होता है। मंगल क्योंकि रक्त का कारक है। तेज धार वाले औजारों का कारक है। चिकित्सा क्षेत्र में इनका योगदान होता है। इसलिए बली मंगल का जातक को चिकित्सक बनाने में महत्वपूर्ण योगदान है। राहु और केतु को यद्यपि आत्मकारक नहीं माना फिर भी इसका युति व दृष्टि प्रभाव सबसे अधिक रहा। राहु केतु का सम्मिलित प्रभाव 61 प्रतिशत आश्चर्यजनक है। राहु एंटीबायटिक औषधियों का प्रतीक है। जीवाणुनाशक औषधियों द्वारा रोग का उपचार करने में राहु व केतु का बली होना आवश्यक है। ग्रह युति प्रभाव: हमारे सर्वेक्षण में डाॅक्टरों की कुंडलियों में बुध केतु और मंगल का युति प्रभाव सबसे अधिक देखा गया। दृष्टि प्रभाव: आत्मकारक ग्रह पर सबसे अधिक राहु का दृष्टि प्रभाव था, राहु का 25 प्रतिशत दृष्टि प्रभाव महत्वपूर्ण था। मंगल का 22 प्रतिशत प्रभाव दर्शाता है कि चिकित्सा क्षेत्र में शक्ति और साहस का प्रतीक मंगल का काफी योगदान है। परिणाम कारकांश लग्न व चिकित्सा का व्यवसाय कारकांश लग्न में यदि शुक्र व चंद्र हो अथवा वहां स्थित चंद्र को शुक्र देखता हो तो मनुष्य चिकित्सा संबंधी रसायनों का निर्माता अर्थात दवा बनाने वाला होता है। डाॅक्टर योग कारकांश लग्न में स्थित चंद्र को यदि बुध, देखता हो तो जातक डाॅक्टर होता है।

शिशु रोग विशेषज्ञ Û जन्मकुंडली में बुध और शुक्र की युति केंद्र, त्रिकोण या द्वितीय या एकादश में हो तो जातक शिशु रोग विशेषज्ञ होता है।

Û कारकांश लग्न में स्थित बुध, शुक्र से युक्त या दृष्ट हो तो व्यक्ति शिशु रोग विशेषज्ञ होता है। कुंडली विवेचन एवं विश्लेषण इस शोध में हमने 36 डाॅक्टरों की कुंडलियों का अध्ययन किया है, जिनमें से कुछ कुंडलियों का विवरण आत्मकारक ग्रह के द्वारा किया गया है। इस अध्ययन में हमने सबसे पहले यह जाना विभिन्न डाॅक्टरों की कुंडली में आत्मकारक ग्रह कौन सा है और वह किस नवांश में है। वही नवांश कारकांश लग्न कहलाता है। कारकांश लग्न से बाकी ग्रह नवांश कुंडली के अनुसार लिख देते हैं तो वह कारकांश कुंडली बन जाती है। फिर कारकांश लग्न पर किन ग्रहों की युति व दृष्टि है यह जाना।

1. डाॅ. दीपक: यह एक डाॅक्टर की कुंडली है। इसमें आत्मकारक ग्रह मंगल है तथा सिंह नवांश में है। यह व्यक्ति सरकारी डाॅक्टर है क्योंकि आत्मकारक ग्रह मंगल सूर्य की राशि सिंह के नवांश में है।

2. सरकारी डाॅक्टर यह जातक भी सरकारी डाॅक्टर है। इसमें आत्मकारक ग्रह मंगल मिथुन नवांश में सूर्य के साथ है।

3. डाॅ. अजय कुमार आत्मकारक ग्रह बुध मंगल के नक्षत्र में है तथा सिंह नवांश में है। आत्मकारक ग्रह पर उच्च के मंगल की पूर्ण दृष्टि है। अतः जातक डाॅक्टर है। डाॅक्टर योग: द्वादशेश चंद्र का दशम में उच्च का होकर बैठना तथा दशमेश शुक्र का धन कारक ग्रह बुध के साथ रोगकारक भाव छठे में बैठकर चिकित्सा द्वारा आजीविका दर्शाता है।

5. डाॅ. विरेश्वर, जन्म 9.10.1971, 18.10 इसमें आत्मकारक ग्रह मंगल सूर्य के नवांश में है। इसलिए जातक सरकारी डाॅक्टर है।

6. डाॅ. शालु इस जातक की कुंडली में आत्मकारक ग्रह सूर्य बुध के नवांश में मंगल के साथ है। अतः जातक सरकारी डाॅक्टर है। अन्य योग: डाॅक्टर बनने के योग अनुसार जन्म कुंडली में रोग कारक छठे भाव के स्वामी (गुरु) तथा आजीविका कारक दशम भाव के स्वामी चंद्र का संबंध पंचम भाव में बन रहा है।

7. डाॅ. राजेश्वर चावला आत्मकारक ग्रह गुरु कारकांश कुंडली में बुध और मंगल के साथ है जो डाॅक्टरी योग को दर्शा रहा है।

8. डाॅ. रेणुका शर्मा (प्रसूति विशेषज्ञ) सरकारी नौकरी वर्ष 1985 से। प्रसुति विशेषज्ञ: जब दशम भाव में सूर्य, बृहस्पति, शुक्र की युति या दृष्टि हो तो जातक शिशु या प्रसुति विशेषज्ञ बनता है। उपरोक्त कुंडली एक महिला जातक की है जो प्रसुति विशेषज्ञ है। इसमें दशमेश मंगल पर सूर्य व राहु की दृष्टि है तथा दशम भाव पर गुरु व शुक्र का केंद्रीय प्रभाव है। अतः उपरोक्त योग घटित हो रहा है। कारकांश से डाॅक्टर योग उपरोक्त कुंडली में कारकांश लग्न में सूर्य है तथा कारकांश कुंडली में अस्पताल कारक द्वादश भाव में उच्च का मंगल है। इसमें आत्मकारक ग्रह सूर्य है जो कि सरकारी डाॅक्टर बनने में सहायक है। कारकांश कुंडली में दशम भाव में गुरु की स्थिति तथा त्रिकोण में उच्च के शनि की स्थित व्यक्ति को सफल चिकित्सक बनाता है।



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