ज्योतिष की नजर में वर्षा

ज्योतिष की नजर में वर्षा  

जगदम्बा प्रसाद गौड
व्यूस : 11337 | अप्रैल 2009

जिस प्रकार लोकतांत्रिक राज्यों को चलाने के लिए मंत्री परिषद बनाए जाते हैं। उसी प्रकार विश्व चक्र को चलाने के लिए प्रतिवर्ष ग्रहों की आकाशीय कौंसिल बनाई जाती है। जिसमें हर विभाग का मंत्री एक ग्रह को नियुक्त किया जाता है। इस लिए वर्षा विभाग का मंत्री जो मेघेष कहलाता है। सूर्य जिस दिन आद्र्रा नक्षत्र में प्रवेश करता है, उस दिन जो वार होता है। उस वार के स्वामी को मेघेश माना जाता है। सम्वत 2066 में सूर्यदेव 21-6-2009 को दिन रविवार को आद्र्रा नक्षत्र में प्रवेश करेंगे। इसलिए सम्वत् 2066 (2009) मौसम विभाग का मंत्री पद सूर्यदेव के पास रहेगा। सूर्यदेव के मेघेश होने से गेंहू, जौ, चने, ईख, बाजरा चावलों आदि की पैदावार अच्छी होती है। पृथ्वी पर सुख के साधनों का प्रसार रहे। अर्थात इस वर्ष अच्छी वर्षा होने के आसार हैं। इसके अलावा मौसम विभाग पर मेघो, नागो, आर्दा, रोहिणी तथा स्तम्भों का फल भी पड़ता है। वर्षा मौसम की पुरी जानकारी के लिए निम्निलिखित बिंदुओं का विचार किया जाता है।

1. वर्ष के राजा तथा महामंत्री पद का स्वामी

2. मेघेश (मंत्री पद)

3. आद्र्रा प्रवेश का समय, तिथि, वार, नक्षत्र और योग

4. वर्ष के मेघ

5. वर्ष के नाग

6. वर्ष के स्तंभ

7. रोहिणी वास

8. आद्र्रा कुंडली का योगादि इसके अलावा सुक्ष्म विचार के लिए त्रिनाडी चक्र, सप्तनाड़ी चक्र, वर्षा अवरोधक चक्र का भी विचार किया जाता है। किसी विशेष स्थान के लिए कूर्म चक्र पर भी विचार किया जाता है। अब क्रम से एक-एक भाव पर विचार करते हैं।

1. सम्वत 2066 सन् 2009 में, सम्वत गुरु के दिन जो शुक्रवार आता है। इसलिए वर्ष 2009 का राजा शुक्र होने से कृषि और मौसमी फसलों की अच्छी पैदावार होनी है। अर्थात इस वर्ष वर्षा अच्छी होने के आसार हैं।

2. सम्वत 2066, सन् 2009 को महामंत्री का पद चंद्रमा को जाता है। चंद्रमा जलीय ग्रह होने के नाते इस वर्ष अधिक वर्षा के आसार बनते हैं।

3. मेघेश सूर्य होने से अच्छी पैदावार के लिए अच्छी वर्षा के आसार हैं।

4. सम्वत् 2006, सन् 2009 के सूर्य आद्र्रा नक्षत्र में 22-6-2009 को आषाढ़ कृष्ण पक्ष तिथि- चतुर्दशी दिन - रविवार नक्षत्र - मृगशिरा योग - गंड समय - 22 की प्रातः 3 घंटे 51 मिनट लग्न - वृष अनुसार प्रवेश करेगा। इस समय की सूर्य आद्र्रा प्रवेश की कुंडली इस प्रकार होगी। आद्र्रा प्रवेश कुंडली के योगादि सूर्य देव का आद्र्रा प्रवेश पृथ्वी तत्व प्रधान (50 प्रतिशत जल तत्व) लग्न एवं राशि वृष में हुआ है। लग्न में जलीय ग्रह चंद्र साथ में बुध (जल गुण) ग्रह के साथ विराजमान है। लग्नेश तथ्य जल तत्व प्रधान ग्रह शुक्र द्वादश (व्यय) भाव में मंगल के साथ है। लग्न पर शनि ग्रह (शुष्क ग्रह) की दसवीं दृष्टि है। जल तत्व प्रधान गुरु दशम जल तत्व (50 प्रतिशत) राशि कुंभ में बैठकर लग्न को प्रभावित कर रहा है। राहु की भी लग्न पर दृष्टि है।

लगभग बाकी सभी ग्रह अग्नि तथा वायु तत्व राशियों के मौजूद है। इस वर्ष जल स्तंभ मध्यम से अधिक 63 प्रतिशत है। फलस्वरूप संपूर्ण देश में एक साथ वर्षा के आसार नहीं है। कहीं प्रदेशों में अधिक वर्षा से बाढ़, आंधी में जन-धन और कृषि की हानि होगी। कई भागों में उपयोगी और अनुकूल वर्षा के आसार हैं। कई भागों में ठीक समय पर उपयोगी या अनुकूल वर्षा न होने के कारण कृषि उत्पादन कम होने के आसार हैं। कुल मिलाकर कृषि उत्पादन में कुछ कमी रहने के कारण संपूर्ण धान्य, वस्त्र तथा अन्य दैनिक उपयोगी वस्तुएं की कीमतों में वृद्धि होगी। राजस्थान में भी वर्षा होने के आसार हैं। तिथि: आद्र्रा प्रवेश की तिथि चतुर्दशी होने से अनाज और वस्त्र महंगे होंगे। नक्षत्र: आद्र्रा प्रवेश का नक्षत्र मृगशिरा होने से अनाज की पैदावार अधिक होगी। योग: आद्र्रा प्रवेश का योग गंड होने से मंगलमय आनंददायक होगी।

5. मेघ का फल: इस वर्ष में नवमेघों में द्रोण नामक मेघ का फल होगा। धन, धान्य की पैदावार उत्तम हो अर्थात वर्षा अधिक होगी और धान का प्रसार भी अधिक रहेगा।

6. नाग का फल: सन् 2009 के लिए जल स्तम्भ - 63 प्रतिशत रहेगा अर्थात वर्षा मध्यम से अधिक तृण स्तम्भ - 80 प्रतिशत होगा अर्थात जड़ी बुटियों की फसल बढ़ेगी। वायु स्तंभ - 0 प्रतिशत। संपर्क का अभाव है अर्थात चिंताजनक परिस्थितियां बनेगी। कुछ क्षेत्रों में अपूर्व, वायुवेध, भूकंप आदि से हानि, कहीं पर गर्मी। क्योंकि वायु अस्त-व्यस्त संचालन से कहीं व्यापक वर्षा, कहीं कम वर्षा और कहीं सूखा रहेगा। अन्य स्तंभ: 20 प्रतिशत है। गेहूं, चने, मक्की, चावल, दालों की फसल ठीक रहेगी।

8. रोहिणी का वास: इस वर्ष रोहिणी का वास समुद्र है। अर्थात रोहिणी का वास समुद्र में होने से अधिक वर्षा होने के संकेत हैं। जिस कारण बाढ़ भी आ सकती है। प्रदेश सहित वर्षा का विवरण

1. प्रथम भाव: आद्र्रा प्रवेश कुंडली में प्रथम भाव में वृष राशि पृथ्वी तत्व 50 प्रतिशत जलीय अंश है। लग्नेश जलीय ग्रह शुक्र, मंगल के साथ द्वादश भाव में है। वृष राशि में पुर्ण जलीय ग्रह चंद्र तथा जल युक्त बुध विराजमान है। वृष राशि पर जलीय ग्रह गुरु तथा शुष्क ग्रह शनि तथा राहु का भी प्रभाव है। परिणामस्वरूप इस मास में अधिक मात्रा में वर्षा होने के योग बनते हैं। जिससे बाढ़ आने का भी अंदेशा है। राहु का प्रभाव होने से वर्षा अनियमित रह सकती है। इस भाव में मध्य बिहार, पश्चिमी बंगाल, आसाम, त्रिपुरा, भुटान, उड़ीसा, मेघालय, नागालैंड, जबलपुर, मणिपुर के क्षेत्रों में अधिक मात्रा में वर्षा होगी और कहीं-कहीं बाढ़ आने के भी आसार है।

2. द्वितीय भाव: इस भाव में इसमें मिथुन राशि वायु 0 प्रतिशत है। द्वितीय भाव में मेघेश सूर्य विराजमान है और उस पर जलीय ग्रह गुरु की पंचम दृष्टि है। इस भाव में पड़ने वाले प्रदेशों में पूर्वी उत्तर प्रदेश, काशी, इलाहाबाद, उत्तर बिहार, सिक्कम, भूटान का उत्तरी पश्चिमी भाग, उत्तरी बंगाल, मध्य प्रदेश का पूर्वी भाग, तिब्बत, पूर्वी नेपाल क्षेत्रों में पर्याप्त मात्रा में अच्छी और उपयोगी वर्षा होगी।

3. तृतीय भाव: इस भाव में कर्क राशि जल तत्व 100 प्रतिशत है। तृतीय भाव राहु/केतु के प्रभाव में है और मंगल (अग्नि ग्रह) की भी दृष्टि है। इसलिए इस भाव में स्थित उत्तर प्रदेश के उत्तरी भाग (कानपुर, आगरा) पश्चिमी नेपाल क्षेत्रों में अनिश्चित वर्षा होगी। असमय पर होने से फसलों को प्रभावित करेगी।

4. चतुर्थ भाव: इस भाव में सिंह राशि अग्नि तत्व 0 प्रतिशत जलीय अंश वाली है। चतुर्थ भाव में मेघेश की राशि सिंह में शनि (योग कारक) विराजमान है। परंतु जलीय ग्रह गुरु की पूर्ण दृष्टि है। चंद्र बुध जलीय ग्रह द्वारा केंद्रीय प्रभाव में है। इसलिए इस भाव अधिन पैदे पश्चिमोत्तर उत्तर प्रदेश, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर और पाकिस्तान के उत्तरी सीमांत प्रदेश आदि क्षेत्रों में पर्याप्त मात्रा में उपयोगी वर्षा होगी। वर्षा समयानुकूल होगी।

5. पंचम भाव: इस भाव में कन्या राशि पृथ्वी तत्व और 0 प्रतिशत जल तत्व अंश वाली राशि है। इसका स्वामी बुध (जल गुण वाला) पूर्ण जलीय ग्रह चंद्र के साथ केंद्र में है। जिस पर गुरु का केंद्रीय प्रभाव है। परंतु इस राशि में राहु की भी दृष्टि है। इसलिए इस भाव अधीन पैदे दक्षिणी पंजाब, उत्तरी राजस्थान, हरियाणा में पर्याप्त मात्रा में कम वर्षा होगी।

6. षष्टम भाव: इस भाव में तुला राशि वायु तत्व वाली 25 प्रतिशत जलीय अंश वाली राशि है। इस पर लग्नेश जलीय ग्रह शुक्र तथा अग्नि तत्व ग्रह मंगल और गुरु की पूर्ण दृष्टि है। योगकारक ग्रह शनि की भी दृष्टि है। इसलिए इस भाव अधीन बीकानेर, राजस्थान के मध्य पंजाब का पश्चिमी भाग दिल्ली आदि क्षेत्रों में उपयोगी समयानुकूल पर्याप्त वर्षा होगी।

7. सप्तम भाव: इस भाव में वृश्चिक राशि जल तत्व 50 प्रतिशत है। जिस पर जलीय ग्रह चंद्र, जल गुण वाले ग्रह बुध की दृष्टि है। इसलिए इस भावाधीन पैदे अजमेर, जोधपुर, उदयपुर, अहमदाबाद, राजकोट आदि क्षेत्रों में पर्याप्त वर्षा होगी।

8. अष्टम भाव: इस भाव में धनु राशि 25 प्रतिशत एवं अग्नि तत्व राशि है। जिस पर मेघेश सूर्य की दृष्टि है। इसलिए इस भाव अधीन पैदे सूरत, इन्दौर, भोपाल, मध्य प्रदेश के मध्य भागों में पर्याप्त मात्रा में समयानुकूल वर्षा होगी।

9. नवम भाव: इस भाव में मकर राशि (पृथ्वी तत्व वाली पूर्ण जलीय राशि मकर हैं 100 प्रतिशत) है, जिस पर राहु केतु का प्रभाव है। इसलिए एक भाव अधीन पैदे क्षेत्र जैसे दक्षिणी पश्चिमी मध्य प्रदेश, पश्चिमोत्तर महाराष्ट्र, मुंबई आदि क्षेत्रों में वर्षा का क्रम अव्यवस्थित होगा तथा कहीं बाढ़ और कहीं सुखे की स्थिति बनेगी।

10. दशम भाव: इस भाव में 50 प्रतिशत वायु तत्व वाली राशि कुंभ है। जिसमें गुरु जलीय ग्रह विराजमान हैं। इस पर योग कारक शनि की दृष्टि है। इसलिए इस भाव अधीन पैदे क्षेत्र जैसे मैसूर के दक्षिणी पूर्वी भाग, मद्रास, केरल आदि क्षेत्रों में वर्षा समान्य और समयानुकूल होगी।

11. एकादश भाव: इस भाव में 100 प्रतिशत जल तत्व वाली मीन राशि है। जिस पर स्थित जल राशि कर्क में केतु की दृष्टि है। इस भाव के अधीन पड़ने वाले मद्रास के पूर्वी दक्षिणी भाग, आंध्र प्रदेश का दक्षिणी हिस्सा, मैसूर का पश्चिमी भाग आदि क्षेत्रों में वर्षा का क्रम अव्यवस्थित रहेगा। कहीं बाढ़ कहीं सुखे की संभावना बनी रहेगी।

12. द्वादश भाव: इस भाव में 25 प्रतिशत जलीय अंश एवं अग्नि राशि मेष है। इसमें अग्नि ग्रह मंगल साथ में लग्नेश जलीय ग्रह शुक्र विराजमान है। इसलिए इस भाव अधीन पड़ने वाले क्षेत्र विजयवाड़ा, उड़ीसा का पश्चिमी भाग, अंडमान निकोबाबार, बंगाल की खाड़ी आदि क्षेत्रों मंे पर्याप्त मात्रा में अच्छी वर्षा रहेगी।



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