चंद्राष्टकवर्ग से सटीक फलकथन

चंद्राष्टकवर्ग से सटीक फलकथन  

संजय बुद्धिराजा
व्यूस : 8610 | जनवरी 2009

भारतीय ज्योतिष में फलकथन हेतु अष्टकवर्ग विद्या की अचूकता व सटीकता का प्रतिशत सबसे अधिक है। अष्टकवर्ग विद्या में लग्न और सात ग्रहों (सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि) को गणना में सम्मिलित किया जाता है। चंद्र ग्रह द्वारा विभिन्न भावों व राशियों को दिए गए शुभ बिंदु तथा चंद्र का शोध्यपिंड - ये चंद्राष्टकवर्ग से किए गए फलकथन का आधार होते हैं। (चंद्राष्टकवर्ग जैसे अनेक वर्ग व शोध्यपिंड की गणना कंप्युटर में लियो गोल्ड ज्योतिषीय साॅफ्टवेयर की मदद से आसानी से की जा सकती है। अष्टकवर्ग विद्या में नियम है कि कोई भी ग्रह चाहे वह स्वराशि या उच्च का ही क्यों न हो, तभी अच्छा फल दे सकता है जब वह अपने अष्टकवर्ग में 5 या अधिक बिंदुओं के साथ हो क्योंकि तब वह ग्रह बली माना जाता ळै।

अतः यदि चंद्र ग्रह चंद्राष्टकवर्ग में 5 या इससे अधिक बिंदुओं के साथ है तथा सर्वाष्टक वर्ग में भी 28 या अधिक बिंदुओं के साथ है तो चंद्र से संबंधित भावों के शुभ फल प्राप्त होते हैं। यदि सर्वाष्टकवर्ग में 28 से अधिक बिंदु व चंद्राष्टकवर्ग में 4 से भी कम बिंदु हैं तो फल सम आता है। यदि दोनों ही वर्गों में कम बिंदु हैं तो ग्रह के अशुभ फल प्राप्त होते हैं। कारकत्व के अनुसार चंद्रमा से मन, स्वभाव, शक्ति, मातृ सुख, धन आदि का विचार किया जाता है। चंद्राष्टकवर्ग: यदि कुंडलियों में चंद्राष्टकवर्ग का उपयोग कर फलकथन हेतु निम्न सिद्धांतों या नियमों को अपनाया जाये तो अधिक सटीक परिणाम सामने आते हैं। उदाहरण के लिए:

1. चंद्र से चैथे भाव से माता, भवन और ग्राम का चिंतन किया जाता है। अतः चंद्र के अष्टकवर्ग में चंद्र से चैथी राशि में जितने बिंदु हों उनको चंद्र के शोध्य पिंड से गुणा करके 27 का भागफल दें, फिर जो शेष आए उस नक्षत्र की संख्या में या उससे त्रिकोण की संख्या में जब शनि गोचरवश आए तो माता का अनिष्ट होने की संभावना रहती है। चंद्र से चैथे भाव में बिंदु = 4 चंद्र का शोध्य पिंड = 162 इसलिए 4ग162 = 648/27= शेषफल 0 या 27 27वां नक्षत्र है रेवती। उसके त्रिकोण नक्षत्र हैं अश्लेषा व ज्येष्ठा। जब जातक की मां की मृत्यु 5 जुलाई 2006 को हुई तो शनि का गोचर अश्लेषा नक्षत्र पर से कर्क राशि से था जो कि जातक की मां के लिए अनिष्टकारी सिद्ध हुआ।

2. चंद्र के अष्टकवर्ग में चंद्र से चैथी राशि में जितने बिंदु हों उनको चंद्र के शोध्य पिंड से गुणा करके 12 से भाग देने पर जो शेष आए उस तुल्य मेषादि राशि में या त्रिकोण राशि में शनि के आने पर मातृ कष्ट कहना चाहिए। उदाहरण: अश्विनी कपूर 31 जुलाई 1960, 06.30, दिल्ली पिछली उदाहरण कुंडली को देखें तो पाते हैं कि चंद्र से चाथे भाव में बिंदु = 4 चंद्र का शोध्य पिंड = 162 इसलिए 4ग162 = 648/12= शेषफल 12 12वीं राशि है मीन। उसकी त्रिकोण राशियां हें वृश्चिक व कर्क। जब जातक की मां की मृत्यु 5 जुलाई 2006 को हुई तो शनि का गोचर कर्क राशि से ही था जो कि जातक की मां के लिए अनिष्टकारी सिद्ध हुआ।

3. चंद्र के अष्टकवर्ग में शोधन से पूर्व गुरु से सातवें भाव में प्राप्त बिंदुओं को चंद्र के शोध्यपिंड से गुणा करें और गणनफल को 27 से भाग दें और शेष तुल्य नक्षत्र या इसके त्रिकोण नक्षत्र में अथवा जन्म के गुरु नक्षत्र से शेषफल तुल्य नक्षत्र या इसके त्रिकोण नक्षत्र में जब भी गुरु का गोचर होगा तो मां के लिए जानलेवा हो सकता है। उदाहरण: अरूणा, 25 मार्च 1969, 12.25, दिल्ली शोध्य पिंड सूर्य चंद्र मंगल बुध 46 92 99 138 40 55 54 94 86 147 153 232 गुरु से सातवें भाव में बिंदु = 4 चंद्र का शोध्य पिंड = 147 इसलिए 4ग147 = 588/27= शेषफल 21 21वां नक्षत्र है उ.षा. उसके त्रिकोण नक्षत्र हैं कृतिका व उ.फा. जब जातक की मां की मृत्यु 7 फरवरी 2001 को हुई तो गुरु का गोचर कृत्तिका नक्षत्र पर से था जो कि जातक की मां के लिए अनिष्टकारी बना।

4. चंद्र के अष्टकवर्ग में सूर्य से सातवें भाव में प्राप्त बिंदुओं को चंद्र के शोध्यपिंड से गुणा करें और गुणनफल को 27 का भाग दें और शेषफल तुल्य नक्षत्र या त्रिकोण में जब भी सूर्य का गोचर होगा तो मां के लिए जानलेवा हो सकता है। उदाहरण: माधवराव सिंधिया, 09.03.1945, 24.00, ग्वालियर शोध्य पिंड सूर्य चंद्र मंगल राशि पिंड 116 91 39 ग्रह पिंड 56 50 21 शोध्य पिंड 172 141 60 चंद्र के अष्टकवर्ग में सूर्य से सातवें भाव में बिंदु = 5 चंद्र का शोध्य पिंड = 141 इसलिए 5ग141 = 705/27= शेषफल 3 तीसरा नक्षत्र है कृत्तिका। उसके त्रिकोण नक्षत्र हैं उ.फा. व उ.षा.। जब जातक की मां की मृत्यु 25 जनवरी 2001 को हुई तो सूर्य का गोचर श्रवण नक्षत्र पर से था और उ.षा. को अभी पार ही किया था। यह गोचर जातक की मां के लिए अनिष्टकारी हुआ।

5. चंद्र के अष्टकवर्ग में गुरु/सूर्य से सातवें भाव में प्राप्त बिंदुओं को चंद्र के शोध्यपिंड से गुणा करें और गुणनफल को 12 का भाग दें और शेषफल तुल्य राशि में जब भी गुरु/सूर्य का गोचर होगा तो पिता के लिए जानलेवा हो सकता है। उदाहरण: अमिताभ बच्चन, 11.10.1942, 16.00, ईलाहाबाद शोध्य पिंड सूर्य चंद्र मंगल बुध राशि पिंड 112 110 84 135 ग्रह पिंड 30 40 25 40 शोध्य पिंड 142 150 109 175 सूर्य से सातवें भाव में बिंदु = 5 चंद्र का शोध्य पिंड = 1150 इसलिए 5ग150 = 750/12= शेषफल 6

6. यदि चंद्र अधिक बिंदुओं के साथ हो तो जातक को कवि, लेखक, कलाकार या संगीतकार बनाता है जैसे कि भारत की प्रसिद्ध गायिका लता मंगेशकर (28.09.1929, 23.00, मुंबई) की कुंडली में चंद्र 5 बिंदुओं के साथ अपनी ही राशि में तीसरे घर यानि कला, योग्यता और सुनहरी आवाज के घर, में बैठा है। इसके साथ ही कला से जुड़ा ग्रह शुक्र भी शुक्राष्टकवर्ग में केंद्र यानि चैथे घर में 6 बिंदुओं के साथ है जो कि शुभ है। इसके अतिरिक्त वाणी भाव यानि द्वितीय भाव का स्वामी बुध ग्रह भी उच्च का होकर त्रिकोण में बैठा है। इन्हीं कारणों से लता जी आवाज में इतना जादू है।

7. यदि चंद्र अपने अष्टकवर्ग में 5 से 8 बिंदुओं के साथ हो तो सार्वजनिक प्रसिद्धि, धन, उच्च प्रतिष्ठा देता है जैसे कि स्वामी विवेकानंद की कुंडली में चंद्र 10वें भाव में 5 बिंदुओं के साथ बैठा है जिससे उन्हें काफी प्रसिद्धि मिली।

8. शुभ समय या मुहूर्त का ज्ञान: जब चंद्र गोचरवश अपने अष्टकवर्ग में सर्वाधिक बिंदु वाली राशि पर संचार कर रहा हो तो सभी शुभ व मंगल कार्य किए जा सकते हैं। यदि चंद्र के अष्टकवर्ग में जिस राशि में कोई बिंदु न हो अर्थात वहां पर शून्य हो तो उस राशि के नक्षत्रों में जब जब चंद्र आए तो उन दिनों में विवाहादि शुभ कृत्य नहीं होने चाहिए।

9. मेलापक ज्ञान: यदि वर की कुंडली के चंद्राष्टकवर्ग में जिस राशि को सर्वाधिक शुभ बिंदु प्राप्त हों, उस चंद्र राशि या लग्न की कन्या का चयन उस वर के लिए करना चाहिए।

10. अगर किसी व्यक्ति के लग्न या चंद्र राशि में चंद्र के अष्टकवर्ग में सबसे कम बिंदु हैं तो उस व्यक्ति से दूर ही रहना चाहिए। इस विषय में जातकादेश मार्ग में भी कहा गया है कि बिंदु रहित राशि में जिसके सूर्य व चंद्र अपने अपने अष्टकवर्ग में हों तो ऐसे व्यक्ति के साथ रहना तथा उसका प्रातःदर्शन भी मुसीबत को बुलावा देना है।

11. चंद्राष्टकवर्ग में लग्न से चंद्र तक जितने बिंदु हों, उनके योगफल के बराबर आयु वर्ष में धन व पुत्रादि की प्राप्ति होती है। चंद्र राशि से लग्न तक बिंदुओं के योग के समान आयु वर्षों में धनादि का लाभ होता है। इन दोनों योगों के योग तुल्य वर्षों में भी धन व पुत्र लाभ होता है।



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