संतान प्राप्ति

संतान प्राप्ति  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 7774 | मई 2016

कैसे जानें कि जातक को पुत्र या पुत्री संतान की प्राप्ति होगी? संतान सुख होने या न होने के ज्योतिषीय कारण क्या हैं? विस्तृत वर्णन करें। उत्तर: जीवन के सभी सुखों में संतान सुख का एक अलग ही स्थान है। न तो पुरुष नपुंसक कहलाना चाहता है न स्त्री बांझ कहलाना चाहती है। भारतीय हिंदू धर्म ग्रंथों में जिन पांच प्रकार के ऋणों की व्याख्या की गई है, उनमें से एक पितृ ऋण’ तथा उसी प्रकार ‘मातृ ऋण’ भी है। यह ऋण बगैर संतानोत्पत्ति के नहीं चुकाया जा सकता। पाराशर होरा शास्त्र में कहा गया है-

अपुत्रस्य गति नास्ति शास्त्रेषु श्रुयते मुने। अर्थात संतानहीन व्यक्ति को सद्गति नहीं मिलती। प्राचीन समय में पुत्र-पुत्री को पुत्र का पर्याय माना जाता था, दोनों को सम्मिलित रूप से संतान कहा गया। विवाह संस्कार के पश्चात लोग संतानोत्पत्ति की ओर अग्रसर होते हैं। ज्योतिष शास्त्र कहता है कि जातक की जन्मकुंडली उसके पूर्व जन्मों का लेखा-जोखा है। कर्मों का भोग जन्म-जन्मांतर तक भोगना पड़ता है। इसीलिए जिस बीज रूपी जातक में जो संभावना होती है, वह उसी तरह के प्रभावों के बीच अर्थात घड़ी और नक्षत्र को जन्म के लिए चुनता है। प्रत्येक आत्मा अपना गर्भधारण चुनती है, कौन सा गर्भ कब स्वीकार करना है। इसलिए कहा जाता है कि संतान सुख प्रारब्ध, जिसे हम नियति कहते हैं, से संबंधित है। संतान सुख होने या न होने, पुत्र या पुत्री संतान की प्राप्ति प्रारब्ध से जुड़ा हुआ है।

ज्योतिष का संतान के बारे में किसी भी प्रकार का फलादेश केवल ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर पूर्वानुमान है। ज्योतिष शास्त्र में वर्णित इस गणना का आधार केवल ग्रह, राशि व नक्षत्र है। संतान सुख पर विचार करने के लिए पति-पत्नी दोनों की जन्म कुंडलियां आवश्यक रूप से उपलब्ध होनी चाहिए। ज्योतिष में संतान उत्पत्ति के लिए पुरुष को बीज रूप व स्त्री को क्षेत्ररूपा कहा गया है। पुरुष की कुंडली से उपरोक्त विषय से संबंधी संतान सुख, पौरूष शक्ति, पूर्व अर्जित पुण्य व भाग्य आदि का विचार किया जाता है

तथा स्त्री की कुंडली से उपरोक्त विषय से संबंधी संतान सुख, गर्भ धारण करने की क्षमता व गर्भ की स्थिति आदि का विचार किया जाता है। वर्तमान समाज में जहां विवाह उपरांत संतान उत्पत्ति, पति-पत्नी की इच्छा पर निर्भर करती है वहीं दूसरी ओर संतान उत्पत्ति के लिए दोनों का शारीरिक सामथ्र्य व भाग्य का विचार भी जरूरी है। ज्योतिषीय दृष्टि में संतान सुख पूर्व जन्म के कर्मों से जुड़ा है इसलिए जन्मकुंडली में पूर्वकर्म व संतान सुख एक ही भाव, पंचम भाव से देखें जाते हैं। संतान का अध्ययन करने की दृष्टि से ही नव ग्रहों व बारह राशियों में भी पुरुष व स्त्री तत्व माना गया है।

राशियां: सभी विषम संख्या वाली राशियां (मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु व कुंभ) पुरुष तत्व राशियां कहलाती हैं तथा सभी सम संख्या वाली राशियां वृष कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर व मीन) स्त्री तत्व राशियां कहलाती हंै। अल्प बहु प्रसव राशियां

- मेष, सिंह कन्या, तुला, धनु व मकर, ये अल्प प्रसव राशियां मानी गई हैं।

- वृष मिथुन व कुंभ, ये मध्यम प्रसव राशियां मानी गई हैं।

- कर्क, वृश्चिक व मीन ये बहु प्रसव राशियां मानी गई है। यदि अल्प प्रसव राशियां पंचम भाव में हों तो संतान कम व विवाह के काफी समय के बाद होती है। जातक को पुत्र या पुत्री- ‘पुत्र’ - यदि जातक की कुंडली में पाप ग्रह पंचमेश होकर पंचम में हो तथा पंचम में अन्य पाप ग्रह हों, तो पुत्र अधिक होते हैं। -

गुरु, मंगल, सूर्य तथा पंचमेश पुरुष नवांश में हांे अथवा पुरुष ग्रहों से युत या दृष्ट हों तो पुत्रों की संख्या अधिक होती है। - पंचम भाव में पंचमेश पुरुष राशि के नवांश में हो अथवा पुरुष ग्रहों से युत या दृष्ट हो तो पुत्रों की संख्या अधिक होती है।


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- मकर राशि में केवल गुरु हो और वह पंचम में हो तो कई पुत्र होते हैं। - लग्न में राहु, पंचम में गुरु तथा नवम में शनि हो, तो छः पुत्र होते हैं।

- कुंभ राशिस्थ शनि एकादश में हो, तो अनेक पुत्र होते हैं। - पंचम भाव में तुला राशि हो तथा पंचम भाव पर चंद्र व शुक्र की दृष्टि हो, तो कई पुत्र होते हैं।

- पंचम में सूर्य हो, तो एक पुत्र, मंगल हो तो तीन तथा गुरु हो तो पांच पुत्र होते हैं

- पंचम भाव में सूर्य शुभ ग्रहों से दृष्ट हो, तो तीन पुत्र होते हैं।

- मकर अथवा कंुभ से पंचम राशि क्रमशः वृष या मिथुन में शनि हो तो केवल एक पुत्र होता है। पुत्री - जातक की कुंडली के एकादश भाव में बुध, चंद्र या शुक्र हो, तो पुत्रियां अधिक होती हैं

। - चंद्र और बुध पंचम में हो, तो अनेक पुत्रियां होती हैं।

- लग्न या चंद्र मंगल की राशि में तथा शुक्र के त्रिंशांश में हो तो कई पुत्रियां होती हैं। - पंचम में सम राशि या नवांश हो, उसमें बुध या शनि स्थित हो तथा उस पर शुक्र या चंद्र की दृष्टि हो तो अनेक पुत्रियां होती हैं। - पंचम भाव में चंद्रमा की राशि अथवा शुक्र की सम राशि हो उस पर चंद्रमा या शुक्र की दृष्टि हो तो अनेक पुत्रियां होती हैं। - पंचमेश द्वितीय या अष्टम में हो तो अनेक पुत्रियां होती हैं। - चंद्र, बुध या शुक्र पंचमेश होकर द्वितीय या अष्टम में हो तो पुत्रियों की संख्या अधिक होती है

- मकर राशिस्थ शनि पंचम में हो तो पुत्रियां अधिक होती हैं।

- बुध पंचम या सप्तम भाव में सम राशि में हो तो अनेक पुत्रियां होती हैं।

- पंचम में सम राशि हो तथा एकादश में बुध, चंद्रमा व शुक्र हो तो पुत्रियां अधिक होती हैं।

- पंचम में चंद्रमा हो तो दो, बुध हो तो तीन, शुक्र हो तो पांच तथा शनि हो तो सात पुत्रियां होती हैं।

- तृतीय भाव में बली बुध हो तथा पंचम में चंद्रमा हो तो पांच पुत्रियां होती हैं।

- बुध पंचम में अथवा पंचमेश बुध हो तो तीन पुत्रियां होती हैं।

- कर्क राशि में गुरु पंचम में हो तो कन्याएं अधिक होती हैं।

- चंद्र या शुक्र मकर राशि में पंचम में हो तो पुत्रियां अधिक होती हैं। आज बढ़ते जनसंख्या घनत्व, समुचित परवरिश एवं शिक्षा के चलते सीमित परिवार को प्रेरित किया जा रहा है। ऐसे में यह जानने की उत्सुकता होती है कि प्रथम संतान पुत्र या पुत्री? प्रथम पुत्र होने का योग

- जातक की कंुडली में पंचमेश पुरुष ग्रह हो, पुरूष राशि या पुरुष नवांश में हो

 - चंद्र, मंगल और शुक्र द्विस्वभाव राशि में हों।

- लग्नेश, लग्न, द्वितीय या तृतीय भाव में हों।

- पंचम या सप्तम में बली पुरुष ग्रह हो।

- पंचमेश पुरुष ग्रह हो तथा उसकी दृष्टि लग्नेश पर हो।

- बली गुरु पर लग्नेश की दृष्टि हो। प्रथम संतान पुत्री - पंचमेश स्त्री ग्रह हो तथा स्त्री राशि या स्त्री नवांश में हो।

- सप्तमेश पंचम में हो या पंचमेश सप्तम में हो।

- पंचम या सप्तम में बली स्त्री ग्रह हो।

- बली लग्नेश, पंचम, सप्तम, नवम या एकादश में हो।

- पंचम में चंद्रमा व शुक्र हो तथा एकादश में शुभ ग्रह हो।

- लग्नेश, लग्न या द्वितीय में पाप दृष्टि हो। पुत्र या पुत्री जानने की अन्य विधि साधारणतया स्त्री के ऋतुमती होने के चैथे दिन से लेकर 16वें दिन तक का समय गर्भाधान के लिए उत्तम माना जाता है। इन दिनों में गर्भाधान के लिए कहा गया है कि - समरात्रिषु जायते पुत्र, कन्या विषम रात्रीय। अर्थात यदि मासिक धर्म से सम रात्रि (8, 10, 12, 14 एवं 16वीं रात्रि में) साहचर्य हो तमो पुत्र जन्म तथा विषम रात्रि में (9,11,13,15वीं रात्रि) गर्भाधान से पुत्री जन्म होता है।


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इसी तरह गर्भाधान के समय पुरुष की दक्षिण नासिका और स्त्री की वाम नासिका चल रही हो तो पुत्र होता है। इसके विपरीत जब पुरुष की वाम नासिका और स्त्री की दक्षिण नासिका चल रही हो तो पुत्री उत्पन्न होती है। संतान सुख है या नहीं? ‘फलदीपिका’ के अनुसार यदि जन्मकुंडली में पंचम भाव का स्वामी शत्रु राशि या नीच राशि में हो या अस्त हो और लग्न से षष्ठ, अष्टम या द्वादश हो तो संतान प्राप्ति में बाधा आती है। इसी प्रकार कोई नीच, शत्रु अथवा अस्त ग्रह पंचम भाव में स्थित हो या षष्ठ, अष्टम अथवा द्वादश का स्वामी होकर पंचम भाव में स्थित हो, तो भी पुत्र का अभाव या पुत्र कष्ट होता है।

जो बाधाकारक ग्रह जिस राशि में स्थित हो उसके अनुसार यह निर्णय करना चाहिए कि किस देवता, वृक्ष या जीव के कारण बाधा आ रही है, और फिर उसकी शांति का उपाय करना चाहिए। यदि संतान का बाधाकारक ग्रह सूर्य हो, तो समझना चाहिए कि भगवान शंभु और गरुड़ के द्रोह या पितरों के शाप का फल है। यदि संतान प्रतिबंधक ग्रह चंद्र हो, तो माता या किसी अन्य सधवा स्त्री को दुख पहंुचाने या भगवती के शाप के कारण संतानोत्पत्ति में बाधा आती है। यदि संतान प्रतिबंधक ग्रह मंगल हो, तो ग्राम देवता या भगवान कार्तिक के प्रति अनास्था या शत्रुओं अथवा भाई बंधुओं के शाप के कारण संतान कष्ट होता है। यदि बुध बाधाकारक हो, तो बिल्ली को मारने के कारण या मछलियों अथवा अन्य प्राणियों के अंडों को नष्ट करने के कारण या कम उम्र के बालक-बालिकाओं के शाप के कारण अथवा भगवान विष्णु के कोप के कारण संतान में कठिनाई आती है। यदि जन्मकुंडली में गुरु की स्थिति शुभ नहीं हो और उसके कारण संतान नहीं हो रही हो तो इसका अर्थ है

कि जातक ने इस जन्म में या पूर्व जन्म में फलदार वृक्षांे को कटवाया है या अपने कुल गुरु या कुल पुरोहित से द्रोह किया है। यदि शुक्र बाधाकारक ग्रह है तो इसका अर्थ है व्यक्ति ने पुष्प के वृक्षों को कटवाया है या गाय को कष्ट दिया है अथवा यह बाधा किसी साध्वी के शाप के कारण आया है। यदि जन्मकुंडली में शनि ग्रह अशुभ स्थिति में हो और बाधाकारक ग्रह शनि हो तो संतान बाधा पीपल के पेड़ को कटवाने या पिशाच, प्रेत तथा यमराज के शाप के कारण आती है। शीघ्र संतान पाने के योग

- जन्मकुंडली में पंचम भाव में मेष, वृष या कर्क राशि में राहु या केतु हो तो संतान सुख की प्राप्ति शीघ्र होती है। - सप्तमेश की नवांश राशि के स्वामी पर लग्नेश, द्वितीयेश व नवमेश की दृष्टि हो तो संतान शीघ्र होती है।

- लग्नेश पंचम में हो तथा उस पर चंद्र की पूर्ण दृष्टि हो तो पुत्र संतान होती है।

- स्त्री का क्षेत्र सम राशि व सम नवांश में तथा पुरुष का बीज विषम राशि और नवांश में हो तो शीघ्र संतान की प्राप्ति होती है।

- बली गुरु पर लग्नेश की दृष्टि हो तो संतानोत्पत्ति शीघ्र होती है। विलंब से संतान प्राप्ति - राहु एकादश भाव में हो तो संतान अधिक आयु में होती है।

- चंद्र कर्क राशि में पाप युत या पाप दृष्ट हो तथा सूर्य पर शनि की दृष्टि हो तो अधिक आयु में संतान की प्राप्ति होती है।

- लग्नेश, पंचमेश और नवमेश शुभ ग्रहों से युत होकर त्रिक भावों में हो तो संतान विलंब से होती है।

- पंचम भाव में पाप ग्रह तथा दशम भाव में शुभ ग्रह हों तो संतान होने में विलंब होता है

- पंचम में गुरु हो तथा पंचमेश शुक्र के साथ हो तो 32 वर्ष के आयु के बाद संतान होती है। - पंचम में केवल गुरु हो, अष्टम में चंद्र हो, चतुर्थ या पंचम में पाप ग्रह हो तो 30 वर्ष की आयु के पश्चात संतान होती है।

- नवम भाव में गुरु हो तथा गुरु से नवम में शुक्र लग्नेश से युत हो तो 40 वर्ष की आयु में संतान होने का योग बनता है। - केंद्र स्थान में गुरु तथा पंचमेश हो तो 36 वर्ष की आयु में संतान लाभ होता है। - लग्न में मंगल, पंचम में सूर्य तथा अष्टम में शनि हो तो संतान प्राप्ति में विलंब होता है। - लग्न में शनि, अष्टम में गुरु और द्वादश में मंगल हो तथा पंचम में जलीय राशि न हो तो संतान विलंब से प्राप्त होती है। - लग्न में अशुभ राशि (मेष, सिंह, वृश्चिक, मकर या कुंभ) में पाप ग्रह हों, मंगल सम राशि में हो तथा सूर्य निर्बल हो तो 30 वर्ष की आयु के पश्चात संतान होती है। - गुरु चतुर्थ में, चंद्र अष्टम में तथा पाप ग्रह पंचम भाव में हो तो 30 वर्ष की आयु के बाद संतान प्राप्त होती है।


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- वृष, सिंह, कन्या और वृश्चिक अल्प सुत (कम संतान वाली) राशि कहलाती है। यह राशियां पंचम में हों तो थोड़ी संतति होती है और वह भी बहुत समय बाद। यत्न करने पर संतान प्राप्ति - पंचम में अल्पसुत राशि (वृष, सिंह, कन्या और वृश्चिक) में सूर्य हो, शनि अष्टम में हो और मंगल लग्न में हो।

- शनि लग्न में हो, गुरु अष्टम में हो और मंगल द्वादश में तथा पांचवें भाव में अल्पसुत राशि हो। - चंद्र एकादश भाव में हो, गुरु से पांचवें भाव में पाप ग्रह हो और लग्न में कई ग्रह हों। जन्मकुंडली से कैसे जानें संतान प्राप्ति का अनुकूल समय - लग्नेश, सप्तमेश, पंचमेश, गुरु एवं पांचवें भाव को देखने वाले ग्रहों में से किसी एक की महादशा या अंतर्दशा में संतान प्राप्ति होती है। - पंचमेश जिस राशि या नवांश में हो उससे त्रिकोण में जब गोचरवश गुरु आता है, तब भी संतान प्राप्ति का योग बनता है। - लग्नेश जब गोचरवश पंचमेश से योग करे, अपने उच्च राशि में आये, अपने स्वराशि में आए तब संतान प्राप्ति होती है। - यदि लग्नेश गोचरवश पंचम में आए या पंचमेश जहां स्थित है उस राशि में आए तब संतान प्राप्ति होती है।

- लग्नेश की राशि, अंश, कला, विकला ;इद्ध सप्तमेश की राशि, अंश, कला, विकला ;बद्ध पंचमेश की राशि अंश, कला, विकला (राश्यांशों का योग करने पर यदि राशियों का योग 12 से अधिक आए तो 12 राशियां घटाकर) इनको जोड़ने से जो राशि अंश, कला, विकला आए वह किस नक्षत्र के अंतर्गत आता है, यह निकाला जाता है। उस नक्षत्र के स्वामी की जब महादशा और पंचम भावस्थ ग्रह या पंचम को देखने वाले ग्रह अथवा पंचमेश की अंतर्दशा हो तो संतान प्राप्ति होती है। - पंचमेश, पंचमेश जिस राशि में है

उसका स्वामी, पंचमेश जिस नवांश में है उसका स्वामी, गुरु जिस राशि में है उसका स्वामी, गुरु जिस नवांश में है उसका स्वामी। देखना है कि इनमें से कौन बलवान है? इनमे से जो बलवान हो उसकी दशा-अंतर्दशा में संतान प्राप्ति होती है। - यह देखना है कि गुरु से पंचम में कौन सी राशि है, इस राशि का स्वामी किस राशि और किस नवांश में है? उस राशि या नवांश से जब त्रिकोण में गोचरवश गुरु आए तब संतान प्राप्ति होती है। - यह देखा जाय कि चंद्रमा किस नक्षत्र में है। इस नक्षत्र का स्वामी और इस नक्षत्र से पांचवें नक्षत्र का स्वामी जो ग्रह हो उसकी राशि अंश, कला, विकला आपस में जोड़ लिया जाय। जो योग आए, उस राशि, अंश, कला, विकला पर या उससे नवम, पंचम गोचरवश गुरु आए तो संतान प्राप्ति होती है।

जन्मकुंडली से कैसे जानें स्त्री-पुरुष की प्रजनन शक्ति सामान्यतया स्त्री के ऋतुमती होने के चैथे दिन से लेकर 16वें दिन तक का समय गर्भाधान के योग्य होता है, परंतु यह आवश्यक नहीं कि स्त्री गर्भ धारण कर सके तथा पुरुष गर्भाधान करा सके। गर्भाधान एवं गर्भ धारण भी जन्मकुंडली के ग्रह स्थितियों पर निर्भर है। सच ही कहा गया है- ‘‘सर्वं ग्रहाधीनं जगतं’’। पंचम भाव एवं भावेश के आधार पर स्त्री या पुरुष की प्रजनन शक्ति का पता लगाया जाता है। यदि पंचम भाव एवं भावेश शक्तिशाली हों, तो संतान प्राप्ति का संकेत मिल जाता है। पुरुष की जन्मकुंडली से पंचम भाव की क्षमता को बीज तथा स्त्री के पंचम भाव की क्षमता को क्षेत्र कहा जाता है।

साधारणतः बीज शुक्र का तथा क्षेत्र रज का प्रतिनिधित्व करता है। यदि बीज और क्षेत्र दोनों ही कमजोर हों तो प्रजनन संभव नहीं हो पाता। सूर्य प्रजनन शक्ति तथा शुक्र शुक्राणुओं का कारक है। इसलिए कुंडली में इन ग्रहों को शुभ स्थिति में होना जरूरी है। जब यह विषम राशि में हो तो अच्छा है। इसी प्रकार स्त्री की जन्मकुंडली में मंगल रक्त का स्वरूप बदलने की क्षमता रखता है तथा चंद्रमा गर्भधारण की क्षमता, इसलिए इन दोनों का सम राशि में होना लाभप्रद होता है,

हालांकि अन्य ग्रहों का प्रतिकूल प्रभाव न हो। बीज एवं क्षेत्र स्पष्ट से संतानोत्पत्ति की क्षमता पुरूष की कुंडली में सूर्य स्पष्ट, शुक्र स्पष्ट और गुरु स्पष्ट, सूर्य, गुरु और शुक्र तीनों ग्रहों की राशि, अंश, कला और विकला जोड़ लें। जोड़ने पर यदि विषम राशि और विषम नवांश आए तो पुरुष में संतानोत्पत्ति की पूर्ण क्षमता मानी जायेगी। यदि राशि और नवांश में से एक विषम और एक सम आए तो सामान्य फल समझा जाएगा और यदि सम राशि तथा सम नवांश आए तो संतानोत्पत्ति की क्षमता शून्य मानी जायेगी।

स्त्री की कुंडली में चंद्र स्पष्ट, मंगल स्पष्ट और गुरु स्पष्ट, इन तीनों ग्रहों की राशि, अंश, कला और विकला को जोड़ने से जो फल आए वह यदि सम राशि, सम नवांश में हो तो उस स्त्री में संतानोत्पत्ति की पूर्ण क्षमता हेाती है। राशि और नवांश में एक सम और विषम हो तो आधी क्षमता तथा दोनों विषम हो तो क्षमता शून्य माना जाता है।


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