पं. लेखराज शर्मा जी की विलक्षण प्रतिभा

पं. लेखराज शर्मा जी की विलक्षण प्रतिभा  

आभा बंसल
व्यूस : 60492 | मार्च 2013

हमाचल के मंडी, सुंदर नगर निवासी पं. लेखराज शर्मा को ज्योतिष के क्षेत्र में उनकी अनोखी व उत्कृष्टतम सेवाओं के लिए प्रेसिडेंट अवार्ड तथा हिमाचल रत्न से सम्मानित किया जा चुका है। ये हस्तरेखा के आधार पर जातक की जन्मकुंडली का निर्माण कर लेते हैं। भारत में इस प्रकार की योग्यता रखने वाले ये एक मात्र ज्योतिषी हैं। इन्होंने लोगों की हस्तरेखाओं से उनकी जन्म तिथि और जन्म समय का निर्धारण व कुंडली निर्माण करके न केवल ज्योतिष शास्त्र की सत्यता स्थापित की है अपितु यह भी सिद्ध कर दिया है कि जातक की हस्त रेखाओं का उसे प्रभावित करने वाले ग्रह नक्षत्रों से सीधा संबंध होता है। पं. लेखराज शर्मा जी की इस विलक्षण योग्यता का राज जब लोगों ने उनसे जानना चाहा तो उन्होंने बड़ी विनम्रता से ज्योतिष के ‘नष्ट जातकम’ अध्याय का हवाला दिया। ऐसा नहीं कि ज्योतिषशास्त्रियों को नष्ट जातकम का इल्म नहीं है लेकिन इस अध्याय में कोई भी पारंगत नहीं है अतः हम तो सिर्फ इतना कह सकते हैं - शायरी इल्म से नहीं आती, गालिब दिल में इश्क पैदा कर । शायरी अपने आप आ जाएगी।।


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जीवन में अनेक व्यक्तियों से मिलकर हम उनके चमत्कारी व्यक्तित्व से अत्यंत प्रभावित होते हैं। उनकी विशेषता, गुण व कार्य प्रणाली इस हद तक चमत्कारिक होती है कि उनके आगे नतमस्तक होने को मन चाहता है। ऐसी ही शख्सियत हं कैप्टन डा Lekhraj शर्मा जी। शर्मा जी का नाम काफी वर्षों से ज्योतिष जगत में विख्यात है पर मेरी उनसे मुलाकात अभी हाल ही में नक्षत्र प्रदर्शनी के उद्घाटन समारोह में हुई जहां आपको फ्यूचर पाइंट ने विशेष अतिथि के रूप में आमंत्रित किया था। शर्मा जी ने समारोह के मुख्य अतिथि श्री दिनेश सिंह, आई. टी. पीओ. की चेयरमैन श्रीमती रीटा मेनन, नीरज गुप्ता जी व अन्य सभी विशिष्ट अतिथियों को अपनी अनूठी कला से चमत्कृत कर दिया। उन्होंने प्रत्यक्ष रूप से मिनटों में हथेली की रेखाएं देखकर प्रत्येक व्यक्ति की जन्म तिथि व समय बिल्कुल सही-सही बता दिया। यह वास्तव में ज्योतिष विद्या का नायाब व प्रत्यक्ष नमूना था इसीलिए इस महीने की सत्य कथा पं. लेख राज जी को ही समर्पित है।

पं. लेखराज जी का जन्म जोगिन्दर नगर जिला मंडी में हुआ। जिला मंडी छोटी काशी के रूप में हिमाचल में काफी प्रसिद्ध है और यहां से बड़े-बड़े विद्वान आए हैं। लेखराज जी के परिवार में खानदानी ज्योतिष का कार्य होता था। उन्होंने ज्योतिष बचपन में अपने परिवार में ही सीखा और अपनी शिक्षा के पश्चात वहीं अध्यापक के रूप में हिमाचल के सरकारी स्कूल में कार्य किया। कुछ समय बाद अपनी उच्च शिक्षा के लिए बनारस चले गये और पं. राम नाथ त्रिपाठी के नेतृत्व में बनारस हिंदू विश्व विद्यालय से ज्योतिष की उच्च शिक्षा प्राप्त की।


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त्रिपाठी जी सामुद्रिक शास्त्र के विशेषज्ञ व उच्च कोटि के रमलाचार्य थे। 1978 में आपने इंडियन आर्मी ज्वायन कर ली व वहां के धर्म गुरु के रूप में सैनिकों का उत्साह वर्द्धन किया। आपने कारगिल, ब्लू स्टार आॅपरेशन आदि सभी लड़ाइयों में धर्म गुरु का पद अच्छी तरह निभाया और वहां पर आपको सेनाध्यक्ष प्रशंसा पत्र व राष्ट्रपति पुरस्कार से नवाजा गया। 1980 में आप बैंगलोर चले गये तथा बी. वी. रमन के सान्निध्य में इनके ज्योतिष ज्ञान में बहुत निखार आया। आपने वराह मिहिर की नष्ट जातकम्, मुकुंद मिश्र लिखित ज्योतिषीय पुस्तक व कालीदास विरचित उत्तराकालामृत का गहन व विशद् अध्ययन किया और ज्योतिष की दिशा में आगे बढ़ते रहे। 2008 में आर्मी से निवृत्त होकर वापिस ज्योतिष के क्षेत्र में पूर्ण रूप से जुड़ गये और आजकल, जोगिंदर नगर मंडी में ज्योतिष का कार्य कर रहे हैं।

आपको अंतर्राष्ट्रीय ज्योतिष पुरस्कार, अंतर्राष्ट्रीय रोटरी अवार्ड, भारत गौरव, अखिल भारतीय ज्योतिष सम्मान पत्र, हिमाचल रत्न, ज्योतिष वराह मिहिर राष्ट्रीय पुरस्कार, मेरठ रत्न आदि अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। आइये करें शर्मा जी की जन्मकुंडली का आकलन पं. लेखराज शर्मा जी की जन्मकुंडली में कन्या लग्न है। कन्या लग्न के जातक गणित विद्या में पारंगत होते हैं। इनकी कुंडली में उच्चस्तरीय व श्रेष्ठ गणितज्ञ बनने के सर्वश्रेष्ठ योग विद्यमान हैं। बुध ग्रह गणित व प्रखर बुद्धि का कारक माना गया है। इनका बुध लग्नेश और दशमेश अर्थात दो केंद्रों का स्वामी होकर बुद्धि के कारक त्रिकोण भाव में बुद्धि और श्रेष्ठतम ज्ञान के मुख्य कारकों गुरु और शुक्र के साथ विद्या के ही पंचम भाव में विराजमान है। चंद्रमा से ये तीनों ग्रह केंद्र में विद्यमान हैं।

जो ग्रह किसी भाव से दशमस्थ हों वह उस भाव पर पूरा प्रभुत्व रखता है। इसलिए पंचम भाव में बैठे ग्रह अष्टम भाव पर पूर्ण प्रभाव रखते हैं। अष्टम भाव पराविद्याओं और गूढ़तम विद्याओं का कारक भाव है इसीलिए इनकी कुंडली में चंद्रमा अधिष्ठित अष्टम भाव गुरु, शुक्र और बुध के पूर्ण प्रभाव में है। अष्टमेश और अष्टम से अष्टम भाव का स्वामी मंगल भी लग्नस्थ है। इसी कारण हम कह सकते हैं कि कन्या लग्न की इस कुंडली में बुध, पंचम भाव और अष्टम भाव के बली होने तथा चंद्रमा से दशम भाव में शुभ ग्रहों की स्थिति के कारण इन्हें पराविद्या, ज्योतिष की गूढ़ गणनाओं में चमत्कृत करने वाली योग्यता और सम्मान दोनों ही प्राप्त हुए। जैमिनी ज्योतिष के अनुसार भी पंचम भाव को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है, इसीलिए शर्मा जी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त करके भारत गौरव कहलाए।


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पाराशरी ज्योतिषानुसार लग्न, द्वितीय, चतुथर्, पंचम व नवम भावों को विद्या के क्षेत्र में श्रेष्ठतम सफलता का कारक माना जाता है। विद्या और बुद्धि के कारक ग्रहों गुरु, शुक्र और बुध का इन भावों से श्रेष्ठ सम्बन्ध जातक को निश्चित रूप से विद्वान बनाता है। ऐसा दुर्लभतम जन्मपत्रियों में ही होता है कि इन तीनों ग्रहों का इन भावों से संबंध भी हो जाए और इन तीनों की युति भी किसी शुभ भाव में हो जाए। पं. लेखराज जी की जन्मपत्री में ये तीनों ग्रह लग्नेश, द्वितीयेश, चतुर्थेश व नवमेश होकर विद्या और बुद्धि के कारक पंचम भाव में एक साथ विराजमान हैं। यही इनकी अद्वितीय प्रतिभा का मूल कारण बना। दशम भाव से विद्या जनित यश का विचार किया जाता है। इनकी जन्मपत्री में बुध दशमेश होकर इसलिए विद्या जनित यश का कारक बना क्योंकि यह बुध दो केंद्रों का स्वामी होकर शुभ ग्रहों से संयुक्त होकर त्रिकोणस्थ और वह भी पंचम भाव में है।

इस प्रकार विद्या और बुद्धि का स्थिर कारक बुध कुंडली में विद्या और बुद्धि का चर कारक बन कर और अधिक चमत्कारी हो गया। आपकी कुंडली में पराक्रम का स्वामी मंगल तृतीयेश होकर लग्न में केतु के साथ स्थित है जिसकी वजह से आपने सेना के सैनिकों का उत्साह वर्धन किया व धर्म गुरु के रूप में उनका नेतृत्व किया और देश विदेश की यात्रा की। द्वादशेश सूर्य चतुर्थ भाव में बैठे हैं इसलिये माता का स्वर्गवास बचपन में ही हो गया था। चैथे घर पर अष्टमेश मंगल की भी पूर्ण दृष्टि होने से मातृ सुख में हानि रही। परंतु पंचम में लग्नेश व कर्मेश बुध, चतुर्थेश व सप्तमेश गुरु व भाग्येश व धनेश शुक्र की युति अत्यंत विलक्षण योग बना रहे हैं। चारों केंद्रों के स्वामी व त्रिकोण भाव का स्वामी भी एक त्रिकोण भाव में बैठकर त्रिकालज्ञ योग बना रहे हैं जो संतों की कुंडली में भी दुर्लभ होता है। आपकी कुंडली में वाक् सिद्धि योग, भाग्यवान योग, पूर्ण भाग्यशाली, राजसुख व सर्पराज तुल्य प्रतापी जैसे अनेक शुभ योग बन रहे हैं। गुरु चंद्र से केंद्र में होने के कारण गजकेसरी योग भी बन रहा है।


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