दमा: अत्यंत पीड़ादायक

दमा: अत्यंत पीड़ादायक  

अविनाश सिंह
व्यूस : 3999 | जनवरी 2016

दमा को आयुर्वेद में श्वांस रोग कहते हैं। शरीर में कफ और वायु दोषों के असंतुलित हो जाने के कारण यह रोग होता है। बढ़ा हुआ कफ फेफड़े में एकत्र होने पर उसकी कार्यक्षमता में बाधा पहुंचती है और सांस के द्वारा लिये गये और छोड़े गये वायु के आवागमन में अवरोध उत्पन्न होता है। बढ़ा हुआ वायु इस कफ को सूखा देता है जिससे वह श्वांस नली में जम जाता है और सांस की तकलीफ शुरू होती है।


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तभी रोगी को दमे का भयंकर आक्रमण होता है। इसके अलावा कुछ और भी ऐसे लक्षण हैं, जिन्हें पूर्वरूप कहा जाता है, जैसे छाती में हल्की पीड़ा, पेट में भारीपन या वायु जम जाना, मुंह का स्वाद बदल जाना और सिर दर्द आदि। कई बार लक्षणों के बिना अकस्मात् ही दमा शुरू हो जाता है।

कारण: दमा के मुख्यतः तीन कारण हैं

1. व्याधि

2. आहार एवं

3 विहार

1. व्याधि: व्याधि में शरीर में कफ और वायु दोष असंतुलित हो जाते हैं, जिसके कारण दमा होता है।

2. आहार: असंतुलित भोजन करने से भी रोग होता है। तेल या मसाले, दाल पदार्थों का अतिसेवन, भारी पदार्थ का अपच जो कब्ज पैदा करे, रूखा अन्न, बासी-खट्टी चीजें, अधिक खाना और असमय खाना, जैसे रात में दही या दूध, केला या फल, सलाद, आइसक्रीम का सेवन एवं शीतल आहार, जैसे फ्रिज का ठंडा पानी, शीत पेय एवं तंबाकू के सेवन आदि से श्वांस रोग हो सकता है।

3. विहार: यह आपके रहन-सहन पर निर्भर करता है। हमेशा शीत स्थान में रहना, जैसे वातानुकुलित कार्यालय में काम करना, बर्फीले स्थान पर सफर करना आदि यह बीमारी पैदा करते हैं। धूल या धुआं इस रोग के विशेष कारण हैं।

इस्पात के कारखानों में, भट्टियों के पास, सीमेंट के कारखानंे में, रसायन कारखानों में कार्यरत व्यक्तियों को अक्सर दमा हो जाता है। इसके अलावा तीव्र वायु में रहना, अधिक व्यायाम करना, वेगावरोध जैसे मल-मूत्र के वेगों को रोकना, पोषण युक्त आहार न करना, ये सभी दमा रोग को आमंत्रित करते हैं। घरेलू उपचार:

-मूलहठी फूल और सुहागा को अच्छी तरह पीस लें और दोनों को बराबर मात्रा में मिलाकर एक ग्राम दवा दिन में दो-तीन बार शहद के साथ चाटें या गर्म पानी के साथ लें। ऐसा करने से साधारण दमे में लाभ होगा।

- एक तोला सोंठ का चूर्ण पचास ग्राम पानी में उबाल कर पकाएं। जब पानी आधा रह जाए, तो उसे छानकर पीने से दमे में लाभ होता है।

- तुलसी के पत्तों का रस दो-चार चम्मच दिन में तीन चार बार पीने से दमे में आराम होता है। तुलसी, काली मिर्च, हरी चाय की पत्ती का काढ़ा भी फायदेमंद होता है।

- सोंठ, छोटी पीपर, सफेद पुनर्नवा, वायविडंग, चित्रक की जड़ की छाल, सत गिलोय, अश्वगंधा, बड़ी हरड़ का छिलका, असली विधारा, बहेड़ा की दाल, आंवला की छाल और काली मिर्च सबको बराबर मात्रा में लेकर अच्छी तरह पीसकर चूर्ण बना लें। बाद में गुड़ की एक चाट की चाशनी में मिला कर पांच-पांच ग्राम की गोलियां बना कर सूखा लें। प्रातः काल एक गोली गाय के दूध में साथ लें, इससे श्वांस, दमे में लाभ होता है।

-अंजीर को कलई किये हुए बर्तन में चैबीस घंटे तक पानी में भिगोएं, सुबह अंजीर को उसी पानी में उबाल लें। प्रातःकाल प्राणायाम करने के बाद उबले हुए अंजीर को चबा कर खा लें और वही पानी पी लें। इससे भी दमा रोग में आराम मिलता है।

- दमे का प्रहार होने पर लहसुन के तेल से रोगी के सीने पर मालिश करें और एक-दो चम्मच हल्दी, एक चम्मच अजवायन पानी में उबाल कर पीने से आराम होता है। ज्योतिषीय कारण: ज्योतिष अनुसार तृतीय एवं चतुर्थ भाव के मध्य का स्थान श्वांस प्रणाली का नेतृत्व करता है।

तृतीय भाव श्वांस नली एवं चतुर्थ भाव फेफड़ों का होता है। श्वांस नली एवं फेफड़े आपस में जुड़े रहते हैं और यह सारा तंत्र श्वांस प्रणाली कहलाता है। इसलिए दमा रोग श्वांस प्रणाली की गड़बड़ी के कारण होता है। तृतीय और चतुर्थ भाव का इस रोग में विशेष महत्व है। तृतीय एवं चतुर्थ भाव के परस्पर मंगल एवं चंद्र कारक ग्रह हैं। मिथुन राशि एवं कर्क राशि श्वांस प्रणाली का नेतृत्व करती है जिनके परस्पर स्वामी बुध एवं चंद्र हैं।

इसलिए तृतीय भाव, चतुर्थ भाव, मंगल, चंद्र एवं बुध जब जातक की कुंडली में दूषित प्रभावों में रहते हैं तो दमा रोग होता है। दशा, अंतर्दशा एवं गोचर में जब उपर्युक्त भाव एवं ग्रह प्रभावित होते हैं उस समय दमा रोग जातक को घेर लेता है। अगर मारकेश भी चल रहा है तो यह जानलेवा भी हो जाता है। विभिन्न लग्नों में दमा रोग

मेष लग्न: मंगल चतुर्थ भाव में हो, शनि लग्न में बुध के साथ, सूर्य राहु के साथ द्वादश भाव में हो तो श्वांस प्रणाली में रूकावट पैदा करती है।

वृष लग्न: चंद्र-मंगल तृतीय स्थान पर, सूर्य-शुक्र चतुर्थ भाव में हो, गुरु नवम या दशम भाव में हो तो दमा रोग होता है।

मिथुन लग्न: मंगल तृतीय, गुरु नवम, चंद्र-शनि आठवें, बुध छठे या आठवें में रहे तो जातक को श्वांस संबंधित रोग देता है।

कर्क लग्न: मंगल-शनि छठे, सूर्य-चंद्र तृतीय, बुध चतुर्थ, राहु सप्तम भाव में हो तो दमा रोग हो सकता है।

सिंह लग्न: लग्नेश छठे या आठवंे भाव में हो, बुध सप्तम भाव में, राहु बारहवें मंगल के साथ हो और शुक्र अस्त हो तो जातक को श्वांस रोग होता है।

कन्या लग्न: बुध-गुरु चतुर्थ भाव में, सूर्य-चंद्र तृतीय भाव में, मंगल नवम्, शनि छठे भाव में हो तो दमा रोग होने के संकेत देता है।

तुला लग्न: गुरु-शुक्र आठवें, सूर्य नवम्, बुध दशम, मंगल तृतीय और चंद्र चतुर्थ भाव में हो, तो जातक को सांस संबंधित रोग देता है।

वृश्चिक लग्न: बुध लग्न में, लग्नेश चतुर्थ में, राहु द्वादश भाव मंे, शनि-चंद्र छठे भाव में दमा रोग उत्पन्न करता है। धनु लग्न: शनि-बुध लग्न में, सूर्य द्वितीय भाव में, शुक्र तृतीय भाव में, राहु ग्यारहवंे भाव में हो, तो श्वांस नली में संक्रामक रोग देता है।

मकर लग्न: गुरु-मंगल आठवें, शनि ग्यारहवें, चंद्र छठे, सूर्य-शुक्र तृतीय एवं बुध चतुर्थ भाव में श्वांस रोग देता है।

कुंभ लग्न: शनि-मंगल छठे, बुध नवम, सूर्य दशम भाव में होने से दमा रोग हो सकता है।

मीन लग्न: सूर्य-बुध तृतीय भाव में, शुक्र चतुर्थ, मंगल नवम, गुरु छठे भाव में श्वांस प्रणाली में रूकावट पैदा करता है। उपरोक्त सभी योग संबंधित ग्रहों की दशा-अंतर्दशा और गोचर के प्रतिकूल रहने पर रोग देते हैं, इसके उपरांत रोगी स्वस्थ हो जाता है।


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