रुद्राक्ष तेरे रूप अनेक

रुद्राक्ष तेरे रूप अनेक  

व्यूस : 10455 | अप्रैल 2012
रुद्राक्ष, तेरे रूप अनेक पं. आर. के. शर्मा आंवले के बराबर रुद्राक्ष श्रेष्ठ, बेर के बराबर मध्यम, चने के बराबर रुद्राक्ष निम्न कोटि का होता है। रुद्राक्ष समस्त अरिष्टों का नाश करने वाला, लोक में उŸाम सुख, सौभाग्य एवं समृद्धिदाता, संपूर्ण मनोरथों को सिद्ध करने वाला है। सामान्यतः एक से चैदह मुखी तक रुद्राक्ष पाये जाते हैं। प्रत्येक का प्रभाव और उपयोगिता कुछ इस प्रकार है- एक मुखी रुद्राक्ष अत्यंत दुर्लभ है। यह शिव स्वरूप है। उपलब्ध होने पर इसे ‘ऊँ ह्रीं नमः’ मंत्र की एक माला जप करने के बाद धारण करें। यह भोग और मोक्ष की व विकास और मानसिक शक्ति की सहज प्राप्ति करने वाला तथा शत्रु-अरिष्ट का नाशक है, जिसके पास एक मुखी रुद्राक्ष होता है उस पर लक्ष्मी की कृपा रहती है। द्विमुखी रुद्राक्ष का एक नाम देव-देवेश्वर है। इसे सोमवार को प्रातः ‘ऊँ नमः’ मंत्र की एक माला जप के बाद धारण करें। यह रुद्राक्ष चिŸा की एकाग्रता, मानसिक शांति, जीवन में आध्यात्मिक उन्नति और कुंडलिनी जागृत करने के लिए सर्वथा उपयुक्त है। त्रिमुखी रुद्राक्ष साक्षात् अग्नि स्वरूप है। इसे ‘ऊँ क्लीं नमः’ मंत्र जप करके सोमवार को धारण करें। यह विद्या प्रदाता, शत्रुनाशक, पेट की व्याधि पीलिया रोग तथा आघात जैसी अशुभ घटनाओं से रक्षा करता है। दूध में घिसकर पिलाने से आंखों का जाला कट जाता है। यह नौकरी दिलाने में भी सहायक होता है। चतुर्मुखी रुद्राक्ष ब्रह्मा का रूप है। इसे सोमवार को ‘ऊँ ह्रीं नमः मंत्र का 108 बार जप करके धारण करें। इसे धारण करने वाला वेदशास्त्र ज्ञाता और सर्वप्रिय होता है। बुद्धि एवं स्मरण शक्ति के विकास के साथ-साथ साक्षात्कार में सफलता के लिए लाभप्रद है। इससे आंखों का तेज, वाणी में मिठास और वशीकरण शक्ति की वृद्धि होती है। पंचमुखी रुद्राक्ष कालाग्नि रुद्र रूप है। सोमवार के दिन प्रातःकाल ‘ऊँ ह्रीं नमः’ मंत्र की एक माला जप के बाद इसे धारण करें। इसे धारण करने से सर्वमनोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा जहरीले जानवरों का भय नहीं रहता है। यह शत्रु नाश के लिए प्रभावशाली सिद्ध हुआ है। धारणकर्ता मनुष्य को सुख-शांति प्राप्त होती है तथा यह सब रुद्राक्षों से अधिक पुण्यदाता है। षड्मुखी रुद्राक्ष कार्तिकेय का प्रतिनिधि है। इसे धारण करने का मंत्र है ‘ऊँ ह्रीं हुं नमः’। धारक को भौतिक दृष्टि से कोई कमी नहीं रहती। हिस्टीरिया, मूच्र्छा और स्त्रियों के प्रदर आदि रोगों में लाभदायक है। सप्तमुखी रुद्राक्ष अनंग रूप हैं। दरिद्री धारक भी ऐश्वर्यशाली हो जाता है। धारण मंत्र है ‘ऊँ हुं नमः’। धारक को विष बाधा नहीं सताती और स्त्री वशीकरण की सामथ्र्य प्राप्त होती है। शस्त्र से अकाल मृत्यु नहीं होती है। अष्टमुखी रुद्राक्ष अष्टमूर्ति भैरव रूप है जिसे धारण करने का मंत्र ‘ऊँ हंु नमः’। धारक को विद्या-ज्ञान की प्राप्ति विशेष रूप से होती है। व्यक्ति पर कोई तांत्रिक प्रयोग प्रभाव नहीं डालता। व्यापारी वर्ग के लिए यह बहुत लाभदायक है। चिŸा की एकाग्रता के लिए इसका प्रयोग उपयोगी सिद्ध हुआ है। पक्षाघात रोग में इसे धारण करने से लाभ होता है। नवमुखी रुद्राक्ष भैरव और कपिलमुनि का प्रतीक है। यह सहज लभ्य नहीं है। ‘ऊँ ह्रीं हुं नमः’ धारण मंत्र है तथा इसकी अधिष्ठात्री देवी नौ रूप धारिणी दुर्गा है। इसे बांयें हाथ में धारण करने से मनुष्य शिवरूप सर्वेश्वर हो जाता है। यह हृदय रोग में अत्यंत लाभकारी है। दशमुखी रुद्राक्ष साक्षात जनार्दन (विष्णु) रूप है। संपूर्ण कामनाओं की पूर्ति करता है। जपनीय मंत्र है-‘ऊँ ह्रीं नमः’ । धारक को भूत-प्रेत-पिशाच आदि बाधाएं नहीं सताती हैं। एकादश मुखी रुद्राक्ष साक्षात रुद्र रूप है। ‘ऊँ ह्रीं हुं नमः’ मंत्र जप के बाद धारण करने से मनुष्य सर्वत्र विजयी होता है। स्त्रियों को सौभाग्य वृद्धि और संतान सुख मिलता है। द्वादशमुखी रुद्राक्ष यह सूर्य रूप है। केशों में धारण करने से सूर्यों का तेज सिर में विराजमान हो जाता है। इसका धारण मंत्र है ‘ऊँ क्रौं क्षौं रौं नमः’। ज्योतिषियों के लिए यह रुद्राक्ष बहुत लाभदायक है। इस दुर्लभ रुद्राक्ष को धारण करने से ब्रह्मचर्य व्रत पालन में सहायता मिलती है तथा चोर, अग्नि दारिद्रय तथा विषैले जीव-जंतुओं का भय नहीं रहता है। पीलियां में भी यह लाभदायक है। त्रयोदशमुखी रुद्राक्ष यह इंद्र रूप है, विश्व देवों की संज्ञा है, सौभाग्य और सर्व मंगल दाता है, तथा सभी अभीष्टों की पूर्ति करता है। ‘ऊँ ह्रीं नमः’ इस रुद्राक्ष को धारण करने का मंत्र है। चतुर्दशमुखी रुद्राक्ष परम शिव स्वरूप है। इससे सब प्रकार के रोग समूल नष्ट हो जाते हैं ‘ऊँ नमः’। मंत्र जप के बाद ही धारण करें। नोट: यज्ञोपवीत की तरह शुचिता का ध्यान रखें तथा अभिमंत्रित किये बिना न पहनें। तरह-तरह के रुद्राक्ष एक ही माला में धारण करने के लिए उन्हें गंगाजल में शुद्ध करके उनके अभिमंत्रण के लिए पृथक-पृथक मंत्रों की माला का जप करें। यह कार्य श्रावण मास के किसी भी सोमवार अथवा महा शिवरात्रि के प्रदोषकाल में करना चाहिए। शुद्ध रुद्राक्षों को धूप-दीप अर्पित कर स्वच्छ एवं शुद्ध स्थान एवं वातावरण में धारण करें। औषधि के रूप में लेने के लिए आयुर्वेद के आचार्य से सलाह लें। रुद्राक्ष अंतःकरण की शुचिता को बढ़ाता है। फिर भी पापकर्मों से बचें।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.