रुद्राक्ष और साबर मंत्र

रुद्राक्ष और साबर मंत्र  

व्यूस : 9101 | अप्रैल 2012
रुद्राक्ष अ©र साबर मंत्र नवीन चितलांगिया साबर मंत्र¨ में रुद्राक्ष की उत्त्पत्ति-वर्णन-महिमा इस प्रकार से है: अकल सकल सुमेरु की छाया, शिव शक्ति मिल वृक्ष लगाया। एक डाल अगम क¨ गई। एक डाल उत्तर क¨ गई। एक डाल पश्चिम क¨ गई । एक डाल दक्षिण क¨ गई। एक डाल आकाश क¨ गई । एक डाल पाताल क¨ गई । उसी पेड़ से फल लगा रुद्राक्ष का। एक मुखी उकार क¨ बरणे। द¨ मुखी सुर्य चन्द्र क¨ बरणे। तीन मुखी तीन देव¨ं क¨ बरणे । चार मुखी चार वेद¨ं क¨ बरणे। पांच मुखी पांच पाण्डव¨ं क¨ बरणे। छः मुखी छः दर्शन¨ं क¨ बरणे। सात मुखी सात सागरों क¨ बरणे। आठ मुखी आठ कुली पर्वत¨ं क¨ बरणे । न© मुखी न© कुली नाग क¨ बरणे। दस मुखी दस अवतार¨ं क¨ बरणे। ग्यारह मुखी ग्यारह रुद्र शंकर¨ क¨ बरणे। बारह मुखी बारह पन्थ¨ं क¨ बरणे। तेरह मुखी तेरह रत्न¨ं क¨ बरणे। च©दह मुखी च©दह विद्याअ¨ं क¨ बरणे। पन्द्रह मुखी पन्द्रह तिथिय¨ं क¨ बरणे। स©लह मुखी स©लह कलाअ¨ं क¨ बरणे । सतरह मुखी सीता सतवन्ती क¨ बरणे। अठारह मुखी अठारह भार वनस्पति क¨ बरणे । उन्नीस मुखी शिव पार्वती गणेश क¨ बरणे । बीस मुखी विश्वासु मुनि साधु क¨ बरणे। इक्कीस मुखी एक अलख क¨ बरणे । हाथ बांधे हतनापुर का राज पावे, कान क¢ बांधे कनकापुर का राज पावे। कंठ गले क¢ बांधे सात द्वीप का राज पावे, मस्तक क¢ बांधे कैलाशपुरी का राज पावे । नहीं जाने रुद्राक्ष जाप अठ्ठत्तर गऊ का लागे पाप, बांधे रुद्राक्ष जाने जाप जन्म जन्म का पाप समाप्त ह¨ सी । रुद्राक्ष जाप समाप्त हुआ ‘शिव-ध्यान में दत्त्तात्रेय महाराज ने कहा । रुद्राक्ष क¨ सिद्ध करने हेतु साबर मंत्र इस प्रकार से है - संक्षिप्त मंत्र सत नम¨ आदेश । गु्ररुजी क¨ आदेश । ऊँ गुरुजी । मुखे ब्रह्मा मध्ये विष्णु लिंग नामे महेश्वर सर्वदेव नमस्कारमं रुद्राक्षाय नम¨ नमः। सम्पूर्ण मंत्र सत नम¨ आदेश । गुरुजी क¨ आदेश। ऊँ गुरुजी । मुखे ब्रह्मा मध्ये विष्णु लिंग नामे महेश्वर सर्वदेव नमस्कारमं रुद्राक्षाय नम¨ नमः। गगनमण्डल मे धुन्धकारा पाताल निरंजन निराकार। निराकार मे चर्ण पादुका, चर्ण पादुका मे पिण्डी, पिण्डी मे वासुक, वासुक मे कासुक, कासुक मे कूर्म, कूर्म मे मरी, मरी मे नागफणी, अलश पुरूश ने बैल क¢ सींग पर राई ठहराई । धीरज धर्म की धूनी जमाई । वहां पर रुद्राक्ष सुमेर पर्वत पर जमाईये, उसमे से फूटे छः डाली । एक गया पूर्व, एक गया दक्षिण, एक गया पश्चिम, एक गया उत्त्तर, एक गया आकाश, एक गया पाताल, उसमे लाग्या एकमुखी रुद्राक्ष, श्री रुद्र पर चढा़ईये। श्री अ¨ंकार आदिनाथ जी क¨। द¨मुखी रुद्राक्ष चढाईये चन्द्र सूर्य क¨। तीनमुखी चढाईये तीन ल¨क¨ं क¨। चारमुखी रुद्राक्ष चढाईये चार वेद¨ं क¨। पांचमुखी रुद्राक्ष चढाईये पांच पाण्डव¨ं क¨। छैःमुखी रुद्राक्ष चढाईये षड् दर्शन क¨। सातमुखी रुद्राक्ष चढाईये सप्त समुद्र¨ं क¨। अष्टमुखी रुद्राक्ष चढाईये अष्ट कुली नाग¨ं क¨। नवमुखी रुद्राक्ष चढाईये नवनाथ¨ं क¨। दशमुखी रुद्राक्ष चढाईये दश अवतार¨ं क¨। ग्यारहमुखी रुद्राक्ष चढाईये ग्यारह रुद्र¨ं क¨। द्वादशमुखी रुद्राक्ष चढाईये (सूर्य) बारह पंथ¨ क¨। तेरहमुखी रुद्राक्ष चढाईये तैंतीस क¨टि देवताअ¨ं क¨। च©दहमुखी रुद्राक्ष चढाईये च©दह भुवन (च©दह रत्न¨ं) क¨। पन्द्रहमुखी रुद्राक्ष चढाईये पन्द्रह तिथिय¨ं क¨। स¨लह मुखी रुद्राक्ष चढाईये स¨लह श्रृंगार क¨। सत्रहमुखी रुद्राक्ष चढाईये सीता माता क¨। अठारहमुखी रुद्राक्ष चढाईये भार वनस्पतिय¨ं क¨। उन्नीसमुखी रुद्राक्ष चढाईये अलश पुरूषा क¨ । बीसमुखी रुद्राक्ष चढाईये भगवान विष्णु क¨ । इक्कीसमुखी रुद्राक्ष चढाईये, इक्कीस ब्रह्माण्ड शिव क¨ । निरमुखी रुद्राक्ष चढाईये निराकार क¨ । इतना रुद्राक्ष मंत्र संपूर्ण भया। श्री नाथ जी क¢ चरण कमल में आदेश।



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