पजूनो पूनो व्रत

पजूनो पूनो व्रत  

व्यूस : 5996 | अप्रैल 2012
पजूनो पूनो व्रत (06-04-2012) पं. ब्रजकिशोर शर्मा ब्रजवासी ‘‘पजूनो पूनो व्रत’’ चैत्र शुक्ल पक्ष पूर्णमासी को करने का विधान है। इसमें विशेषकर पूजन ही करने की परंपरा है। व्रत भी रहना चाहें, तो रह सकते हैं। इस दिन ‘पजून कुमार’ देवता के पूजन को विधिवत उस घर में संपन्न किया जाता है जिस घर में पुत्र उत्पन्न हुआ हो। इस दिन पांच या सात मिट्टी की मटकियों में ही (करवा सहित लाकर मटकियों को) चूना या खड़िया से तथा करवे को हल्दी से रंगाकर सुखाकर ‘पजून कुमार’ (यानी बालक) तथा दो माताओं (जन्मदात्री व पालनहारी) का चित्र सभी पर बनावें। मटकियों को चारों ओर तथा करवे को मध्य (बीच) में रखकर सभी पात्रों को विभिन्न पकवानों तथा मिठाइयों से भर दें। विधिपूर्वक गणेश गौर्यादि नवग्रहादि पूजनोपरांत, पजून कुमार व उसकी दोनों माताओं का पूजन करें। कथा के समय एक स्त्री कथा सुनावे तथा बाकी स्त्रियां हाथ में अक्षत (चावल) लेकर कथा सुनें। कथा श्रवणकर पूर्णता पर मटकियों को हिला-हिलाकर उसी स्थान पर प्रत्येक को पुनः स्थापित करें। लड़का पजून कुमार की मटकी से लड्डू निकालकर मां की झोली में डालता है। फिर मां लड़के को लड्डू पकवान आदि देती है। इसके बाद घर के सभी लोगों को व उपस्थित जनों को मटकियों का पकवान व मिठाई प्रसाद के रूप में वितरण किया जाता है। प्रसाद देते समय, ‘पूजन के लडुआ पूजने खायें। दौर-दौर वही कोठारी में जायें ।। इन पंक्तियों का जोर-जोर से उच्चारण करते रहें। इस प्रकार सविधि कार्य को करने पर बालकों को दीर्घायु की प्राप्ति एवं घर में सुख-शांति बनी रहती है। बालकों का माता के प्रति व माता का बालकों के प्रति प्रेम बना रहता है। कुम्हार ने बालक का नाम पजून कुमार रखा तथा पजून कुमार की दिव्य अलौकिक शक्तियों के कारण ही पजून कुमार का पूजन किया जाने लगा तथा लोक में ख्याति हो गयी। ‘पजूनो पूनो व्रत’ वास्तव में तो अधर्म पर धर्म, अन्याय पर न्याय, कुमार्ग पर सन्मार्ग तथा अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है। यह जगत् के जीवों को ज्ञान प्रदान करने वाला व्रत है। बुराई पर अच्छाई के शासन को दर्शाता है और प्रेरणा देता है कि सभी को अपना-अपना कर्म व चिंतन शुभ रखना ही श्रेयस्कर है। इसकी कथा इस प्रकार है। कथा: वासुक राजा की दो रानियां थीं- सिकौली बड़ी और रूपा छोटी। दोनों निःसंतान। सिकौली पर सास-ननद का प्रेम अधिक था और रूपा राजा को बहुत प्रिय थी इसलिए वह सास-ननद की नाराजगी की कोई चिंता नहीं करती थी। उसे पुत्र की बड़ी लालसा थी। उसने एक दिन बूढ़ी स्त्रियों से पुत्र-प्राप्ति का उपाय पूछा। बुढ़ियों ने बताया कि संतान तो सास-ननद के आशीर्वाद से ही हो सकती है। पर वे तो रानी से नाराज रहती थीं, आशीर्वाद तो दूर रहा। बुढ़ियों के बताने पर वह ग्वालिन का वेश बनाकर सास-ननद के महलों में गई और सिर पर से दूध की मटकियां उतार कर उनके पांव छुए। उन्होंने उसे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे दिया। रूपा गर्भवती हो गई। उसने सारी बात राजा को बता दी। राजा ने कहा, ‘‘तुम चिंता न करो, मैं तुम्हारे महल में घंटियां बंधवा देता हूं। जब तुम्हें प्रसव-पीड़ा या कोई कष्ट हो तो तुम डोरी खींचना। घंटी बजेगी और मैं तुम्हारे पास चला आऊंगा। रानी के महल में घंटियों का प्रबंध हो गया। एक दिन रानी ने राजा की परीक्षा लेनी चाही। रानी ने डोरी खींची और घंटी बजने लगी। घंटी बजते ही राजा राज-दरबार छोड़कर रानी के महल में पहुंच गया। जब राजा को रानी के झूठ का सारा रहस्य मालूम हो गया तब वह नाराज होकर लौट आया। विवश होकर रूपा को सास-ननद की शरण में जाना पड़ा। वहां जाकर उसने बताया कि मेरा प्रसव काल समीप है। सब ठीक-ठाक हो जाने का उपाय बताइये। ननद ने धैर्य बंधवाते हुए कहा, ‘‘जब तुम्हारे पेट में दर्द हो तब तुम कोने में सिर डालकर ओखली पर बैठ जाना।’’ रूपा ने वैसा ही किया। बालक पैदा होते ही ओखली में गिरकर रोने लगा। रोने की आवाज सुनकर सास-ननद दौड़कर वहां पहुंचीं। उसके साथ सिकौली रानी भी थी। उसने नवजात शिशु को घूरे पर फिकवा कर ओखली में कंकड़-पत्थर डाल दिये। सास-ननद ने रूपा को बताया, ‘‘अरी ् तूने तो कंकड़-पत्थर पैदा किए हैं।’’ राजा भी प्रसव का समाचार पाकर भागा-भागा आया, पर कंकड़-पत्थर देखकर चकित रह गया। राजा अपनी मां तथा बहन की चालाकी समझ तो गया, पर कुछ कह न सका। जिस दिन रूपा ने बच्चे को जन्म दिया था, उस दिन चैत्र शुक्ल पूर्णिमा थी। उसी दिन एक कुम्हारिन घूरे पर कूड़ा डालने आई। राख में खेलते हुए बच्चे को वह अपने घर ले गई। वह भी निःसंतान थी। उसने बड़े लाड़-प्यार से उसका पालन-पोषण किया। बड़ा होने पर कुम्हार ने उसे खेलने के लिए मिट्टी का एक घोड़ा बना दिया। लड़का उस घोड़े को नदी के किनारे ले जाकर उसका मुंह पानी में डुबोकर कहता- मिट्टी के घोड़े पानी पी, चें, चें चें। उसी जगह राजा के रनिवास की स्त्रियां नहाने के लिए आया करती थीं। एक लड़के को ऐसा करते देख एक स्त्री ने कहा, ‘‘ऐ कुम्हार के छोकरे ! तू पागल हो गया है क्या? कहीं मिट्टी का घोड़ा भी पानी पीता है?’’ लड़के ने उत्तर दिया, ‘‘मैं ही पागल नहीं हूं। यह सारा संसार ही पागल है। क्या कभी रानियों के गर्भ से कंकड़-पत्थर पैदा होते हैं?’’ लड़के की बातें सुनकर सारी स्त्रियां समझ गईं कि यह हो न हो रूपा रानी का ही बेटा है। उन्होंने महल में लौटकर रानी सिकौली से सब समाचार कह सुनाया कि उसकी सौत का लड़का तो कुम्हार के घर में है। रानी ने उसे मरवाने का षड्यंत्र रचाया। वह मैले कपडे पहनकर कैकेयी की तरह कोप-भवन में लेट गई। राजा के पूछने पर उसने कहा, ‘‘जब तक अमुक कुम्हार का लड़का मौत के घाट नहीं उतार दिया जाएगा, मैं अन्न जल ग्रहण नहीं करूंगी।’’ राजा द्वारा उसका अपराध पूछने पर उसने बताया कि वह हमारी दासियों को चिढ़ाता है। पर राजा समझदार था। राजा ने तर्क दिया कि इस अपराध के कारण उसकी हत्या नहीं की जा सकती है, रानी के चाहने पर उसे इस गांव से निकाला जा सकत है। रानी मान गई। राजा ने कुम्हार के लड़के को गांव से बाहर निकाल दिया। थोड़े दिनों के बाद लड़का अच्छे-अच्छे कपड़े पहनकर रूप बदलकर दरबार में आने लगा। राजा उसे किसी कर्मचारी का पुत्र समझता रहा और राजमंत्री राजा का संबंधी। परिणामतः उसे कभी संदेह की दृष्टि से न देखा गया। उसके आचरण से सब प्रसन्न तथा संतुष्ट थे। वह प्रतिदिन दरबार में बैठकर राजकाज की सारी बातें ध्यान में रखता था। एक साल ऐसा आया कि राजा के राज्य में जल नहीं बरसा। सारा राज्य अकाल ग्रस्त हो गया। राज-पंडितों ने राजा को सलाह दी कि यदि राजा-रानी रथ में बैल की तरह कंधा देकर चलें तथा चैत्र-शुक्ल पूर्णिमा को उत्पन्न हुआ द्विजातीय बालक रथ को हांके तभी वर्षा होने का योग बन सकता है। यह सुनकर कुम्हार के बालक ने बताया कि मेरा जन्म उक्त दिन ही हुआ था। मैं रथ भी हांक सकता हूं। इधर रथ चलाने की तैयारियां होने लगीं, उधर बालक रूपा रानी के पास गया और कहने लगा, ‘‘यदि तुमसे कोई रथ से संबंधित काम करने को कहे तो तुम कहना कि पहले हमारी जेठानी करे तब मैं करूंगी। हर काम में तुम उसे ही आगे रखना।’’ रूपा ने बालक की बात स्वीकार कर ली। रथ चलने का समय आ गया। रूपारानी को जगह लीपने के लिए कहा गया। रूपा ने उत्तर में कहा, ‘‘पहले जेठानी लीपे फिर मैं लीपूंगी।’’ इस प्रकार सिकौली रानी द्वारा लीपने के बाद रूपा ने भी जगह लीप दी। इसी प्रकार कंधा देने के समय भी सिकौली रानी को ही पहल करनी पड़ी। जब सिकौली ने कंधा दिया, उस समय तेज धूप थी। राजकुमार ने पहले से ही मार्ग में गोखरू के कांटे बिखेर छोड़े थे। इधर नीचे पांव में तो रानी के कांटे गड़ते, उधर ऊपर से वह कोड़े बरसाता। उसे छुटकारा तभी मिला, जब रथ निश्चित सीमा पर पहुंच गया। अब रूपा रानी की बारी थी। उसके रथ में कंधा देते ही आसमान में बादल छा गये। रास्ते में से गोखरू हट गए। रूपारानी को जरा-सा भी कष्ट न हुआ। रथ चलाने का काम पूरा होते ही वर्षा होने लगी। सभी बड़े प्रसन्न हुए। तभी राजकुमार ने रूपारानी के पास जाकर उसके चरण छुए जिससे सबने जान लिया कि यही रानी का पुत्र ‘पजून कुमार’ है। राजा ने भी उसे अपना पुत्र जानकर गले लगाया। सर्वत्र आनंद की लहर दौड़ आई। पजूनकुमार सबसे मिलकर रनिवास में आया। वह सबसे पहले अपनी दादी के पास गया और कहने लगा, ‘‘दादी, हम आये, क्या तुम्हारे मन भाये?’’ दादी ने उत्तर दिया, ‘बेटा नाती पोते किसे बुरे लगते हैं?’’ पजूनकुमार बोला, ‘‘तुमने मेरे मन की बात नहीं कही। तुम्हारी बात बेकार और अधूरी है। मैं तुम्हें शाप देता हूं। तुम अगले जन्म में दहलीज होओगी।’’ फिर वह बुआ के पास जाकर बोला, ‘‘बुआ री बुआ ! हम आये, क्या तुम्हारे मन भाये? बुआ ने भी दादी का-सा उत्तर दिया। परिणामतः उसने बुआ को चैका लगाने वाला मिट्टी का बर्तन हो जाने का शाप दे दिया। फिर वह अपनी सौतेली सिकौली मां के पास जाकर बोला, ‘‘मां ! मां ! हम आये, क्या तुम्हारे मन भाये?’’ सिकौली मां का उत्तर था, ‘‘आये सो अच्छे आये, जेठी के हो या लहुरि के, हो तो लड़के ही।’’ राजकुमार ने उत्तर दिया, ‘‘तुमने भी मेरे मन की बात नहीं कही ! तुमने तो रूखी बात कही है। इसलिए तुम घुंघुची बनोगी। आधी काली और आधी लाल।’’ अंत में वह अपनी असली मां रूपारानी के पास गया और बोला, मां ! मां! हम आये, तुम्हारे मन भाये या ना भाये?’’ रूपारानी बोली, ‘‘बेटा, आये-आये ! हमने न पाले न पोसे, न खिलाये, न पिलाये। हम क्या जानें, कैसे आये?’’ तभी वह किशोर राजकुमार नवजात शिशु के रूप में केहां-केहां करके रोने लगा। मां उसे गोद में लेकर दूध पिलाने लगी। राजा को भी यह समाचार मिला, राजा यह सब देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ। सारे राज्य में फिर से आनंद छा गया। बधाइयां बजने लगीं। इसी दिन से यह ‘पजूनो पूनो’ पूजन व व्रत का प्रचलन हुआ है।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.