आयु विशेष पर लाल किताब आधारित फलादेश

आयु विशेष पर लाल किताब आधारित फलादेश  

व्यूस : 12073 | जून 2008
आयु विशेष पर लाल किताब आधारित फलादेश बसंत कुमार सोनी कुछ लोग सूर्य देव को इस विद्या के जनक मानते हैं तो कुछ अन्य सूर्य के सारथी अरुण को इसका आदि आचार्य मानते हैं। उनके अनुसार लंकापति रावण ने सूर्य भगवान के सारथी अरुण से यह विद्या ग्रहण की थी। लाल किताब उर्दू शैली में प्रकाशित है। 19वीं सदी के चैथे दशक के दौरान लाल किताब के कई संस्करण प्रकाशित हुए, जिनमें लाल किताब के अरमान/फरमान, लाल किताब की लग्न सारणी/वर्षफल सारणी और गुटका लाल किताब प्रमुख हैं। चूंकि फारसी भाषा के गुटके का अनुवाद पंजाब के किसी विद्वान द्वारा उर्दू भाषा में किया गया और उसका प्रकाशन लाल किताब के नाम से किया गया इसीलिए लाल किताब पंजाब में ज्यादा लोकप्रिय हुई। ज्योतिष की लाल किताब विधा मंे लग्न कुंडली बनाकर राशि अंक मिटा दिए जाते हैं। ग्रहों की स्थिति के अनुरूप खाना नंबर के आधार पर भविष्य फल कथन किया जाता है। यह पद्धति सात्विक भोजन, शुद्धता और सच्चाई का पालन करने पर जोर देती है। इस पद्धति में अनिष्टकारी ग्रहों की शांति और शुभ फलदायक ग्रहों के शुभत्व में वृद्धि के उपायों, प्रयासों या उपचारों को कल्याणकारी टोटकों की संज्ञा दी गई है। ये उपाय बिना किसी तिथि या मुहूर्त विचार के दिन के समय में ही किए जाते हैं अर्थात् लाल किताब के उपाय किसी भी दिन सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के पूर्व किए जाते हैं। वर्ष कुंडली के अशुभ ग्रहों की शांति के उपाय जन्मतिथि से 43 दिन के अंदर करने होते हैं। अपने सरल उपायों के कारण ही भारतीय ज्योतिष जगत में लाल किताब पद्धति लोकप्रिय हुई है। जातक की आयु विशेष पर ग्रहों का प्रभाव- भारतीय ज्योतिष के अनुसार किसी भी जातक के जीवन में घटित होने वाली शुभाशुभ स्थिति या बुरी घटना अर्थात् होनी-अनहोनी घटित होने का समय जानने के लिए दशाओं का इस्तेमाल किया जाता है। जैसे विंशोŸारी महादशा, अंतर्दशा, प्रत्यंतर्दशा योगिनी दशा आदि। इसमें अष्टक वर्ग का उपयोग भी एक महत्वपूर्ण आधार होता है। लाल किताब पद्धति में विंशोŸारी दशा आदि की कोई गणना नहीं की जाती। भविष्य फल कथन की लाल किताब वाली पद्धति की दशाओं की गणना की अपनी एक अलग ही प्रणाली है। प्रत्येक ग्रह जातक के जीवन अथवा आयु पर विशिष्ट वर्षों में ही अपना-अपना प्रभाव डालता है। ग्रहों का ऐसा प्रभाव लाल किताब पद्धति में ‘‘पैंतीस वर्षीय चक्र’’ कहलाता है। इस चक्र के आधार पर जातक के जीवन में किस वर्ष या किस उम्र में कौन से ग्रह का प्रमुख प्रभाव होगा यह ज्ञात हो जाता है जिसके फलस्वरूप भविष्य में होने वाली अच्छी/बुरी घटना या शुभाशुभ समय का पता लगाया जा सकता है। जिस तरह उŸार भारतीय विंशोŸारी दशा और दक्षिण भारतीय अष्टोŸारी दशा में नव ग्रहों का एक निश्चित क्रम होता है वैसे ही लाल किताब प्रणाली में भी ग्रहों का एक निश्चित क्रम है। जातक के जीवन पर सर्वप्रथम जन्म काल से 6 वर्ष की आयु तक शनि का प्रभाव, 7 से 12 वर्ष तक राहु का, 13 से 15 वर्ष तक केतु का 16 से 21 वर्ष तक गुरु का, 22 से 23 वर्ष तक सूर्य का, 24 वर्ष की आयु में चंद्र का, 25 से 27 वर्ष तक शुक्र का, 28 से 33 वर्ष® तक मंगल का और 34 से 35 वर्ष तक बुध का प्रभाव रहता है। इस तरह जातक की 35 वर्ष तक की आयु के अलग-अलग भाग पर अलग-अलग ग्रहों का प्रभाव रहता है। यही पैंतीस वर्षीय चक्र है। 36 वर्ष की आयु से पुनः शनि का प्रभाव शुरू होता है। इस क्रम से 35 वर्षीय त्रि-चक्रों का क्रम पूरा होने पर 105 वर्ष की आयु सीमा मानी जातीे है। उदाहरणार्थ जन्म के प्रथम छः वर्षों तक जातक शनि के प्रभाव में रहेगा। यदि उम्र के इन एक से छः वर्षों में वर्षफल के दौरान शनि आठवें खाने में गोचर कर रहा हो तो रोग का कारण बनेगा। फलस्वरूप जातक बीमारी से पीड़ित होगा अर्थात वह बचपन में बीमार रहेगा। परंतु वर्षफल में शनि के ग्यारहवें खाने में आने पर उसकी सुख संपŸिा में वृद्धि होगी, संपन्नता आएगी, अपना मकान बनेगा, रोजगार धंधे में मुनाफा होगा। लेकिन छः वर्ष की आयु के जातक को संपन्नता, गृह-निर्माण और रोजगार धंधे में वृद्धि या लाभ से क्या सरोकार? हां यह जरूर है कि उसके माता पिता के जीवन पर ग्यारहवें घर के शनि का शुभ प्रभाव पड़ेगा। यदि शनि पैंतीस वर्षीय द्वितीय चक्र के क्रम में अर्थात 36 से 41 वर्ष के बीच प्रभावशाली हो तो जातक ग्यारहवें घर के वर्षफल वाले शनि की छः वर्षीय दशा मंे स्वयं लाभान्वित होगा। किंतु तृतीय चक्र के क्रम में अर्थात 71 से 76 वर्ष के बीच वर्षफल में शनि लाल किताब प्रणाली के अंतर्गत आठवें घर में आ जाए तो जातक रोगग्रस्त होगा। लाल किताब के मुताबिक वर्षफल कथन करते वक्त इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि किसी वर्ष विशेष के दौरान जातक के जीवन पर किस ग्रह का प्रभाव पड़ रहा है? ऐसे प्रभावी ग्रह की स्थिति विशेष का पूर्ण रूपेण विश्लेषण कर ही सही भविष्य फल कथन किया जा सकता है। ग्रहों का क्रम इस प्रकार है- शनि 6 वर्ष राहु 6 वर्ष केतु 3 वर्ष गुरु 6 वर्ष सूर्य 2 वर्ष चंद्र 1 वर्ष शुक्र 3 वर्ष मंगल 6 वर्ष बुध 2 वर्ष भारत भूमि अति प्राचीन काल से ही अरिष्ट ग्रहों के प्रतिकूल प्रभावों के शमन के लिए ज्योतिष शास्त्र में वर्णित उपायों का प्रयोग होता आया है। जिनका शुभ फल निश्चय ही प्राप्त होता है। यदि ये उपाय निष्ठापूर्वक नियमित रूप से निश्चित समय पर किए जाएं तो उनका शत-प्रतिशत फल प्राप्त होता है। इसी तरह यदि निष्ठापूर्वक नियमित रूप से निश्चत समय पर गोपनीय रखते हुए किए जाएं तो लाल किताब के कल्याणकारी टोटके या उपाय भी शुभ फल देते हैं। नीच ग्रहों के उपाय सूर्य - पाठशालाओं में पढ़ने वाले बच्चों को गेहूं और गुड़ से बनी चीजें खाने को दें। स्वयं गुड़ मिश्रित दूध के साथ चावल (भात) खाएं। चंद्र - चांदी में जड़ी मोती की अंगूठी पहनें, चावल खाएं, सफेद चंदन लगाएं और सफेद कपड़े पहनें। मंगल - तिल, गुड़ और रेवड़ी जल में प्रवाहित करें, मंगलवा को मसूर की दाल न बनाएं और न खाएं। बुध - बुधवार को भीगी मूंग का दान करें और हरे तथा चैड़े पत्तों वाले पौधे घर की छत पर लगाएं। गुरु - प्रातःकाल पुरोहित को पीले रंग के पदार्थों का दान करें। शुक्र - सफेद रेशमी कपड़े दान दें, ज्वार और दही मंदिर में अप्रित करें और बादाम खाएं। शनि - काले कपड़े में तिल की पोटली बनाकर जल में प्रवाहित करें, रेबड़ी बांटें, तेल, मांस मदिरा आदि का सेवन न करें, उड़द न खाएं। राहु - वणिक से खरीदकर बादाम ब्राह्मण को बांटते रहें। केतु - गेहूं, गुड़, केले और कंबल का दान करें, कुŸो को मीठी रोटी खिलाएं। लाल किताब पर आधारित ग्रहों के प्रभावी वर्षों का वर्षफल कथनोपयोगी 35 वर्षीय त्रि-चक्रों का चार्ट क्रम क्रमानुसार आयु-वर्ष आयु-वर्ष आयु-वर्ष प्रभावी ग्रह चक्र-क्रमांक-1 चक्र-क्रमांक-2 चक्र-क्रमांक-3 1. शनि 1 से 6 वर्ष 36 से 41 वर्ष 71 से 76 वर्ष 2. राहु 7 से 12 वर्ष 42 से 47 वर्ष 77 से 82 वर्ष 3. केतु 13 से 15 वर्ष 48 से 50 वर्ष 83 से 85 वर्ष 4. गुरु 16 से 21 वर्ष 51 से 56 वर्ष 86 से 91 वर्ष 5. सूर्य 22 से 23 वर्ष 57 से 58 वर्ष 92 से 93 वर्ष 6. चंद्र 24 वर्ष 59 वर्ष 94 वर्ष 7. शुक्र 25 से 27 वर्ष 60 से 62 वर्ष 95 से 97 वर्ष 8. मंगल 28 से 33 वर्ष 63 से 68 वर्ष 98 से 103 वर्ष 9. बुध 34 से 35 वर्ष 69 से 70 वर्ष 104 से 105 वर्ष



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