कैलेंडर व पंचांग में भिन्नता क्यों

कैलेंडर व पंचांग में भिन्नता क्यों  

डॉ. अरुण बंसल
व्यूस : 2736 | अप्रैल 2010

आधुनिक (ग्रेगोरियन) कैलेंडर में प्रति चार वर्ष पश्चात एक लीप वर्ष होता है, 100 वर्ष पश्चात लीप वर्ष नहीं होता एवं 400 वर्ष पश्चात पुनः लीप वर्ष होता है। इस प्रकार वर्ष मान 365.2425 दिनों का होता है जो कि सायन वर्ष मान 365.2422 के बहुत करीब है और केवल 3000 वर्षों बाद 1 दिन का अंतर आता है।

कैलेंडर की तुलना में पंचांग में सूर्य, चंद्र आदि के राशि प्रवेश व तिथि, योग, करण आदि की गणना दी जाती है। राशि अर्थात् तारों के परिपे्रक्ष्य में जब हम ग्रहों को देखते हैं, तो वह उसकी निरयण स्थिति होती है। निरयण वर्ष मान 365.2563 दिनों का होता है जो कि सूर्य के एक राशि में प्रवेश से अगले वर्ष उसी राशि में प्रवेश का काल है। यह सायन वर्ष से .0142 दिन बड़ा है। इस प्रकार 100 वर्षों में 1.42 दिनों का अंतर आ जाता है। पंचांग प्रति 100 वर्षों से कैलेंडर से लगभग डेढ़ दिन आगे खिसक जाता है। इस कारण मकर संक्रांति व लोहड़ी आदि में अंतर आ जाता है और हिंदू पर्व, जो तिथि के अनुसार मनाए जाते हैं, धीरे-धीरे आगे खिसकते जाते हैं।

सायन व नियरण गणना क्या होती है और दोनों में क्या अंतर है? पृथ्वी अपनी धुरी पर सूर्य की परिक्रमा क्रांतिवृत्त पर लगाती है। लेकिन यह लगभग 23.40 झुकी रहती है। पृथ्वी के इस झुकाव के कारण ही गर्मी व सर्दी पड़ती हंै। झुकाव के कारण पृथ्वी का जो भाग सूर्य के सीधे सामने आ जाता है वहां गर्मी हो जाती है। क्योंकि ऋतुएं, अयन व सूर्योदय आदि पृथ्वी के झुकाव के कारण होते हैं न कि पृथ्वी की परिक्रमा के कारण, अतः कैलेंडर सायन बनाया जाता है। पृथ्वी का भूमध्य वृत्त क्रांतिवृत्त के साथ एक रेखा पर काटता है, जिसका एक बिंदु वसंत विषुव व दूसरा शरद विषुव कहलाता है। यह रेखा पृथ्वी के अक्ष दोलन ;छनजंजपवदद्ध के कारण 50.3 प्रतिवर्ष की गति से पश्चिम की ओर खिसकती जाती है। पृथ्वी के पूर्ण 3600 चलने को निरयण और उसके पुनः उसी झुकाव में आने को सायन वर्ष कहते हैं। इस कारण शरद विषुव पर पृथ्वी को पुनः आने में 3600 से लगभग 50’’ कम चलना पड़ता है। यह अंतर ही अयनांश कहलाता है।


अपनी कुंडली में काल सर्प दोष की जानकारी के लिए क्लिक करें


सायन कैलेंडर व निरयण पंचांग 23 मार्च 285 को एक थे। तदुपरांत आज तक लगभग 24 दिनों का अंतर आ गया है। अतः चैत्र मास, जो फरवरी व मार्च में आता था, अब मार्च व अप्रैल में पड़ता है। ज्येष्ठ मास मई की बजाय जून में पड़ता है और यही कारण है कि अत्यधिक गर्मी, जो ज्येष्ठ मास में पड़ती थी, अब वैशाख में ही पड़ जाती है। इसी प्रकार वर्षा ऋतु भी, जो श्रावण व भाद्रपद में पड़ती थीं, अब आषाढ़ व श्रावण में आती है। ऋतुएं सूर्य के कारण बनती हैं अतः सायन कैलेंडर के अनुसार ही सत्यापित होती हैं। निरयण पंचांग, राश्यानुसार होने के कारण, ऋतुओं के लिए पूर्ण ठीेक नहीं बैठता है। कोई भी गणना, जो सूर्य पर आधारित होती है, ग्रेगोरियन कैलेंडर पर सत्य बैठती है व पंचांग में खिसकती जाती है। इसी प्रकार है सूर्योदय व अयन गोल आदि।

कैलेंडर के अनुसार 23 दिसंबर को सबसे छोटा दिन होता है व इसी दिन सूर्य उŸारायण हो जाता है। लेकिन पंचांग तिथि या प्रविष्टे के अनुसार सूर्य मकर राशि में नहीं होता। कभी (वर्ष 285 में) लोहड़ी या मकर संक्रांति सबसे छोटा दिन होता था लेकिन आज नहीं होता। क्या हमें कैलेंडर निरयण कर देना चाहिए? या क्या पंचांग सायन कर देना चाहिए? उत्तर एक ही है-नहीं। दोनों अपने स्थान पर ठीक हैं। कैलेंडर आम जनता के लिए बना है, उसका सायन होना ही ठीक है। इस कारण ऋतुएं व सूर्योदय आदि तारीख के अनुसार एक बने रहते हैं। पंचांग ज्योतिर्विदों के लिए है, उससे ग्रहों की स्थिति जानी जाती है व गणना की जाती है। ग्रहों की स्थिति राश्यानुसार ही जानी जाती है, अतः इस गणना का निरयण होना स्वाभाविक है। इसे सायन नहीं कर सकते। इसी कारण सभी पंचांग निरयण ही होते हैं। ग्रहों की गणना के लिए सूर्य को आधार लेकर फिर अयनांश घटाकर ग्रह स्पष्ट करना सुलभ है।


आपकी कुंडली के अनुसार कौन सी पूजा आपके लिए लाभकारी है जानने के लिए प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्यो से परामर्श करें


अतः गणना के लिए प्रथम सायन गणना कर अयनांश घटाकर निरयण गणना कर ली जाती है। ग्रह स्पष्ट की सायन सारणियां मिलती हैं। लेकिन इसका तात्पर्य यह कदापि नहीं है कि ग्रह सायन गणनानुसार राशि में चल रहे हैं। सभी ग्रह आकाश मंडल में (तारों के परिप्रेक्ष्य में) निरयण गति के अनुसार ही चलते हैं और ज्योतिष, जो कि राशियों, नक्षत्रों पर आधारित है, पूर्णतया निरयण ही है। अतः जो गणनाएं की जा रही हैं, वे पूर्ण सत्य हैं, उन्हें गलत मानकर फेरबदल करने से केवल भ्रामक स्थितियां ही पैदा होती हैं। यदि कैलेंडर व पंचांग में मतभेद है, तो वह भी सत्य है। पंचांगों के एकीकरण में एक आवश्यकता है - ग्रह स्पष्ट सिद्धांत को एक मानने की। कुछ पंचांग पूर्व प्रकाशित सूर्य सिद्धांत या अन्य सिद्धांतों से ही गणना करते हैं, जबकि आज के युग में, जब मानव उपग्रह द्वारा ग्रहों पर पहुंच गया है, तो आधुनिक गणना को गलत मानना केवल रूढ़िवादिता है। यदि ज्योतिष का फलित इन गणनाओं से सही आता नहीं प्रतीत होता है, तो हमें फलित के सिद्धांत बदलने चाहिए न कि गणित को। फलित गणित का आधार नहीं हो सकता, गणित के आधार पर ही फलित के सूत्र होने चाहिए। सभी पंचांगों को अंतर्राष्ट्रीय मानक प्राप्त ग्रह स्पष्ट को सही मानकर कम्प्यूटर द्वारा गणना करनी चाहिए, ताकि पंचांगों में अंतर समाप्त हो और आम मनुष्य भ्रमित न हो।

अयनांश में मतभेद भी ग्रह स्पष्ट को एक नहीं होने देते। जब हम सायन और निरयण के भेद में चूक कर जाते हैं और विश्वास सहित जातक की लग्न या राशि नहीं बता सकते, तो अयनांश में मतभेद रखने से क्या लाभ। कुछ अयनांश केवल नाम के कारण चल रहे हैं। अंतर इतने कम हैं कि ज्योतिष के द्वारा इसका सत्यापन करना बिल्कुल मुमकिन नहीं है। अतः मतभेद को त्यागकर गणना के लिए चित्रापक्षीय अर्थात लहरी अयनांश ही अपनाना चाहिए। फलित कथन के अपने-अपने सूत्र बनाए जा सकते हैं व उसके लिए कुछ भी जोड़ा या घटाया जा सकता है। पंचांग बनाने में दूसरी दिक्कत है पर्वों को लेकर एकमत न होने की। तिथि निर्णय में सूर्योदय की भूमिका अहम है।

स्थान के अनुसार सूर्योदय बदल जाता है। यदि सूर्योदय के आसपास तिथि बदल रही हो, तो स्थान के अनुसार तिथि में परिवर्तन आ जाता है और पंचांग में भी। तिथि जन्य पर्वों में भी अंतर आ जाता है।अतः हमें मुख्य पर्वों का इतिहास के अनुसार स्थान निश्चित कर देना चाहिए। उस स्थान व तिथि के अनुसार ही पर्व की गणना करनी चाहिए। सभी जगह उस तारीख पर ही वह पर्व मनाना चाहिए, चाहे वहां तिथि या नक्षत्र कोई भी हो। धर्म ग्रंथों में पर्व के साथ स्थान का उल्लेख नहीं है, लेकिन तिथि के अनुसार पर्व की गणना करना अनुचित है। कभी-कभी एक पर्व दो तारीखों को पड़ता है। ऐसा अक्सर जन्माष्टमी व दीपावली के साथ होता है। कारण है दोनों पर्वों में मध्यरात्रि कालीन तिथि, नक्षत्र आदि का लिया जाना। प्रायः प्रातःकाल में तिथि दूसरी होती है। अतः गणना के लिए केवल तिथि के अनुसार पर्व की गणना कर देने के कारण यह अंतर आता है। यदि पर्व की गणना विधिवत् की जाए, तो इस प्रकार के अंतर नहीं आएंगे। हिंदू धर्म ग्रंथों में पर्व गणना के लिए विस्तृत सूत्र उपलब्ध हैं, जिससे गणना में कोई संदेह मुमकिन नहीं है।


जीवन की सभी समस्याओं से मुक्ति प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करें !




Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.